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‘अलनीनो’ के प्रभाव से कम हुई पूर्वांचल में मानसूनी बारिश

नई दिल्ली। सावन से भादो दूबर नहीं होता… यह कहावत इन दिनों सटीक बैठ रही है। बीते 23 अगस्त से भादो महीना लग गया और बारिश मेहरबान है। हालाँकि, बीते वर्षों के अनुसार, इस बार यूपी में 30% कम बरसात हुई है। वहीं, सामान्य मानसून के अनुसार, केरल में 43%,पश्चिम बंगाल में 33% कम बरसात […]

नई दिल्ली। सावन से भादो दूबर नहीं होता… यह कहावत इन दिनों सटीक बैठ रही है। बीते 23 अगस्त से भादो महीना लग गया और बारिश मेहरबान है। हालाँकि, बीते वर्षों के अनुसार, इस बार यूपी में 30% कम बरसात हुई है। वहीं, सामान्य मानसून के अनुसार, केरल में 43%,पश्चिम बंगाल में 33% कम बरसात हुई। जबकि, राजस्थान जैसे सूखे इलाके में 33% ज्यादा बारिश हुई। पश्चिम यूपी की बात करें तो यहाँ सामान्य बारिश हुई। वहीं, पूर्वी यूपी में 30% कम बारिश रिकॉर्ड की गई।

मौसम विज्ञानी एसएन पांडेय

बीएचयू के भूतपूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर और मौसम विज्ञानी एसएन पांडेय ने बताया कि ‘कम बारिश का कारण अलनीनो (El Nino) यानी प्रशांत महासागर की गर्म जलधारा है, जिसने पूर्वांचल की 30% मानसूनी बारिश छीन ली। अलनीनो के कारण हवाओं का दबाव भारत पहुँचते-पहुँचते नीचे हो जाता है और अच्छी बारिश के लिए यह स्थिति ठीक नहीं है। हाँ, आने वाले दिनों में स्थिति ठीक हो सकती है और बारिश का अनुमान लगाया जा सकता है।’

एसएन पांडेय ने बताया कि ‘अलनीनो का सम्बंध प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से है। अलनीनो पर्यावरण की एक स्थिति है, जो प्रशांत महासागर के भू-मध्य क्षेत्र में शुरू होती है। सामान्य शब्दों में कहें तो, अलनीनो वह प्राकृतिक घटना है, जिसमें प्रशांत महासागर का गर्म पानी उत्तर और दक्षिण अमेरिका की ओर फैलता है और फिर इससे पूरी दुनिया में तापमान बढ़ता है। इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। यह तापमान सामान्य से कई बार 0.5 या 1 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा हो सकता है।’

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वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो पूर्वांचल के 11 जिले सूखे की जद में हैं। केरल और पश्चिम बंगाल के बाद पूर्वांचल सबसे कम बारिश वाला क्षेत्र बन गया है। मौसम विज्ञान विभाग ने यूपी के 4 जिलों को लार्जेस्ट डिफिशिएंट (LD) कैटेगरी यानी सबसे कम बारिश वाली श्रेणी में शामिल किया है। यानी यहां की स्थिति काफी चिंताजनक है। इनमें से तीन जिले पूर्वांचल के चंदौली, मऊ, मीरजापुर और एक कौशांबी है, जहाँ सबसे कम बारिश हुई।

BHU के मौसम वैज्ञानिक प्रोफेसर मनोज श्रीवास्तव

मौसम विभाग के अनुसार, वाराणसी में जुलाई और अगस्त महीने में 177 मिलीमीटर और जुलाई में 194 मिलीमीटर बारिश हुई। जबकि अगस्त की सामान्य बारिश 273 मिलीमीटर और जुलाई की 309 मिलीमीटर रहती है। मतलब इस साल मानसून पर सूखे की चपेट पड़ी है। वहीं, BHU के मौसम वैज्ञानिक प्रोफेसर मनोज श्रीवास्तव का कहना है कि ‘मानसून तो अब लौटने लगा है। विदाई के मौके पर थोड़ी बरसात करा रहा है। लेकिन, बस अब इससे ज्यादा बारिश नहीं मिलने वाली। हाँ, पूर्वांचल में मानसून कम बरसा है। पूरा का पूरा इलाका सूखे के चपेट में है। बारिश की मात्रा और दिन, दोनों में 40% की एवरेज कमी देखी गई है। इस बार प्रशांत महासागर में उठे अलनीनो का सीधा इफेक्ट पूर्वांचल के 5-6 जिलों पर पड़ा है। असल में अलनीनो ने ही पूर्वांचल में मानसून में कम बारिश कराई। अलनीनो का असर यह हुआ कि यूपी में कहीं जरूरत से ज्यादा बारिश और कहीं पर सूखे वाली स्थिति बन गई।’

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वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के मानें तो इस बार अलनीनो की वजह से अरब सागर से होकर आने वाली मानसूनी हवा कमजोर पड़ गई। पश्चिम यूपी और दिल्ली की ओर ये हवा काफी कम पहुंची। वेस्टर्न डिस्टर्बेंस लगातार पश्चिम से पूरब की ओर चलती रही। इस दौरान बंगाल की खाड़ी से होकर आ रही मानसूनी हवा काफी मजबूत स्थिति में थी। ऐसे में पश्चिम यूपी और दिल्ली में लो प्रेशर होने से बंगाल की खाड़ी वाली मानसूनी हवा तेजी से पश्चिम की ओर निकल गई। वाराणसी से लेकर मऊ, बलिया, जौनपुर, चंदौली, मीरजापुर, सोनभद्र और मध्यप्रदेश का सिंगरौली, सीधी और रीवा जिले में भी मानसूनी बारिश नहीं हुई। वेस्ट यूपी के पास ये हवा वेस्टर्न डिस्टर्बेंस से टकराकर खूब बारिश कराई। पूरे मानसूनी महीने में यह स्थिति काफी मजबूत रही। जबकि, बंगाल की खाड़ी की ओर से आ रहे बादल पूर्वांचल में ढंग से बरस ही नहीं पाए।

अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग में कार्यरत हैं।

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