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हजारों करोड़ के खर्च से आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन से देश को क्या हासिल होगा

वाराणसी। देश की राजधानी में कल से शुरू हुआ दो दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। एक तरफ मोदी सरकार इस सम्मेलन के आयोजन में कोई कोर कसर न छोड़ते हुए पानी की तरह जनता के पैसे को बहा रही है तो वहीं दूसरी तरफ राजधानी तक आने-जाने वाली […]

वाराणसी। देश की राजधानी में कल से शुरू हुआ दो दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। एक तरफ मोदी सरकार इस सम्मेलन के आयोजन में कोई कोर कसर न छोड़ते हुए पानी की तरह जनता के पैसे को बहा रही है तो वहीं दूसरी तरफ राजधानी तक आने-जाने वाली सभी गाड़ियों को गाजियाबाद तक ही सीमित कर दिया गया है। गाजियाबाद के बाद से लोग अपने साधनों द्वारा अपने गंतव्य तक जा रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने जनता की हो रही फजीहत के मद्देनजर पहले से ही माफी मांग ली थी, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ माफी मांग लेने भर से किसी को माफ किया जा सकता है। सवाल यह भी उठता है की आमजन की गाढ़ी कमाई को पानी की तरह बहाकर हम क्या हासिल करना चाह रहे हैं।

दो दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन पर होने वाले खर्च की बात की जाय तो यह मामला कई अरब में जाएगा। तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता साकेत गोखले ने अपने एक ट्वीट में दावा किया है कि इससे पहले जर्मनी ने जब G-20 की मेजबानी की थी तो उसमें 641 करोड़ खर्च हुए थे। साकेत गोखले ने दावा किया कि अकेले दिल्ली में 4 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए। वहीं दिल्ली इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से इन्होंने बताया है कि दिल्ली के प्रगति मैदान पर 27 सौ करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। जबकि इकोनोमी बैकर्स ने इस पर 3 हजार करोड़ रुपये खर्च की बातें कही हैं।

देखा जाय तो सम्मेलन के पहले दिन रात्रि डिनर पर विदेशी मेहमानों को खाने के लिए सोने और चाँदी के बर्तनों कि व्यवस्था कि गई थी। चम्मच भी सोने के। मेहमानों को पानी पीने के लिए चाँदी के ग्लास की व्यवस्था की गयी थी। ऐसा लगता है जैसे हमारे प्रधानमंत्री का मन मेहमानों कि इतनी खातिरदारी से खुश नहीं थे, ऐसे में वे एक कदम और आगे बढ़ गए और महंगे तोहफे देने की योजना को अमली जमा पहना दिया। भाजपा की विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी कहती हैं- ‘G-20 समिट में सभी मेहमानों को एक-एक फोन दिया जाएगा, जिसमें कुछ पैसे भी होंगे, जिसके जरिए वे मोबाइल बैंकिंग का अनुभव कर सकें। इस मोबाइल में 24 भाषाओं की ऐप डिजाइन की गई है।

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हाल ही में टेलीग्राफ में छपे एक लेख जिसको लिखने वाले अशोक मोदी, जो अमेरिका के ब्रिस्टन यूनिवर्सिटी के विजिटिंग प्रोफेसर हैं, ने अपने लेख में लिखा है कि NSO  (national  statical office) ने अपने आंकड़ें में गलत दिखाया है की भारत की जीडीपी अप्रैल से जून के बीच 7.8 प्रतिशत है। वास्तव में यह इस दौरान 4.5 प्रतिशत रही। प्रोफेसर अशोक ने बताया कि विदेशों में भारत के माल की मांग ज्यादा नहीं है। जबकि यहाँ की जनता काफी मेहनत कर रही है। हाल के डेटा से इस बात का पता चलता है इन सबका कारण नौकरियों की घोर कमी और बढ़ती असमानता है।

यहाँ पर एक सवाल खड़ा होता है कि क्या जरूरत थी, इस तरह से पैसे बर्बाद करने की? इस प्रश्न का जवाब देते हैं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव हीरालाल यादव- ‘मोदी जी को एक तो 2024 का चुनाव दिखाई दे रहा है, दूसरे वह प्रचार के भूखे हैं। इस कार्यक्रम के जरिये वे अपनी लोकप्रियता को जनता के बीच पहुंचाना चाह रहे हैं।’ लेकिन जिस प्रकार से मोदी पैसे को पानी की तरह बहा रहे हैं, उससे आम आदमी को क्या हासिल होगा? सवाल के जवाब में हीरालाल यादव कहते है- ‘G-20 शिखर सम्मेलन एक आम सम्मेलन है जिसमें इसके सदस्य देश भाग लेते हैं और सदस्य देशों की जो भी समस्याएँ होती हैं, उन्हें वे आपस में मिलकर दूर करने का प्रयास करते हैं। मोदी ने इस कार्यक्रम के आयोजन में इतना पैसा खर्च करके, यहाँ की जनता की गाढ़ी कमाई को लुटाने का काम  किया है। यह अमेरिका के छोटे जूनियर की भांति उसी के इशारों पर नाच रहे हैं। अमेरिका सदैव से सिर्फ अपना हित ही सोचता आया है। उसे इंडिया की परवाह नहीं।’

भारत में मीडिया का हाल यह है कि चारो तरफ मोदी-मोदी हो रहा है। G-20 शिखर सम्मेलन की बाबत कहा जा रहा है मोदी के नेतृत्व में देश आगे बढ़ रहा है। मोदी हैं तो संभव है। तमाम प्रकार के जुमले मीडिया द्वारा गढ़ा जा रहा है। इससे उलट देखा जाय तो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने भारतीय मीडिया के झूठ कि पोल खोल दी। भारतीय मीडिया द्वारा G-20 शिखर सम्मेलन को जनआंदोलन घोषित करने के फौरन बाद वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा-मोदी अपनी छवि चमकाने में लगे हैं। गार्डियन के संपादकीय में लिखा– ‘मोदी का भारत एक अघोषित रूप से धर्म आधारित राज्य बन चुका है। इसमें नागरिकों को हिन्दू राष्ट्रीय पहचान से देखा जाता है। जो हिन्दू नहीं उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जा रहा है।’ जापान के NIKKEI ASIA में स्वामीनाथन अंकलेश्वर अय्यर ने लिखा है- ‘भारत के मोदी विश्वगुरु नहीं हैं।’

देखा जाय तो G-20 समिट की सिक्योरिटी में 1.30 लाख जवान, एनएसजी, सीआरपीएफ़, सीएपीएफ और आर्मी के करीब 80 हजार जवान बुलेट प्रूफ गाडियाँ, एंटी ड्रोन सिस्टम, एयर डिफेंस सिस्टम, फाइटर जेट राफेल, एअरफोर्स और सेना के हेलिकाप्टर, हवा में 80 किमी तक मार करने वाली मिसाइल, चेहरा पहचानने वाले कैमरे,दिल्ली के आसपास के 4 एयरपोर्ट अलर्ट मोड पर…… ये सब G-20 समिट की सुरक्षा के लिए लगाए गए थे। जिन होटलों में विदेशी मेहमान ठहरे थे वहाँ पर डीसीपी रैंक का एक अधिकारी बतौर कैंप कमांडर तैनात किया गया        था।

इमरजेंसी में 200 से ज्यादा एनएसजी कमांडो हर पल तैनात थे। समिट के दौरान सिर्फ ट्रैफिक मैसेज करने के लिए 10 हजार से ज्यादा जवान तैनात थे।

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इस बीच सम्मेलन की समाप्ति के अवसर पर ब्रिटिश पीएम ऋषि सुनक ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) में अरबों डालर देने की बात कही।  ब्रिटिश पीएम ने इसी दिसंबर में COP28  शिखर सम्मेलन से नेताओं से एक साथ काम करने का आह्वान किया। यह राशि यूके द्वारा की गई सबसे बड़ी एकल फंडिंग है।

काफिले की सिक्योरिटी के लिए सीआरपीएफ़ के 950 कमांडरों की तैनाती की गयी थी। वहीं  मेहमानों के आने- जाने के लिए 500 लक्जरी कारें ली गयी थी।

जो भी हो एक तरफ मोदी जहां भारतीय जनता को एक तरफ विश्वगुरु तो दूसरी तरफ विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का दिवास्वप्न दिखा रहे हैं। अशोक मोदी कि माने तो स्थितियां इसके काफी विपरीत हैं। जैसा की हीरालाल यादव कहते भी हैं कि ‘देश कि स्थिति आज नाजुक दौर से गुजर रही है लेकिन सच्चाई को सामने लाने से रोका जा रहा है। मोदी जी को यह बात नहीं मालूम कि घर-परिवार को चलाने के लिए घर का मुखिया एक-एक पैसे को जोड़कर घर रूपी गृहस्थी को आगे बढ़ाता है।’

 

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