Friday, October 18, 2024
Friday, October 18, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमराष्ट्रीयगुजरात सरकार की सांठगांठ से बिलकिस बानो के दोषी बाहर आए –...

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

गुजरात सरकार की सांठगांठ से बिलकिस बानो के दोषी बाहर आए – सुप्रीम कोर्ट  

नयी दिल्ली(भाषा। बिलकिस बानो के दोषियों की सजा खत्म कर 15 अगस्त को जेल से रिहा कर दिया गया था। जबकि वे सभी जघन्य अपराध के दोषी थे। आज उन 11 लोगों की सजा से मिली माफी को निरस्त कर उन्हें फिर से कैद में लिए जाने का आदेश उच्चतम न्यायालय ने जारी किया है। […]

नयी दिल्ली(भाषा। बिलकिस बानो के दोषियों की सजा खत्म कर 15 अगस्त को जेल से रिहा कर दिया गया था। जबकि वे सभी जघन्य अपराध के दोषी थे। आज उन 11 लोगों की सजा से मिली माफी को निरस्त कर उन्हें फिर से कैद में लिए जाने का आदेश उच्चतम न्यायालय ने जारी किया है।

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि बिलकिस बानो मामले में समय से पहले रिहाई के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले एक दोषी के साथ गुजरात सरकार की साँठगांठ थी ।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि उसे समझ नहीं आ रहा कि गुजरात सरकार ने 13 मई, 2022 के उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल क्यों नहीं की, जिसमें गुजरात सरकार को एक कैदी की समय पूर्व रिहाई की याचिका पर राज्य की 9 जुलाई, 1992 की नीति के अनुरूप विचार करने का निर्देश दिया गया था।

गुजरात सरकार ने 1992 में माफी की नई नीति जारी की थी जिसके तहत जेल परामर्श बोर्ड की अनुकूल राय पर उन दोषियों की याचिकाओं पर विचार किया जा सकता है, जिन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई हो और जो कम से कम 14 साल कारावास की सजा काट चुके हों।

पीठ ने कहा, ‘इस अदालत के 13 मई, 2022 के आदेश का लाभ उठाते हुए अन्य दोषियों ने भी माफी के लिए आवेदन दाखिल किए और गुजरात सरकार ने माफी आदेश जारी कर दिया। इस मामले में गुजरात की संलिप्तता थी और उसने इस मामले में प्रतिवादी संख्या 3 (दोषी राधेश्याम शाह) के साथ मिलकर काम किया। गुजरात द्वारा सत्ता का उपयोग राज्य द्वारा सत्ता को हड़पने के समान था।’

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि सजा में छूट का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया और यह सवाल किया कि क्या ‘महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के मामलों में सजा में छूट की अनुमति है’, चाहे वह महिला किसी भी धर्म या पंथ को मानती हो।

शीर्ष अदालत ने अपनी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022  को दिए गए आदेश को भी निष्प्रभावी कर दिया और इन दोषियों को दो हफ्ते के भीतर जेल में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है।

उच्चतम न्यायालय ने सरकार पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने के राज्य सरकार को फटकारते हुए फैसले को सोमवार को निरस्त कर दिया और दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल भेजने का निर्देश दिया।

घटना के वक्त बिलकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं। बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 2002 में भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था। दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी।

पीठ ने 100 पन्नों से अधिक का फैसला सुनाते हुए कहा, कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि जिस राज्य में किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, उसे ही दोषियों की सजा में छूट संबंधी याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार होता है। दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था।

पीठ ने कहा, ‘हमें अन्य मुद्दों को देखने की जरूरत नहीं है। शासन द्वारा कानून का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया, जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। उस आधार पर भी सजा में छूट के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।’

फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सेवानिवृत्त आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी मीरान चड्ढा बोरवंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने इसे बहुत अच्छा फैसला बताया।

ग्रोवर ने संवाददाताओं से कहा, ‘..(इस फैसले ने) कानून के शासन और इस देश के लोगों विशेष रूप से महिलाओं की कानूनी प्रणाली, अदालतों में आस्था को बरकरार रखा है और न्याय का आश्वासन दिया है।’

मई 2022 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करने के लिए गुजरात सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केवल महाराष्ट्र ही छूट संबंधी आदेश पारित कर सकता था।

पीठ ने कहा, ‘शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 के आदेश का लाभ उठाते हुए अन्य दोषियों ने भी सजा में छूट के लिये अर्जी दायर की… गुजरात (सरकार) की इसमें मिलीभगत थी और उसने इस मामले में प्रतिवादी संख्या तीन (दोषियों में से एक) के साथ मिलकर काम किया। तथ्यों को छिपाकर अदालत को गुमराह किया गया।’

शीर्ष अदालत ने यह भी माना कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत बिलकिस बानो द्वारा सजा में छूट को चुनौती देने के लिये दायर जनहित याचिका विचारणीय है।

अनुच्छेद 32 के अनुसार, ‘यह एक मौलिक अधिकार है, जिसमें कहा गया है कि व्यक्तियों को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए उच्चतम न्यायालय (एससी) से संपर्क करने का अधिकार है।’

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने यूनानी दार्शनिक प्लेटो के कथन का जिक्र करते हुए कहा, ‘दंड प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि रोकथाम और सुधार के लिए दिया जाना चाहिए, क्योंकि जो हो चुका है, उसे पूर्ववत नहीं किया जा सकता है।’

प्लेटो ने कहा है कि कानून देने वाले को, जहां तक हो सके उस चिकित्सक की तरह काम करना चाहिए, जो केवल दर्द के लिए नहीं, बल्कि रोगी का भला करने के लिए दवा देता है। सजा के इस उपचारात्मक सिद्धांत में दंड की तुलना दंडित किए जाने वाले व्यक्ति की भलाई के लिए दी जाने वाली दवा से की गई है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि पीड़िता के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, ‘एक महिला सम्मान की हकदार है, भले ही उसे समाज में कितना भी ऊंचा या नीचा माना जाए या वह किसी भी धर्म या पंथ को मानती हो।’

उन्होंने कहा, ‘क्या महिलाओं के खिलाफ जघन्य अपराध के मामलों में सजा में छूट दी जा सकती है? ये ऐसे मुद्दे हैं, जो पैदा होते हैं।’

पिछले साल 12 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका समेत अन्य याचिकाओं पर 11 दिन की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और गुजरात सरकार को 16 अक्टूबर तक 11 दोषियों की सजा माफी से संबंधित मूल रिकॉर्ड जमा करने का निर्देश दिया था।

गुजरात सरकार द्वारा दोषियों की सजा में दी गई छूट को चुनौती देने वाली बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर इस राहत के खिलाफ चुनौती दी थी।

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here