पेरिस से ब्रसेल्स तक की हवाई यात्रा मात्र 1 घंटे की है। चार्ल्स डी गाल हवाई अड्डे से एअर फ्रांस छोटे जेट हवाई जहाज ही ब्रसेल्स भेजता है जिसमें 50 से 100 के बीच यात्री होते हैं। हालांकि ब्रसेल्स तक की यात्रा छोटी है परन्तु रोमांच से भरी हुई। हवाई जहाज कई बार घूमता है और मन में अजीब सा भय बना रहता है। ब्रसेल्स एक उभरता हुआ शहर है और यूरोपीय संघ का मुख्यालय। हवाई अड्डा यूरोप के अन्य शहरों की भाँति अत्याधुनिक है, हालांकि अपना सामान पाने के लिए मुझे यहाँ पर काफी मशक्कत करनी पड़ी।
हवाई अड्डे की इलैक्ट्रानिक सीढियों से नीचे उतर कर मेट्रो रेलवे स्टेशन है जहाँ से ब्रसेल्स शहर के लिए ट्रेन में बैठता हूँ और करीब 20 मिनट बाद ब्रसेल्स नोर्ड में पहुंचता हूँ। वहाँ उतर कर मैं सूचना पट और सूचना केन्द्र की ओर नजर घुमाता हूँ टिकट खिड़की से वेरवियर का एक टिकट लेता हूँ जो 500 फ्रांक का है, फिर सूचना पट से जानकारी लेकर सम्बन्धित प्लेटफार्म पर चला जाता हूँ। ठीक 10.02 मिनट पर ट्रेन वेरवियर के लिए प्रस्थान करती है। मेरा टिकट सेंकन्ड क्लास का है और मैं आराम से अपनी सीट पर बैठ जाता हूँ। यहाँ स्थानीय ट्रेनों में सीट नम्बर नहीं होते और प्रायः ट्रेन बड़ी धीमें चलती है। वेरवियर तक का सफर एक घंटा और तीस मिनट का है। ट्रेन के रास्ते देखकर ही यह अंदाज लगाया जा सकता है कि वेरवियर एक प्राकृतिक छटाओं से भरपूर स्थान है। ठीक 11.45 पर ट्रेन वेरवियर सेन्ट्रल ट्रेन स्टेशन पर पहुँचती है लगभग 15 मिनट देरी से। मैं अपना सामान उठाकर बाहर की ओर चलता हूँ। इधर-उधर सूचना केन्द्र ढूंढता हूँ। यूरोप के रेलवे स्टेशन अमूमन छोटे होते हैं और सभी में सूचना आराम से मिल जाती है। कई ट्रेनों में कोच में इलैक्ट्रानिक सूचना बोर्ड पूरा शहर या स्थान का नाम आता रहता है। वेरवियर ट्रेन स्टेशन से बाहर निकलकर नजारा देखता हूँ बहुत अच्छा लगता है। चटकीली धूप और सामने बस स्टैंड है। मुझे 69 नम्बर बस पकड़नी है जिसका चलने का समय 11.59 है। मैं सोचता हूँ पहले पहुँचकर बैठ जाऊंगा लेकिन ड्राइवर नहीं बैठने देता उसका कहना है कि बस के समय पर ही आपको बैठना है। बस ठीक समय पर चलती है मुझे चिंता होती है कि किस तरह ठीक अपने गंतव्य पर उतरूं क्योंकि जहाँ पर आप उतरना चाहे वहाँ पर बस में लगी घंटी को दबाकर आप बस रूकवा सकते हैं हालांकि बस केवल अपने स्टैण्ड पर ही रूकेगी। खैर मै ड्राइवर को अपने पास लिखा पर्चा दिखाता हूँ। एक महिला की मदद से जो अग्रेजी बोल लेती है। बेल्जियम में अंग्रेजी बोलने और समझने वालों की संख्या बढ रही है।
ड्राइवर ठीक पेलेस डी वेजिमोंट में बस रोककर बताता है। 12.35 पर मैं एक बड़े किले के अन्दर होता हूँ। पेलेस डी वेजिमोंट का विशाल किला चारो ओर पानी से घिरा है। किले के विशालकाय हरे भरे क्षेत्र में लोग रेफ्टिंग, मछली मारने, तैरने, धूप स्नान, साइकिलिंग और पिकनिक के लिये आते हैं क्योंकि मई जून गर्मी का समय है अतः लोग छुट्टिया मनाने कैम्प में जाते हैं वेजिमोंट एक ऐसा ही स्थान है। शाम को टहलते हुए मैं देखता हूँ बच्चे खूब मस्ती ले रहे हैं। टेनिस के कोर्ट और उनके चढने रस्सी पर चलने की एक्सरसाइज के अनेक एंगल यहाँ लगे हैं। बड़े स्विंमिंग पूल में पुरूष, महिलाएं, बच्चे खूब मजा ले रहे हैं। हरी घास पर अनेक पुरूष महिलायें घूप स्नान कर रही हैं। लोग यहाँ समूहों में आते हैं तकि उन्हें किराये में छूट मिले।
फियान की मीटिंग अपने समयानुसार होती है और कभी-कभार देर रात तक भी। 13 जून के दोपहर तक सभी लोग प्रस्थान कर चुके हैं केवल मैं यहाँ पर हूं। पूरे क्षेत्र में घूमता हूँ। सुबह मरी ने मुझको बताया कि मैं शाम को उनका मेहमान हूँ तो बहुत खुशी होती है। 2 बजे से 4.30 बजे तक का समय काटना मुश्किल है क्योंकि मैने अपना कमरा छोड़ दिया है और मैं कहीं जा भी नहीं सकता क्योंकि मरी और उनका पति फिलिप मुझे लेने आने वाले है। ठीक 4.30 पर मरी और फिलिप अपनी कार से मुझे लेने आते हैं। करीब 30 मिनट बाद हम उनके घर में होते हैं जो दो मंजिला है, पीछे एक विशाल लान है। मरी का घर सन 1700 का बना हुआ है। फिलिप हमारे लिए बेल्जियम की मिठाई लाते हैं। मेरी शाम का खाना तैयार करती हैं और 6.30 बजे हम लोग मछली और आलू खाते है, (बेल्जियम में आलू और सेब की बहुतायत है)। खाने के बाद हम सभी द्वितीय विश्व युद्ध के स्मारक को देखने जाते हैं जो अमेरिकी सैनिकों की याद में बने हैं जिन्होने फासीवाद के विरूद्ध लड़ाई में अपनी जान न्योछावर कर दी। यहाँ पर बहुत शांति है दीवार में हर एक अमेरिकी सैनिक का नाम, बटालियन का नाम और अन्य पता और जन्म तिथि व मौत का दिन सभी कुछ। जब भी अमेरिकी बेल्जियम आते हैं अपने बहादुर जाबांज सिपाहियों को श्रद्धांजलि अवश्य देते है। इस पूरे स्थान पर लगभग 7000 सैनिकों की कब्रें हैं और सभी के नाम-पते उम्र उनकी कब्रों के पर लिखे गये हैं अधिकांश सैनिक 20 वर्ष के थे जब उन्होने अपनी कुर्बानी दी। जर्मनी के लोग अपने शासक की इस क्रूरता और नृशंशता पर बहुत शर्मिन्दगी महसूस करते है।
यहाँ से घर लौटने पर हम लोग रेड-वाइन‘ लेते हैं मरी की बेटी टेलर जो अभी छठे दर्जे में है (बेल्जियम में छठे दर्जे का मतलब 10वी) मुझसे भारत, उसकी संस्कृति और महिलाओं पर सवाल करती हैं। भारत के नक्शे में मैं उसे उत्तराखण्ड विशेषकर नैनीताल, देहरादून, मसूरी, कोटद्वार और लैंसडाउन दिखाता हूँ क्योंकि मेरा जन्म कोटद्वार और लैंसडाउन के बीच स्थित पर्वतीय शहर दोगड्डा में हुआ। मरी मुझसे ब्राह्मणवाद, बुद्ध दर्शन और दलितों की स्थिति पर सवाल करती है।
लिएज, बैल्जियम का एक छोटा सा शहर है करीब बीस हजार की आबादी वाला शहर। आज यहाँ रूमानिया और जर्मनी के बीच यूरो कप-2000 का मैच है। रूमानिया के समर्थकों से शहर भरा पड़ा है। वे अपनी खुली कारों, बाइकों में रूमानिया के झंडे लेकर शहर में दौड़ रहे हैं। हम इस शहर के एक पुराने चर्च को देखते हैं और फिर यहाँ के स्थानीय न्यायालय को। लिएज शहर अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है यहाँ पर प्राचीन समय पर खदान का कार्य बहुत होता था। आज माइनिंग बन्द हो गयी है और कई लोग बेरोजगार हो गये है। बेल्जियम के आर्थिक रूप से सबसे पिछड़े इलाकों में आलू का उत्पादन होता है, लोगों के पास पशु भी है।
लिएज शहर में हम एक सामाजिक कार्यकर्ता के यहाँ जाते हैं। वह सामाजिक कार्य के अध्यापक है और खदान मजदूरों के संघर्ष से जुडे़ हुए हैं। उनके घर पर प्रवेश कर हमें महसूस होता है कि एक किसान के घर पर प्रवेश किया है हमें नींबू की चाय मिलती है (मेरी प्राथमिकता हमेशा नींबू की चाय है) अध्यापक महोदय का घर भी लगभग 300 वर्ष पुराना है वह एक सामाजिक कार्यकर्ता है जिन्होंने कोलम्बिया में किसानों के लिए बहुत संघर्ष किया है। शहर से काफी ऊँचाई पर स्थित उनका क्षेत्र मुख्यतः खदान मजदूरों का क्षेत्र है जो अब बेरोजगार हैं। हालांकि यहाँ पर यह बताना आवश्यक है कि बैल्जियम या यूरोप में गरीब का अर्थ दक्षिण एशिया में गरीब के अर्थ से बहुत भिन्न है। मैने पूछा एक निराश्रित महिला को बूढापे में सरकार क्या देती है तो मुझे एक बड़े मकान की ओर इशारा करके वह बताते हैं कि वहाँ पर एक बुजुर्ग महिला रहती है और सरकार उसे 26,000 फ्रांक प्रतिमाह खर्चे के लिये देती है। हमारे यहाँ 26,000 रूपये साल भर में भी नहीं मिल पाता। मैने उस महाशय के घर में तथाकथित आधुनिकतावाद उपभोक्तावाद के विरूद्ध पोस्टर दिखे। हालांकि बहुत सी बातें अच्छी लगी लेकिन भाषागत परेशानियों के कारण मैं कुछ नहीं ला पाया।
[bs-quote quote=”लिएज शहर में हम एक सामाजिक कार्यकर्ता के यहाँ जाते हैं। वह सामाजिक कार्य के अध्यापक है और खदान मजदूरों के संघर्ष से जुडे़ हुए हैं। उनके घर पर प्रवेश कर हमें महसूस होता है कि एक किसान के घर पर प्रवेश किया है हमें नींबू की चाय मिलती है (मेरी प्राथमिकता हमेशा नींबू की चाय है) अध्यापक महोदय का घर भी लगभग 300 वर्ष पुराना है वह एक सामाजिक कार्यकर्ता है जिन्होंने कोलम्बिया में किसानों के लिए बहुत संघर्ष किया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
मेरे साथ गई जयश्री जो कर्नाटक से हैं, ने जब इस सामाजिक कार्यकर्ता से हाथ मिलाने के प्रयास किया तो उन्होने मात्र नमस्ते कर, सर झुका दिया। वह एक साल दक्षिण भारत में रहे और भारतीय समाज में महिला-पुरूषों में दूरी बनाये रखने के सिद्धान्त को समझते हैं। मैने उन्हें बताया कि भारत एक विशाल देश है और सामाजिक रूढियाँ यहाँ अब टूट रही हैं। इसे चाहे वैश्वीकरण का प्रभाव कहिए या प्रगतिशीलता। अब बदलाव को नहीं रोका जा सकता। मैने उसे उनके छोटे से शहर में रहने के लिए धन्यवाद किया। वह हमें छोड़ने के लिए बस स्टेशन तक आये। हमारी कितनी भ्रान्तियाँ हैं कि यूरोप में व्यक्तिवाद इतना अधिक है कि लोग रिश्ते-नाते भूल जाते हैं। रिश्ते-नाते वास्तव में भ्रष्टाचार की जननी है और अच्छा यह होगा कि हम दुनिया को रिश्तेदार समझे और उसकी कद्र करें।
14 तारीख को मरी के कम्प्यूटर पर भारतीय समाचार पत्रों को सर्फ किया। राजेश पायलट के असामयिक निधन से बहुत दुख हुआ। बहुत देर बात करने के बाद, मरी मुझे ट्रेन स्टेशन तक छोड़ने आयी। मैं 2 घंटे बाद ब्रसेल्स नोर्ड में था और फिर हवाई अड्डे पर। ठीक 5.30 बजे ब्रसेल्स को अलविदा कर मैं 6.30 बजे पेरिस हवाई अड्डे पर था। वहाँ अपनी फ्लाइट इन्फारमेंशन के बाद मैं रयूसेंट साबिन पहुँचा और फिर रयूला मार्क जहाँ मोनिक का घर है। और फिर पेरिस से शुरू हुई एक नई यात्रा फ्रांस की जो यूरोप का सबसे महत्वपूर्ण देश है और अपनी विशिष्टताओं के लिए मशहूर है। पेरिस तो वास्तव में अपनी संस्कृति, कला और रहन सहन के लिए मशहूर है।
विद्याभूषण रावत प्रखर सामाजिक चिंतक और कार्यकर्ता हैं। उन्होंने भारत के सबसे वंचित और बहिष्कृत सामाजिक समूहों के मानवीय और संवैधानिक अधिकारों पर अनवरत काम किया है।
आपका बहुत बहुत आभार राम जी भाई. ये यात्रा वृत्तांत सन २००० का है और उस समय यूरोपियन कप चल रहा था. पहली बार फुटबाल का जूनून देखा था. एक महत्वपूर्ण बात जोड़ना चाहता हूँ के उस समय तक बेल्जियम और यूरोप के अन्य देशो की अपनी अपनी मुद्राए थी. हालाँकि यूरो १९९९ से फाइनेंसियल मार्किट में आ गयी थी लेकिन आम प्रचलन में सन २००० के बाद ही आई. २००२ से पहले सभी देशो में अपनी अपनी मुद्राए थी. बहुत से देशो में अभी भी अपनी मुद्राए है हालाँकि वे यूरो भी स्वीकार करते है.