जौनपुर, उत्तर प्रदेश। ‘किसी भी बाज़ार या व्यवसाय की उन्नति में ट्रांसपोर्ट की भूमिका अहम होती है। इसके लिए सुगम सड़कों और मजबूत पुल (रास्ते में पड़ने वाले नदी-नालों पर) पुलिया का भी होना बहुत मायने रखता है। यदि ये व्यवस्थाएं कमजोर और लचर हों तो इसका सीधा असर बाजार, व्यवस्था और लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर भी पड़ता है।’ यह कहते हुए इन्द्रजीत सोनकर चंदवक बाजार से पूरब दिशा में वाराणसी जानेवाले मार्ग की ओर इशारा करते हुए गोमती नदी पर बने पुल की बदहाली का चित्र खींचते हैं। उनके शब्दों में पीड़ा, आक्रोश और जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों, शासन-प्रशासन से से मिली उपेक्षा छलक पड़ती है।
इंद्रजीत सोनकर पेशे से ट्रांसपोर्टर हैं और लंबे समय से ट्रांसपोर्ट का कार्य कर रहे हैं। उनके और उनके परिवार की जीविका का साधन यही कारोबार है। लेकिन पिछले एक वर्ष से वाराणसी-आजमगढ़ मार्ग में गोमती नदी पर बने सेतु के जर्जर होने का हवाला देकर बड़े वाहनों के आवागमन के लिए पूरी तरह रोक दिया गया है। ऐसी स्थिति में वाराणसी जाने के लिए बड़े वाहनों को गाज़ीपुर अथवा जौनपुर की ओर 50 से 70 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए वाराणसी का सफर पूरा करना पड़ता है। यह दूरी व्यापारियों, ट्रांसपोर्टरों, नौकरी-पेशा तथा अन्य रोजमर्रा के कार्यों से वाराणसी की यात्रा करने वाले लोगों के लिए भारी पड़ रही है। यदि इस बात का असर किसी पर नहीं पड़ा है तो वह हैं इलाके के जनप्रतिनिधि और संबंधित विभाग के जिम्मेदार अधिकारी जो सबकुछ देख-सुनकर भी चुप्पी साधे हुए हैं।
बरसों से अधूरा पड़ा हाइवे
वाराणसी से आजमगढ़ होते हुए गोरखपुर तक की सड़क को हाईवे का रूप जरूर दे दिया गया है, लेकिन काफी विसंगतियों के चलते हाइवे जैसा सफ़र मुमकिन नहीं हो पा रहा है। इन दोनों प्रमुख शहरों के बीच कहीं सड़क आधी अधूरी हैं तो कहीं जर्जर सेतु की वजह से आवागमन सीधे और शॉर्टकट न होकर घुमावदार और लंबी दूरी का हो गया है। इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। उन्हें अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी के साथ-साथ समय और धन दोनों का अपव्यय होता है।
आजमगढ़-वाराणसी के बीच यात्रा करने वाले ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से आनेवाले नौकरी पेशा, रोजमर्रा के कार्यों में लगे लोग हैं। वाराणसी से गोरखपुर वाया आजमगढ़ जाते समय वाराणसी के बाद जौनपुर की सीमा के तकरीबन 4-5 किलोमीटर की दूर गोमती नदी पर बना हुआ सेतु नजर आ जाता है। यह स्थान जौनपुर जिले के चंदवक बाजार के समीप है। इसे चंदवक- गोमती नदी पुल के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ दो-दो समानांतर सेतु हैं। ठीक बगल में तीसरे सेतु का भी निर्माण कार्य अधर में लटका हुआ दिखाई देता है। लगता है दो-दो सेतु होने से आवागमन सुगम होगा? लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आवागमन सुगम के बजाए इन दिनों दुरूह हो उठा है।
बरसों पहले बने सेतु को पहले ही कंडम (जर्जर, अनुपयोगी) घोषित कर दिया गया है। जबकि दूसरा सेतु वर्ष 2000 में आवागमन के लिए प्रारंभ किया गया था, अब उसे भी जर्जर करार देते हुए बड़े वाहनों के आवागमन के लिए बाधित कर दिया गया है। यह हाइवे की आरामदायक यात्रा की राह में रोड़ा बनने के साथ-साथ सैकड़ों गांवों और कई जिलों के लोगों
के लिए मुसीबत का कारण बन गया है। चंदवक से सीधे आजमगढ़ जाने की बजाय बड़े वाहनों को पतरही (जौनपुर), खानपुर औड़िहार (गाजीपुर), और चौबेपुर होते हुए वाराणसी का सफर तय करना पड़ रहा है। चंदवक निवासी ट्रांसपोर्टर इंद्रजीत सोनकर कहते हैं, ’17 किलोमीटर तक सँकरे मार्ग और जाम की समस्या से जूझते आ रहे लोगों को कब तक निजात मिल पाएगी बता पाना मुश्किल है। पुल बड़े वाहनों के आवागमन के लिए पिछले एक वर्ष से बंद कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में बड़े वाहनों, चाहे वह ट्रक हों या बस, को घूमकर वाराणसी आना-जाना पड़ रहा है। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी आमजनों को हो रहा है।’
इन्द्रजीत बताते हैं कि ‘पुल की दशा के लिए कोई और नहीं, संबंधित विभाग के लोग ही जिम्मेदार है। पुल को आगे कर टोल टैक्स वसूल करने के लिए चंदवक पुल को जर्जर होने का हवाला देकर बड़े वाहनों को रोका गया है। जो कहीं से भी उचित नहीं है। इन्द्रजीत की बातों का समर्थन करते हुए रामभरत गुप्ता, राधेश्याम यादव, श्याम बहादुर सिंह एक स्वर में इसके पीछे के ‘खेल’ को उजागर करते हैं।
सत्तर के दशक में बना था पहला पुल
सत्तर के दशक में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी की सरकार में जौनपुर के चंदवक बाजार के समीप गोमती नदी पर वाराणसी-आजमगढ़, गोरखपुर होते हुए पड़ोसी देश नेपाल को जोड़ने वाले मार्ग पर एक पुल का निर्माण किया गया था। तकरीबन चार दशकों के बाद वाहनों की बढ़ती संख्या और दबाव को देखते हुए कमजोर होते हुए इस सेतु के बगल में उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम द्वारा एक अन्य समानांतर सेतु (श्यामा प्रसाद मुखर्जी सेतु) का निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया था। सेतु का लोकार्पण तत्कालीन लोक निर्माण एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री कलराज मिश्र द्वारा 9 अप्रैल 2000 में किया गया था।
दिन-प्रतिदिन वाहनों का बढ़ता हुआ दबाव तथा सेतु के रख रखाव में बरती गई लापरवाही के चलते शिलान्यास के तकरीबन दो दशक के अंदर ही यह सेतु जर्जर हो गया। उसमें दरार दिखलाई देने लगी। इस बीच वाराणसी-आजमगढ़ मार्ग को दो लेन से फोर लेन में परिवर्तित करने की कवायद शुरू हुई। इस लिहाज से तीसरे समानांतर सेतु को भी बनाए जाने की कवायद तेज हो गई। लेकिन अभी केवल तीन ही पिलर खड़े हो पाये थे कि आसपास के किसानों ने भूमि अधिग्रहण और मुआवजे को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया। इससे इस सेतु का निर्माण अधर में लटक गया है।
स्थानीय पत्रकार श्याम बहादुर सिंह रघुवंशी ‘गांव के लोग’ को बताते हैं कि यह क्षेत्र का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक नहीं दो-दो सेतु होने के बावजूद लोगों को वाराणसी या आजमगढ़ जाने के लिए सीधे नहीं बल्कि घूम कर आना-जाना पड़ता है। अधर में लटके पड़े तीसरे सेतु के निर्माण कार्य के बाबत रघुवंशी कहते हैं कि विकास का ढोल पीटने वाले जनप्रतिनिधियों में दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव और उदासीनता दिखाई देती है, अन्यथा इस सेतु का कार्य अधर में न लटकता।”
समर बहादुर सिंह रघुवंशी पिछले एक वर्ष से चंदवक पुल पर बड़े वाहनों को रोके जाने पर सवाल उठाते कहते हैं “तीन पिलर खड़ा करने के बाद सेतु निगम यहां से चलता बना है। एक पुल दो दशक पहले से ‘बेकार’ करार दे दिया गया है। दूसरे पुल को भी बड़े वाहनों के ‘अयोग्य’ करार दे दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि तीसरे सेतु को क्यों रोका गया है और रोकना ही था तो तीन पिलर को क्यों खड़ा किया गया है?
जी का जंजाल बनता गया है चंदवक
पुल बनाने के लिए लगाए गए छड़ अब सीमेंट गिट्टी हटने से सड़क की सतह पर दिखने लगे हैं। इन छड़ों से कई वाहनों के टायर फटते रहे हैं। बजरंग नगर के रहने वाले रामबली यादव पिछले कई सालों से वाहन चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। वह नित्य देवगांव (आजमगढ़) से वाराणसी के लिए सवारी ढोते हैं। वह बताते हैं कि “पिछले एक वर्ष से गोमती नदी के पुल से बड़े वाहनों ट्रक बस इत्यादि को रोक दिए जाने से पहले तो पुलिस ने ख़ूब परेशान किया, फिर पुल के ऊपर जगह-जगह निकले लोहे के छड़ से वाहनों को नुक़सान उठाना पड़ रहा है।”
टोल टैक्स वसूली है मूल कारण
स्थानीय लोग सवाल उठाते हैं कि ‘वाराणसी-आजमगढ़ मार्ग पर चंदवक गोमती नदी पर बना सेतु भला दो-ढाई दशक के अंदर ही कैसे खराब हो सकता है?’ अरविंद पाण्डेय कहते हैं “चंदवक पुल खराब है या खराब करके रखें हैं टोल टैक्स के चक्कर में? इसके पीछे का कारण समझाते हुए वह आगे बताते हुए कहते हैं, ‘केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कहते हैं कि 60 किमी क्षेत्र के अंदर कोई भी टोल टैक्स नहीं लगना चाहिए, लेकिन यहां तो बलरामगंज (वाराणसी) में टोल प्लाजा तैयार कर वसूली की तैयारी कर ली गई। आखिरकार क्यों? जबकि वाराणसी-गाजीपुर मार्ग पर चौबेपुर के समीप एवं वाराणसी-लखनऊ वाया जौनपुर सुल्तानपुर मार्ग पर पहले से ही जौनपुर के सिरकोनी में टोल प्लाजा है। इन दोनों टोल प्लाजा की दूरी बलरामगंज, दानगंज से तकरीबन 59 किमी है फिर ऐसे में 60 किमी के अंदर तीसरे टोल प्लाजा का औचित्य क्या है?’
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के उस बयान की चर्चा करते हुए अरविंद पाण्डेय बताते हैं कि ‘केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी आवागमन की सुगम व्यवस्था की बात करते हैं लेकिन यहां तो उन्हीं की सरकार में उन्हीं के मंत्रालय के अधिकारी आवागमन की दूरी को कम कर लोगों को लूटने में लगे हैं। लोगों को 40 रुपए की बजाए 100 रुपए देकर वाराणसी आना जाना पड़ रहा है। इससे समय और धन दोनों का फटका लग रहा है। बड़े वाहनों का आवागमन चंदवक पुल पर बाधित होने का सीधा असर भले ही लोगों पर पड़ रहा हो, लेकिन टोल प्लाजा के आय में इससे इजाफा हो रहा है। बड़े वाहनों को चंदवक पुल के बजाए जौनपुर-वाराणसी, व पतरही, खानपुर औड़िहार चौबेपुर के रास्ते वाराणसी की ओर जाना पड़ रहा है। ऐसे में टोल प्लाजा वालों की आय में वृद्धि हो रही है।’
लोगों की मानें तो विरोध प्रदर्शन के साथ ही विभिन्न दलों के नेताओं से लगाए स्थानीय सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं ने भी शासन-प्रशासन और इलाकाई जनप्रतिनिधियों का इस ओर ध्यान दिलाया गया है लेकिन अभी तक किसी ने उनकी पीड़ा को देखने-समझने का ज़हमत नहीं की है। चंदवक पुल पर बड़े वाहनों का आवागमन रोके जाने से चंदवक बाजार में जाम की समस्याओं से भी लोगों को जूझना पड़ रहा है, जिसका समाधान फिलहाल तो नहीं नजर आ रहा है।
ग्रामीणों कहते हैं “चंदवक गोमती नदी पुल पर समानांतर सेतु होने के बाद भी आवागमन व्यवस्था ‘जी का जंजाल’ बन गया है। क्षेत्रीय जनता के प्रति जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और उपेक्षाओं बरतने का इससे बड़ा क्या सबूत होगा!