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इलेक्टोरल बॉण्ड घोटाला : सरकार और कॉर्पोरेट के गठजोड़ का नायाब नमूना

असल सवाल है कि इस घोटाले की जांच होगी या राफेल और अडानी के घोटाले की तरह सरकार इसकी भी जांच नहीं होने देगी? 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉण्ड योजना रद्द करने और एसबीआई द्वारा इसके आंकड़े जारी करने के बाद पूरा देश सन्न है। भ्रष्टाचार का यह रूप ‘न भूतो न भविष्यत’ है जो न पहले कभी हुआ, न शायद आगे कभी होगा।

जो आंकड़े जारी किए हैं और उससे जुड़े जो तथ्य सामने आए हैं, वे हैरान करने वाले हैं। इन आंकड़ों के जरिये मोटे तौर पर चार बातें सामने आती हैं-

  1. छापे से डराकर चंदा वसूली

सीबीआई, ईडी, आईटी जैसी केंद्रीय एजेंसियों ने कुछ कंपनियों पर छापेमारी की और इस दौरान या इसके बाद उन कंपनियों ने करोड़ों के बॉण्ड खरीदकर दान किए।

जैसे, 2 अप्रैल 2022 को फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज की 409 करोड़ की संपत्ति ईडी ने अटैच की। इसके मात्र पांच दिन बाद कंपनी ने 100 करोड़ का इलेक्टोरल बॉण्ड खरीदकर चंदा दिया।

फ्यूचर गेमिंग एंड होटल्स ने सबसे अधिक करीब 1,368 करोड़ का दान दिया है। 2 अप्रैल 2022 को ईडी ने फ्यूचर पर छापा मारा और 5 दिन बाद उसने इलेक्टोरल बॉण्ड में 100 करोड़ रुपए का दान दिया।

दिसंबर, 2023 में शिरडी साई इलेक्ट्रिकल लि​मिटेड पर छापा पड़ा और जनवरी 2024 में कंपनी ने 40 करोड़ का चंदा दिया। इससे ये आशंका खड़ी हुई है कि क्या एजेंसियों का दुरुपयोग करके सरकार कंपनियों से उगाही की?

  1. चंदा के बदले धंधा

एसबीआई के आंकड़े से पता चलता है कि कई कंपनियों ने इलेक्टोरल बॉण्ड से चंदा  दिया और इसके तुरंत बाद उन्हें सरकार की ओर से प्रोजेक्ट और भारी मुनाफा मिला।

मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रा ने 800 करोड़ रुपए से अधिक इलेक्टोरल बॉण्ड में दिए हैं। अप्रैल 2023 में इस कंपनी ने 140 करोड़ डोनेट किया और ठीक एक महीने बाद उसे 14,400 करोड़ का ठाणे-बोरीवली टनल प्रोजेक्ट मिल गया।

जिंदल स्टील एंड पावर ने 7 अक्टूबर 2022 को इलेक्टोरल बॉन्ड में 25 करोड़ रुपए दिए और सिर्फ 3 दिन बाद उसने गारे पाल्मा कोयला खदान हासिल कर ली।

क्या इलेक्टोरल बॉण्ड सरकार को रिश्वत देकर प्रोजेक्ट हासिल का जरिया बना?

  1. पहले प्रोजेक्ट फिर चंदा

कुछ मामलों में एक पैटर्न दिखाई दे रहा है कि पहले सरकार ने कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाया और इसके ठीक बाद उन कंपनियों ने करोड़ों के बॉण्ड खरीदे।

जैसे वेदांता ग्रुप को 3 मार्च 2021 को राधिकापुर पश्चिम प्राइवेट कोयला खदान हासिल हुई और अगले ही महीने यानी अप्रैल 2021 में कंपनी ने चुनावी बॉण्ड के जरिये 25 करोड़ रुपए दान किया।

इसी तरह मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रा को अगस्त 2020 में 4,500 करोड़ का जोजिला सुरंग प्रोजेक्ट मिला। दो महीने बाद, अक्टूबर 2020 में कंपनी ने बॉण्ड के जरिये 20 करोड़ रुपए का दान दिया। इस कंपनी को दिसंबर 2022 में बीकेसी बुलेट ट्रेन स्टेशन का प्रोजेक्ट मिला और इसी महीने कंपनी ने 56 करोड़ रुपए का दान दिया।

इस लेनदेन के बीच क्या संबंध है, यह बिना उच्चस्तरीय जांच के सामने नहीं आ सकता।

  1. इलेक्टोरल बॉण्ड, शेल कंपनियां और मनी लॉन्ड्रिंग

इलेक्टोरल बॉण्ड योजना में भारत सरकार ने यह नियम हटा दिया कि कोई अपने मुनाफे का एक छोटा हिस्सा ही दान कर सकता है। इस प्रावधान ने शेल कंपनियों के जरिये काला धन लेने का रास्ता साफ कर दिया।

जैसे बॉण्ड के जरिये क्विक सप्लाई चेन लिमिटेड ने 410 करोड़ रुपए का दान किया है। इस कंपनी की कुल शेयर पूंजी ही 130 करोड़ रुपए है। कोई कंपनी अपने टोटल कैपिटल से ज्यादा दान कैसे दे सकती है? जाहिर है कि यह काला धन को सफेद बनाने का रास्ता तैयार किया गया।

हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि कम से कम चार शेल कंपनियों ने सत्ता में बैठी पार्टी को इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिये दान दिया। यानी यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है। इन शेल कंपनियों के पीछे कौन है? वह किस पार्टी को और क्यों चंदा दे रहा है? बदले में उसे क्या हासिल हो रहा है? यह राष्ट्रीय सुरक्षा का भी मामला है, जिसके लिए ऐसा संदिग्ध सिस्टम बनाने वाली सरकार जिम्मेदार है।

भाजपा को मिले 6,061 करोड़ 

इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम आने के बाद अब तक करीब 1,300 कंपनियों और लोगों ने इसके जरिये दान दिया। अकेले भाजपा को कुल 6,061 करोड़ (47.46%) चंदा मिला। एसबीआई ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वे अप्रैल 2019 के बाद के हैं। मार्च 2018 में एसबीआई ने पहला बॉन्ड बेचा था। त​बसे लेकर अप्रैल 2019 तक का 2,500 करोड़ के बॉण्ड का डेटा अब भी गायब है।

गौरतलब है कि एसबीआई ने पहली किश्त में जो बॉण्ड बेचे उस धनराशि का 95 प्रतिशत अकेले भाजपा का मिला था। उसके आंकड़े सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए?

पहले एसबीआई ने आंकड़े देने के लिए जून तक का समय मांगा था। जब कोर्ट ने अवमानना की कार्रवाई की धमकी दी तो भी सारे आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। आज शुक्रवाद को भी कोर्ट ने एसबीआई को नोटिस दिया है कि ​जो बॉण्ड जारी किए हैं, वे अधूरे हैं। उनके कोड भी जारी किए जाएं ताकि पता चले कि किसने, किसको, कितना चंदा दिया। इससे साबित होता है कि पूरा सरकारी तंत्र अब भी इस महाघोटाले पर पर्दा डालने में जुटा है।

पारदर्शिता की खाल ओढ़कर आया इलेक्टोरल बॉण्ड 

इलेक्टोरल बॉण्ड योजना 2017-18 के बजट भाषण के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। उस समय उन्होंने इसके फायदे गिनाते हुए कहा था कि भारत में राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में शुचिता की जरूरत है और इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता आएगी। हालांकि, विपक्ष शुरू से ही इस योजना का विरोध कर रहा था। नवंबर 2019 में राहुल गांधी ने इसे घूस और अवैध कमीशन का पर्याय कहा था।

प्रशांत भूषण जैसे जानकार लोगों ने उस समय भी यही आशंका जाहिर की थी कि सरकार ने कंपनियों पर दबाव डालकर पैसे उगाहने का रास्ता तैयार किया है। इस व्यवस्था में विपक्ष को होने वाली फंडिंग पर लगाम लगाई जा सकती है। उनकी आशंका सही साबित हुई।

अभी तक सामने आए तथ्यों से पता चलता है कि इलेक्टोरल बॉण्ड एक ऐसी संगठित लूट है जिसके लिए संसद में कानून पारित किया गया और जनता को उसके फायदे गिनाए गए थे। निर्विवाद रूप से कह सकते हैं कि यह एक महाघोटाला है जिसके जरिये कालेधन का कारोबार हुआ और जनता के पैसे को मनमाने तरीके से लूटा गया।

अब असल सवाल है कि इस घोटाले की जांच होगी या राफेल और अडानी के घोटाले की तरह सरकार इसकी भी जांच नहीं होने देगी?

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