देश में आगामी दिनों में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी अपना नामांकन भरने लगे हैं। वहीं बिहार में पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का विलय कांग्रेस में कर दिया है। पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने के बाद कोसी सीमांचल में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियाँ बढ़ गई हैं।
इसके बाद कोसी सीमांचल की राजनीति के सारे समीकरण बदले जरूर हैं लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या पप्पू यादव एनडीए गठबंधन को चुनाव मैदान में मात दे पाएंगे? जबकि बिहार में हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ है और प्रधानमंत्री मोदी व अमित शाह एक साथ डबल इंजन की सरकार का नैरेटिव लेकर मैदान में उतरे हैं। वहीं पप्पू यादव ने कोरोना काल से ही जनता तक राशन, इलाज और कैंप खोलकर अपनी जननेता होने की छवि को गढ़ा है।
देखना दिलचस्प होगा कि पप्पू यादव की जननेता की छवि चुनावी मैदान में डबल इंजन को रोक पाने में सफल हो पाती है या नहीं?
कोसी सीमांचल का राजनीतिक समीकरण क्या होगा?
बिहार की राजनीति अलग-अलग प्रयोगों के कारण पूरे देश का ध्यान अपनी ओर हमेशा आकर्षित करती रही है। वहीं कोसी सीमांचल क्षेत्र ने भी लोगों को हमेशा आश्चर्यचकित किया है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जहां महागठबंधन और जेडीयू-भाजपा गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही थी तब कोसी-सीमांचल के किशनगंज, अररिया और पूर्णिया ज़िले की 5 विधानसभा सीटों पर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने चुनाव जीतकर महागठबंधन के सारे समीकरण बिगाड़ दिए थे।
वहीं लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देखा जाये तो एनडीए में जदयू के शामिल होने के बाद इंडिया गठबंधन बिहार में कमजोर तो हुआ लेकिन इंडिया गठबंधन अपने को मज़बूत दिखाने के लिए बिहार के अंदर अलग-अलग प्रयोग कर रहा है। पिछले दिनों तेजस्वी यादव ने पूरे प्रदेश में यात्रा निकाल कर लोकसभा चुनाव में अपनी मज़बूती को दिखाया और गांधी मैदान में महारैली कर विपक्ष के नेताओं ने चुनावी हुंकार भरी।
कोसी सीमांचल क्षेत्र की बात करें तो इसके अन्तर्गत सुपौल, अररिया, मधेपुरा, सहरसा, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार ज़िले आते हैं । जिस इलाक़े में राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव की मज़बूत पकड़ मानी जाती है जिन्होंने आज अपनी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का विलय कांग्रेस में कर लिया है। पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने में प्रियंका गांधी की अहम भूमिका बताई जा रही है।
बिहार के राजनीतिज्ञों की मानें तो पप्पू यादव के लिए यह चुनौती जरूर रहेगी कि तैयारी करने के बावजूद भी पूर्णिया से वो लंबे समय से चुनाव नहीं लड़े हैं। जिसकी वजह से एक चुनावी माहौल में जनता और नेता के बीच में जो संपर्क बनता है उसकी अनुपस्थिति का खामियाजा उठाना पड़ सकता है।
पूर्णिया लोकसभा में मुस्लिम, संथाल आदिवासी, अति पिछड़ी जातियों में मंडल और पासवान जाति खासा प्रभाव रखती हैं। सभी राजनितिक दल इन जातियों को अपने खेमे में लाने की कोशिश में लगे रहते हैं। वहीं सवर्ण जातियां भाजपा की कोर वोटर मानी जाती हैं। हालाँकि इस बार भी यह सीट जदयू के खाते में आई है। एनडीए गठबंधन पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश में लगा है।
बिहार के स्वतंत्र पत्रकार विष्णु नारायण कहते हैं, ‘जदयू के एमपी संतोष कुशवाहा हैं, कुशवाहा लगातार दूसरी बार सांसद हैं। पूरी संभावना है कि नीतीश उन्हीं को दोबारा प्रत्याशी बनाएं। लेकिन पिछले दो महीने से पप्पू यादव जो तैयारी कर रहे हैं उससे उन्होंने अपनी मजबूत स्थिति पैदा की है। पप्पू यादव को कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी और इण्डिया गठबंधन का साथ यदि मिलता है तो पूर्णियां की लड़ाई दिलचस्प हो सकती है।’
वे आगे कहते हैं, ‘यहाँ मुस्लिम वोट भी अच्छा प्रभाव रखता है यदि एआईएमआईएम अपना प्रत्याशी उतारती है तो पप्पू यादव के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है।’
मोदी लहर के बावजूद जीतने वाले पप्पू यादव का हाल क्या है?
पप्पू यादव ने 1990 विधानसभा चुनाव से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की। जिसके बाद पांच बार अलग-अलग दल से व निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अलग-अलग लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए। साल 2014 की मोदी लहर के बावजूद भी शरद यादव को चुनाव हराकर पप्पू यादव ने जीत हासिल की थी। कुछ दिनों बाद ही 2015 में पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का गठन किया। जिसके बैनर तले विगत दो माह से ‘प्रणाम पूर्णिया अभियान’ के तहत पूर्णिया लोकसभा में पप्पू यादव जनसंपर्क कर रहे थे।
पप्पू यादव अकेले दम पर 9 मार्च को पूर्णिया के रंगभूमि मैदान में प्रणाम पूर्णिया महारैली आयोजित करके अपनी ताक़त भी दिखा चुके हैं। वर्तमान समय में जदयू के संतोष कुशवाहा इस लोकसभा सीट से लगातार दूसरी बार सांसद हैं और इस बार भी यह सीट जदयू के खाते में गई है जिससे संभावना जताई जा रही है कि जदयू फिर से संतोष कुशवाहा पर ही दांव खेल सकती है ।
जन अधिकार पार्टी के प्रवक्ता कुणाल चौधरी का कहना है, ‘पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने से इंडिया गठबंधन को कोसी सीमांचल क्षेत्र में मज़बूती मिली है व विपक्षी वोट में बंटवारा होने की संभावना अब एनडीए के लिए समाप्त हो गई है जिससे एनडीए के लिए चुनाव आसान नहीं रह गया है।’
राजनीति विशेषज्ञ राजन पांडेय बताते हैं, ‘पप्पू यादव का कांग्रेस में शामिल होना इसलिए बहुत बड़ा डेवलपमेंट है क्योंकि बिना सत्ता में रहे या बिना किसी पद पर रहे कोविड-19 के ही समय से वो लगातार सुर्ख़ियों में बने रहते हैं और कोसी सीमांचल क्षेत्र में एक मात्र नेता हैं जो प्रणाम पूर्णिया अभियान के माध्यम से लोगों के बीच जुड़े हुए हैं।’