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वाराणसी : PM मोदी ने जिस गांव को गोद लिया, उस ‘जयापुर’ में एक अदद छत के लिए तरस रहे ग्रामीण

जहां एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार पीएम आवास योजना के तहत 3 करोड़ आवास बनाने का दावा ठोंक रही है वहीं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिए गांव 'जयापुर' में अभी भी कई परिवार झोंपड़पट्टी में रहने को मजबूर हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से पहली बार सांसद निर्वाचित होने के बाद सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र के गांव जयापुर को गोद लिया था।

केंद्र सरकार की बहुचर्चित प्रधानमंत्री आवास योजना खुद प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिए गए गांव जयापुर में दम तोड़ती दिखाई दे रही है।

जहां एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार यह दावा करती है कि पीएम आवास योजना के अंतर्गत 3 करोड़ घर बनाए जा चुके हैं वहीं पीएम मोदी के गोद लिए ‘जयापुर’ गांव के कई गरीब परिवार अभी भी झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। 

पीएम आवास न मिलने से निराश दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जयापुर गांव निवासी राहुल बताते हैं, ‘पिछले 7-8 वर्षों से पीएम आवास के लिए आवेदन कर रहा हूँ लेकिन आज तक मुझे पीएम आवास नहीं मिला है।’

जान जोखिम में डालकर रहने को मजबूर राहुल

वे आगे कहते हैं, ‘गांव में पिछले प्रधान के समय से ही मैं आवेदन कर रहा हूँ। उनकी प्रधानी का पांच साल बीत गया लेकिन मुझे प्रधानमंत्री आवास नहीं मिला। वर्तमान प्रधान राजकुमार भी दो-तीन साल से प्रधान हैं। मैंने पीएम आवास के लिए आवेदन दे रखा है लेकिन मुझे अभी तक आवास योजना का लाभ नहीं मिला। मेरा परिवार जर्जर घर में रहने को मजबूर है।’

राहुल के पास अपना कोई मकान नहीं है। मिट्टी का घर था, वह गिर चुका है। वे तीन तरफ से ईंटों की अस्थाई दीवारें लगाकर, टीन शेड के नीचे रहने को मजबूर हैं।

राहुल अपनी पत्नी के साथ मिलकर मजदूरी का काम करते हैं और अपना परिवार चलाते हैं। राहुल के ऊपर चार बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी है। मजदूरी से जो कुछ भी कमाते हैं वह बच्चों की पढ़ाई- लिखाई और भरण-पोषण में ही खर्च हो जाता है।  ऐसे में उनका ‘अपना घर’ का सपना एक सपना ही बनकर रह गया है। 

आप खुद से बचत करके अपना घर क्यों नहीं बनवा लेते, पूछे जाने पर वे कहते हैं, ‘कहना बहुत आसान होता है, हम भी चाहते हैं कि हम अपने खुद के पैसे से एक घर बनवा लें, लेकिन जिस प्रकार की महंगाई है उसमें पैसे बच ही नहीं पाते हैं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, दवा-दारू रोज कुछ न कुछ लगा ही रहता है, ऐसे में चाहकर भी हम कुछ नहीं कर पाते। आप ही बताइए किसको अच्छा लगता है किसी के सामने जाकर रोज-रोज गिड़गिड़ाना। 

जयापुर गांव के ही शनि कुमार भारती की स्थिति भी दयनीय है। गारा और ईंट से बने एक जर्जर टीन शेड के नीचे अपनी गुजर-बसर कर रहे शनि कहते हैं, ‘मेरे पास खेती करने के लिए न तो जमीन है और न ही मकान बनवाने के लिए पैसा। इसलिए सरकार की ओर से मुझे लाल कार्ड मिला हुआ है। पिछले चार-पांच वर्षों से मैं भी पीएम आवास के लिए आवेदन कर रहा हूँ लेकिन मुझे अभी तक पीएम आवास नहीं मिला।’

अपने जर्जर मकान के अंदर शनि

शनि कहते हैं, ‘मेरा सपना है कि मेरा एक अपना घर हो। मैं चाहकर भी अपने सपने को पूरा नहीं कर पा रहा हूं क्योंकि कमाई से किसी तरह रोजमर्रा का खर्चा ही निकाल पाता हूँ। मैं गाड़ी चलाने के अलावा मजदूरी का काम भी करता हूं। मेरे परिवार में पत्नी, दो बच्चे और पिताजी हैं। पांचों लोगों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी मुझ पर ही रहती है।’

70 वर्षीय वृद्ध हुबलाल भी अपने लिए पीएम आवास का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन उनकी इच्छा उस समय धूमिल हो जाती है जब अधिकारी निरीक्षण करने आते हैं और उम्र का तकाजा देकर कहते हैं कि अब तो आप मरने के करीब हैं फिर पीएम आवास लेकर क्या करेंगे?

अपने जर्जर मकान के आगे बैठे हुए हुबलाल

हुबलाल नाराजगी जताते हुए कहते हैं, ‘जब हमारी तीनों बेटियां हमसे मिलने के लिए आएंगी तो आप बताइए इस छोटे से कमरे में कैसे रहेंगी? इस रूम की दुर्दशा तो आप देख ही रहे हैं। क्या बूढ़े लोगों को अच्छा जीवन जीने का अधिकार नहीं है? क्या मुझे पीएम आवास इसलिए नहीं मिल सकता है क्योंकि अब मेरी उम्र काफी हो चुकी है? जब तक मैं और मेरी पत्नी जिंदा है तब तक क्या हम बिना भय के नहीं जी सकते ? हमेशा डर लगा रहता है कि आंधी-तूफान से टीनशेड उड़ न जाए। बरसात के मौसम में बिच्छू, सर्प अंदर न आ जाए।’

प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिए गांव जयापुर में साढ़े 9 साल बाद भी सभी जरूरतमंद ग्रामीणों को पक्का मकान नहीं मिल सका है। यह सरकारी तंत्र और योजनाओं की विफलता के साथ ही गांवों के प्रति प्रशासन व सरकारों के उपेक्षापूर्ण रवैये को बताता है। 

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