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दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना की संस्था एनसीसीएल ने गुजरात में मानवाधिकार के लिए क्या किया?

दिल्ली के वर्तमान राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना का गुजरात में नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल) नाम से एक एनजीओ था। नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में इस एनजीओ ने मानवाधिकार के खिलाफ जाकर सरकार के पक्ष में काम किया और शायद इसी का इनाम है कि उन्हें दिल्ली का उप राज्यपाल बना दिया गया। अरुंधति रॉय और मेधा पाटकर के खिलाफ पुराने मामले निकालकर केस करने को लेकर सामाजिक चिंतक डॉ सुरेश खैरनार ने कुछ सवाल उठाते हुए एक खुला पत्र लिखा

जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस समय विनय कुमार सक्सेना के एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल) ने नर्मदा बचाओ आंदोलन में मेधा पाटकर के खिलाफ राज्य सरकार की तरफ से केस लड़ा।  दूसरा इनकी संस्था ‘एनसीसीएल’ ने गुजरात दंगों के खिलाफ काम करने वाले विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ जाते हुए गुजरात सरकार द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई। कहने का तात्पर्य यह कि ह्यूमन राइट संस्था ने इनह्यूमन काम किया।

अभी वी के सक्सेना दिल्ली के उपराज्यपाल के पद पर कार्यरत हैं। दिल्ली के कुछ क्षेत्रों के लोग पानी की समस्या का सामना कर रहे हैं। अभी जब दिल्ली के मुख्यमंत्री जेल में है, ऐसे समय में उपराज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि वह मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में दिल्ली की समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने पद की ज़िम्मेदारी पूरी करें लेकिन उन्होंने मेधा पाटकर और अरुंधति रॉय के खिलाफ बरसों पुराने मामले को खोल उनके खिलाफ कार्रवाई की इजाज़त दी है। विभिन्न जनांदोलन में शामिल रहने या लिखने वाले लोगों के खिलाफ दस साल से अधिक पुराने मामलों को खोजने में सक्सेना अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। उनको यह गलतफहमी है कि मेधा पाटकर या अरुंधति रॉय को परेशान कर भारत में इस तरह के काम करने वाले अन्य लोगों को डराया जा सकता है।

उपराज्यपाल बनने के पहले वह गुजरात में मानवाधिकार संस्था खोलकर काम कर रहे थे। उनसे जवाब चाहिए कि उन्होंने वर्ष 2002 के गुजरात सरकार में हुए दंगों में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर क्या काम किया है? गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने सौ से अधिक गैरकानूनी एंकाउंटर करवाए और उनके खिलाफ रहे सैकड़ों लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया, जिनमें 18-19 वर्ष की इशरत जहाँ जैसी बच्ची से लेकर कौसरबी, सोहराबुद्दीन, तुलसी प्रजापति के साथ मारी गई महिला भी है। नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए संदिग्ध लोगों का डी. जी. वंजारा और पुलिस एनकाउंटर एक्सपर्ट्स के द्वारा एंकाउंटर कर दिया गया। वी के सक्सेना से सवाल है कि उनके लिए आपने मानवाधिकार कार्यकर्ता होने का किस रूप में परिचय दिया है? वैसे ही दंगों में बिल्किस बानो नामक गर्भवती महिला के साथ एक दर्जन लोगों ने सामूहिक रूप से बलात्कार किया। उसकी दूध पीती बच्ची को पटककर मार डाला, तब आपके मानवाधिकार संगठन ने कौन सी भूमिका निभाई थी?

सरदार सरोवर बांध के निर्माण में हजारों लोग विस्थापन का शिकार हुए। विस्थापित लोगों में आदिवासी और दलित सबसे ज्यादा संख्या में थे।  तब आपका आपका मानवाधिकार संगठन जाग रहा था या सो रहा था?

गुजरात में रहते हुए न्यायमूर्ति लोया के संदेहास्पद मृत्यु (या कहें हत्या), हरेन पंड्या  की हत्या हुई। असली हत्यारे के बारे में जानने के लिए उनके पिता विठ्ठलभाई पंड्या अपने अंतिम समय तक अहमदाबाद में दर-दर की ठोकरें खाते हुए घूमते रहे। विठ्ठलभाई पंड्या एडवोकेट मुकुल सिन्हा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में निवेदन के साथ आकर मुझसे मिले और उन्होंने आपसे किए गए निवेदन की बात भी मुझे बताई। इतना सब कुछ होने के बाद भी आप अहमदाबाद में मानवाधिकार कार्यकर्ता बने रहे। सवाल है कि इनमें से किस मामले में आपकी संस्था द्वारा पहल की गई?

आपको अहमदाबाद से दिल्ली के उपराज्यपाल के पद पर नियुक्त करने की वजह क्या है? अब आप दिल्ली के राजभवन में बैठ कर चुनिंदा लोगों के पुराने मामले खोज-खोजकर निकाल रहे हैं। आपकी नीयत देखते हुए यह तो तय है कि दिल्ली आने के बाद सचमुच आपने पद का उपयोग दिल्ली की जनता की समस्याओं के समाधान के लिए न कर, बदले की भावना से चुन-चुन कर कार्रवाई करने के लिए किया है।

क्या आप उपराज्यपाल नियुक्त होने के बाद ली गई शपथ का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं?

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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