कट्टरपंथी हिंदूत्ववादी विनायक दामोदर सावरकर हजारों लोगों की उपस्थिति में, जिसमें महिला-पुरुष दोनों होते थे, अपना भाषण दिया करते थे। वे अपने भाषण में...
नये इंडिया के डंके ही डंके, बल्कि मंदिर वाले घंटे ही घंटे। सब अच्छा ही अच्छा होना था। नोबेल वालों का भी गांधीजी को पुरस्कार न दे पाने का कलंक मिट जाता। भारत के इतिहास की तरह, नोबेल पुरस्कारों का भी इतिहास दुरुस्त हो जाता। एक गुजराती को न सही, दूसरे गुजराती को सही, पर किसी गुजराती को तो शांति का नोबेल मिल जाता।
प्रस्तावित कर्नाटक धर्म स्वातंत्र्य विधेयक
दक्षिणपंथी राजनीति के बढ़ते दबदबे के चलते, कई भारतीय राज्यों ने धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम बनाये हैं। विडंबना यह है कि...