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ग्राउंड रिपोर्ट

एक वर्ष बाद मणिपुर पर दिए बयान से संघ और संघ प्रमुख मोहन भागवत का पाखंड सामने आया

18वीं लोकसभा में 400 पार का दावा करने वाली भाजपा 240 सीट पर ही सिमट गई। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने लेकिन 32 सीटें गठबंधन से उधार लेकर। ऐसे में भाजपा के मातृ दल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को एक वर्ष बाद मणिपुर हिंसा की याद आई और एक कार्यक्रम में बयान दिया 'मणिपुर में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से  शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।' इस बयान से संघ, संघ प्रमुख और संघ से जुड़े सभी संगठनों की मानसिकता एक बार फिर सामने आई।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  ने हमेशा से ही संघ को सांस्कृतिक संगठन माना है। वे यह भी मानते हैं कि उनके संगठन का काम सिर्फ चरित्र निर्माण करना ही है। उनका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। संघ के स्थापना के पच्चीसवें साल 21 अक्टूबर, 1951 के दिन तत्कालीन संघ प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर ने जनसंघ नाम के राजनीतिक दल की स्थापना। शुरुआत में श्यामाप्रसाद मुखर्जी को इस दल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। राजनैतिक दल के रूप स्थापना के बावजूद संघ का यही आलाप रहा कि यह एक सांस्कृतिक संगठन है।

महात्मा गाँधी की हत्या के बाद छह महीने (फरवरी 1948 से – जुलाई 1948 तक) तक तत्कालीन सरकार के   गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने संघ पर बैन लगा दिया। इसके बारे में सरदार वल्लभभाई पटेल और तत्कालीन संघ प्रमुख गोलवलकर के बीच हुएपत्राचार आज भी मौजूद है। इस वजह से गोलवरकर ने निर्णय लिया कि उनका एक राजनीतिक दल होना चाहिए। उसके बाद जनसंघ की स्थापना की गई। 1977 में जनसंघ का विसर्जन जनता पार्टी में कर दिया गया लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जनता पार्टी के भीतर लगातार दखलअंदाजी को लेकर ही (जिसे पॉप्युलर नोशन में दोहरी सदस्यता कहा जाता है जनता पार्टी और संघ के बीच) उन्नीस महीनों के भीतर ही बिखर गई। बाद में पुराने जनसंघ को भारतीय जनता पार्टी के रूप में 6 अप्रैल, 1980 में अस्तित्व में लाया गया !

उसके बाद भाजपा को अच्छे दिन लाने के लिए, संघ के प्रचारक खुलकर विशेष रूप से भाजपा में भेजे गए। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हीं प्रचारकों में से एक हैं। राम माधव से लेकर विनय सहस्रबुद्धे, संजय जोशी, और भी बहुत सारे भाजपा में महत्वपूर्ण पदों पर संघ से पधारे लोग हैं।

भाजपा ने गली से लेकर दिल्ली तक सत्ता में आने के लिए सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर इस मुकाम को हासिल किया है। रामजन्मभूमि विवाद से लेकर गोहत्या बंदी, मदरसा, हिजाब, भीड़ द्वारा हत्या और कई जगहों पर रामजन्मभूमि के जैसे ही विभिन्न धार्मिक आस्थाओं के इर्द-गिर्द संपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों को, संघ के द्वारा एक षडयंत्र के तहत अंजाम देने का काम किया गया। स्थानीय निकाय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में भाजपा के उम्मीदवारों के लिए पन्ना स्तर से आखिरी स्तर तक संघ के लोग सक्रिय किया गया।  तब कैसे माना जा सकता है कि यह केवल सांस्कृतिक संगठन हैं और चरित्र निर्माण का कार्य करते हैं।

1951 से लेकर 1977 तक  जनसंघ और 1980 के बाद भारतीय जनता पार्टी, जो पिछले तीन बार से केंद्र में है, विभिन्न प्रदेशों में भाजपा को सत्तारूढ़ बनाने के लिए  संघ ने भी पूरी ताकत लगाई। वर्तमान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा लाख कहें कि, ‘हमें संघ के मदद की जरूरत नहीं है।’ गलत है।

नागपुर के संघ शिक्षावर्ग के समापन समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तिलमिलाते हुए भाजपा की हार के कारण गिनाते हुए कहा, ‘मणिपुर में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से  शांति की राह देख रहा है। इस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए।’

 लेकिन संघ के सैकड़ों प्रचारक पूरे उत्तर पूर्वी प्रदेशों में 50 वर्ष से अधिक समय से फैले हुए हैं। जिसमें मणिपुर भी आता है। ऐसे में मणिपुर में क्या चल रहा है, मोहन भागवत को नहीं मालूम था? इन्हें अन्य लोगों की तुलना में अधिक जानकारी होते हुए, चुप क्यों रहे? वास्तव में उत्तर पूर्वी प्रदेशों का ज्यादातर विवाद संघ के लोगों की वजह से ही  शुरू हुआ। मणिपुर में वर्तमान समय चल रहे, असंतोष में संघ का भी हाथ है। इसके पहले संघ ने सुधीर देवधर के माध्यम से त्रिपुरा में भी यही कोशिश की है। जिसका भाजपा को तात्कालिक फायदा तो हुआ लेकिन आगे चलकर वहां भी असंतोष पैदा हो तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए।  अभी हाल में हुए लोकसभा चुनाव में मणिपुर की दोनों लोकसभा सीटों पर भाजपा के हार मिलने के बाद यह कहना जले पर नमक छिड़कना होगा।

आज से साठ साल पहले ही बालासाहब देवरस संघ के प्रमुख थे। संघ ने वर्ष 1973 से आदिवासी इलाकों में घुसकर, उन्हें हिंदू पहचान दिलाने की शुरुआत की। वास्तव में भारत में किसी भी प्रदेश का आदिवासी प्रकृति पूजक होता है। लेकिन आदिवासियों के बीच जाकर धर्म परिवर्तन की गलती ख्रिश्चन धर्म प्रचारक से लेकर मुस्लिम तथा वर्तमान में संघ द्वारा हिन्दू बनाने की कर रहे हैं। आदिवासी  को तथाकथित हिंदू धर्म के हैं, इस बात का प्रचार संघ, आदिवासियों के बीच में जाकर कर रहा है।

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नरेंद्र मोदी अहंकारी कैसे 

 नरेंद्र मोदी कैसे अहंकारी है?  इस पर अहमदाबाद के गुजराती  लोकसत्ता अखबार के वरिष्ठ पत्रकार और मेरे घनिष्ठ मित्र दिगंत ओझा ने एक किताब लिखी। जिसमें उन्होंने मोदी की पोल खोलते हुए संघ के साथ किए जा रहे व्यवहारों का पर्याप्त प्रमाण देते हुए कच्चा चिट्ठा खोलते हुए लिखा कि नागपुर से खास अहमदाबाद भेजे गए संघ प्रचारक संजय जोशी को बदनाम करने से लेकर भाजपा से बाहर करने के लिए कौन से षडयंत्र किये? इस पुस्तिका का एक विमोचन नागपुर में मेरे हाथों सम्पन्न हुआ।

लेकिन 27 फरवरी को गोधरा कांड और उसके बाद गुजरात दंगों को नरेंद्र मोदी ने अपने आप को, ‘हिंदूहृदय सम्राट’ का दर्जा हासिल कर लिया। मोदी की हठधर्मिता के बाद अहमदाबाद से नागपुर वापस लौटने के बाद संजय जोशी ने भागवतजी से मुलाकात नही की? संजय जोशी का झूठा चरित्र हनन कर धुंधली सीडी बनाने का मामला मोहन भागवत और संघ के अन्य पदाधिकारियों को मालूम नहीं है?

digant ojha

 जिस संतुलन की बात मोहन भागवत करते हैं क्या नरेंद्र मोदी ने 27 फरवरी के बाद जिस तरह गोधरा दंगों को रोकने की बजाय आगे बढ़ाने के लिए मंत्रिमंडल, प्रशासन और हिन्दू जनता को भड़काते हुए आगे बढ्ने का साहस दिया, उसके पहले 27 फरवरी की गोधरा की बात पता चलते ही गांधीनगर से 200 किलोमीटर दूर गोधरा जाकर कलेक्टर जयती रवि के मना करने के बावजूद भी 59 अधजली लाशों को विश्व हिंदू परिषद द्वारा अहमदाबाद में खुले ट्रकों पर रखकर जुलूस निकाला जाना, भी संतुलन के लिए था?

 

केंद्र सरकार को सेना भेजने का पत्र लिखना और सेना पहुँच जाने पर तीन दिन तक अहमदाबाद के हवाईअड्डे के बाहर नहीं आने देना, आपके अनुसार संतुलन बनाए रखने के लिए था? संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक जो उन दिनों प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने दंगों के बाद मोदी से कहा कि आपने राजधर्म का पालन नहीं किया। क्या यह भी संतुलन के लिए था?

नरेंद्र मोदी तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। वर्ष 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी थे। उस समय अण्णा हजारे के तथाकथित जनलोकपाल आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुए चुनाव में  नरेंद्र मोदी को जिस तरह से संघ ने खुली छूट दी। गौतम अदानी तथा अंबानी के प्राइवेट विमानों का इस्तेमाल कर सबसे बडे स्टार प्रचारक के रूप में लोकसभा चुनाव में प्रचार किया। भाजपा को तीन सौ से अधिक सीटें जिताने में क्या संघ ने सहयोग नहीं किया था? तब नरेंद्र मोदी बहुत ही विनम्र दिखाई दे रहे थे? उसके बाद 2019 के इलेक्शन में बंगाल में हजारों की संख्या में स्वयंसेवक भेजने का निर्णय किसने लिया था?  उस चुनाव में भी नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत से प्रधानमंत्री बने।  तब वह सरकार नरेंद्र मोदी की हो गई?  कोरोना के सर्टिफिकेट से लेकर, राशन के थैलों,  देश के हर पेट्रोल पंप  और महत्वपूर्ण जगहों पर नरेंद्र मोदी की फोटो के साथ विशालकाय होर्डिंग आपको या किसी भी संघ स्वयंसेवक को दिखाई नहीं दिए?  यह भी कम था तब नरेंद्र मोदी ने 2024 का पूरा चुनाव ही नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए, यह मोदी की गारंटी है, के साथ लड़ा। अब जब 272 सीटें भी हासिल नहीं हुईं तब मोहन भागवत को मणिपुर पर  विनम्र बयान दिया।

तीन पारी गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, दस वर्ष प्रधानमंत्री को देखते हुए, संजय जोशी जैसे कमिटेड प्रचारक को सार्वजनिक जीवन से गायब करने वाले अहंकारी स्वयंसेवक को लेकर मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नितिन गडकरी से लेकर बचपन से संघ में शामिल राजनाथ सिंह अब नरेंद्र मोदी के साथ कैसा अनुभव कर रहे हैं? यह बात आपको मालूम नहीं है? अगर इस चुनाव में नरेंद्र मोदी चार सौ से अधिक लोकसभा उम्मीदवारों की जीत हुई होती तो आपने सोमवार को मणिपुर पर जो बयान दिया, क्या वही कहा होता, मोहन भागवतजी?

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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