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सुल्तानपुर : एक गाँव जहां रोज ट्रांसफ़ार्मर ठीक कराना पड़ता है

बिजली की समस्या और कटौती से देश के ग्रामीण और किसान सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे है। जुलाई महीने में जब धान लगाने का मौसम था तब बारिश नहीं हुई और नहर में भी पानी नहीं आया। बिजली की बेतहाशा कटौती के कारण किसान अपने खेत की सिंचाई भी सही ढंग से नहीं कर पाए। आज भी कई ऐसे ग्रामीण इलाके है जो प्रतिदिन ट्रांसफार्मर फूंकने की समस्या से जूझ रहे है। बिजली की इसी समस्या पर प्रस्तुत है कमिया गाँव की रिपोर्ट।

कमिया बाज़ार में बिजली चली गई है और बेतहाशा उमस के कारण लोग घरों से बाहर पेड़ की छांव में बैठे हैं। लेकिन किसी भी पेड़ का एक पत्ता तक नहीं हिल रहा है। बाज़ार में प्रायः सभी दुकानें खुल गई हैं। कुछ दुकानदार बाहर बरामदे में खड़े दिख रहे हैं। मैंने एक पान-बीड़ी की दुकान पर बैठे कुछ लोगों से पूछा क्या यहाँ रोज बिजली जाती है। एक व्यक्ति बोला – ‘प्रतिदिन।’

एक अन्य व्यक्ति राजेश यादव ने कहा – ‘हमारे क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बिजली की है। यहाँ जो ट्रांसफार्मर लगा है वह 16 केवीए का है जिसमें 100 से ज्यादा लोगों का बिजली का कनेक्शन है। मैं रोजाना यह ट्रांसफार्मर बनाता हूँ जबकि यह 24 घंटे चलता भी नहीं हैं। जब ट्रांसफार्मर खराब होता है और लाइनमैन इसे बनाने नहीं आता तो हफ्ते में दो दिन मैं खुद बनाता हूँ।  इसके विषय में मैंने विधायक से भी बात किया है। वे मुझे दो ढाई-साल से आश्वासन ही दे रहे हैं। यहाँ की सांसद मेनका गांधी को भी हमने ज्ञापन दिया था। उन्होंने आश्वासन दिया कि बस यह चुनाव हो जाने दिजिये उसके बाद कुछ करते हैं। लेकिन इस बार वह हार गईं तो अब उनसे कोई बात कह नहीं सकते, लेकिन यहाँ कोई सुनने वाला नहीं है। गर्मी इतनी भयानक पड़ रही है इसलिए मैं प्रशासन से विनती करता हूँ कि इसको तत्काल संज्ञान में लेकर इस कार्य को करे जिससे हम लोगों को राहत मिले।’

राजेश यादव फ़िलहाल कमिया बहाउद्दीनपुर के प्रधान हैं। उनका कहना है कि ‘ट्रांसफार्मर की वजह से बिजली नहीं रहती। इससे बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती। दूसरे बरसात के दिनों में घासफूस से अटे रास्ते से दिशा-मैदान के लिए जाने पर साँप-बिच्छू का खतरा रहता है। आज के दौर में शहर हो या गाँव बिजली हर कहीं की जरूरत है।’

लोगों ने बताया कि बिजली की दिक्कत से हम लोगों की जिंदगी लगातार डिस्टर्ब रहती है लेकिन उसकी शिकायत हम किससे करें। हम लोगों ने इसको अपने जीवन के साथ ढाल लिया है। जितनी बिजली आती है हमें लगता है वही हमारे भाग्य में है। लेकिन वास्तविकता यह है कि सिंचाई और बच्चों की पढ़ाई भगवान भरोसे चल रही है।

बिजली न होने से सबसे ज्यादा दिक्कत जुलाई महीने में हुई जब धान लगाने का मौसम था लेकिन बारिश नहीं हुई। न ही नहर में पानी आया। किसानों की परेशानी का किसी को कोई अंदाज़ा नहीं। किसी तरह से धान लग पाया है। लेकिन दूसरी-तीसरी बार पानी देना मुहाल बना हुआ है। धान के खेत पीले दिखते हैं।

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अभी जब हम बात कर ही रहे थे तभी ट्रांसफार्मर से एक आवाज आयी। लोगों ने कहा –‘लो प्रधानजी आपकी आज की दिहाड़ी हो गई।’ इस पर वहाँ उपस्थित कुछ लोग हँस पड़े। एक आदमी बोला –‘ट्रांसफार्मर अब गया। इसे प्रधानजी आज के आज ठीक करवाएँगे। छोटी-मोटी फाल्ट तो ये खुद ही ठीक कर लेंगे लेकिन बड़ी दिक्कत के लिए लाइनमैन की चिरौरी करेंगे।’

इस गाँव के निवासी वीरेंद्र गुप्ता का कहना है की ‘हमारे क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बिजली की समस्या है। बिजली का वोल्टेज एकदम डाउन रहता है। पंखा एकदम धीरे धीरे चलता है। रामबरन जब प्रधान हुए थे तब का खड़ंजा बना हुआ है अभी उसमें बड़े-बड़े गड्ढे हो गये हैं। उसे दोबारा बनवाया नहीं जा रहा है।’

युवा राकेश गुप्ता कहते हैं ‘मैं पानी पूरी का व्यवसाय करता हूँ। सार्वजनिक जीवन में यहाँ बहुत सारी समस्याए हैं और उनमें सबसे प्रमुख बिजली की समस्या है। एक छोटे से ट्रांसफार्मर के जरिये 150 घरों में बिजली आपूर्ति की जाती है। इन समस्याओं को लेकर हम बड़े अधिकारियों और विधायक के पास भी जा चुके हैं। वे लोग बस आश्वासन ही देते हैं। जब से हमारे गाँव में बिजली आई है तब से यही समस्या चल रही है,  लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। यह रोज की परेशानी है। जब भी हम कोई आन्दोलन करने जाते है तब हमें शांत करा कर वापस भेज दिया जाता है। यहाँ की तहसील कादीपुर हैं। यहाँ आन्दोलन में चलने को तो सब कहते है पर जाने के समय कोई तैयार नहीं होता है।’

इस सिलसिले में कुछ लोगों का कहना है कि अपने काम के लिए दौड़ते-दौड़ते हम इतना थक चुके हैं कि अब आंदोलन के लिए ताकत नहीं बची है। मसलन इस गाँव के रामबरन कहते हैं कि ‘मेरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि बिजली का कनेक्शन लिए मुझे 2 वर्ष हो चुके हैं और मेरे यहाँ अभी तक मीटर नहीं लगाया गया है जिसके कारण मनमाना ढंग से बिजली का बिल आता है। जबकि मेरे घर में सिर्फ लाइट पंखाचलता है और भैंस को नहलाने के लिए टुल्लू चलाया जाता है। जेई साहब 2 वर्ष से आश्वासन ही दे रहे हैं।’

नीरज कहते है कि ‘इस गाँव में इतनी समस्याएँ हैं कि समस्या को निस्तारित करने में भी समस्या उत्पन्न होती है। रोजाना ट्रांसफार्मर खराब होता है और प्रधान बनवाते हैं। कोई भी अधिकारी इस पर कोई कार्यवाही नहीं करता है। जबकि बिजली बिल चेक करने रोजाना आ जाते हैं। जो नेता गाँव के स्वर्ग हो जाने का दावा करते हैं  वे कभी स्वयं आ कर गाँव में रह कर देखें कि गाँव कितना स्वर्ग बन पाया है। नेता सिर्फ गाँव का चौराहा देखते हैं।’

लोग अपने जनप्रतिनिधियों से निराश हो चुके हैं। वे उनके पास जब अपनी समस्याएँ लेकर जाते हैं तो पहले तो वे मिलते ही नहीं और कभी मुलाक़ात का मौका आ भी जाय तो कोरे आश्वासन से काम कर देते हैं। लगभग हर गाँव के लोग यही कहते हैं। जनप्रतिनिधियों की भूमिका उस सामंत की तरह हो गई है जो अपनी पसंद के लोगों पर मेहरबान होता है और बाकी लोगों को दुत्कारता है।

ज़्यादातर गांवों के लोग कहते हैं कि नेताजी इस बात के आधार पर बात सुनते हैं कि कौन उनका वोटर है और किन लोगों ने उनके विरोधियों को वोट दिया होगा। इस बात का आकलन जातियों की स्थिति से होता है। उत्तर प्रदेश में घोषित रूप से यादव-मुस्लिम सपा के वोटर मान लिए गए हैं। दलित बसपा के वोटर हैं। बाकी जातियों में ब्राह्मण-ठाकुर-बनिया स्पष्टतः भाजपा के वोटर माने जाते हैं जबकि अन्य में से भी यह टटोल लिया जाता है कि अति पिछड़ी जातियों से कौन उनके वोटर हैं।

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लोकगायक बृजेश यादव का गाँव भी कमिया बहाउद्दीनपुर ही है। वह कहते हैं कि गाँव में बिजली की, शौचालय की समस्या तो है ही लेकिन इन समस्याओं को सुलझाने का कोई सामूहिक प्रयास नहीं है। मुझे लगता है किसी भी जनप्रतिरोध के आगे सरकार और नौकरशाही को झुकना पड़ता है लेकिन लोग अपने छोटे छोटे मतलब के लिए सामाजिक चेतना से कटते गए हैं।’

वह कहते हैं ‘असल में यह सामन्ती प्रभाव का इलाका है, हालाँकि धीरे धीरे सामन्ती प्रवृत्तियां कमजोर हो रही हैं। अब जो इन्काउन्टर और बुलडोजर कल्चर है यह भी एक तरह का सामन्ती कल्चर है। न्याय व्यवस्था और संविधान के बाहर जाकर जब कोई कायदा-कानून अख्तियार किया जाता है तो यह सामन्ती व्यवस्था हो जाती है। लोगों से भी बातचीत करके यदि आप देखें तो पाएंगे कि इनके मसले समाज, राजनीति, देश के उस रूप में नहीं हैं। लोकल समस्याएं ठीक हैं। उनकी एक जरूरत है, लेकिन वास्तव में जो देश की चिंता है वो इस देश के लोगों में या इस चौराहे पर खड़े लोगों में नहीं पाई जा रही है। यह दिमागी और वैचारिक पिछड़ापन है। यह सब बंद दिमाग का खेल है। यदि आप राजनीति और समाज पर आयेगे तो लोग जाति-जाति करने लग जाते हैं।  यह जो बंटवारा है ये इन्हें कही से अक्लमंद नहीं होने देता है। इनका दायरा जरूरतों के बीच सीमित होकर रह गया है। यह इस पूरे इलाके की बात है।’

कमिया बहाउद्दीनपुर सिर्फ एक उदाहरण है लेकिन इलाके में घूमा जाय तो हर गाँव की यही कहानी मिलेगी।

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