प्रगतिशील इंकलाबी परंपरा के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी कथाकार यशपाल एवं जनकवि रमाशंकर यादव विद्रोही जयंती के अवसर पर जन संस्कृति मंच, दरभंगा के तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी के माध्यम से पूरी शिद्दत से याद किए गए। जनकवि सुरेंद्र प्रसाद स्मृति सभागार में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता जिलाध्यक्ष डॉ.रामबाबू आर्य ने की।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो. सुरेंद्र सुमन ने कहा कि यशपाल और विद्रोही दोनों ही सर्वहारा की मुक्ति के बड़े इंकलाबी रचनाकार रहे हैं। यशपाल ने अपने लेखन से हजारों कम्युनिस्ट बनाए। प्रेमचंद के बाद सर्वाधिक इंकलाबी यशस्वी कथाकार के रूप में यशपाल का नाम आता है। यशपाल की ही भांति रमाशंकर विद्रोही शोषण के तमाम रूपों के खिलाफ लड़ने की चेतना पैदा करते हैं। विद्रोही यथास्थिति से विद्रोह का ही दूसरा नाम है। उन्होंने इंकलाब के लिए कबीर से वाचिकता ग्रहण की। वे कबीर के बाद वाचिक परम्परा के दूसरे सबसे बड़े कवि हैं। साहित्यकारों को प्रतिरोध के लिए किस तरह खड़ा होना चाहिए? इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण विद्रोही जी हैं। प्रतिरोध उनकी जीवनशैली था। उन्हें पूरी दुनिया की सभ्यता–संस्कृति, शोषण–उत्पीड़न का गहरा अध्ययन था। विद्रोही फासीवाद से लड़ने के लिए जरूरी उपकरण उपलब्ध कराते हैं। यह कहना चाहिए कि वे मजदूरों, क्रांतिकारियों के अपने खास कवि हैं। वास्तव में, सर्वहारा संघर्ष को मजबूत करना ही उनके प्रति वास्तविक श्रद्धांजलि होगी।
अध्यक्षीय उद्बोधन में जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने कहा कि मुक्तिबोध ने कभी अभिव्यक्ति के खतरे उठाने का आह्वान किया था। सच पूछिए तो विद्रोही ने अभिव्यक्ति के वे खतरे उठा लिए थे। वे वास्तविक अर्थों में कवि और ऑर्गेनिकि बुद्धिजीवी थे। समतामूलक समाज की स्थापना के स्वप्न के लिए उन्होंने अनूठे ढंग से संघर्ष किया। उन्होंने सामाजिक–राजनीतिक संरचना में विन्यस्त वर्चस्ववादी मूल्यों पर गहरा प्रहार किया। कबीर की तीक्ष्णता को वहन करने वाले कवि के रूप में उनकी पहचान अकारण नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि यशपाल प्रेमचंद की परंपरा का विकास हैं। वे जनवादी साहित्यकारों के प्रेरणास्रोत हैं। मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र के विकास में इनका बहुमूल्य योगदान रहा है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यशपाल और विद्रोही जैसे रचनाकार मानव–मुक्ति के बड़े रचनाकार हैं। आज उनकी प्रगतिशील जनवादी परम्परा के विकास की जरूरत दरपेश है।
डॉ. संजय कुमार ने कहा कि विद्रोही जी के समय में जितने भी आंदोलन हुए उनमें वे प्रत्यक्षतः शामिल रहते थे। आंदोलनों का प्रभाव उनकी कविताओं पर साफ दिखता है। दूसरी बात, हड़प्पा से मोहनजोदड़ो तक स्त्रियों की जो स्थिति रही है, उसका वर्णन उनकी कविताओं में बहुत ही विलक्षण रूप में संभव हुआ है। इस संदर्भ में उन्होंने सभी साभ्यतिक संकटों को भी अपनी कई कविताओं में उभारा है। दरअसल उनकी कविताएं गहरी जनचेतना और जनसंघर्ष से जुड़ी हैं।
मौके पर शोधार्थी रूपक कुमार, सुभाष कुमार, डॉ. अनामिका सुमन, बबिता सुमन आदि ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन जिला सचिव समीर ने किया। (जसम, दरभंगा) (प्रेस विज्ञप्ति)