Saturday, December 14, 2024
Saturday, December 14, 2024




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमग्राउंड रिपोर्टजौनपुर : ऐतिहासिक धरोहरों का शहर, लेकिन पर्यटन के नक्शे पर नहीं

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

जौनपुर : ऐतिहासिक धरोहरों का शहर, लेकिन पर्यटन के नक्शे पर नहीं

जौनपुर की धरोहरें केवल इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे एक जीवंत संस्कृति का प्रतीक हैं। अगर इन स्थलों को सहेजने और प्रचारित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, तो यह शहर न केवल अपनी पहचान बचा सकता है, बल्कि पर्यटन के माध्यम से विकास की नई कहानी भी लिख सकता है।जौनपुर शहर की पहचान जिन ऐतिहासिक धरोहरों से होती है, वे देखरेख के अभाव में लगातार खंडहर में तब्दील हो रही हैं। लगभग 600 साल पुरानी इस विरासत होने के बावजूद यह स्थान पर्यटन स्थल के रूप में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया है। पढ़िए आनंद देव की ग्राउंड रिपोर्ट

जौनपुर, शार्की वंश की भव्यता और स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण, आज विकास की अनदेखी और उपेक्षा का शिकार है। लगभग 600 साल पुरानी इस विरासत के पास शाही किला, अटाला मस्जिद, चार अंगुल की मस्जिद, झंझरी मस्जिद, शाही पुल, शाह फिरोज का मकबरा, बड़ी मस्जिद, लाल दरवाजा, शीतला माता मंदिर, चाचकपुर गुरुद्वारा, कालिच खान और शेर जमा खान के मकबरे और कई सूफी संतों की मजार जैसी दर्जन भर से अधिक धरोहरें हैं। फिर भी यह शहर विश्व पर्यटन का हिस्सा बनने की बजाय अपनी पहचान और अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में है।

इतिहास की बुनियाद पर खड़ा जौनपुर

जौनपुर की स्थापना 14वीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक ने अपने चाचा मुहम्मद बिन तुगलक की याद में की थी। शार्की शासकों के समय यहां की स्थापत्य कला अपने चरम पर थी। अटाला मस्जिद (1408) और झंझरी मस्जिद जैसी इमारतें इस बात की गवाह हैं कि शार्की वास्तुकला अपनी भव्यता और तकनीकी कुशलता के लिए जानी जाती थी। शाही पुल, जो गोमती नदी पर बना है, न सिर्फ इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है, बल्कि यह शाही दौर के यातायात और व्यापार की रीढ़ भी था।

लेकिन यह इतिहास आज केवल किताबों में या खंडहरों में दफन होता नजर आता है। जौनपुर की इन धरोहरों की स्थिति बदहाल है, और इन्हें संरक्षित करने के लिए अब तक कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई।

चार अंगुल मस्जिद

जौनपुर को विश्व पर्यटन नक्शे पर लाना, पर्यटन के लिए बड़ी चुनौतियां

जौनपुर की ऐतिहासिक इमारतें शहर की घनी आबादी और तंग गलियों के बीच स्थित हैं। शाही किला और अटाला मस्जिद जैसे प्रमुख स्थल तो स्थानीय लोगों के लिए दैनिक आवाजाही का हिस्सा बन गए हैं। इन स्थलों के चारों ओर की सड़कों की हालत खराब है और पार्किंग जैसी बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।

इसके अलावा, धरोहरों की सही तरीके से देखभाल नहीं होने के कारण इनकी दीवारें जर्जर हो रही हैं। कई स्थानों पर अतिक्रमण ने इन स्मारकों की सुंदरता और भव्यता को छुपा दिया है। चाचकपुर गुरुद्वारा जहां श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के भी चरण पड़े थे, नौवें गुरु का तीर आज भी रासमण्डल स्थित गुरुद्वारे में रखा है, लेकिन इसे देखने आने वाले श्रद्धालुओं को सही मार्गदर्शन नहीं मिलता। चाचकपुर गुरुद्वारे पहुंचने के लिए आज भी एक किलोमीटर का सफर कच्चे रस्ते और झाड़ियों से होकर तय करना पड़ता है।

lal darvaja- gaonkelog
लाल दरवाजा

जौनपुर की ऐतिहासिक धरोहरें केवल पर्यटन के लिए नहीं, बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकती हैं। यदि जौनपुर को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाए, तो यह न केवल स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करेगा, बल्कि शहर की सड़कों, परिवहन और अन्य बुनियादी ढांचे में सुधार भी होगा। जौनपुर को विश्व पर्यटन नक्शे पर लाने की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन सरकार की उदासीनता इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने में बाधक रही है। इस संबंध में इतिहासकार इरफान जौनपुरी का कहना है, ‘हमारे यहां जितने भी ऐतिहासिक महत्व की धरोहर हैं, वह सिर्फ जौनपुर के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए शान हैं। अगर इस शहर को विश्व पर्यटन नक्शे पर लाया जाए, तो पूरे मुल्क का सर ऊंचा होगा।’

जौनपुर का भविष्य: धरोहरों से रोजगार तक

जौनपुर की धरोहरें केवल इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे एक जीवंत संस्कृति का प्रतीक हैं। अगर इन स्थलों को सहेजने और प्रचारित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, तो यह शहर न केवल अपनी पहचान बचा सकता है, बल्कि पर्यटन के माध्यम से विकास की नई कहानी भी लिख सकता है।

यह सवाल सिर्फ पत्थरों और खंडहरों का नहीं है। यह सवाल है कि क्या हम अपनी जड़ों को पहचानने और उसे सहेजने की काबिलियत रखते हैं? क्या हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जौनपुर का गौरवशाली इतिहास किसी किताब का पन्ना बनकर न रह जाए, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बने?

अब यह देखना है कि क्या जौनपुर की यह धरोहरें फिर से उस मुकाम तक पहुंच पाएंगी, जहां से उनका इतिहास शुरू हुआ था। या फिर यह शहर अपनी पहचान के लिए संघर्ष करता रहेगा?

खंडहर होता कालिच खां का मकबरा

जौनपुर के खंडहरों में बसी विरासत की गूंज

1495 ईस्वी में सिकंदर लोदी द्वारा जौनपुर में तमाम खानकाहों, मदरसों और आवासीय भवनों को नष्ट किए जाने की कहानी आज भी यहां के खंडहरों में जीवित है। झंझरी मस्जिद के सामने स्थित यह प्राचीन चहारदीवारी उसी विध्वंस का साक्षी है।

यह खंडहर न केवल जौनपुर के गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, बल्कि इस क्षेत्र की ऐतिहासिक महत्ता को भी उजागर करता है। चहारदीवारी की संरचना में प्राचीन ईंटों और निर्माण कला की झलक मिलती है, जो उस दौर के स्थापत्य कौशल का प्रमाण है।

jhijhri masjid jaunpur-gaonkelog
जौनपुर की ऐतिहासिक झिंझरी मस्जिद

आज यह स्थल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है, बशर्ते इसे उचित संरक्षण और प्रचार-प्रसार मिले। इस खंडहर को देखने आने वाले पर्यटक यहां की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को करीब से समझ सकते हैं।

ऐतिहासिक स्थलों में रुचि रखने वालों के लिए यह चहारदीवारी जौनपुर के समृद्ध अतीत की यात्रा पर ले जाने का एक माध्यम है। अगर इस स्थल का सही तरीके से प्रचार किया जाए तो यह न केवल पर्यटन को बढ़ावा देगा, बल्कि स्थानीय समुदाय को अपनी धरोहर पर गर्व करने का मौका भी देगा।

जौनपुर की धरोहरों को सहेजने पर विशेष ध्यान 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (सारनाथ, वाराणसी) के संरक्षक सहायक जे. राजू ने बताया कि जौनपुर की ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने का कार्य लगातार जारी है। उन्होंने कहा, कालिच खान के मकबरे की बाउंड्री वॉल, दीवारों और छत को मजबूत करने का काम किया गया है। सभी कार्य सावधानीपूर्वक किए जा रहे हैं, ताकि धरोहर का मूल स्वरूप न बदले। अन्य इमारतों को भी संरक्षित रखने का काम चल रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यटन को बढ़ावा देना पर्यटन विभाग की जिम्मेदारी है।

RK Rawat-gaonkelog
पर्यटन उपनिदेशक वाराणसी आर.के. रावत

जौनपुर जिले के पर्यटन विकास के लिए लगभग 8 करोड़ से अधिक की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इसमें बड़े हनुमान जी मंदिर रास मंडल, मडियाहूं के प्राचीन शिव मंदिर, केराकत के बेहड़ा गांव में शिवालय, नागेश्वर मंदिर और महाराजगंज विकासखंड के असरोपुर गांव स्थित त्रिलोकनाथ धाम को शामिल किया गया है।

पर्यटन उपनिदेशक वाराणसी आर.के. रावत ने बताया कि शहर की अन्य ऐतिहासिक इमारतों के पर्यटन विकास के लिए भी कार्य किए जाएंगे। हालांकि, उन्होंने जौनपुर की ऐतिहासिक इमारतों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए कोई विशेष योजना या समयसीमा स्पष्ट नहीं की।

अयोध्या और वाराणसी के बीच पर्यटन का स्वाभाविक केंद्र  

जौनपुर की भौगोलिक स्थिति इसे पर्यटन के लिहाज से और भी खास बनाती है। यह अयोध्या और वाराणसी के बीच के मार्ग पर स्थित है, जिससे इन दोनों धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिए जौनपुर एक स्वाभाविक ठहराव बन सकता है।

अयोध्या से वाराणसी के रास्ते में स्थित होने के साथ-साथ, जौनपुर की कनेक्टिविटी हवाई, रेल और सड़क मार्ग से भी उत्कृष्ट है, जो इसे पर्यटन विकास के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है। वाराणसी से जौनपुर की दूरी मात्र 70 किलोमीटर, प्रयागराज से 100 किलोमीटर, और अयोध्या से 150 किलोमीटर है।

यहां से बाबतपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा केवल 40 किलोमीटर की दूरी पर है। रेल कनेक्टिविटी भी उत्कृष्ट है, शहर में भंडारी रेलवे जंक्शन और सिटी रेलवे स्टेशन के अलावा पास ही जफराबाद रेलवे जंक्शन स्थित है। सड़क मार्ग से भी जौनपुर की कनेक्टिविटी मजबूत है। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसें यहां से नियमित रूप से संचालित होती हैं, और शहर के मध्य में स्थित जौनपुर डिपो यात्रियों की सुविधा को और आसान बनाता है।

इन सुविधाओं के कारण जौनपुर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं।

मुश्किल नहीं इसे संभव बनाना 

  1. धरोहरों का संरक्षण और पुनरुद्धार:

शहर की ऐतिहासिक इमारतों की मरम्मत और रखरखाव के लिए एक व्यापक योजना बनाई जानी चाहिए। इसके लिए सरकारी और निजी संस्थानों से आर्थिक मदद ली जा सकती है।

शाही किला और ऐतिहासिक इमारतों की दीवारों की मरम्मत की जाए।

ऐतिहासिक स्थलों के आसपास अतिक्रमण हटाकर उनकी भव्यता को पुनर्स्थापित किया जाए।

स्मारकों पर शिलालेख और डिजिटल गाइड्स उपलब्ध कराए जाएं, जो उनकी ऐतिहासिकता और महत्व को समझा सकें।

2. सड़क और पार्किंग की व्यवस्था:

पर्यटकों के लिए सुलभता सबसे जरूरी है।

शाही किला, अटाला मस्जिद, झंझरी मस्जिद, चार अंगुल मस्जिद  जैसे स्थलों तक चौड़ी सड़कों का निर्माण  किया जाए।

हर ऐतिहासिक स्थल के पास एक पार्किंग स्थल की व्यवस्था हो।

स्मारकों के आसपास यातायात नियंत्रण के लिए इलेक्ट्रिक रिक्शा या हेरिटेज वॉक की सुविधा दी जाए।

3.डिजिटल प्रचार अभियान:

जौनपुर को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नक्शे पर लाने के लिए सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्मों पर प्रचार जरूरी है।

ऐतिहासिक स्थलों पर आधारित एक आधिकारिक वेबसाइट बनाई जाए, जहां पर्यटकों को स्थान, इतिहास और गाइड बुकिंग की जानकारी मिले।

स्थानीय कलाकारों और युवाओं के माध्यम से यूट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स पर प्रचार किया जाए।

4.आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ:

जौनपुर के पर्यटन को बढ़ावा देने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

स्थानीय युवाओं को पर्यटन गाइड के रूप में प्रशिक्षित किया जा सकता है।

स्थानीय शिल्प और कला को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन स्थलों पर हस्तशिल्प और खाद्य उत्पादों के स्टॉल लगाए जाएं।

‘हेरिटेज वॉक’ और ‘शार्की टूर’ जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए।

5. शैक्षणिक और सांस्कृतिक पहल:

जौनपुर की धरोहरों को समझने और संरक्षित करने के लिए स्थानीय स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं।

छात्रों को इन स्थलों पर शैक्षणिक भ्रमण के लिए प्रेरित किया जाए।

सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन कर स्थानीय कला और धरोहर को प्रदर्शित किया जाए।

आनंद देव
आनंद देव
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और जौनपुर में रहते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here