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राजस्थान : वंचित समुदाय सरकारी योजनाओं की कमी के चलते शिक्षा पाने में नाकामयाब

राजस्थान में सरकारी स्कूलों की स्थिति का हाल कुछ ऐसा है कि स्कूलों में मास्टर की कमी सबसे बड़ी समस्या है। उदाहरण के लिए, राज्य में लगभग 1.17 लाख शिक्षण पदों पर अभी भी टीचरों की नियुक्ति नहीं हुई है। स्कूलों को उच्च माध्यमिक स्तर पर अपग्रेड किया गया है, लेकिन नए पदों पर टीचर की नियुक्ति नहीं होने के कारण कक्षाएँ नियमित रूप से नहीं चल पा रही हैं। UDISE ( Unified District Information System for Education) रिपोर्ट बताती है कि 7,688 स्कूलों में सिर्फ एक ही शिक्षक होते हैं, और 2,167 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहाँ एक भी छात्र नामांकित नहीं है।

नकोदेसर गाँव, राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूंकरणसर तहसील का एक छोटा सा गाँव है, जहाँ हर सुबह एक नई चुनौतियों के साथ होती है। किसानों को बेहतर फसल उगाने की चुनौती होती है तो युवाओं को रोजगार पाने की चुनौती होती है। बच्चों और विशेषकर लड़कियों के सामने शिक्षा हासिल करने की सबसे बड़ी चुनौती होती है। इन चुनौतियों का सामना करते हुए उन्हें सरकार से कुछ उम्मीदें होती हैं।

लेकिन ये उम्मीदें अक्सर अधूरी रह जाती हैं, खासकर तब जब सरकारी योजनाएँ मौजूद होते हुए भी उनके असली लाभ नहीं मिल पाते। गाँव की आर्थिक स्थिति कठिन है, संसाधन सीमित हैं, और विशेषकर लड़कियों के लिए शिक्षा की राह कई तरह की बाधाओं से घिरी हुई है। सरकार की योजनाएं हों या शिक्षा विभाग की घोषणा, तब-तब उनको क्रियान्वित करना और गाँव-घर तक पहुँचाना चुनौती बन गया है।

राजस्थान में सरकारी स्कूलों की स्थिति का हाल कुछ ऐसा है कि स्कूलों में मास्टर की कमी सबसे बड़ी समस्या है। उदाहरण के लिए, राज्य में लगभग 1.17 लाख शिक्षण पदों पर अभी भी टीचरों की नियुक्ति नहीं हुई है। स्कूलों को उच्च माध्यमिक स्तर पर अपग्रेड किया गया है, लेकिन नए पदों पर टीचर की नियुक्ति नहीं होने के कारण कक्षाएँ नियमित रूप से नहीं चल पा रही हैं। UDISE ( Unified District Information System for Education) रिपोर्ट बताती है कि 7,688 स्कूलों में सिर्फ एक ही शिक्षक होते हैं, और 2,167 सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहाँ एक भी छात्र नामांकित नहीं है।

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नकोदेसर में, इस कमी की गहराई सीधे महसूस की जा सकती है। जब सरकारी स्कूल में शिक्षक नहीं होंगे तो बच्चों को पढ़ाने के लिए अभिभावकों को निजी स्कूलों का रुख करना पड़ेगा, जो कि गरीब परिवारों के लिए खर्चीली होती हैं। कई लड़कियाँ इन स्कूल-शिक्षण की कमी और दूरी की वजह से स्कूल जाना बंद कर देती हैं, क्योंकि स्कूल पहुँचने के लिए समय और मेहनत अधिक लगती है। साथ ही, घर के काम, छोटे भाई-बहनों की देखभाल, और कभी-कभी विवाह जैसी सामाजिक जिम्मेदारी भी उनकी शिक्षा की राह में आती हैं।

हालांकि राज्य सरकार, हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचाने के लिए काफी प्रयास कर रही है। इसके लिए कई सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। जैसे छात्रवृत्ति, मुफ्त किताब-पाठ्य सामग्री, पोषण आहार, शिक्षा से सम्बंधित सब्सिडियां आदि तो घोषित हैं, लेकिन दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों तक इसका लाभ पहुँचने में देर हो जाती है, या फिर दस्तावेजों की कमी की वजह से उन्हें नहीं मिल पाती है। उदाहरणस्वरूप, यदि परिवार के पास पर्याप्त पहचान पत्र, स्कूल से सम्बंधित दस्तावेज, वहाँ-के स्कूल का सही पता आदि नहीं हो, तो योजनाएं मिलना कठिन हो जाता है। गाँव की महिलाओं का कहना है कि योजनाएं आती हैं, मगर आवेदन प्रक्रिया जटिल होती है, और जानकारी गाँव-घर तक नहीं पहुंच पाती है।

इसकी वजह से कई चुनौतियां आती हैं। पहला, शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। जब शिक्षक नहीं आते हैं तो पढ़ाई अधूरी होती है जिससे बच्चों को मूल बातें ठीक से नहीं सिखाई जातीं हैं। दूसरा, बच्चों का आत्म-विश्वास टूटता है। जब कोई बच्चा लगातार स्कूल नहीं नहीं जा पा रहा हो या समय-समय पर छुट्टियाँ हों, तो वह खुद को पीछे समझने लगता है। तीसरा, भविष्य के विकल्प सीमित हो जाते हैं। उच्च अध्ययन, अच्छे रोजगार के अवसर, सरकारी या निजी नौकरियां मिलने में कठिनाई होती है क्योंकि शैक्षिक आधार कमजोर होता है।

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इनमें सबसे नकारात्मक प्रभाव लड़कियों के जीवन पर होता है। उनकी स्थिति और भी जटिल हो जाती है। यदि घर की आर्थिक स्थिति कुछ बेहतर हो तो लड़कों को भी निजी शिक्षा का विकल्प मिल जाता है, लेकिन लड़कियों के लिए अक्सर यह विकल्प नहीं होता है। सामाजिक रूढ़ियों और परंपराओं के चलते लड़कियों को शिक्षा की बजाय घर का काम, देखभाल या विवाह की ओर धकेल दिया जाता है। स्कूल की दूरी, सुरक्षा, सुविधाएँ (विशेषकर लड़कियों के लिए स्वच्छ शौचालय आदि) जैसे बुनियादी तत्व कम रहने से कई परिवार लड़कियों को स्कूल भेजने में हिचकिचाते हैं।

ऐसे में सरकारी योजनाओं की पहुँच को सुनिश्चित करना ही एक बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। योजनाएं जैसे ‘स्कॉलरशिप’, ‘मुफ्त पाठ्य-पुस्तक’, ‘भोजन योजना’, ‘आवास-छात्रावास व्यवस्था’ आदि यदि समय पर लागू हों, तो पढ़ाई अधूरी न रह पाए। उदाहरण के लिए, यदि सरकारी स्कूलों में पर्याप्त शिक्षकों की भर्ती हो जाए, तो निजी खर्च कम होगा, यदि स्कूलों तक सड़क और परिवहन की व्यवस्था बेहतर हो जाए, तो बच्चे आसानी से पहुँच पाएँ, यदि लड़कियों के लिए विशेष सुविधाएं हों, तो परिवार उन्हें भेजने को तत्पर होंगे।

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राजस्थान सरकार की नीतियों में जहाँ योजनाएँ हैं, वहाँ कुछ सुधार हो रहे हैं, लेकिन इन्हें गाँव-गाँव तक प्रभावी रूप से पहुँचाना ज़रूरी है। योजनाओं की जानकारी को प्रभावी रूप से गाँव के प्रत्येक परिवार तक पहुंचाना जरूरी है। अगर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक की कमी को दूर कर दिया जाए, लड़कियों के लिए सुविधाएँ सुनिश्चित की जाएं, उन्हें सभी योजनाएँ समय से मिले तो इससे लड़कियों की शिक्षा का स्तर बढ़ सकता है। बच्चों को पढ़ाई में मजबूती मिलेगी, वहीं परिवारों को निजी स्कूलों पर पैसा खर्च नहीं करने से उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। इससे लड़कियों को भी समान अवसर मिलेगा जिससे समाज में समावेशिता बढ़ेगी। (यह लेखिका का निजी विचार है)

1 COMMENT
  1. बहुत ही साहसी लेखिका! उन्होंने राजस्थान की शिक्षा की जटिलताओं को बहुत ही सीधे बताया है। हालांकि जब शिक्षक नहीं हैं, तो कक्षाएँ उच्च माध्यमिक स्तर पर अपग्रेड कर जाती हैं, यह काफी हद तक समझ में नहीं आता। लेकिन जब योजनाएँ चलानी पड़ती हैं, तो उनकी पहुँच गाँव-घर तक पहुँचने में काफी देर लगती है। लड़कियों को शिक्षा के लिए विवाह की ओर धकेलना सामाजिक रूढ़ियों की बुरी गलती है। सरकार को यह समझना होगा कि शिक्षक बिल्कुल ही अवश्य हैं, और योजनाओं को लागू करने में उसी तेज़ी से करनी है जितनी बच्चे अध्ययन करते हैं!Free Nano Banana

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