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भूख का रंग अमावस जैसा,भरे पेट को पूरनमासी

बी आर विप्लवी हिन्दी गज़ल की दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनकी गज़लों में इंसानी दुख-दर्द की अनेकानेक परतें दर्ज़ हैं। सबसे जरूरी बात यह कि दलित जीवन की स्थितियों और उनकी विडंबनाओं को विप्लवी बहुत शिद्दत से पकड़ते हैं और यह सहज ही कहा जा सकता है कि वे अपने काव्य-फार्म में […]

बी आर विप्लवी हिन्दी गज़ल की दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनकी गज़लों में इंसानी दुख-दर्द की अनेकानेक परतें दर्ज़ हैं। सबसे जरूरी बात यह कि दलित जीवन की स्थितियों और उनकी विडंबनाओं को विप्लवी बहुत शिद्दत से पकड़ते हैं और यह सहज ही कहा जा सकता है कि वे अपने काव्य-फार्म में भारतीय जीवन के सामाजिक कलंक और सांस्कृतिक दोहरेपन को समेट लाते हैं। इस लिहाज से वे हिन्दी ग़ज़ल में सर्वथा नई ज़मीन पर खड़े हैं। इसलिए उनकी शायरी के सामने चुनौतियाँ भी हैं। अपर्णा के साथ बातचीत में उन्होंने इन सभी पहलुओं पर अपने विचार साझा किए हैं। देखिए इस दिलचस्प बातचीत का पहला हिस्सा …

 

बी आर विप्लवी ऐसे ग़ज़लकार हैं, जिनकी ग़ज़लों में ज़िन्दगी के हर उस पहलू की झलक मिलती है, जिनसे आम आदमी रोज़ संघर्ष कर हारता है और फिर उसे हासिल करने के लिए जूझता है। उनकी ग़ज़लों का रेंज बहुत बड़ी है इसीलिए उनके समक्ष भरपूर चुनौतियाँ भी हैं। अपर्णा से बातचीत करते हुए उन्होंने अपने सामाजिक सरोकार से रूबरू कराया। देखिये बातचीत का दूसरा और अंतिम हिस्सा। गांव के लोग आपका अपना मंच है जो बहुजन समाज के सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सवालों और मुद्दों को उठा रहा है। इसे सपोर्ट कीजिये, सब्सक्राइब कीजिये और आगे बढ़ाइए।

 

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