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कांग्रेस की मजबूरी या राजनीतिक रणनीति

राजनैतिक कश्मकश के बाद आखिर कांग्रेस ने पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की तरफ से अपने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ही होंगे विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा। मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कांग्रेस हाईकमान के सामने एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि इसकी दावेदारी त्रिमूर्ति नवजोत सिंह […]

राजनैतिक कश्मकश के बाद आखिर कांग्रेस ने पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की तरफ से अपने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ही होंगे विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा। मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कांग्रेस हाईकमान के सामने एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि इसकी दावेदारी त्रिमूर्ति नवजोत सिंह सिद्धू सुनील जाखड़ और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कर रहे थे, लेकिन रविवार को अंतिम फैसला हाईकमान की ओर से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने वर्चुअल मंच से चन्नी के नाम का सुनाया। चन्नी के नाम पर राजनीतिक गलियारों में हैरानी शायद नहीं हुई होगी क्योंकि मुख्यमंत्री चन्नी ही पंजाब विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे इसके संकेत उस समय ही मिल गए थे जब चन्नी ने पंजाब विधानसभा चुनाव में 2 सीटों से विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था। अब बात करें चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने के पीछे कांग्रेस की मजबूरी है, या राजनीतिक रणनीति है यह सवाल 50-50 का है  कांग्रेस की मजबूरी भी है और राजनीतिक रणनीति भी है।

मजबूरी इसलिए क्योंकि कांग्रेस ने 111 दिन पहले जब चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया था तब कांग्रेस ने गाजे-बाजे के साथ देशभर में यह संदेश दिया था कि पंजाब में पहली बार किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाया गया है, ऐसे में कांग्रेस चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बना कर जट सिख या हिंदू नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाती तो इसका कांग्रेस पर चुनाव में गलत प्रभाव पड़ता और संदेश जाता की कांग्रेस ने अपने मतलब के लिए चंद दिनों के लिए दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाया था। कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर पंजाब की 35% दलित आबादी को चुनाव में साधने का प्रयास किया है।

[bs-quote quote=”कांग्रेस के पास लंबे समय से देश में प्रभावशाली दलित नेता नहीं है या यूं कहें की बाबू जगजीवन राम के बाद से ही कांग्रेस के पास मजबूत और प्रभावशाली दलित नेता का अभाव रहा है। कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर अनेक दलित नेताओं को प्रभावशाली नेता बनाने का प्रयास भी किया मगर कांग्रेस किसी भी दलित नेता को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत और प्रभावशाली नेता नहीं बना पाई। कांग्रेस बाबू जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार को विदेश से भारत लेकर आई और उन्हें बिजनौर से पहली बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ा कर सांसद बनाया।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

जहां तक राजनीतिक रणनीति का सवाल है, कांग्रेस के पास लंबे समय से देश में प्रभावशाली दलित नेता नहीं है या यूं कहें की बाबू जगजीवन राम के बाद से ही कांग्रेस के पास मजबूत और प्रभावशाली दलित नेता का अभाव रहा है। कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर अनेक दलित नेताओं को प्रभावशाली नेता बनाने का प्रयास भी किया मगर कांग्रेस किसी भी दलित नेता को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत और प्रभावशाली नेता नहीं बना पाई। कांग्रेस बाबू जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार को विदेश से भारत लेकर आई और उन्हें बिजनौर से पहली बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ा कर सांसद बनाया। पंजाब से ही सरदार बूटा सिंह को लेकर आई उन्हें देश का गृहमंत्री तक बनाया वहीं राजस्थान से जगन्नाथ पहाड़िया को लेकर आई जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान में मुख्यमंत्री भी रहे। महाराष्ट्र से सुशील कुमार शिंदे को कांग्रेस लेकर आई शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे और देश के गृह मंत्री भी रहे। ऐसे अनेक नाम हैं जिन्हें कांग्रेस ने दलित नेता के रूप में उभारने का प्रयास किया लेकिन वह नेता उतने सफल नहीं हो पाए जितने सफल नेता बाबू जगजीवन राम हुआ करते थे।

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अब बारी पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की है चन्नी के सामने सबसे बड़ी पहली चुनौती तो पंजाब ही है। चन्नी पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल हो पाते हैं या नहीं ये तो चुनाव का परिणाम ही बताएगा। यदि चन्नी पंजाब में सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं तो फिर कांग्रेस की तरफ से चन्नी ताकतवर राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर जाएंगे, और कांग्रेस को इसका फायदा 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मिलेगा।
लेकिन देखना यह है कि पंजाब की त्रिमूर्ति मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और कद्दावर नेता सुनील जाखड़ लगातार दूसरी बार पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनवा पाएंगे या नहीं, फिलहाल कांग्रेस के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती है।


देवेंद्र यादव कोटा स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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