दिलीप साहब को दुनिया छोड़ने के बाद उनके कद्रदानों ने तरह से याद किया. बतौर अभिनेता उनकी खूबियाँ तो हर किसी ने बताई ; बहुत से लोगों ने उर्दू जुबान पर उनकी गज़ब की पकड़ : ग़ालिब, मीर , इकबाल, फैज़, फ़िराक आदि की शायरी की अद्भुत व विरल समझ रखने वाला आला दर्जे का एक जहीन एक्टर बताया. कुछ लोगों ने उनके खेल-प्रेम, विशेषकर कोलकाता की मोहम्मडन स्पोर्टिंग फुटबॉल टीम और आल राउंडर स्पोर्ट्समैन चुन्नी गोस्वामी के प्रति उनकी दीवानगी को भी याद किया, किन्तु किसी ने क्रिकेटर के रूप में उन्हें याद नहीं किया, जबकि वह इसके हक़दार रहे !
दिलीप साहब को को बैटिंग करते हुए देखने का मुझे विरल अवसर मिला था. सच कहूं तो उस समय तक मुझे कोलकाता के ऐतिहासिक इडेन गार्डन में गावस्कर, ग्रेट विश्वनाथ, एम.एल. जयसिम्हा,नवाब पटौदी, विव रिचर्ड्स, एल्विन कालीचरण, गोर्डन ग्रिजिन, माजिद खान, किम ह्यूज इत्यादि जैसे महान बल्लेबाजो खेलते देखने का अवसर मिल चुका था,किन्तु दिलीप साहब की बल्लेबाज़ी से जितना रोमांचित हुआ, वह बतौर क्रिकेट दर्शक मेरे जीवन के खास लम्हे रहे .
[bs-quote quote=”आज लोग आमिर खान को परफेक्शनिस्ट कहते हैं, लेकिन भारत के पहले परफेक्शनिस्ट दिलीप साहब ही थे. मैंने अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र से लगाये ढेरों लोगों की भाव-भंगिमा हास्यस्पद होते हुए देखे है. लेकिन दिलीप कुमार पूरी तरह अपवाद रहे. न सिर्फ बतौर एक्टर, बल्कि निर्माता के रूप में भी परफेक्शनिस्ट रहे , जिसकी उज्ज्वलतम मिसाल गंगा-जमुना है. उस दौर में चर्चा रही कि वह गंगा-जमुना के निर्देशक नितिन बोस के काम से असंतुष्ट होकर डायरेक्टर का जिम्मा खुद ले लिया था और गंगा- जमुना को मील का पत्थर बना दिया” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
1978 बंगाल में भीषण बाढ़ आई थी. मुझे याद है जिस किराये के मकान में रह रहा था, उसमे डेढ़-फीट से ज्यादे पानी भर गया था, लगा घर किसी भी समय कोलैप्स कर सकता है. वैसी स्थिति में मेरे सबसे घनिष्ठ मित्र लालबाबू किसी तरह ग्यारह-बारह बजे रात में अपने घर ले जाने के लिए आये थे पर, मैं घर नहीं छोड़ा. बाद में कई बार और भी घर में पानी घुसा पर, 1978 के रिकॉर्ड को न छू सका. बहरहाल 1978 में बाढ़ से जो तबाही हुई, उससे बंगाल की जनता को राहत दिलाने के लिए 1979 में ईडन गार्डेन में बालीवुड और टालीवुड के मध्य एक चैरिटी मैच का आयोजन हुआ. उस मैच में एक साथ ढेरों फिल्म सितारों को देखने का जैसा अवसर मयस्सर हुआ, वैसा फिर कई सालों बाद ही मिल सका.बहरहाल कौन नहीं था उसमें! अमिताभ बच्चन, रेखा विनोद खन्ना: सौमित्र चटर्जी, माधवी मुखर्जी, समित भंजो का चेहरा आज भी मुझे याद है. कप्तान थे महानायक उत्तम कुमार और अभिनय सम्राट दिलीप कुमार . अगर मेरी मेमोरी दगा नहीं दे रही है तो मैदान के बीच आकर बंगाल के सीएम ज्योति बासु उसका उद्घाटन किये थे. वह मैच फिल्म सितारों के बीच था, इसलिए लोग लोग क्रिकेट के बजाय फिल्म सितारों को करीब से देख कर रोमांचित हो रहे थे. किन्तु ईडन का नजारा तब बदल गया, जब दिलीप साहब बैटिंग के लिए आये.
उस ज़माने में वन डे मैच धीरे-धीरे जोर पकड़ बना रहा था. टीवी पर भी शायद उस समय प्रसारण शुरु नहीं हुआ था. इसलिए टेस्ट मैच को छोड़कर वन डे टाइप की बैटिंग देखने का मुझे अवसर नहीं मिला था. रेडियो पर कमेंट्री सुनकर ही उसके रोमांच का अनुभव किया था. किन्तु उस दिन इडेन में साक्षात् दिलीप साहब को बैटिंग करते देख देखकर जाना क्या होता है वन डे का रोमांच. यह सही है उनके सामने उस दिन स्पेशलिस्ट बॉलर नहीं, अनाडी फ़िल्मी गेंदबाज़ थे. किन्तु उस साधारण सी गेंदबाजी को उन्होंने जिस साढ़े अंदाज़ में ट्रीट किया, वैसा कोई आला दर्जे का बैट्समैन ही कर सकता था. उन्होंने अपनी बैटिंग से साबित कर दिया कि सामने वाले गेंदबाज़ निहायत ही साधारण हैं. किन्तु उनकी बैटिंग इतनी स्तरीय थी कि प्रथम श्रेणी के मैचों के बॉलर के साथ भी शायद वही सलूक करते. उन्होंने आज के टी- 20 बल्लेबाजों की भांति देखते ही हाफ सेंचुरी ठोक दिया. ऐसा लगा कि उनको आउट करना इनके बूते के बाहर है और कुछ ही देर में हमें शतक देखने को मिलेगा. किन्तु हमारी उम्मीदों पर विराम लगागे हुए उन्होंने दूसरे एक्टरों को बल्ला भांजने का मौका देने के लिए अचानक हैण्ड डिक्लेयर कर हमें एक शानदार शतक से महरूम कर दिया.
बहरहाल पचास से कुछ ऊपर की अपनी पारी में दिलीप साहब ने कट, पुल, ड्राइव इत्यादि प्राय सारे शॉट बहुत सधे अंदाज़ में खेले थे. खासतौर से लॉफ्टेड शॉट और पुल शॉट का जवाब नहीं था. जैसा पुल शॉट उन्होंने खेला था, वैसा शॉट दो-तीन वर्ष बाद शारजाह में रवि शास्त्री को खेलते देखा था. शारजाह में भारत और श्रीलंका के मध्य कोई फाइनल मैच खेला जा रहा . एक आसान जीत को अचानक श्रीलंका के फ़ास्ट बॉलर रमेश रत्नायके रोमांचक बना दिए थे . भारत को जीत के लिए थोड़े ही रनों की जरुरत थी और रत्नायके की आ उगलती गेंदों के सामने उसके सारे स्पेशलिस्ट बल्लेबाज पेवेलियन लौट चुके थे. वैसी स्थिती में आलराउंडर रवि शास्त्री क्रीज पर आये. जीता हुआ मैच हाथ से निकल जाने की सम्भावना से हमारी धड़कने तेज हो गयी थी. वैसी स्थिति में बिग मैच टेम्परामेंट की बेहतरीन मिसाल पेश करते हुए रवि शास्त्री ने आक्रमण करने का मन बनाया और थोड़ी देर में विजयी चौका लगा दिया. उस मैच में रवि शास्त्री ने मुख्यतः लॉफ्टेड शॉट लगाये. उनका विजयी शॉट भी मिड विकेट पर पुल था. उस दिन मुझे रवि शास्त्री की वह रोमांचक पारी देख ईडन में खेली गयी दिलीप साहब की पारी की याद आई थी.
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आज लोग आमिर खान को परफेक्शनिस्ट कहते हैं, लेकिन भारत के पहले परफेक्शनिस्ट दिलीप साहब ही थे. मैंने अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र से लगाये ढेरों लोगों की भाव-भंगिमा हास्यस्पद होते हुए देखे है. लेकिन दिलीप कुमार पूरी तरह अपवाद रहे. न सिर्फ बतौर एक्टर, बल्कि निर्माता के रूप में भी परफेक्शनिस्ट रहे , जिसकी उज्ज्वलतम मिसाल गंगा-जमुना है. उस दौर में चर्चा रही कि वह गंगा-जमुना के निर्देशक नितिन बोस के काम से असंतुष्ट होकर डायरेक्टर का जिम्मा खुद ले लिया था और गंगा- जमुना को मील का पत्थर बना दिया. बाद के दिनों में सुना गया कि दिलीप साहब का अनुसरण कर हुए आमिर खान ने तारे जमीन के पहले वाले डायरेक्टर हटाकर खुद डायरेक्टर की कुर्सी संभाल लिए और यादगार फिल्म देने सफल रहे. यहाँ मैं कहना चाहता हूँ कि दिलीप साहब भारत के पहले परफेक्शनिस्ट रहे. न सिर्फ फिल्म निर्माण और एक्टिंग के क्षेत्र में, बल्कि निजी जीवन में एक सेलेब्रेटी के तौर पर भी. वह जिस तरह एक गिफ्टेड परफेक्शनिस्ट रहे , मुझे लगता है एक्टर छोड़ , वह यदि क्रिकेटर बनने का प्रयास करते परफेक्शनिस्ट होने की अपनी स्वाभाविक दुर्बलता के चलते वह एक बड़े बल्लेबाज़ के रूप में अपना नाम दर्ज कराने में जरुर सफल हो गए होते.
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं