उदयपुर। हमारे देश में हर साल ऐसी नई-नई योजनाएं लॉन्च होती हैं, जिनका लाभ शहर ही नहीं बल्कि दूर-दराज के गांवों में रहने वाले लोगों तक भी पहुंचाया जाता है। जबकि पहले से चली आ रही लाभकारी और कल्याणकारी योजनाओं को भी बेहतर बनाने की दिशा में सरकार की तरफ से उचित कदम उठाए जाते हैं। जैसे- मनरेगा और आयुष्मान भारत। इस योजना का लाभ काफी संख्या में लोग उठा रहे हैं। इस स्कीम के तहत पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान की जाती है। इसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को स्वास्थ्य बीमा की योजना प्रदान करना है लेकिन अब भी देश में ऐसे गांव और लोग हैं, जिन्हें आज भी इस योजना के बारे में पता ही नहीं है।
ऐसा ही एक गांव राजस्थान के उदयपुर जिले से 70 किलोमीटर और सलुम्बर ब्लॉक से 10 किलोमीटर की दूरी पर मालपुर आबाद है। इस गांव की कुल आबादी 1150 है। इस गांव में स्वास्थ्य सुविधा एक बड़ी समस्या है। दरअसल, यहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित जरुर है, लेकिन वह सिर्फ नाम का है। उसमें किसी प्रकार की कोई सुविधा लोगों के लिए उपलब्ध नहीं है। गांव के लोगों को अपने इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। उन्हें या तो सलुम्बर ब्लॉक जाना होता है या फिर उदयपुर जिला अस्पताल का रुख करना पड़ता है। ऐसे में किसी को इमर्जेन्सी में प्राथमिक उपचार की ज़रूरत होती होगी, तो उसकी क्या स्थिति होती होगी? गर्भवती महिला हो, बुज़ुर्ग हों या फिर किशोरी, सभी के लिए गांव में स्वास्थ्य सुविधा का अभाव काफी कष्टकारी साबित हो रहा है।
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इसी विषय पर गांव की किशोरी पूजा (बदला हुआ नाम) का कहना है कि हर गांव में स्वास्थ्य केंद्र का संचालित होना ज़रूरी है। यहां अस्पताल में सुविधा नाम की कोई चीज़ नहीं है। जिसकी वजह से हमें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। विशेषकर माहवारी के समय जब हमें किसी प्रकार की ज़रूरत होती है, उस समय स्वास्थ्य केंद्र का नहीं चलना बहुत कष्ट देता है। माहवारी के समय कभी किसी किशोरी को पेट दर्द तो किसी को अन्य प्रकार शारीरिक समस्या होती है, जिससे संबंधित दवाइयां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी उपलब्ध होती हैं, लेकिन हमारे गांव में पीएचसी केवल दिखावा मात्र है। हर बार दवाइयां लेने के लिए लोगों को प्राइवेट अस्पताल का रुख करना पड़ता है, जिसकी महंगी दवाइयां बजट से बाहर होती हैं। हमारे अभिभावकों की आमदनी इतनी नहीं है कि वह प्रत्येक माह हमारी माहवारी से संबंधित दवाइयों का खर्च उठा सकें।
एक अन्य महिला सुनीता भी गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होते हुए भी उसमें सुविधा नहीं मिलने का आरोप लगा रही थी। उसका कहना था कि रात अचानक स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरत के समय हमें इसकी कमी बहुत अधिक परेशान करती है। जब किसी की अचानक तबीयत खराब हो जाती है तो उन्हें अस्पताल पहुंचाने के लिए भाड़े की गाड़ी से ले जाना पड़ता है, जिसका किराया बहुत ज्यादा होता है। हम गरीब लोग हैं, इतने पैसे हमारे पास कहां से आएंगे? कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के कारण लोगों की रास्ते में मृत्यु तक हो गई है। गांव की अन्य महिला जानकी का कहना है कि हमारे गांव में बहुत से परिवार गरीब हैं। उन परिवारों में बीमार व्यक्ति भी होते हैं। वह मजदूरी करके अपने परिवार के लिए एक वक्त की रोटी बहुत मुश्किल से कमा पाते हैं। ऐसी स्थिति में वह अपने बीमार परिजन का प्राइवेट अस्पताल में इलाज कैसे करवा सकते हैं?
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गांव की बुजुर्ग महिला वरजु बाई का कहना है कि मैं अपने बेटे के पास रहती हूं। इस उम्र में मुझसे चला नहीं जाता है। मेरी देखभाल मेरे बेटा और बहू करते हैं। बीमार हो जाने पर मुझे बहुत दिक्कत होती है। गांव में अस्पताल नहीं है और मैं कही बाहर दवा लेने दूर अकेले भी नहीं जा सकती। मेरा बेटा मजदूरी करने जाता है। वह अगर मुझे लेकर दवा दिलाने जाएगा तो हमारे घर का खर्च कैसे चलेगा? हमारे पास इतने पैसे भी नही होते हैं कि हम प्राइवेट डॉक्टर से दवा लेकर आ सकें। हम बहुत परेशान हैं। हमारे गांव में भी सभी सुविधाएं होनी चाहिए, केवल अस्पताल बना देने से समस्या का हल मुमकिन नहीं है।
गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का पूरे समाज पर सामरिक दृष्टिकोण होना चाहिए, जो व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर ही आधारित होता है। यह स्वास्थ्य के अधिक व्यापक निर्धारकों को संबोधित करता है, क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति से स्वस्थ समाज और स्वस्थ्य लोकतंत्र का निर्माण होता है।
हीरा/ तुलसी उदयपुर में युवा समाजसेवी हैं।