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अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने OCCRP रिपोर्ट के आधार पर दी गई दलीलों को किया खारिज

उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग की ओर से अडाणी समूह पर लगाए गए आरोपों की सेबी द्वारा व्यापक जांच पर सवाल उठाने के लिए याचिकाकर्ताओं ने अखबार के लेखों या तीसरे पक्ष के संगठनों की रिपोर्ट का हवाला दिया, जो विश्वास पैदा नहीं करता है।

नई दिल्ली (भाषा)। सुप्रीम कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग रिसर्च मामले को एसआईटी या सीबीआई को ट्रांसफर करने की मांग खारिज कर दी है। इसके बजाय चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अगुवाई वाली बेंच ने मार्केट रेगुलेटर सेबी को अडानी ग्रुप पर लगे दो मामलों की जांच तीन महीने के भीतर पूरा करने का आदेश दिया।

उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग की ओर से अडाणी समूह पर लगाए गए आरोपों की सेबी द्वारा व्यापक जांच पर सवाल उठाने के लिए याचिकाकर्ताओं ने अखबार के लेखों या तीसरे पक्ष के संगठनों की रिपोर्ट का हवाला दिया, जो विश्वास पैदा नहीं करता है।

अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद को लेकर कई याचिकाओं पर अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की अब तक की जांच पर सवाल उठाने के लिए याचिकाकर्ताओं ने ओसीसीआरपी द्वारा प्रकाशित और विभिन्न समाचार पत्रों द्वारा संदर्भित एक रिपोर्ट पर भरोसा करने का अनुरोध किया।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का मामला पूरी तरह से ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) की रिपोर्ट के निष्कर्षों पर टिका है, जो कि खोजी रिपोर्टिंग में शामिल एक तीसरे पक्ष का संगठन है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने दावों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने का कोई प्रयास नहीं किया।

पीठ ने कहा, ‘किसी विशेष नियामक द्वारा व्यापक जांच पर सवाल उठाने के लिए तीसरे पक्ष के संगठनों द्वारा समाचार पत्रों के लेखों या रिपोर्ट पर निर्भरता भरोसा पैदा नहीं करती है। ‘स्वतंत्र’ समूहों की ऐसी रिपोर्ट या समाचार पत्रों की खोजी खबरें सेबी या विशेषज्ञ समिति के समक्ष सूचना के रूप में कार्य कर सकते हैं। हालांकि, सेबी की जांच मुक्कमल नहीं होने के निर्णायक सबूत के रूप में उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।’

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पीठ ने कहा कि सूचना और उनके स्रोतों की सत्यता को बेदाग साबित किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता यह दावा नहीं कर सकते कि विश्वसनीयता के मामले में समाचार पत्रों में प्रकाशित एक अप्रमाणित रिपोर्ट को वैधानिक नियामक द्वारा की गई जांच पर तवज्जो देनी चाहिए।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) द्वारा तत्कालीन सेबी अध्यक्ष को भेजे गए 31 जनवरी, 2014 के एक पत्र का भी हवाला दिया। न्यायालय ने कहा, ‘पत्र में कथित तौर पर सेबी को यूएई स्थित सहायक कंपनी से बिजली उपकरणों के आयात के अधिक मूल्यांकन के माध्यम से अडाणी समूह द्वारा शेयर बाजार में संभावित हेरफेर के बारे में सचेत किया गया था। याचिकाकर्ता के अनुसार, सेबी ने पत्र की प्राप्ति का खुलासा नहीं किया और इसके आधार पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं की।

पीठ ने कहा कि सेबी ने कहा है कि पत्र प्राप्त होने के बाद उसने इस मुद्दे पर डीआरआई से जानकारी मांगी और अपेक्षित जानकारी प्राप्त की।

इसके पहले चीफ जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि कोर्ट के पास सेबी के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में दखल देने का सीमित अधिकार है। उन्होंने कहा कि सेबी के नियामकीय ढांचे में दखल देने की इस अदालत की शक्तियां सीमित हैं।’

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यह बयान सेबी जैसी नियामकीय संस्थाओं की स्वायतता और विशेषज्ञता के बारे में सुप्रीम कोर्ट की सोच को दिखाता है। कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी के सदस्यों के हितों के टकराव के बारे में भी याचिकाकर्ता की इस दलीलों को खारिज कर दिया। उसने कहा कि कानूनी कार्यवाही में ओसीसीआरपी की रिपोर्ट जैसी अपुष्ट थर्ड पार्टी रिपोर्ट्स पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने सेबी को अपनी जांच पूरी करने के साथ ही सरकार और मार्केट रेगुलेटर को यह आदेश भी दिया कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने कानून का कोई उल्लंघन तो नहीं किया है और अगर ऐसा कुछ हुआ है तो इस पर कानून के मुताबिक कार्रवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने साथ ही सुझाव दिया कि भारतीय निवेशकों के हितों को मजबूत करने के लिए कमेटी के सुझावों को लागू करने पर विचार किया जाना चाहिए।

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