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कठिन संघर्षों के बीच हॉकी का 300 मैच खेलने वाली पहली खिलाड़ी बनीं वंदना कटारिया

रांची। वंदना कटारिया ने झारखंड के राँची के मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा एस्ट्रोटॉर्फ हॉकी स्टेडियम में झारखंड महिला एशियन चैंपियंस ट्रॉफी-2023 में अपने कैरियर का 300वाँ अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैच खेला। इसके साथ वह 300 हॉकी मैच खेलने वाली पहली भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी भी बन गईं। उन्होंने यह रिकार्ड वीमेंस एशियन हॉकी चैंपियनशिप के […]

रांची। वंदना कटारिया ने झारखंड के राँची के मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा एस्ट्रोटॉर्फ हॉकी स्टेडियम में झारखंड महिला एशियन चैंपियंस ट्रॉफी-2023 में अपने कैरियर का 300वाँ अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैच खेला। इसके साथ वह 300 हॉकी मैच खेलने वाली पहली भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी भी बन गईं। उन्होंने यह रिकार्ड वीमेंस एशियन हॉकी चैंपियनशिप के दौरान मंगलवार 31 अक्टूबर की शाम जापान के खिलाफ खेलते हुए बनाया।

वंदना कटारिया 15 अगस्त 1992 को हरिद्वार के रोशनाबाद जिले में जन्मी एक दलित परिवार की बेटी हैं। उनके पिता नाहर सिंह बीएचईएल कंपनी में मास्टर टेक्नीशियन का काम करते हैं। वंदना चार भाई और चार बहन हैं, जिनमें से पांच भाई-बहन खेल से जुड़े हुए हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वंदना का जीवनयापन आसान नहीं था। दलित परिवार में होने के कारण गांव समाज में उनके ऊपर बहुत ही छींटाकशी की जाती थी। समाज के लोग उनके मनोबल को हमेशा गिराने की कोशिश करते थे किंतु वंदना इसकी परवाह किए बिना अपना काम करती रहीं। पिछले टोक्यो ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन करने के बाद एक तरफ पूरा देश वंदना पर गर्व कर रहा था तो दूसरी तरफ कुछ कुत्सित मानसिकता वाले लोग वंदना के घर के पास जाकर उनके दरवाजे पर खड़े होकर, उन्हें जातिगत गालियां और अनर्गल टीका टिप्पणी कर रहे थे,  सेमीफाइनल में हार के बाद वंदना के घर के बाहर वे लोगों पटाखे  फोड़े। वंदना कटारिया के लिए यह नई चीज नहीं थी किंतु ऐसे गौरव के क्षण में किसी को ऐसा करना यह सिर्फ वंदना का ही नहीं अपितु पूरे राष्ट्र का अपमान के साथ स्त्री जाति का भी अपमान था।

लोगों को समझना चाहिए कि वंदना बहुत ही मुश्किल हालातों में रहकर आज इस मुकाम तक पहुंची हैं। उनकी सफलता की कहानी देश की बेटियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। और हम सबको उनके ऊपर गर्व करना चाहिए। वंदना एक ऐसे गांव से आती हैं, जहां सामान्यतः लड़कियों को खेल से दूर रखा जाता था। छोटे कपड़े पहनने पर समाज की तीखी आलोचना सहनी पड़ती थी। वंदना अपने खेल के दौरान विपक्षी टीम से ही नहीं समाज के रुढ़ियों और पुरुषवादी मानसिकता से भी लगातार लड़ती रहीं।

उनका जीवन इतना अभावग्रस्त था किआरंभ में वह पेड़ों की टहनियों से खेल का अभ्यास करती थी। उनके घर परिवार समाज में सब लोग वंदना के खिलाफ थे, सिवाय उनके पिता के। वंदना की दादी हमेशा उन्हें खाना बनाने और घर का काम करने के लिए कहा करती थीं। कोरोनाकाल में वंदना जब टोक्यो ओलंपिक हॉकी मैच के लिए तैयारी कर रही थी, उसी बीच उनके पिताजी का निधन हो गया। ट्रेनिंग के चलते वह अपने पिता का अंतिम दर्शन नहीं कर पाईं। वह चाहती थीं कि वह ओलंपिक में पदक जीत कर पिता के सपनों को पूरा करें लेकिन जब उन्हें सफलता मिली तब उनके पिताजी इस संसार में नहीं थे। बीबीसी हिंदी न्यूज़ के एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि खेल के लिए पैसों की जरूरत होती थी तो उनके पिताजी गाय के बछड़े बेचकर उनका इंतजाम करते थे।

वे स्कूल के दिनों में हॉकी व खो-खो खेलती थीं और अनेक प्रतियोगिता में हिस्सा लेती थीं। जिला खेल अधिकारी कृष्ण कुमार उन से काफी प्रभावित हुए और उन्हें आगे खेलने के लिए प्रेरित किए। वर्ष 2002 में राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में  उन्होंने रिकॉर्ड बनाया तथा वर्ष 2006 में अंंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लिया। वर्ष 2013 में जर्मनी में जूनियर हॉकी विश्वकप में चार मैच में पाँच गोल दागकर शानदार प्रदर्शन किया था। इसके बाद वर्ष 2018 में जकार्ता में रजत पदक जीती थी।

वह ओलंपिक मैच में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हैट्रिक गोल करने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। वह 2016 में एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी और 2017 में महिला एशिया कप जीतने वाली भारतीय टीम की सदस्य थी। इसके बाद उसने महिला एशिया कप 2022 में टीम को कांस्य पदक दिलाने में मदद की, इसी क्रम में एफआईएच प्रो लीग 2021/22 में तीसरे स्थान पर रही तथा एफआईएच नेशंस कप 2022 जीतकर भारतीय हॉकी टीम के लिए कीर्तिमान स्थापित किया। उन्होंने वर्ष 2022 में ही राष्ट्रमंडल खेल में कांस्य पदक भी जीता। वर्ष 2022 में उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। वह सीनियर राष्ट्रीय टीम के लिए अब तक 300 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी है। आज इस भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी को पूरा देश सलाम कर रहा है और उन पर गर्व महसूस कर रहा है।

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