Thursday, November 7, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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विचार

बोलिए, आपको क्या चाहिए मोहब्बत या नफरत?

पिछले 70 वर्षों तक हिन्दू कभी खतरे में नहीं थे, न ही उन्हें कभी मारे जाने का डर था लेकिन जैसे ही केंद्र में भाजपा का शासन आया, वैसे ही बहुसंख्यक हिन्दू के लिए अल्पसंख्यक मुस्लिम खतरा बन गए और उनकी जान पर बन आई। असल में असली खतरा उन्हें आरएसएस से है, हिंदुतव के नाम पर वही ऐसा माहौल तैयार कर रहे हैं, वही घिनौनी सोच लोगों के दिमाग में घुसा रहे हैं और सबसे ज्यादा बेवकूफ हिंदुत्व के पीछे भागने वाले अंधभक्त है। योगी आदित्यनाथ, जो बुलडोजर (अ)न्याय के प्रणेता ने भी ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा बुलंद किया है, वहीं आरएसएस ने इस नारे का खुलकर समर्थन किया। धर्म के मुखौटा पहने राष्ट्रवादी होने का दावा करने वाली शक्तियां न केवल उपनिवेश विरोधी संघर्ष में शामिल नहीं हुईं वरन् उन्होंने घृणा और विभाजन के बीज बोए और उन्हें खाद-पानी दिया। आने वाला समय सांप्रदायिकता के लिए चुनौती भरा रहेगा।

मोहन भागवत ने फिर से हिन्दू राष्ट्र का राग अलापा

अपेक्षाकृत कम प्रचलित शब्द ‘वोकिज्म’ का इस्तेमाल अधिकांशतः दक्षिणपंथियों द्वारा 'सामाजिक और राजनैतिक अन्यायों के प्रति संवेदनशील रवैया रखने वाले लोगों को अपमानित करने के लिए किया जाता है।' यह भागवत के भाषण का केन्द्रीय मुद्दा था। इस समय हिंदू दक्षिणपंथी देश के सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य पर हावी है। 

भागलपुर से बहराइच तक : दंगों की राजनीति में आरएसएस पिछड़ी जाति के लोगों को कमान सौंपता है

वर्ष 1947  में भारत-पाक विभाजन के बाद से देश में मुसलमानों को लेकर हिंदूवादी संगठनों ने लगातार कट्टरता दिखाई। जब-जब मौक़ा मिला, तब-तब निशाना बनाया। इन दंगों को कराने में साम्प्रदायिक नेताओं, प्रशासन और सोशल मीडिया की अहम् भूमिका  होती है। ध्रुवीकरण की राजनीति को साधने के लिए धार्मिक दंगे कराये जाते रहे हैं और आगे कब तक जारी रहेंगे कह नहीं सकते। खैरलांजी से लेकर भागलपुर, गुजरात तक के दंगों में, प्रत्यक्ष भागीदारी ज्यादातर पिछड़ी जातियों के लोगों की रही है। जब तक जाति उन्मूलन के लिए काम करने वाले लोग इस पर संज्ञान नहीं लेंगे, दंगों की परंपरा जारी रहेगी।

गाय के बहाने फिर से आस्था की दुकानदारी की तैयारी

गौ हत्या और बीफ खाने पर प्रतिबन्ध पर आरएसएस बरसों से राजनीति कर रही है लेकिन उस इतिहास को अनदेखा कर रही है जो लिखित में गाय मांस को सेवन को लेकर दर्ज है। वह ऐसा प्रतिबन्ध थोप रही है, जैसे गाय पर उसने बैनामा करवा लिया हो, इसके चलते अनेक मुस्लिमों के साथ मोबलिंचिंग कर उस समुदाय को भयभीत किया गया। गाय एक दुधारू पशु से ज्यादा कुछ नहीं है। महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में यहाँ विधानसभा चुनाव के चलते धुवीकरण की राजनीति के चलते ही देशी गाय को ही राज्य माता का दर्जा दिया गया।

लव जिहाद : कट्टरपंथी राजनीति के दौर में न्याय प्रणाली पर खड़े होते सवाल

हिन्दुत्ववादी संगठन, किसी न किसी बहाने मुसलमानों को टार्गेट करता ही रहता है, चाहे वह लव जिहाद के नाम पर हो, धर्म के नाम पर हो या गौ रक्षा के नाम पर। जब ऐसी कोई घटना होती है, उसमें मुसलमानों को खोजा जाता है, जैसे देश में सबसे बड़े अपराधी मुसलमान हैं। इस तरह की घटना वर्ष 2014 के बाद बहुत ज्यादा बढ़ गईं हैं। इसमें देश की कार्यपालिका, विधायिका के साथ न्यायपालिका भी शामिल है। जब न्यायपालिका भी इस तरह के अंजाम को बढ़ावा दे रही हो, तब इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होना वाजिब है.

बुद्धदेव भट्टाचार्य : मैंने उन्हें हरदम सर्वहारा की कसौटी पर जीते देखा

पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के नहीं रहने पर मीडिया में लोग अपने-अपने तरीके श्रद्धांजलि दे रहे हैं। वे पक्के कम्युनिस्ट थे, विचार से भी और कर्म से भी। उनके कुछ संस्मरण यहाँ साझा कर रहे हैं लेखक डॉ सुरेश खैरनार

आरएसएस का इतिहास देशप्रेम का नहीं है सभापति महोदय..

राज्यसभा संसद में सभापति जगदीप धनखड़ ने सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा आरएसएस का नाम लेने पर आपत्ति दर्ज कराते हुए आरएसएस को देशसेवा करने वाली ईकाई कहा। चूंकि धनखड़ महोदय खुद आरएसएस से तैयार हुए हैं, ऐसे में उसकी तारीफ करना उनका फर्ज बनता है जबकि महात्मा गांधी की हत्या से लेकर देश में हुए अनेक दंगों में उसकी क्या भूमिका रही है सभी जानते हैं।

सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस से जोड़ने के परिणाम विध्वंसकारी होंगे

फासीवादी संगठन आरएसएस ने सरकारी कर्मचारियों को अपने संगठन की गतिविधियों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध से छूट दे दी है। जबकि कोई भी सरकारी कर्मचारी को किसी भी राजनैतिक संगठन से जुड़ने पर पूरी तरह से मनाही है ताकि वे संविधान के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहें और अपने काम में राजनैतिक पक्षपात न करें। सवाल यह उठता है कि संघ का अगला एजेंडा क्या है, जिसमें वह सरकारी कर्मचारियों का उपयोग(दुरुपयोग) करेगा?

क्या आज़ाद फिलिस्तीन के संघर्ष को और मज़बूत करेगी इस्माइल हानिया की शहादत?

पूरी दुनिया में कोई देश गृह युद्ध की चपेट में है तो कहीं दो देशों के बीच सत्ता हथियाने के लिए युद्ध छिड़ा हुआ है। दुनिया में युद्ध की राजनीति इतनी विकट है कि हर कोई सुपर पावर बनना चाह रहा है। इन युद्धों से उन देशों की आर्थिक स्थिति चौपट होने के साथ, सामाजिक व राजनैतिक, सांस्कृतिक अस्थिरता पैदा हो चुकी है, युद्ध को रोकने के लिए दबाव बनाने वाला कोई संगठन नहीं है। आम नागरिक, बच्चे, स्त्रियाँ और बुजुर्ग बेवजह मारे जा रहे हैं। कल फिलिस्तीन के नेता इस्माइल हानिया की ईरान में हत्या कर दी गई। इजराइल हमास और हिजबुल्लाह के अहम् नेताओं की हत्या के ज़रिये फलिस्तीन के लिए जारी जद्दोजहद को कमज़ोर करना चाह रहा है लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा, यह तो आने वाले समय ही बताएगा

फ़िलिस्तीन की मुक्ति का स्वप्न और स्वप्न को पूरा करने की ताक़त हैं ग़सान कनाफ़ानी का लेखन

ग़सान कनाफ़ानी को याद करने की वजह सिर्फ़ यह नहीं है कि उनके साहित्य की बारीकियों को समझा जाए और उसके कलात्मक अवदान को समझा जाए बल्कि आज के दौर में कनाफ़ानी को याद करने का अर्थ है फ़िलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के साथ एकजुटता ज़ाहिर करना और उस फ़िलिस्तीन को बेहतर तरह से समझना जो आज लगभग आठ दशकों से इस तथाकथित आधुनिक दुनिया में इज़राएल के ज़ुल्मों को सहते हुए अपनी ही जमीन पर ग़ुलामों की तरह रहने पर मजबूर है।

समाज में फैले भ्रष्टाचार के लिए कौन जिम्मेदार है 

किसी भी देश का तंत्र(सिस्टम) कैसा है, जानने के लिए वहाँ की राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति से पता किया जा सकता है। यदि सिस्टम भ्रष्ट है तो वहाँ रहने वाले लोग भी भ्रष्ट होंगे। हमारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वाले संगठन, दल, गैर सरकारी संस्थाएं और समाज के लोग खुद ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में लिप्त हैं। पढ़िये तेजपाल सिंह 'तेज' का यह लेख