Thursday, November 21, 2024
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

मनीष शर्मा

लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और बनारस में रहते हैं।

उत्तर प्रदेश में निवेश : सपने और ज़मीन की लूट की हक़ीकत को जागकर देखने की जरूरत है

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में तीस लाख करोड़ के निवेश को दावे को पेड मीडिया ने जितने जोर-शोर से प्रचारित करना शुरू किया उतनी शिद्दत से इस निवेश के कारण किसानों की ज़मीनों की लूट और हड़प की मंशा पर विचार नहीं किया गया लेकिन अयोध्या में हुई ज़मीनों की लूट और प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विभिन्न योजनाओं के लिए कि सानों की ज़मीन औने-पौने में हथिया लेने की चालाकियों ने लोगों के कान खड़े कर दिए हैं। इस निवेश की सचाई बहुत भयावह है। उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी स्थितियों और गतिविधियों पर मनीष शर्मा की यह खोजपूर्ण रिपोर्ट।

जम्मू-कश्मीर के जनादेश की दिशा क्या राज्य में विकास, शान्ति और सुरक्षा की पहल करेगी

जम्मू-कश्मीर में 10 वर्ष बाद विधानसभा चुनाव हुए। वर्ष 2019 में धारा 370 और 35 a हटाने के बाद विशेष राज्य का दर्जा भी खत्म कर दिया गया था। राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल चुका है। भारतीय जनता पार्टी न केवल नई दिल्ली में सत्ताधारी पार्टी है बल्कि यह देश में सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत है। आज़ जब एक बार फिर, 5 सालों की पीड़ादायक चुप्पी के बाद, जम्मू-कश्मीर की जनता ने चुनाव के जरिए अपनी लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को व्यक्त करने का रास्ता चुना है। वे चाहते हैं कि उन्हें अधिकतम स्वायत्तता के साथ विशेष राज्य का दर्जा मिले, काले कानूनों व सैन्य निगरानी से मुक्ति मिले क्योंकि यह सारी मांगें बेहद लोकतांत्रिक व सांविधानिक हैं।

हरियाणा चुनाव : जमीनी तैयारी के अभाव में कांग्रेस की हार

अठारहवीं लोकसभा में कांग्रेस ने जिस तरह प्रदर्शन किया था, उसे देखकर लगा था कि हरियाणा चुनाव में भी कोई बदलाव होगा। यहाँ तक कि सारे एग्जिट पोल भी कांग्रेस को 60 सीट जीतने की बात कहते रहे, वहीँ भाजपा को 20 से 28 सीट तक ही सीमित कर दिया था। लेकिन चुनावी नतीजे आने के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। ऐसा क्यों हुआ? इस पर पढ़िए मनीष शर्मा की विश्लेष्णात्मक रिपोर्ट

भारतीय गणतंत्र के केंद्रीय तनावों का समाधान है जाति जनगणना

अठाहरवीं लोकसभा चुनाव में जनता के बड़े हिस्से ने जिस तरह से सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुख प्रश्न में तब्दील किया है, उससे अब यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में जाति जनगणना को ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता। जाति जनगणना भारतीय समाज के कई तालों को खोलने वाली चाभी साबित हो सकती है।  

कितनी खतरनाक है आरक्षण में बंटवारे के पीछे की मूल मंशा

ताज़ा उदाहरणों से भी जानना हो कि भाजपा को ज्यादा पीछे रह गए ओबीसी-एससी-एसटी समाज की कितनी चिंता है तो लैटरल इंट्री की ख़तरनाक पॉलिसी को ही देख लीजिए, जिसे अभी-अभी भारी दबाव के चलते स्थगित तो करना पड़ा है। इसके जरिए भारत की नौकरशाही पर कारपोरेट वर्चस्व को न केवल स्थापित करना है बल्कि आरक्षण को भी हायर लेवल पर पूरी तरह खत्म करने की योजना की झलक साफ-साफ दिखती है।

क्रीमीलेयर मामला : पूरी भागीदारी मिली नहीं, उपजाति बंटवारे से वह भी छीन लेने की जुगत

कोर्ट राजनैतिक प्रभाव में आकर या दबाव के चलते ऐसे निर्णय ले रही है जो लगातार संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। आरक्षण को लेकर जो निर्णय अभी लिया गया है, उसमें  कोर्ट ने  बिना किसी डाटा के सबसे पहले ओबीसी में क्रीमीलेयर खोजा, फिर इडब्ल्यूएस की अवधारणा को लाया और बिना किसी सर्वेक्षण के ईडब्ल्यूएस  के नाम पर अपरकास्ट को 10 फीसदी आरक्षण दिया। मतलब 15 फीसदी वाले समुदाय को लगभग 70 फीसदी आरक्षण देकर संविधान की सामाजिक न्याय की अवधारणा को ध्वस्त कर दिया गया। पढ़िए, आरक्षण पर आए फैसले की पड़ताल करता मनीष शर्मा का यह लेख-

आरक्षण : पटना हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सड़क पर क्यों नहीं आ रहा है विपक्ष

बिहार उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में अतिरिक्त आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया है। इस फैसले को लेकर विपक्ष में सुगबुगाहट तो है लेकिन इसे लेकर वह सड़क पर उतारने में हिचकिचाता दिख रहा है। यह उसकी भूमिका और नीयत पर कई सवाल खड़े करता है। खासतौर से तब जब 18वीं लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने सामाजिक न्याय और भागीदारी को स्पष्ट रूप से छोड़ दिया और यही विपक्ष का केंद्रीय मुद्दा रहा हो।