Monday, June 30, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

मनीष शर्मा

लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और बनारस में रहते हैं।

क्या बिहार की राजनीति में नए अरविंद केजरीवाल होनेवाले हैं प्रशांत किशोर

प्रशांत किशोर की उपस्थिति ने बिहार की राजनीति को काफी हद तक गरमा दिया है हालांकि उनको लेकर ढेरों सवाल भी खड़े हो रहे हैं। खासतौर से प्रशांत किशोर को भाजपा की बी टीम के रूप में देखा जा रहा है। बरसों से बिहार की सत्ता पर चले आ रहे पिछड़ों के कब्जे पर सेंध लगाने के लिए भी प्रशांत किशोर को एक माकूल व्यक्ति माना जा रहा है। लेकिन बातें इतनी आसान नहीं हैं। यह तो भविष्य बताएगा कि प्रशांत किशोर क्या रंग दिखाते हैं लेकिन उनकी राजनीति में शामिल घटकों का बेबाक विश्लेषण कर रहे हैं मनीष शर्मा।

बिहार चुनाव में मोदी-नीतीश की चुनावी रणनीति क्या होगी?

प्रधानमंत्री मोदी अपने जंगलराज को ढंकने की रणनीति के तहत ही,शायद बस्तर नरसंहार को बिहार में एजेंडा बना रहे है और बिहार में 2014 बाद से माओवाद को लगभग ख़त्म कर देने का श्रेय लेने की कोशिश अपने संबोधन में कर रहे हैं। हालांकि इस नए नैरेटिव के बावजूद यह देखना  बाकी है कि पुराना जंगलराज का नैरेटिव अभी की नई परिस्थितियों में भी कितना कारगर हो पाएगा।

कार्यपालिका व न्यायपालिका का टकराव लोकतन्त्र के लिए घातक

2024 के बाद से ही शक्ति संतुलन में नया परिवर्तन दिखने लगा है, यानि 2014 के बाद से लगातार जो पावर का पलड़ा संघ-भाजपा के पक्ष में झुका हुआ दिखता था, अब उसमें परिवर्तन दिखने लगा है।यानि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बार-बार जो तालमेल देखा जा रहा था वहां एक शिफ्टिंग दिख रही है।

आखिर इतने तमतमे वाले नरेंद्र मोदी को क्यों संघ मुख्यालय जाना पड़ा

प्रधानमन्त्री बनने के लगभग 12 साल बाद नागपुर के संघ कार्यालय में मोदी पहुंचना, ताक़त का प्रदर्शन तो नहीं है? जबकि भाजपा ने स्वयं को सक्षम  घोषित कर दिया था, फिर ऐसा क्या हुआ कि पहले नड्डा और अब मोदी खुद नागपुर पहुंच गए।

ट्रंप के बदले तेवर के पीछे की राजनीति और अर्थनीति क्या है?

आज़ एलेन मस्क व डोनाल्ड ट्रम्प का तेवर किसी ताकत का नही बल्कि कमजोरी का प्रदर्शन है। आज़ अमेरिकी पूंजी अपने सारे लोकतांत्रिक खोल उतार फेंकना इसी लिए चाह रही है। 80 के दशक में अपनाए गए वैश्वीकरण की नीतियों को, जो खुद सामराजी पूंजी ने अपने लिए ही बनाए थे, उन नीतियों को और उनसे जुड़े वैश्विक संस्थाओं को भी बर्दाश्त करने की स्थिति नही रह गई है, तथाकथित ग्लोबलाइजेशन को एक बार फिर से नये तरह के डी ग्लोबलाइजेशन में बदला जा रहा है।

दिल्ली चुनाव नतीजों से मिले कुछ ज़रूरी सबक…

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जनता के बड़े हिस्से ने एक संदेश देते हुए एक रास्ता दिया कि हिंदुत्व की राजनीति-सामाजिक न्याय, संविधान व भाईचारा के लिए ख़तरा है और इसी सोच पर जनता ने उप्र  की जनता ने हिंदुत्व के गढ़ को ढहा दिया। विपक्ष का एक हिस्सा भले ही थोड़ा ही बदलाव की कोशिश करता दिखा लेकिन आम आदमी पार्टी, अपने पुराने रास्ते पर ही चलती रही, यानि लगातार हिंदू पिच पर ही बैटिंग करती रही, जिसका नतीजा हम सब के सामने है।

दिल्ली चुनाव : क्यों हारे अरविंद केजरीवाल…

दिल्ली विधानसभा में हुई करारी शिकस्त ने आम आदमी पार्टी के भविष्य पर अनेक सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं। अरविंद केजरीवाल की विचारहीन राजनीति और सामाजिक मुद्दों से परहेज ने पहले ही आम आदमी पार्टी की छवि भाजपा की बी टीम के रूप में बना दी थी। रही-सही कसर शराब घोटाले ने निकाल दी जिसके कारण अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को लंबे समय जेल में रहना पड़ा और आप का संगठन बिखराव तथा दिशाहीनता का शिकार होता गया। राजनीतिक विश्लेषक इन सभी हालात को लेकर कहने लगे हैं कि अरविंद केजरीवाल स्वयं अपने ही ताने-बाने में उलझकर रह गए। दिल्ली चुनाव के बहाने आम आदमी पार्टी और उसकी राजनीतिक संस्कृति का जायजा ले रहे हैं मनीष शर्मा।

बजट 2025 : दिशाहीनता का गट्ठर

हर वर्ष के मार्च महीने में देश का आम बजट प्रस्तुत किया जाता है। बड़े जोर शोर से तैयारी होती है लेकिन बजट प्रस्तुत होने के बाद आम जनता के लिए कुछ ख़ास नहीं होता लेकिन न समझने वाला भी बजट में जिक्र की गई बातों का ऐसे बख़ानता है कि बस उसे सब कुछ समझ आ गया है और इस बजट से उसे बहुत फायदा होने वाला है। पढ़िए, मनीष शर्मा का बजट 2025 पर एक विश्लेषणपरक आलेख।

डॉ आंबेडकर के प्रति हिकारत के पीछे संघ-भाजपा की राजनीति क्या है

एक तरफ डॉ अंबेडकर ने जहां संविधान में समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता को शामिल किया, वहीं आरएसएस ने देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देते हुए फासीवाद और ब्रह्मणवाद मार्का पर काम कर रहा है, जिसके बाद अम्बेडकरवादी विचारधारा पर लगातार हमला हो रहा है। 

उत्तर प्रदेश में निवेश : सपने और ज़मीन की लूट की हक़ीकत को जागकर देखने की जरूरत है

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में तीस लाख करोड़ के निवेश को दावे को पेड मीडिया ने जितने जोर-शोर से प्रचारित करना शुरू किया उतनी शिद्दत से इस निवेश के कारण किसानों की ज़मीनों की लूट और हड़प की मंशा पर विचार नहीं किया गया लेकिन अयोध्या में हुई ज़मीनों की लूट और प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विभिन्न योजनाओं के लिए कि सानों की ज़मीन औने-पौने में हथिया लेने की चालाकियों ने लोगों के कान खड़े कर दिए हैं। इस निवेश की सचाई बहुत भयावह है। उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी स्थितियों और गतिविधियों पर मनीष शर्मा की यह खोजपूर्ण रिपोर्ट।

जम्मू-कश्मीर के जनादेश की दिशा क्या राज्य में विकास, शान्ति और सुरक्षा की पहल करेगी

जम्मू-कश्मीर में 10 वर्ष बाद विधानसभा चुनाव हुए। वर्ष 2019 में धारा 370 और 35 a हटाने के बाद विशेष राज्य का दर्जा भी खत्म कर दिया गया था। राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से बदल चुका है। भारतीय जनता पार्टी न केवल नई दिल्ली में सत्ताधारी पार्टी है बल्कि यह देश में सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत है। आज़ जब एक बार फिर, 5 सालों की पीड़ादायक चुप्पी के बाद, जम्मू-कश्मीर की जनता ने चुनाव के जरिए अपनी लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को व्यक्त करने का रास्ता चुना है। वे चाहते हैं कि उन्हें अधिकतम स्वायत्तता के साथ विशेष राज्य का दर्जा मिले, काले कानूनों व सैन्य निगरानी से मुक्ति मिले क्योंकि यह सारी मांगें बेहद लोकतांत्रिक व सांविधानिक हैं।

हरियाणा चुनाव : जमीनी तैयारी के अभाव में कांग्रेस की हार

अठारहवीं लोकसभा में कांग्रेस ने जिस तरह प्रदर्शन किया था, उसे देखकर लगा था कि हरियाणा चुनाव में भी कोई बदलाव होगा। यहाँ तक कि सारे एग्जिट पोल भी कांग्रेस को 60 सीट जीतने की बात कहते रहे, वहीँ भाजपा को 20 से 28 सीट तक ही सीमित कर दिया था। लेकिन चुनावी नतीजे आने के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। ऐसा क्यों हुआ? इस पर पढ़िए मनीष शर्मा की विश्लेष्णात्मक रिपोर्ट

भारतीय गणतंत्र के केंद्रीय तनावों का समाधान है जाति जनगणना

अठाहरवीं लोकसभा चुनाव में जनता के बड़े हिस्से ने जिस तरह से सामाजिक न्याय के मुद्दे को प्रमुख प्रश्न में तब्दील किया है, उससे अब यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में जाति जनगणना को ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता। जाति जनगणना भारतीय समाज के कई तालों को खोलने वाली चाभी साबित हो सकती है।  

कितनी खतरनाक है आरक्षण में बंटवारे के पीछे की मूल मंशा

ताज़ा उदाहरणों से भी जानना हो कि भाजपा को ज्यादा पीछे रह गए ओबीसी-एससी-एसटी समाज की कितनी चिंता है तो लैटरल इंट्री की ख़तरनाक पॉलिसी को ही देख लीजिए, जिसे अभी-अभी भारी दबाव के चलते स्थगित तो करना पड़ा है। इसके जरिए भारत की नौकरशाही पर कारपोरेट वर्चस्व को न केवल स्थापित करना है बल्कि आरक्षण को भी हायर लेवल पर पूरी तरह खत्म करने की योजना की झलक साफ-साफ दिखती है।

क्रीमीलेयर मामला : पूरी भागीदारी मिली नहीं, उपजाति बंटवारे से वह भी छीन लेने की जुगत

कोर्ट राजनैतिक प्रभाव में आकर या दबाव के चलते ऐसे निर्णय ले रही है जो लगातार संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। आरक्षण को लेकर जो निर्णय अभी लिया गया है, उसमें  कोर्ट ने  बिना किसी डाटा के सबसे पहले ओबीसी में क्रीमीलेयर खोजा, फिर इडब्ल्यूएस की अवधारणा को लाया और बिना किसी सर्वेक्षण के ईडब्ल्यूएस  के नाम पर अपरकास्ट को 10 फीसदी आरक्षण दिया। मतलब 15 फीसदी वाले समुदाय को लगभग 70 फीसदी आरक्षण देकर संविधान की सामाजिक न्याय की अवधारणा को ध्वस्त कर दिया गया। पढ़िए, आरक्षण पर आए फैसले की पड़ताल करता मनीष शर्मा का यह लेख-

आरक्षण : पटना हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सड़क पर क्यों नहीं आ रहा है विपक्ष

बिहार उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में अतिरिक्त आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया है। इस फैसले को लेकर विपक्ष में सुगबुगाहट तो है लेकिन इसे लेकर वह सड़क पर उतारने में हिचकिचाता दिख रहा है। यह उसकी भूमिका और नीयत पर कई सवाल खड़े करता है। खासतौर से तब जब 18वीं लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने सामाजिक न्याय और भागीदारी को स्पष्ट रूप से छोड़ दिया और यही विपक्ष का केंद्रीय मुद्दा रहा हो।
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