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बलिया : दयनीय और जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था की वजह से जानलेवा बन रही है हीट वेव

प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट फोरम ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि हीटवेव केवल भारत में ही नहीं आता है। दुनिया के कई क्षेत्र हर साल इससे गुज़रते हैं लेकिन वे अपने बेहतरीन सार्वजनिक जनस्वास्थ्य व्यवस्था के दम पर अपने लोगों को लू से हताहत होने से बचा ले जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब स्वास्थ्य व्यवस्था सामाजिक सुरक्षा जाल प्रणाली में एक बड़ा छेद होता है। जिससे ग़रीबों, बेघरों और बुजुर्गों को हमेशा परेशानी का सामना करना पड़ता है।

प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट फोरम (PMSF) ने अपनी एक रिपोर्ट कहा है कि पूर्वांचल में लोगों की मौत इसलिए हुयी, क्योंकि यहां का प्रमुख जनस्वास्थ्य ढांचा समस्या ग्रस्त है। रिपोर्ट में एक स्वतंत्र समाचार एजेंसी द्वारा किए गए सर्वेक्षण का हवाला देकर बताया गया है कि जून महीने में श्मसानों में मृतकों का दाह संस्कार सामान्य मानक की तुलना में चार गुना तक बढ़ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जनाक्रोश के चलते दबाव में सरकार ने जांच कमेटी का गठन तो कर दिया है लेकिन जांच टीम को एक लाइन दी गयी है कि वो इन मौतों में गर्मी और लू की भूमिका को नकारें।

प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट फोरम ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि हीटवेव केवल भारत में ही नहीं आता है। दुनिया के कई क्षेत्र हर साल इससे गुज़रते हैं लेकिन वे अपने बेहतरीन सार्वजनिक जनस्वास्थ्य व्यवस्था के दम पर अपने लोगों को लू से हताहत होने से बचा ले जाते हैं। जबकि भारत में केवल उन्हीं क्षेत्रों में लू से होने वाली मौतों की संख्या इतनी ज़्यादा है जिनकी सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा बेहद दयनीय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब स्वास्थ्य व्यवस्था सामाजिक सुरक्षा जाल प्रणाली में एक बड़ा छेद होता है। जिससे ग़रीबों, बेघरों और बुजुर्गों को हमेशा परेशानी का सामना करना पड़ता है।

PMSF  की रिपोर्ट में आगे श्मसान घाटों का जिक्र करके कहा गया है कि पिछले एक महीने में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में श्मसान घाट पर जिन लोगों का अंतिम संस्कार किया गया है उनमें से अधिकांश दिहाड़ी पेशा जाति वर्ग के लोग थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार मरने वालों और पीड़ितों को दोषी ठहराने की अपनी प्रवृत्ति से बाज आये। लू से मरने वालों को आखिर बूढ़ा और पहले से बीमार बताकर सरकार बूढ़ों, बीमारों, बेघरों और ग़रीबों को सामाजिक सुरक्षा गारंटी देने की अपनी जवाब-देही से भाग नहीं सकती है।

एक स्थानीय चिकित्सक की पड़ताल

बलिया के एक स्थानीय चिकित्सक ने स्थानीय लोगों के इलाज और अपने निजी पर्यवेक्षण से कुछ निष्कर्ष निकाले हैं। बलिया से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिले में हीटवेव चल रही हैं जिसकी वजह से हीट स्ट्रोक की घटनाएं बहुत ज्यादा बढ़ गयी हैं और इससे सबसे ज्यादा किसान व मजदूर वर्ग पीड़ित है। मौतों का आंकड़ा पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही बहुत ज्यादा है क्योंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग इस समय खेती के कटनी छंटनी के कार्यों में व्यस्त रहते हैं ताकि आने वाली बारिश में फसलों की रोपाई कर सकें जिसके लिए नियमित रूप से किसान व मजदूर खेतों में जाता है। सुबह व शाम कुछ ना कुछ कार्य करता है। हीटवेब के बारे में जानकारी ना होने के कारण वह प्रतिदिन अपना रूटीन वर्क कर रहा है जिससे उनमें इस तरह की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। ज्यादातर किसानों के पास पानी साथ ले जाने के लिए सुविधाओं का अभाव है जिससे खेतो में कार्य करते वक्त डिहाइड्रेशन बढ़ जाता है और शरीर का इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बिगड़ जाता है। पानी को बचाने के लिए शरीर यूरिन की मात्रा भी कम बनाती है जिस वजह से मरीज का मेटाबॉलिज्म  बिगड़ जाता है। शरीर हीट को अवशोषित करने लगती है और शरीर का तापमान 104 डिग्री फारेनहाइट से बढ़ जाता है। जिससे शरीर को ठंडा करने के लिए हृदय गति बढ़ जाती है, साथ ही साथ श्वास दर भी बढ़ जाती है लेकिन शरीर से पसीना होना बंद हो जाता है। कभी-कभी मरीज कोमा में भी चला जाता है और कुछ ही समय बाद यदि उसे इलाज नहीं मिला तो गंभीर परिणाम देखने को मिलते हैं। यदि उसे सही समय पर उपयुक्त ईलाज व रिहाइड्रेशन के बाद ही बचाया जा सकता है।

ऐसी तमाम घटनाएं उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रही हैं जहां बीते दिनों तमाम मरीज गर्मी के कारण जान गवाँ चुके है। ऐसे आरोप लगे तो यूपी सरकार को जांच बैठानी पड़ गई जो सरकारी अस्पतालों की हालत क्या है? सुविधाओं में क्या क्या कमियाँ है इन सब पर रिपोर्ट देगी। वहीं जाँच के दौरान ही कमेटी के मेंबर डॉक्टर ए के सिंह ने साफ इनकार किया है कि एक भी मौत “लू ” लगने से नहीं हुई है जबकि स्थानीय लोगों की मानें तो यह बात बिल्कुल भी गलत है स्थानीय लोगों का कहना है दलित पिछड़ा वर्ग से आने वाला मजदूर अपनी रोजी-रोटी की तलाश में प्रतिदिन चौराहे पर जाता है ताकि उसे कोई कार्य कराने के लिए ज़रूरतमंद मिल जायें और उसकी उस दिन की रोजी-रोटी चल जाये। जो भी लोग मरे हैं उनमें इस तरह के  कार्य  की पुष्टि हुयी है कि उनकी त्वचा झुलसी लाल रही हैं तथा शरीर का तापमान एक बार बढ़ने के बाद कम ही नहीं हुआ है।

दरअसल  जो भी कमेटी बनाई जाती है उसका निर्णय अधिकतर केस में सरकार के पक्ष में ही आता है कमेटी के एक और मेम्बर ने बताया है कि जो मौतें हो रही हैं वृद्धावस्था के कारण या पानी प्रदूषित होने के कारण हो रही है हम लोग पानी के सैंपल का भी जांच करा रहे हैं जबकि अभी तक कोई ऐसी टेक्निक नहीं है जिससे आसानी से बताया जा सके कि जो मौतें हो रही हैं वह लूः की वजह से नहीं हो रही है सरकार के लिए है  डाटा में बदलाव करना बहुत ही आसान हो गया है। जबकि वास्तविकता यह है कि उत्तर भारत में इस समय लू: के कारण अत्यधिक तप रह रहा है। अभिजात्य वर्ग आराम से घर पर बैठ एसी का आनंद उठा रहा है। जबकि देश का कामगार मजदूर-किसान  हजारों की संख्या में खड़े हो करके अपने परीवार के भरण पोषण  के लिए मौत का इंतज़ार कर रहे हैं कि कोई मालिक आए और उन्हें मजदूरी के लिए ले जाए ताकि उन्हें रोज़गार मिल सके! यह वर्ग अपनी जान को जोखिम में डालकर तपती धूप में कार्य कर रहा है इस तरह की परिस्थितियों  चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी जैसे सफाई कर्मचारी, लाइनमैन, माली, मझौले वाहन संचालक, ठेले-रेहडी़  इत्यादि लोग में भी पाई जा रही है है श्मशान घाट पर प्रतिदिन लाशों का आंकड़ा बढ़ रहा हैजबकि सरकार के आकडे़ कम हो रहे है इन बढ़ते हुए आंकड़ों को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग की टीम को हस्तक्षेप करना चाहिए अन्यथा गरीब दलित मजदूर वर्गों की मौत सरकार के लिए सिर्फ एक डाटा बन करके रह जाएगी डाटा चेंज करना सरकार के लिए बहुत ही आम बात है लोगों की समस्याएं वर्तमान सरकार नजरअंदाज कर रही है  अभी तक सरकार ने किसी भी तरह का मुआवजा का ऐलान नहीं किया है और साथ ही साथ अपने अधिकारियों को भेज करके इनके आंकड़े छुपाने का कार्य किया है, यह वर्ग पढ़ा-लिखा वर्ग नहीं है इसलिए ज्यादातर लोग अपने परिजनों के मरने के बाद बिना पोस्टमार्टम कराए ही बॉडी को लेकर के नम आँखो के साथ वापस लौट रहे है

 प्राथमिक जांच रिपोर्ट में लू से मौत की बात को नकारा गया

बलिया में भीषण गर्मी से के कारण बीमार होकर जिला अस्पताल पहुंचे लोगों की मौत लू से नहीं हुयी है। ऐसा स्वास्थ्य विभाग द्वारा बलिया भेजी गयी जांच कमेटी ने अपनी प्रारम्भिक रिपोर्ट में कहा है। शासन को इस प्रकरण की प्रारम्भिक रिपोर्ट भेजी गयी है। गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभाग ने निदेशक (संचारी रोग) डॉ. ए. के. सिंह, निदेशक (चिकित्सा) डॉ. के.एन. तिवारी दो सदस्यीय जांच दल को बलिया भेजा था।

जिला अस्पताल और आस पास के गांवों में जांच करने के बाद जांच दल के सदस्य डॉ. ए के सिंह ने दावा किया था कि लोगों की मौत लू की वजह से नहीं बल्कि पुरानी बीमारी और बुढ़ापे के चलते हुयी है। जब पत्रकारों ने दलील दी कि तापमान कम होते ही फिर मौत में गिरावट क्यों आ गयी। इसके जवाब में उन्होने बेहूदा सा तर्क दिया कि ऐसा होता तो गांवों में अफरा-तफरी का माहौल होता और पशु पक्षी भी बेहाल होते। उन्होंने दलील दी कि मरीजों को जिला अस्पताल में पहुँचने में कई घंटों की देर हो गयी जिससे अस्पताल में भर्ती होने के थोड़ी देर बाद ही उनकी मौत हो गयी। नतीजन मौतों का आंकड़ा बढ़ गया।

जबकि केजीएमयू भेजे गये 25 सैंपल की जांच में किसी वायरस या बैक्टीरिया जनित बीमारी से मौत न होने की पुष्टि हुयी है। बता दें कि यहां पर 12 तरह के सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, फंगस, पैरासाइट्स आदि) से होने वाले संक्रमण से मौत न होने की पुष्टि हुयी है। साथ ही बांसडीह और गड़वार ब्लॉक क्षेत्र के पानी की भी जांच करवायी गयी थी।

इससे पहले बुधवार 21 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने सात राज्यों की समीक्षा बैठक के बाद दावा किया है कि लू से किसी की मौत नहीं हुयी है। बुधवार 21 जून को बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के स्वास्थ्यमंत्री और अधिकारियों के साथ वर्चुअल मीटिंग के बाद उन्होंने यह दावा किया। इसी बैठक में उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य अधिकारियों ने भी कहा कि उन्हें मौत और लू के बीच कोई लिंक नहीं मिला है। बलिया जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दिवाकर सिंह ने बलिया जिला अस्पताल में एक सप्ताह में हुयी 121 मौतों की वजह हीट स्ट्रोक बताया था जिसके बाद उन्हें हटा दिया गया था। बाद में बलिया के जिलाधिकारी रवीन्द्र कुमार ने बयान देकर कहा था कि जिला अस्पताल में हुयी मौतों और हीट स्ट्रोक के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी लाइन पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों चल रही हैं।

सूबे के स्वास्थ्यमंत्री मयंकेश्वर सिंह ने भी तीन दिन पहले संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि सभी मौतें लू से नहीं हुई हैं। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने तो 18 जून को ही बता दिया था कि लोग लू से नहीं किसी और बीमारी से मर रहे हैं।

वहीं देवरिया जिले के महर्षि देवरहवा बाबा मेडिकल कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एच के मिश्रा ने दावा किया कि केवल 4 लोगों की हीट स्ट्रोक से मौत जिले में हुयी है। वहीं लखनऊ के स्वास्थ्य निदेशक ने कहा कि केवल पहले दिन बलिया जिला अस्पताल जो मरीज आये उन्हें सीने में दर्द, संस लेने में दिक्कत और बुखार था। उनका खून, पेशाब और अन्य टेस्ट किया गया। इसके बाद जो मरीज आये वो केवल डर और घबराहट में अस्पताल आये।

लेकिन यहां सवाल तब भी उठता है कि अगर हीट स्ट्रोक से प्रदेश में एक भी मौत नहीं हुयी है तो एक हाई लेवल मीटिंग के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्यों अधिकारियों को लू के प्रकोप से बचाने के निर्देश ज़ारी करते हैं? क्यों नगर निकायों और ग्रामीण क्षेत्रों के सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल सेंटर बनाने का निर्देश ज़ारी किया? क्यों निर्देश दिया कि आम लोगों में हीटवेव के लक्षण दिखते ही अस्पताल और मेडिकल कॉलेज तुरंत प्रभावित लोगों का तुरंत इलाज दें? आयुक्त कार्यलय को हर रोज़ मौसम बुलेटिन ज़ारी करने का निर्देश क्यों दिया गया?

राज्य सरकार ने आनन फानन में लू से बचने के तमाम उपाय क्यों किये। और इसे लेकर तमाम स्थानीय, प्रादेशिक और राष्ट्रीय अख़बारों में लू से बचने के एहतियाती विज्ञापन क्यों छपवाये गये। क्यों तमाम जिला अस्पतालों को निर्देश दिया गया कि मीडिया को मौत के आंकड़े न दें। किसलिए जिला अस्पतालों में मौत के आंकड़ों को दबाया गया? गौरतलब है कि बलिया, देवरिया, जौनपुर, वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, आजमगढ़ आदि जिलों में पिछले एक सप्ताह में दो सौ मौतें हुयी है और अधिकांश मौतों में जो लक्षण उभरकर सामने आये हैं वो हीट स्ट्रोक के ही हैं।

‘लू से नहीं बुढ़ापे में कम हुयी सहनशीलता से मरे लोग’ कह कर तंज कस रहे हैं लोग  

सामाजिक कार्यकर्ता मोहन लाल अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं कि यह ‘न कोई घुसा है न कोई घुस आया है’ टेर वाली सरकार है। रक्षामंत्री कहता है कि चीन हमारे इलाके में घुस आया है। और प्रधानमंत्री सर्वदयील मीटिंग में दावा करता है कि ‘वहां न कोई घुसा है, न कोई घुस आया है’। लेकिन वो यह नहीं जवाब देता कि हमारे एक दर्जन जवान कैसे शहीद हुए। वैसे ही अब ये लोग दावा कर रहे हैं कि लू से एक भी मौत नहीं हुयी है।

मोहनलाल जी आगे कहते हैं कि यह बिल्कुल उसी तरह का दावा है जैसे लॉकडाउन में मरने वालों के मुआवजे के सवाल पर केंद्रीय श्रममंत्री ने सदन में कहा था कि सरकार के पास कोई आंकड़ा ही नहीं है ऐसे में मुआवजा देने का सवाल ही नहीं उठता। पर यहां तो आंकड़ा है पर सरकार उस आंकड़े को झुठला रही है।

क्लाइमेट चेंज पर मोदी की उस हास्यास्पद दलील का जिक्र करके मोहन लाल कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2014 में शिक्षक दिवस पर उस छात्र के बहाने क्लाइमेट चेंज पर जो पाठ इन्हें पढ़ा दिया है कि जलवायु परिवर्तित नहीं हुआ है बल्कि हमारी सहनशीलता ही कम हो गयी है। मोदी ने कहा था कि बूढ़ों की सहनशीलता कम होने के नाते उन्हें ठंड ज़्यादा लगती है। क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ उनकी सहनशीलता कम हो गयी है। मोदी की उस सीख पर देश का पूरा स्वास्थ महकमा आज तक तक चल रहा है। तभी तो ठीक प्रधानमंत्री वाली उस लाइन पर अब जांच दल के डॉक्टर अपनी रिपोर्ट में, सरकार और मंत्री मीडिया में कह रहे हैं कि लोगों की मौत लू से नहीं बुढ़ापे से हुयी है। तो लोगों की मौत लू से नहीं, बुढ़ापे के कारण कम हुयी सहनशीलता से उनकी मौत हुयी है।

लू से मौत को नकारकर जिम्मेदारी और जवाबदेही से भाग रही है सरकार

एक्टिविस्ट और पेशे से डॉक्टर आशीष मित्तल अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं कि फेफड़े, दिल और दिमाग तीनों की गतिविधि बंद होने को मरना कहते हैं। बुढ़ापे से मरना कोई क्राइटेरिया नहीं है। हर मौत के पीछे कोई पृष्ठभूमि और कारण होते है। सरकार और प्रशासन अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से भाग रहे हैं इसलिए इस तरह की अतार्किक बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसे ही भूख से मौंत थोड़े होती है मौत तो सांस रुकने से ही होती है लेकिन खाना न मिलना पोषण न मिलना उसका एक कारण होता है। जब लोगों की भूख से मौत होती है तो ये कहते हैं कि बीमारी से हुयी है। अब बीमारी से मौत हो रही है तो ये कह रहे हैं कि बीमारी से नहीं बुढ़ापे से मौत हुयी है। ये प्रूफ दे देते हैं कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उसके पेट में खाना निकला कच्चा। वो आगे कहते हैं कि इस समय पूरा उत्तर भारत जबरदस्त हीट स्ट्रोक के चपेट में है। किसान और कंस्ट्रक्शन लेबर लगातार इसे फेस करना पड़ रहा है। इसलिए वो इसके शिकार भी सबसे ज़्यादा हो रहे हैं।

सरकार और व्यवस्था का फेल्योर है इतनी मौतों का होना

डॉ. आशीष मित्तल आगे कहते हैं कि गर्मी में जो लोग ज्यादा श्रम करते हैं पसीना बनकर पानी और नमक निकल जाता है। और रात को भी गर्मी बहुत तेज पड़ रही है तो शरीर को सुस्ताकर पानी पीने और खाना खाने से जो पानी और नमक की कमी की पूर्ति हो जाती है और शरीर वापिस काम करने लग जाता है। लेकिन जब लगातार गर्मी पड़ रही है तो रात को भी रिकवरी नहीं हो रही है। तो लोग इस गर्मी में ज़्यादा शारीरिक श्रम न करें ताकि शरीर में नमक और पानी की कमी न हो। और वो नमक पानी का घोल लें। और छाया में रहें। मज़दूरों के लिए ठंडा पानी और शर्बत का इंतजाम कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। दिन में काम न लिये जायें। प्रशासन छापेमारी करे तमाम कांस्ट्रक्शन साइट पर तो लोग खुद ब खुद इतंजाम करने लगेंगे। कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के नाम से सरकार इतना पैसा इकट्ठा कर रही है कि सरकार खुद व्यवस्था कर सकती है पर सरकार कुछ नहीं कर रही है। कंस्ट्रक्शन साइट पर छाया की व्यवस्था हो सकती है। पर सरकार सीएमओ और डीएम तीनों ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभायी है। लोगों को बचने बचाने की जिम्मेदारी सरकार की है कि वो लोगों को पहले से आगाह करे। पर सरकार सीएमओ और डीएम ने ये नहीं किया। गलती उनकी है। अगर लोगों को अस्पताल पहुंचते ही बिस्तर और ट्रीटमेंट, ड्रिप चढ़नी शुरु हो जाये तो लोगों की जान बच सकती है। पानी की रिकवरी धीरे-धीरे होती है। शरीर को ठंडा करना खाना मिलना बहुत ज़रूरी है। लेकिन ये अस्पतालों का फेल्योर है जो इतने लोगों की मौत हुयी है।

 

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