प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट फोरम (PMSF) ने अपनी एक रिपोर्ट कहा है कि पूर्वांचल में लोगों की मौत इसलिए हुयी, क्योंकि यहां का प्रमुख जनस्वास्थ्य ढांचा समस्या ग्रस्त है। रिपोर्ट में एक स्वतंत्र समाचार एजेंसी द्वारा किए गए सर्वेक्षण का हवाला देकर बताया गया है कि जून महीने में श्मसानों में मृतकों का दाह संस्कार सामान्य मानक की तुलना में चार गुना तक बढ़ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जनाक्रोश के चलते दबाव में सरकार ने जांच कमेटी का गठन तो कर दिया है लेकिन जांच टीम को एक लाइन दी गयी है कि वो इन मौतों में गर्मी और लू की भूमिका को नकारें।
प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट फोरम ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि हीटवेव केवल भारत में ही नहीं आता है। दुनिया के कई क्षेत्र हर साल इससे गुज़रते हैं लेकिन वे अपने बेहतरीन सार्वजनिक जनस्वास्थ्य व्यवस्था के दम पर अपने लोगों को लू से हताहत होने से बचा ले जाते हैं। जबकि भारत में केवल उन्हीं क्षेत्रों में लू से होने वाली मौतों की संख्या इतनी ज़्यादा है जिनकी सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा बेहद दयनीय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब स्वास्थ्य व्यवस्था सामाजिक सुरक्षा जाल प्रणाली में एक बड़ा छेद होता है। जिससे ग़रीबों, बेघरों और बुजुर्गों को हमेशा परेशानी का सामना करना पड़ता है।
PMSF की रिपोर्ट में आगे श्मसान घाटों का जिक्र करके कहा गया है कि पिछले एक महीने में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में श्मसान घाट पर जिन लोगों का अंतिम संस्कार किया गया है उनमें से अधिकांश दिहाड़ी पेशा जाति वर्ग के लोग थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार मरने वालों और पीड़ितों को दोषी ठहराने की अपनी प्रवृत्ति से बाज आये। लू से मरने वालों को आखिर बूढ़ा और पहले से बीमार बताकर सरकार बूढ़ों, बीमारों, बेघरों और ग़रीबों को सामाजिक सुरक्षा गारंटी देने की अपनी जवाब-देही से भाग नहीं सकती है।
एक स्थानीय चिकित्सक की पड़ताल
बलिया के एक स्थानीय चिकित्सक ने स्थानीय लोगों के इलाज और अपने निजी पर्यवेक्षण से कुछ निष्कर्ष निकाले हैं। बलिया से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिले में हीटवेव चल रही हैं जिसकी वजह से हीट स्ट्रोक की घटनाएं बहुत ज्यादा बढ़ गयी हैं और इससे सबसे ज्यादा किसान व मजदूर वर्ग पीड़ित है। मौतों का आंकड़ा पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही बहुत ज्यादा है क्योंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग इस समय खेती के कटनी छंटनी के कार्यों में व्यस्त रहते हैं ताकि आने वाली बारिश में फसलों की रोपाई कर सकें जिसके लिए नियमित रूप से किसान व मजदूर खेतों में जाता है। सुबह व शाम कुछ ना कुछ कार्य करता है। हीटवेब के बारे में जानकारी ना होने के कारण वह प्रतिदिन अपना रूटीन वर्क कर रहा है जिससे उनमें इस तरह की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। ज्यादातर किसानों के पास पानी साथ ले जाने के लिए सुविधाओं का अभाव है जिससे खेतो में कार्य करते वक्त डिहाइड्रेशन बढ़ जाता है और शरीर का इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस बिगड़ जाता है। पानी को बचाने के लिए शरीर यूरिन की मात्रा भी कम बनाती है जिस वजह से मरीज का मेटाबॉलिज्म बिगड़ जाता है। शरीर हीट को अवशोषित करने लगती है और शरीर का तापमान 104 डिग्री फारेनहाइट से बढ़ जाता है। जिससे शरीर को ठंडा करने के लिए हृदय गति बढ़ जाती है, साथ ही साथ श्वास दर भी बढ़ जाती है लेकिन शरीर से पसीना होना बंद हो जाता है। कभी-कभी मरीज कोमा में भी चला जाता है और कुछ ही समय बाद यदि उसे इलाज नहीं मिला तो गंभीर परिणाम देखने को मिलते हैं। यदि उसे सही समय पर उपयुक्त ईलाज व रिहाइड्रेशन के बाद ही बचाया जा सकता है।
हीट-वेव (लू) के लक्षणों और उससे बचाव के लिए आमजन को जागरूक किया जाए।
अस्पतालों/मेडिकल कॉलेजों में हीट-वेव से प्रभावित लोगों का तत्काल इलाज किया जाए।
राहत आयुक्त कार्यालय के स्तर से मौसम पूर्वानुमान का दैनिक बुलेटिन जारी किया जाए: #UPCM @myogiadityanath
— CM Office, GoUP (@CMOfficeUP) June 19, 2023
ऐसी तमाम घटनाएं उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रही हैं जहां बीते दिनों तमाम मरीज गर्मी के कारण जान गवाँ चुके है। ऐसे आरोप लगे तो यूपी सरकार को जांच बैठानी पड़ गई जो सरकारी अस्पतालों की हालत क्या है? सुविधाओं में क्या क्या कमियाँ है इन सब पर रिपोर्ट देगी। वहीं जाँच के दौरान ही कमेटी के मेंबर डॉक्टर ए के सिंह ने साफ इनकार किया है कि एक भी मौत “लू ” लगने से नहीं हुई है जबकि स्थानीय लोगों की मानें तो यह बात बिल्कुल भी गलत है स्थानीय लोगों का कहना है दलित पिछड़ा वर्ग से आने वाला मजदूर अपनी रोजी-रोटी की तलाश में प्रतिदिन चौराहे पर जाता है ताकि उसे कोई कार्य कराने के लिए ज़रूरतमंद मिल जायें और उसकी उस दिन की रोजी-रोटी चल जाये। जो भी लोग मरे हैं उनमें इस तरह के कार्य की पुष्टि हुयी है कि उनकी त्वचा झुलसी लाल रही हैं तथा शरीर का तापमान एक बार बढ़ने के बाद कम ही नहीं हुआ है।
प्रिय प्रदेश वासियो!
प्रदेश में भीषण गर्मी के साथ Heat Wave (लू) चल रही है। इसके प्रति सजग और जागरूक रहने की आवश्यकता है।
आप सभी से मेरी अपील है कि लू से बचें तथा अपने परिजनों, विशेषकर बुजुर्गों, बच्चों एवं बीमार जन का ध्यान रखें।
आपकी सरकार हर परिस्थिति में आपके साथ है।
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) June 19, 2023
दरअसल जो भी कमेटी बनाई जाती है उसका निर्णय अधिकतर केस में सरकार के पक्ष में ही आता है कमेटी के एक और मेम्बर ने बताया है कि जो मौतें हो रही हैं वृद्धावस्था के कारण या पानी प्रदूषित होने के कारण हो रही है हम लोग पानी के सैंपल का भी जांच करा रहे हैं जबकि अभी तक कोई ऐसी टेक्निक नहीं है जिससे आसानी से बताया जा सके कि जो मौतें हो रही हैं वह लूः की वजह से नहीं हो रही है सरकार के लिए है डाटा में बदलाव करना बहुत ही आसान हो गया है। जबकि वास्तविकता यह है कि उत्तर भारत में इस समय लू: के कारण अत्यधिक तप रह रहा है। अभिजात्य वर्ग आराम से घर पर बैठ एसी का आनंद उठा रहा है। जबकि देश का कामगार मजदूर-किसान हजारों की संख्या में खड़े हो करके अपने परीवार के भरण पोषण के लिए मौत का इंतज़ार कर रहे हैं कि कोई मालिक आए और उन्हें मजदूरी के लिए ले जाए ताकि उन्हें रोज़गार मिल सके! यह वर्ग अपनी जान को जोखिम में डालकर तपती धूप में कार्य कर रहा है इस तरह की परिस्थितियों चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी जैसे सफाई कर्मचारी, लाइनमैन, माली, मझौले वाहन संचालक, ठेले-रेहडी़ इत्यादि लोग में भी पाई जा रही है है श्मशान घाट पर प्रतिदिन लाशों का आंकड़ा बढ़ रहा हैजबकि सरकार के आकडे़ कम हो रहे है इन बढ़ते हुए आंकड़ों को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग की टीम को हस्तक्षेप करना चाहिए अन्यथा गरीब दलित मजदूर वर्गों की मौत सरकार के लिए सिर्फ एक डाटा बन करके रह जाएगी डाटा चेंज करना सरकार के लिए बहुत ही आम बात है लोगों की समस्याएं वर्तमान सरकार नजरअंदाज कर रही है अभी तक सरकार ने किसी भी तरह का मुआवजा का ऐलान नहीं किया है और साथ ही साथ अपने अधिकारियों को भेज करके इनके आंकड़े छुपाने का कार्य किया है, यह वर्ग पढ़ा-लिखा वर्ग नहीं है इसलिए ज्यादातर लोग अपने परिजनों के मरने के बाद बिना पोस्टमार्टम कराए ही बॉडी को लेकर के नम आँखो के साथ वापस लौट रहे है
प्राथमिक जांच रिपोर्ट में लू से मौत की बात को नकारा गया
बलिया में भीषण गर्मी से के कारण बीमार होकर जिला अस्पताल पहुंचे लोगों की मौत लू से नहीं हुयी है। ऐसा स्वास्थ्य विभाग द्वारा बलिया भेजी गयी जांच कमेटी ने अपनी प्रारम्भिक रिपोर्ट में कहा है। शासन को इस प्रकरण की प्रारम्भिक रिपोर्ट भेजी गयी है। गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभाग ने निदेशक (संचारी रोग) डॉ. ए. के. सिंह, निदेशक (चिकित्सा) डॉ. के.एन. तिवारी दो सदस्यीय जांच दल को बलिया भेजा था।
जागरूक बनें और सुरक्षित रहें।
लू से बचाव के लिए आवश्यक सावधानियां अवश्य बरतें। pic.twitter.com/2jMMM8k5gS— Brajesh Pathak (@brajeshpathakup) June 19, 2023
जिला अस्पताल और आस पास के गांवों में जांच करने के बाद जांच दल के सदस्य डॉ. ए के सिंह ने दावा किया था कि लोगों की मौत लू की वजह से नहीं बल्कि पुरानी बीमारी और बुढ़ापे के चलते हुयी है। जब पत्रकारों ने दलील दी कि तापमान कम होते ही फिर मौत में गिरावट क्यों आ गयी। इसके जवाब में उन्होने बेहूदा सा तर्क दिया कि ऐसा होता तो गांवों में अफरा-तफरी का माहौल होता और पशु पक्षी भी बेहाल होते। उन्होंने दलील दी कि मरीजों को जिला अस्पताल में पहुँचने में कई घंटों की देर हो गयी जिससे अस्पताल में भर्ती होने के थोड़ी देर बाद ही उनकी मौत हो गयी। नतीजन मौतों का आंकड़ा बढ़ गया।
#UPCM @myogiadityanath ने आज आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में प्रदेश में हीट-वेव (लू) की स्थिति को लेकर समीक्षा कर आधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विगत कुछ दिनों से प्रदेश के विभिन्न जनपदों में भीषण गर्मी-लू का प्रकोप देखा जा रहा है।
ऐसी स्थिति में…
— CM Office, GoUP (@CMOfficeUP) June 19, 2023
जबकि केजीएमयू भेजे गये 25 सैंपल की जांच में किसी वायरस या बैक्टीरिया जनित बीमारी से मौत न होने की पुष्टि हुयी है। बता दें कि यहां पर 12 तरह के सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, फंगस, पैरासाइट्स आदि) से होने वाले संक्रमण से मौत न होने की पुष्टि हुयी है। साथ ही बांसडीह और गड़वार ब्लॉक क्षेत्र के पानी की भी जांच करवायी गयी थी।
Deoria, UP | In June, a total of four people died due to suspected heatstroke. These four people died before a confirmatory diagnosis could be conducted: HK Mishra, Chief Medical Superintendent, Maharshi Devraha Baba Medical College pic.twitter.com/umohkgjDP4
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) June 19, 2023
इससे पहले बुधवार 21 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने सात राज्यों की समीक्षा बैठक के बाद दावा किया है कि लू से किसी की मौत नहीं हुयी है। बुधवार 21 जून को बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के स्वास्थ्यमंत्री और अधिकारियों के साथ वर्चुअल मीटिंग के बाद उन्होंने यह दावा किया। इसी बैठक में उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य अधिकारियों ने भी कहा कि उन्हें मौत और लू के बीच कोई लिंक नहीं मिला है। बलिया जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दिवाकर सिंह ने बलिया जिला अस्पताल में एक सप्ताह में हुयी 121 मौतों की वजह हीट स्ट्रोक बताया था जिसके बाद उन्हें हटा दिया गया था। बाद में बलिया के जिलाधिकारी रवीन्द्र कुमार ने बयान देकर कहा था कि जिला अस्पताल में हुयी मौतों और हीट स्ट्रोक के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी लाइन पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों चल रही हैं।
#WATCH | All hospitals have been directed to immediately provide necessary treatment to the patients. As the weather is improving, I am hopeful that we will see an improvement in this. All hospitals are on alert. It cannot be said that all deaths that happened in Ballia were due… pic.twitter.com/AMHUXpqI8L
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) June 20, 2023
सूबे के स्वास्थ्यमंत्री मयंकेश्वर सिंह ने भी तीन दिन पहले संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि सभी मौतें लू से नहीं हुई हैं। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने तो 18 जून को ही बता दिया था कि लोग लू से नहीं किसी और बीमारी से मर रहे हैं।
वहीं देवरिया जिले के महर्षि देवरहवा बाबा मेडिकल कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक एच के मिश्रा ने दावा किया कि केवल 4 लोगों की हीट स्ट्रोक से मौत जिले में हुयी है। वहीं लखनऊ के स्वास्थ्य निदेशक ने कहा कि केवल पहले दिन बलिया जिला अस्पताल जो मरीज आये उन्हें सीने में दर्द, संस लेने में दिक्कत और बुखार था। उनका खून, पेशाब और अन्य टेस्ट किया गया। इसके बाद जो मरीज आये वो केवल डर और घबराहट में अस्पताल आये।
UP | We inspected the situation of the district hospital yesterday. Patients are facing problems due to heat. The arrangements at the hospital have been improved. Five air coolers have been installed in the wards for the patients and they are getting relief from the heat. Only… pic.twitter.com/Rduddsve1b
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) June 19, 2023
लेकिन यहां सवाल तब भी उठता है कि अगर हीट स्ट्रोक से प्रदेश में एक भी मौत नहीं हुयी है तो एक हाई लेवल मीटिंग के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्यों अधिकारियों को लू के प्रकोप से बचाने के निर्देश ज़ारी करते हैं? क्यों नगर निकायों और ग्रामीण क्षेत्रों के सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल सेंटर बनाने का निर्देश ज़ारी किया? क्यों निर्देश दिया कि आम लोगों में हीटवेव के लक्षण दिखते ही अस्पताल और मेडिकल कॉलेज तुरंत प्रभावित लोगों का तुरंत इलाज दें? आयुक्त कार्यलय को हर रोज़ मौसम बुलेटिन ज़ारी करने का निर्देश क्यों दिया गया?
#WATCH | Ballia, UP: Most of the patients who are coming for treatment complain that they first had chest pain, difficulty in breathing, and then fever. We are getting urine tests, blood tests, and other tests done. The rest of the patients came to the hospital out of fear &… pic.twitter.com/52lztudVJn
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) June 19, 2023
राज्य सरकार ने आनन फानन में लू से बचने के तमाम उपाय क्यों किये। और इसे लेकर तमाम स्थानीय, प्रादेशिक और राष्ट्रीय अख़बारों में लू से बचने के एहतियाती विज्ञापन क्यों छपवाये गये। क्यों तमाम जिला अस्पतालों को निर्देश दिया गया कि मीडिया को मौत के आंकड़े न दें। किसलिए जिला अस्पतालों में मौत के आंकड़ों को दबाया गया? गौरतलब है कि बलिया, देवरिया, जौनपुर, वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, आजमगढ़ आदि जिलों में पिछले एक सप्ताह में दो सौ मौतें हुयी है और अधिकांश मौतों में जो लक्षण उभरकर सामने आये हैं वो हीट स्ट्रोक के ही हैं।
‘लू से नहीं बुढ़ापे में कम हुयी सहनशीलता से मरे लोग’ कह कर तंज कस रहे हैं लोग
सामाजिक कार्यकर्ता मोहन लाल अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं कि यह ‘न कोई घुसा है न कोई घुस आया है’ टेर वाली सरकार है। रक्षामंत्री कहता है कि चीन हमारे इलाके में घुस आया है। और प्रधानमंत्री सर्वदयील मीटिंग में दावा करता है कि ‘वहां न कोई घुसा है, न कोई घुस आया है’। लेकिन वो यह नहीं जवाब देता कि हमारे एक दर्जन जवान कैसे शहीद हुए। वैसे ही अब ये लोग दावा कर रहे हैं कि लू से एक भी मौत नहीं हुयी है।
मोहनलाल जी आगे कहते हैं कि यह बिल्कुल उसी तरह का दावा है जैसे लॉकडाउन में मरने वालों के मुआवजे के सवाल पर केंद्रीय श्रममंत्री ने सदन में कहा था कि सरकार के पास कोई आंकड़ा ही नहीं है ऐसे में मुआवजा देने का सवाल ही नहीं उठता। पर यहां तो आंकड़ा है पर सरकार उस आंकड़े को झुठला रही है।
क्लाइमेट चेंज पर मोदी की उस हास्यास्पद दलील का जिक्र करके मोहन लाल कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2014 में शिक्षक दिवस पर उस छात्र के बहाने क्लाइमेट चेंज पर जो पाठ इन्हें पढ़ा दिया है कि जलवायु परिवर्तित नहीं हुआ है बल्कि हमारी सहनशीलता ही कम हो गयी है। मोदी ने कहा था कि बूढ़ों की सहनशीलता कम होने के नाते उन्हें ठंड ज़्यादा लगती है। क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ उनकी सहनशीलता कम हो गयी है। मोदी की उस सीख पर देश का पूरा स्वास्थ महकमा आज तक तक चल रहा है। तभी तो ठीक प्रधानमंत्री वाली उस लाइन पर अब जांच दल के डॉक्टर अपनी रिपोर्ट में, सरकार और मंत्री मीडिया में कह रहे हैं कि लोगों की मौत लू से नहीं बुढ़ापे से हुयी है। तो लोगों की मौत लू से नहीं, बुढ़ापे के कारण कम हुयी सहनशीलता से उनकी मौत हुयी है।
लू से मौत को नकारकर जिम्मेदारी और जवाबदेही से भाग रही है सरकार
एक्टिविस्ट और पेशे से डॉक्टर आशीष मित्तल अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं कि फेफड़े, दिल और दिमाग तीनों की गतिविधि बंद होने को मरना कहते हैं। बुढ़ापे से मरना कोई क्राइटेरिया नहीं है। हर मौत के पीछे कोई पृष्ठभूमि और कारण होते है। सरकार और प्रशासन अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से भाग रहे हैं इसलिए इस तरह की अतार्किक बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसे ही भूख से मौंत थोड़े होती है मौत तो सांस रुकने से ही होती है लेकिन खाना न मिलना पोषण न मिलना उसका एक कारण होता है। जब लोगों की भूख से मौत होती है तो ये कहते हैं कि बीमारी से हुयी है। अब बीमारी से मौत हो रही है तो ये कह रहे हैं कि बीमारी से नहीं बुढ़ापे से मौत हुयी है। ये प्रूफ दे देते हैं कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उसके पेट में खाना निकला कच्चा। वो आगे कहते हैं कि इस समय पूरा उत्तर भारत जबरदस्त हीट स्ट्रोक के चपेट में है। किसान और कंस्ट्रक्शन लेबर लगातार इसे फेस करना पड़ रहा है। इसलिए वो इसके शिकार भी सबसे ज़्यादा हो रहे हैं।
तेज गर्मी/लू का मौसम चल रहा है। ऐसे में गांव हो या शहर, कहीं भी अनावश्यक बिजली कटौती न हो।
जरूरत हो तो अतिरिक्त बिजली खरीदने की व्यवस्था करें।
ट्रांसफॉर्मर जलने/तार गिरने जैसी समस्याओं का बिना विलंब निस्तारण किया जाए: #UPCM @myogiadityanath pic.twitter.com/pzIhZJ4Bgs
— CM Office, GoUP (@CMOfficeUP) June 19, 2023
सरकार और व्यवस्था का फेल्योर है इतनी मौतों का होना
डॉ. आशीष मित्तल आगे कहते हैं कि गर्मी में जो लोग ज्यादा श्रम करते हैं पसीना बनकर पानी और नमक निकल जाता है। और रात को भी गर्मी बहुत तेज पड़ रही है तो शरीर को सुस्ताकर पानी पीने और खाना खाने से जो पानी और नमक की कमी की पूर्ति हो जाती है और शरीर वापिस काम करने लग जाता है। लेकिन जब लगातार गर्मी पड़ रही है तो रात को भी रिकवरी नहीं हो रही है। तो लोग इस गर्मी में ज़्यादा शारीरिक श्रम न करें ताकि शरीर में नमक और पानी की कमी न हो। और वो नमक पानी का घोल लें। और छाया में रहें। मज़दूरों के लिए ठंडा पानी और शर्बत का इंतजाम कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। दिन में काम न लिये जायें। प्रशासन छापेमारी करे तमाम कांस्ट्रक्शन साइट पर तो लोग खुद ब खुद इतंजाम करने लगेंगे। कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के नाम से सरकार इतना पैसा इकट्ठा कर रही है कि सरकार खुद व्यवस्था कर सकती है पर सरकार कुछ नहीं कर रही है। कंस्ट्रक्शन साइट पर छाया की व्यवस्था हो सकती है। पर सरकार सीएमओ और डीएम तीनों ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभायी है। लोगों को बचने बचाने की जिम्मेदारी सरकार की है कि वो लोगों को पहले से आगाह करे। पर सरकार सीएमओ और डीएम ने ये नहीं किया। गलती उनकी है। अगर लोगों को अस्पताल पहुंचते ही बिस्तर और ट्रीटमेंट, ड्रिप चढ़नी शुरु हो जाये तो लोगों की जान बच सकती है। पानी की रिकवरी धीरे-धीरे होती है। शरीर को ठंडा करना खाना मिलना बहुत ज़रूरी है। लेकिन ये अस्पतालों का फेल्योर है जो इतने लोगों की मौत हुयी है।