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ग्राउंड रिपोर्ट

बीएचयू के ‘एसएसबी’ का डिजिटल लॉक दिल के मरीजों को भगा रहा है, दो वर्षों में 30 हजार लोग प्रभावित

वाराणसी। पूर्वांचल का एम्स कहे जाने वाले बीएचयू में आने वाले दिल के मरीज़ों को दिक्कतें झेलनी पड़ रही है। उन्हें निजी अस्पतालों की तरफ रुख करना पड़ रहा है। सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक यानी एसएसबी में पाँचवे तल पर बने सीसीयू में मरीज़ों की भर्ती केवल इस वजह से नहीं हो पा रही है, क्योंकि […]

वाराणसी। पूर्वांचल का एम्स कहे जाने वाले बीएचयू में आने वाले दिल के मरीज़ों को दिक्कतें झेलनी पड़ रही है। उन्हें निजी अस्पतालों की तरफ रुख करना पड़ रहा है। सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक यानी एसएसबी में पाँचवे तल पर बने सीसीयू में मरीज़ों की भर्ती केवल इस वजह से नहीं हो पा रही है, क्योंकि कम्प्यूटर में ‘डिजिटल लॉक’ नहीं खुल पा रहा है। इसी कारण बीते दो वर्षों में लगभग 30 हज़ार मरीजों को वापस लौटना पड़ा।

इस मामले में जाँच के लिए गठित कमेटी अपनी रिपोर्ट आईएमएस बीएचयू के निदेशक को दे चुकी है। रिपोर्ट संतोषजनक नहीं होने पर निदेशक ने नए सिरे से जाँच कराने का निर्णय लिया है। वर्तमान में हृदय रोग विभाग के वार्ड में 47 बेड पर भर्ती मरीज़ों का इलाज किया जा रहा है, इसके अलावा एसएसबी के पाँचवें तल पर स्थित सीसीयू में भी 41 बेड गम्भीर मरीज़ों के लिए हैं, लेकिन भर्ती नहीं हो पाती है, क्योंकि कम्प्यूटर में यह बेड ही नहीं दिखते हैं।

बीएचयू में हृदय रोग विभागाध्यक्ष और अस्पताल प्रशासन के बीच चल रही अहम-नियम की लड़ाई का खामियाज़ा मरीज़ों को भुगतना पड़ रहा है। मरीज़ों के भर्ती की समस्या पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने डीन रिसर्च प्रो. अशोक कुमार की अध्यक्षता में पाँच सदस्यों वाली कमेटी गठित की थी। अगस्त 2023 में कमेटी की बैठक भी हुई, जिसमें एसएसबी के चौथे और पाँचवें तल पर भी हृदय रोग विभाग को जगह देने का निर्णय हुआ। कमेटी ने अक्टूबर में ही अपनी रिपोर्ट आईएमएस निदेशक को दे दी है। इसके बाद भी खाली बेड पर कोई फैसला नहीं हो पाया है।

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इस मामले को लेकर हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो. ओमशंकर कहते हैं कि सीसीयू में बेड होने के बाद भी मरीजों के भर्ती न होने से समस्या बढ़ती जा रही है। आईएमएस निदेशक को कई बार इस समस्या से अवगत कराया गया। पत्रक दिए गए, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही दिया जा रहा है। मरीजों के हित में इस समस्या का समाधान होना ही चाहिए।

बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान को एम्स का दर्जा दिलाने लिए तीन बार आमरण अनशन कर चुके प्रोफेसर ओमशंकर ऐसे शख्स हैं, जो अपने अनूठे आंदोलन और ईमानदारी की अलख जगाने की वजह से 14 महीने के निलम्बन का दंश भी झेल चुके हैं। इनकी मुहिम का ही नतीजा था कि बीएचयू में चिकित्सकीय सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये की मंजूरी दी।

उन्होंने आरोप लगाया कि मरीजों के लिए जब सुविधाओं के विस्तार का समय आया तो हृदय रोग विभाग की अनदेखी की जाने लगी। हृदय रोग विभाग के 41 बेडों पर दो वर्षों से डिजिटल लॉक लगा हुआ। इस वजह से अब तक लगभग 30 हजार से ज्यादा मरीजों का इलाज नहीं हो पाया है। वह बैरंग हो गए।

प्रो. ओमशंकर कहते हैं, जिन हृदय रोगियों को लौटाया गया, उनकी हालत को कौन जानता होगा? न जाने कितने लोग मौत के मुँह में समा गए होंगे। न जाने कितने लोग अपना इलाज निजी अस्पतालों में कराने के बाद कंगाली व भुखमरी के दौर से गुज़र रहे होंगे। लेकिन कुलपति न जाने किन कारणों से वॉर्ड का डिजिटल लॉक नहीं खुलवा रहे हैं।

चिकित्सकों के रार के कारण मरीजों को हो रहीं दिक्कतें

दरअसल, चिकित्सा अधीक्षक (एमएस) प्रो. केके गुप्ता और प्रो. ओमशंकर के बीच विवाद ने तब तूल पकड़ा जब सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में हृदय रोगियों के लिए बनाए गए 41 बेड को डिजिटल लॉक में रख दिया गया। इसके चलते दोनों के बीच रार बढ़ गई।

प्रो. ओमशंकर का आरोप है कि कई बार पत्र देने के बावजूद प्रो. केके गुप्ता हृदय रोगियों के बेड पर लॉक लगाए हुए हैं। अस्पताल चिकित्सा अधीक्षक के आदेश से नहीं, बल्कि नियम से चलता है।

वहीं, आईएमएस (बीएचयू) के निदेशक प्रो. एसएन संखवार ने कहा कि हृदय रोगियों को सीसीयू की सुविधा मिलनी ही चाहिए। डिजिटल लॉक क्यों लगा है, इसकी जाँच करवाकर जल्द से जल्द इसका समाधान करवाया जाएगा। जब बेड खाली है, तो उस पर मरीज़ों को हर हाल में भर्ती किया जाएगा। उन्होंने बताया कि पहले जो कमेटी बनी थी, उसे बनाने वाले लगभग लोग रिटायर हो गए हैं। अब सम्बंधित सभी लोगों के साथ दो-तीन दिन बाद एक बैठक कर समस्या का समाधान में जल्द ही करा दिया जाएगा।

पर्ची कटवाने के बाद सामने आती है सच्चाई

सूत्रों की मानें तो बीएचयू के इमरजेंसी में आने वाले दिल के मरीजों को बेड खाली न होने की सूचना तब दी जाती है जब उनके साथ आए तीमारदार पर्ची लेकर डॉक्टरों के पास पहुँचते हैं। वार्ड में मरीजों को प्राथमिक उपचार तो मिल जाता है, लेकिन मामला गम्भीर होने पर उन्हें बेड नहीं मिलता। किसी की ठोस पैरवी पर ही उन्हें बेड की सुविधाएँ दी जाती हैं। दो वर्षों से चल रही बेड की समस्या के कारण अब मरीज़ भी बीएचयू नहीं आना चाहते हैं।

जनता की उम्मीदों पर फिरा पानी

सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक (एसएसबी) के लोकार्पण के बाद बनारस के लोगों में उम्मीद जगी थी कि उच्चीकृत कैथ लैब से एंजियोग्राफी, काम्पलेक्स एंजियोप्लास्टी इपी-आरएफए समेत कई सुविधाएँ मिलने लगेंगी। आसपास के जनपदवासियों में भी खुशी थी। आधुनिक कैथ लैब की सुविधा मिलने से दिल के सुराख को बंद करने के आपरेशन भी किए जा सकेंगे।

सीसीसीयू के पंचम तल पर अत्याधुनिक आपरेशन थिएटर, प्री-आपरेटिव वार्ड, अडल्ट आईसीयू, नीकू, पोस्ट आपरेटिव वार्ड, डाक्टर्स, नर्सेज, एनेस्थेटिस्ट, ओटी स्टोर रूम, सीसीयू, पेसेंट वेटिंग एरिया, कैथ लैब एक से पांच, प्री-कैथ, रिकवरी, डाक्टर्स, टेक्निशियन, स्टोर, रेजिडेंट ड्यूटी रूम, थाइरोसिस आइसीयू, डे-केयर, रिसर्च लैब, कंसलटेंट, रिसर्च, एचओडी, सेंट्रल कंट्रोल रूम, लाइब्रेरी और माइनर ओटी की व्यवस्था है।

बीएचयू के प्रोफेसरों के बीच विवाद खड़ा होने से सुपरस्पेशियलिटी ब्लॉक में बने सीसीयू में मरीजों को भर्ती का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है और दिल के मरीजों को बिना इलाज ही लौटाया जा रहा है।

प्रो. ओमशंकर कहते हैं कि इस मामले को लेकर हमने बीएचयू के कुलपति, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री सहित तमाम लोगों को शिकायती-पत्र भेजा, लेकिन कार्रवाई तो दूर की बात है, कोई जाँच तक नहीं की गई।

शिकायती-पत्रों पर किसी का जवाब तक नहीं आया। यह स्थिति बेहद निराशाजनक है। ऐसे में शासन-प्रशासन से कोई कैसे उम्मीद करे कि उनके साथ नाइंसाफी या मनमानी होती है तो उनकी बात सुनी जाएगी या नहीं?

अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा
अमन विश्वकर्मा गाँव के लोग के सहायक संपादक हैं।

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