बीजेपी ने अपनी सीटों में करीब 70 सीटों की बढ़ोतरी का लक्ष्य निर्धारित किया है, तो उस हिसाब से एनडीए के सहयोगी दलों की संख्या में बढ़ोतरी होनी चाहिए। अभी सहयोगी दलों की सीटें करीब 50 हैं, लेकिन आगामी लक्ष्य 400 है, तो इसका मतलब सहयोगी दलों की सीटों में 30 की कमी बीजेपी मानकर चल रही है। सामान्य गणित के मुताबिक, अगर बीजेपी की सीटें 303 से बढ़कर करीब 370 हो रही हैं, तो इस हिसाब से बीजेपी के सहयोगी दलों की सीटों में भी कुछ न कुछ बढ़ोतरी तो होनी ही चाहिए।
2019 में बीजेपी के सहयोगी दलों की सीटें 353 थीं, और इनमें 10 की भी बढ़ोतरी होती है, तो एनडीए की कुल सीटें करीब 430 होनी चाहिए। अगर सहयोगी दलों की सीटों में कोई बढ़ोतरी नहीं होती है तो भी एनडीए की कुल सीटें करीब 420 तो होनी ही चाहिए, लेकिन बीजेपी ने एनडीए के लिए टारगेट ही 400 का रखा है, जिसका मतलब ये हुआ कि सहयोगी दलों की सीटें जो 2019 में करीब 50 थीं, वो घटकर 30 हो रही हैं।
ऐसी भी नहीं कि बीजेपी इस बार पिछली बार की तुलना में बहुत ज्यादा सीटों पर लड़ रही हो। बीजेपी ने 2019 में 437 सीटों पर चुनाव लड़ा था और बाकी पर उसके सहयोगी दल लड़े थे। 2024 में बीजेपी 446 सीटों पर लड़ रही है यानी पिछली बार की तुलना में केवल 9 ज्यादा सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। इस तरह से किसी भी सूरत में बीजेपी के सहयोगी दलों की सीटों में बढ़ोतरी ज्यादा भले ही न हो, पर सीटों में कमी होना तो स्वाभाविक नहीं है।
इसके बावजूद अगर बीजेपी के सहयोगी दलों की सीटें खुद बीजेपी की निगाह में कम हो रही हैं, तो इसका मतलब यही है कि एनडीए में शामिल दलों की स्थिति ठीक नहीं है। उनकी सीटें धीरे-धीरे ही सही बीजेपी ही लेती जा रही है, और जिन सीटों पर वो लड़ते भी हैं, उन पर उनकी जीत की संभावनाएं कम होती जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का लाभ जिस तरह से बीजेपी को मिलता है, उस तरह से समूचे एनडीए को नहीं मिलता है।
कौन हैं बीजेपी के प्रमुख सहयोगी दल
2019 में बीजेपी के प्रमुख सहयोगी दलों में शिवसेना 23, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम 20, जनता दल यूनाइटेड 17, शिरोमणि अकाली दल 10, पीएमके 7, लोकजनशक्ति पार्टी 6, डीएमडीके 4, केरल की भारत धर्म जनसेना 4, असम गण परिषद 3, अपना दल सोनेलाल 2 पर लड़ी थीं। इनके अलावा, 10 अन्य छोटी-छोटी पार्टियां थीं जो एक-एक सीट पर चुनाव लड़ी थीं।
2024 में भी एनडीए के स्वरूप में ज्यादा फर्क नहीं आया है। जनता दल यूनाइटेड 17 के बजाय 16 पर लड़ रहा है तो शिवसेना विभाजन के बाद एनडीए में आने वाली शिवसेना शिंदे 13 सीटों पर लड़ रही है। एनसीपी में भी विभाजन हुआ और अजित पवार की एनसीपी एनडीए गठबंधन के तहत 5 सीटों (महाराष्ट्र में 4 और लक्षद्वीप में 1) पर लड़ रही है। एक बड़ा घटक तेलुगु देशम जरूर एनडीए में आया है जो आंध्रप्रदेश में 17 सीटों पर लड़ रहा है। यानी आंध्र प्रदेश में पिछली बार की तुलना में बीजेपी कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जनसेना पार्टी को भी इस बार 2 सीटें दी गई हैं जबकि पिछली बार वो एनडीए में नहीं थीं। एनडीए के अन्य घटकों में देखें तो एलजेपी भी विभाजन के बाद अब 6 के बजाय 5 पर लड़ रही है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोकमोर्चा भी एनडीए में आए हैं जिन्हें एक-एक सीट दी गई है।
कर्नाटक में भी एनडीए के आकार में बढ़ोतरी हुई है, और जनता दल सेक्युलर इस बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है। जेडीएस को 3 सीटें दी गई हैं। बाकी दलों की सीटें कमोबेश वही हैं, मसलन, केरल की भारत धर्म जन सेना 4 पर ही लड़ रही है। तमिल मनीला कांग्रेस 3, अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कड़गम 2, अपना दल सोनेलाल 2, असम गण परिषद 3 के बजाय 2 सीटों पर लड़ रहे हैं। पूर्वोत्तर में मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी को 2 सीटें दी गई हैं, तो यूपी में नए सहयोगी बने राष्ट्रीय लोकदल को 2 सीटें दी गई हैं। बाकी कुछ सीटें हैं जिन पर एनडीए के कुछ घटक एक-एक सीट पर लड़ रहे हैं।
कुछ नए दल भी जुड़े हैं एनडीए में
इस तरह से देखें तो एनडीए में कुछ बड़े दल इस बार आए हैं, जिनमें तेलुगु देशम, जनसेना पार्टी, जनता दल सेक्युलर और राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख हैं। इनका अपना जनाधार भी है और माना जाता है कि बीजेपी का समर्थन मिलने पर इनके प्रत्याशियों के जीतने की संभावना बढ़ जाती है। तो अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और काम पर चुनाव लड़ रहे एनडीए के घटक दलों की सीटें भी 50 से कुछ तो बढ़नी ही चाहिए और ये एनडीए के कुल टारगेट में भी परिलक्षित होनी चाहिए थी। हालांकि ऐसा है नहीं। प्रधानमंत्री ने जो टारगेट किया है, वो 400 पार का है, उसमें बीजेपी का हिस्सा 370 है, तो बाकी घटक दलों के कुल मिलाकर केवल 30 पर ही जीतने का लक्ष्य रखा गया है।
वास्तव में बीजेपी के प्रमुख सहयोगी दलों की क्या चुनावी संभावनाएं हैं, इस पर भी एक नजर डालते हैं।
बिहार में अतिरिक्त सीटों की गुंजाइश नहीं
बिहार में जेडीयू के रूप में बीजेपी का एक प्रमुख सहयोगी दल है जो 2019 में भी उसके साथ था। तब जेडीयू 17 सीटों पर लड़कर 16 पर जीता था। 2024 में जेडीयू को 16 सीटें दी गई हैं। पूरे राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से एनडीए ने 39 सीटें जीती थीं। इस बार एनडीए पिछले नतीजों को दोहराता भी है तब भी सहयोगी दलों की सीटें बढ़ने की ज्यादा गुंजाइश नहीं है। अन्य सहयोगियों में 5 सीटों पर लड़ने वालालोक जनशक्ति (रामविलास) है, और उपेन्द्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोकमोर्चा और जीतनराम मांझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा है जिन्हें एक-एक सीट दी गई है।
आंध्र प्रदेश में टीडीपी का मिला साथ
आंध्र प्रदेश में बीजेपी ने इस बार प्रमुख विपक्षी दल तेलुगु देशम से तालमेल किया है और साथ में जनसेना को भी साथ लिया है। राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से 17 पर टीडीपी और 2 पर जनसेना पार्टी लड़ रही है। बीजेपी 6 लोकसभा सीटों पर लड़ रही है। अब अगर मोदी के नाम पर एनडीए इस राज्य में बड़ी सफलता पाता भी है तो ऐसा मुमकिन नहीं दिखता कि बीजेपी की सीटें तो बढ़ जाएं, और टीडीपी की न बढ़ें। हां, ये जरूर है कि पिछली बार बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी तो इस बार कुछ न कुछ फायदा बीजेपी को हो सकता है। लेकिन अगर बीजेपी को कुछ फायदा होता है तो उससे ज्यादा फायदा उसके सहयोगियों यानी टीडीपी और जनसेना को होना चाहिए।
तमिलनाडु में बढ़ने की गुंजाइश बन सकती है
2019 में बीजेपी तमिलनाडु के एक प्रमुख दल एआईएडीएमके और अन्य दलों के साथ गठबंधन में थी। इस बार एआईएडीएमके का अपना अलग गठबंधन है। 2019 में बीजेपी 7 सीटों पर लड़ी थी। तमिलनाडु में बीजेपी 2024 में 23 सीटों पर लड़ रही है, इनमें से चार सहयोगी दलों के उम्मीदवार भी उसके चुनाव चिह्न पर लड़ रहे हैं।। अन्य प्रमुख सहयोगियों में पीएमके 10 सीटों पर, तमिल मनीला कांग्रेस 3 पर और अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कड़गम 2 सीटों पर लड़ रही है। यानी यहां पर अगर मोदी की रैलियों और यात्राओं का फर्क पड़ता है, और एनडीए कुछ बेहतर करता है तो बीजेपी को भी फायदा हो सकता है। हालांकि ऐसा भी नहीं लगता कि ये फायदा एनडीए में केवल बीजेपी को ही हो। मूल द्रविड़ सहयोगियों की भी सीटें बढ़ेंगी जिनमें पीएमके, तमिल मनीला कांग्रेस जैसी दल हो सकते हैं।
महाराष्ट्र में जुड़े हैं नए सहयोगी
एक और बड़ा राज्य महाराष्ट्र है जहां बीजेपी के सहयोगी प्रमुखता से लड़ रहे हैं। विभाजित शिवसेना का शिंदे गुट बीजेपी के साथ है तो विभाजित एनसीपी का अजित पवार गुट भी बीजेपी के साथ है।
2019 में महाराष्ट्र में अविभाजित शिवसेना के साथ गठबंधन करके लड़ी बीजेपी ने 48 में से 25 पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। 23 सीटें शिवसेना को दी गई थीं। परिणाम भी काफी अच्छे रहे थे। 23 सांसद बीजेपी के जीते थे, तो 18 शिवसेना के भी जीते थे। एनडीए ने कुल 41 सीटें जीती थीं। यानी इस बार एनडीए कुछ और बेहतर करता है तो उसे 7 सीटें और अतिरिक्त मिल सकती हैं।
2024 में महाराष्ट्र में एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर मामला पूरी तरह से नहीं सुलझ पाया है। फिर भी बीजेपी करीब 28 सीटों पर लड़ना चाहती है, शिंदे गुट को 14 और अजित पवार की एनसीपी को 5 सीटें देने की मंशा है। अंत समय में इनमें थोड़ा बहुत फर्क हो सकता है, लेकिन मोटे तौर पर यही आंकड़ा रहना तय है।
हालांकि किसी भी सूरत में अगर एनडीए यहां अपना प्रदर्शन सुधारता है तो बीजेपी की सीटों में बढ़ोतरी तो हो सकती है, लेकिन उसके सहयोगी दलों की सीट संख्या में भी कोई खास कमी होती नहीं दिखती क्योंकि सभी सीटों पर मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है, और राज्य स्तर पर सरकार में शिवसेना शिंदे और अजित पवार की एनसीपी भी शामिल है ही, यानी मजबूत स्थिति में हैं।
कर्नाटक में जेडीएस नया सहयोगी
कर्नाटक में बीजेपी को जेडीएस के रूप में नया सहयोगी मिला है, लेकिन उसे बीजेपी ने केवल 3 सीटें ही दी हैं। वैसे 2019 में भी बीजेपी ने 28 में से अपने समर्थन वाली निर्दलीय को मिलाकर 26 सीटें तो जीती ही थीं।
हालांकि पिछले साल विधानसभा चुनावों में कर्नाटक ने बीजेपी को बुरी तरह से परास्त करके सरकार बनाई थी, और वह पूरे उत्साह में है। इसी को देखते हुए बीजेपी ने जेडीएस को साथ लिया है।
अब अगर बीजेपी सारी कमियां दूरकर, फिर से कर्नाटक में स्वीप करती है तो भी उसकी सीट संख्या में बढ़ोतरी नहीं होगी। 26 सीटें उसके पास थीं और इस बार वह अपने प्रत्याशियों वाली सारी 25 सीटें जीत लेती है तो भी उसके सांसदों की संख्या में एक की कमी ही होनी है। उधर जेडीएस की जरूर एक या दो सीटें बढ़ने की गुंजाइश है। ऐसा इस राज्य में भी होता नहीं दिखता कि बीजेपी की सीट संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाए और सहयोगी दलों की सीटें घट जाएं।
केरल में अब भी कमजोर है एनडीए
एनडीए जिन राज्यों में सीटें बढ़ाने की आशा कर रहा है, उनमें केरल भी है जहां उसकी स्थिति तमिलनाडु की ही तरह कमजोर रही है।
केरल में 2019 में बीजेपी ने भारत धर्म जन सेना और केरल कांग्रेस (थॉमस) के साथ गठबंधन किया था।राज्य की कुल 20 सीटों में से 15 पर बीजेपी के प्रत्याशी लड़े थे तो 4 पर भारत धर्म जन सेना के, और एक सीट पर केरल कांग्रेस (थॉमस) के प्रत्याशी थे, जो सब के सब हार गए थे।
इस बार यानी 2024 में केरल कांग्रेस (थॉमस) एनडीए से बाहर निकल गई है। 16 सीटों पर बीजेपी तो 4 पर भारत धर्म जनसेना लड़ रही है।
अब अगर केरल का राजनीतिक माहौल बदलने में नरेंद्र मोदी और अमित शाह कामयाब रहते हैं तो कुछ सीटों का फायदा बीजेपी को हो सकता है, लेकिन यह भी तय है कि बीजेपी के सहयोगी दल, यानी भारत धर्म जन सेना को भी कुछ फायदा होगा। हो सकता है भारत धर्म जन सेना को ही ज्यादा फायदा हो।
ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल में केवल बीजेपी को फायदे की उम्मीदें
केवल तीन राज्य हैं जहां बीजेपी के पास सीटें बढ़ाने की गुंजाइश हैं और यहां पर एनडीए की सीटें अगर बढ़ती हैं तो वो विशुद्ध बीजेपी की बढ़त होगी क्योंकि इन तीनों राज्यों में बीजेपी को कोई सहयोगी नहीं मिला है। तेलंगाना में 2019 में बीजेपी ने सभी 17 सीटों पर लड़कर 4 सीटें जीती थीं। इस बार भी वह अकेले लड़ रही है, लेकिन राज्य में कांग्रेस पिछले साल सरकार बनाकर उत्साह में है, तो बीजेपी की सीटें बहुत ज्यादा बढ़ने के तो आसार नहीं हैं।
ओडिशा में बीजेपी 2019 में सभी 21 सीटों पर लड़कर 8 सीटें जीतने में सफल रही थी। इस बार पहले तो बीजेपी ने मुख्य और सत्तारूढ़ दल बीजू जनता दल के साथ गठबंधन करने की कोशिश की लेकिन जब बात नहीं बनी तो वह अलग से ही सभी सीटों पर लड़ रही है। यहां पर बीजेपी के पास जीतने के लिए 12 सीटें और भी हैं, और वह जितनी भी अतिरिक्त सीटें जीतेगी, वह एनडीए में केवल बीजेपी का ही फायदा होगा।
पश्चिम बंगाल में 42 सीटों पर 2019 में बीजेपी ने पहली बार जोरदार प्रदर्शन करते हुए 18 सीटों की बड़ी सफलता हासिल की थी। इस बार उसके पास चुनौती पिछली 18 सीटों को कायम रखते हुए, कुछ और सीटें जीतने की भी है। बीजेपी अगर ऐसा करने में कामयाब हो गई तो यहां भी एनडीए के अंदर केवल बीजेपी को ही फायदा होगा।
लेकिन इन तीनों राज्यों में बीजेपी भले ही अपनी सीटें बढ़ा ले, लेकिन उसके किसी सहयोगी दल की सीटें कम होने का तो सवाल ही नहीं है क्योंकि इन तीनों राज्यों में बीजेपी अकेले ही लड़ रही है।
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि अगर एनडीए अपने 2019 के प्रदर्शन में सुधार करता है तो एनडीए के अंदर बीजेपी के सहयोगी दलों के प्रदर्शन में भी सुधार होगा, और अगर नहीं भी होता है तो वे कम से कम अपनी पिछली सीटें तो कायम रखेंगे ही। जिसका मतलब यही है कि 2019 में बीजेपी के सहयोगी दलों की जो संख्या करीब 50 थी, वह मोदी ब्रांड फिर से चल निकलने की सूरत में 50 तो रहेगी ही, और अगर बीजेपी अपनी सीटें 370 करने में कामयाब होती है तो एनडीए की सीटें भी 420 होनी चाहिए, जबकि बीजेपी ने एनडीए के लिए टारगेट ही 400 का तय किया है। जरूर हिसाब में कुछ गड़बड़ी है या फिर ये एक ऐसा नारा है जो केवल कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए दे दिया गया है, जिसका जमीनी सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है।