दिन और तारीख तो याद नहीं है। हो सकता है, 1988-89 की घटना हो। बामसेफ के हमारे साथी स्वर्गीय राजोरा साहब के माध्यम से मुम्बई में खटीक समाज की बहुत बड़े पैमाने पर मीटिंग चल रही थी। मुझे भी बुलाया गया था और बामसेफ के हमारे दो साथी श्रीकृष्णा आनंद (IRS) और उदित राज (IRS) मंच पर विराजमान थे। श्रीकृष्णा साहब अपनी व्यस्तता के कारण, भाषण देकर मीटिंग से जाने लगे, अभी सीढ़ी से नीचे उतरे ही थे कि, किसी ने बिना जलपान किए, उनके जाने पर खेद व्यक्त कर दिया, तो उदित राज का तुरंत कमेंट आया।
‘…जाने दो, वो हमारी जाति का नही है।’
मैं शॉक्ड हो गया! इसीलिये आज तक वह सीन भुला नहीं पाया हूं। यह बात आजतक मैंने श्रीकृष्णा को नहीं बताया। मैंने उनकी जाति भी जानने की कोशिश नहीं की। मैं नहीं चाहता था कि इनकी दोस्ती में किसी तरह की खटास पैदा हो। एक बात और है कि ऊंच-नीच की ऐसी जातिवादी नफरत और ओछी मानसिकता के कारण उस घटना के बाद उदित राज से मिलने की कभी भी मेरी हिम्मत नहीं हुई।
जब इतने बड़े-बड़े शूद्र अधिकारीयों और सभा के मुख्य अतिथियों की मानसिकता ऐसी है तो समाज में बदलाव कैसे आ सकता है?
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मैंने अनुभव से महसूस भी किया है कि संविधान की बदौलत रिजर्वेशन से जो अधिकारी उच्च पदों पर चले जाते हैं, उनमें से कुछ तो अपने ही गांव, घर, परिवार या सगे-संबंधियों से ही घमंड के कारण उन्हें मान-सम्मान न देते हुए मानवीय मूल्यों को ताक पर रख देते हैं। साधारण इंसान भी इन्हीं अधिकारियोंं को अपना आदर्श मानते हुए खुद भी जातीय मानसिकता से ग्रसित हो जाता है। जात-पात को खत्म न होने देने का यह भी एक कारण है।
करीब-करीब सात सालों से मेरा अनुभव है कि तथाकथित उच्च बन जाने वाले ऐसे अधिकारी ही अपने आप को शूद्र कहलवाने में शर्म महसूस करते हैं और बड़े शान से मीटिंग में कह देते हैं कि इतनी कठिन परिश्रम और जद्दोजहद के बाद जब हम शूद्र मानसिकता से बाहर निकल कर आए हैं, तो फिर आप हमें उसी नीच मानसिकता में क्यों ले जाना चाहते हैं? किसी के मुंह से आजतक यह नहीं सुना कि यह पद और ओहदा हमें बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान की वजह से मिला है।
मेरे विचार से ऐसे अधिकारियों का सिर्फ तन साफ-सुथरा हुआ है मन नहीं। जिस दिन ऐसे अधिकारियों का मन साफ हो जाएगा, उसी दिन ब्राह्मणवाद घुटने टेक देगा।
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आपको मैं पहले ही बता चुका हूं कि मिशन- गर्व से कहो हम शूद्र हैं शुरू करने की प्रेरणा भी बामसेफ के हमारे साथी के सरनेम यानी जाती छिपाने और बड़े धूमधाम से सत्यनारायण कथा कराने की वजह से मिली है।
आपको बता दूं और खुशी की बात है कि पीछले एक दो सालों से बहुत से उच्च पदस्थ या सेवानिवृत्त अधिकारी अपने आप को शूद्र कहलवाने में गर्व महसूस करने लगें हैं।
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