मई 2022 के एक दिन तसलीमा बानो चिंता में डूबी हुईं थीं। उनके पिता 500 भेड़ों के झुंड को लेकर पहाड़ों में चराने के लिए गए थे और घर वापस नहीं आए, काले बादलों ने चारों तरफ से हकनार गांव को घेर रखा था।
काफी देर बाद एक पड़ोसी ने उन्हें जानकारी दी कि पहाड़ पर बिजली गिरी है। जब तसलीमा बानो और उनके पड़ोसी चरागाह पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनकी 63 भेड़ें मर चुकी थीं। उनके भाई अब्दुल रशीद चोपान बेहोश हो गए थे, कुछ देर बाद उन्हें होश आया, सबके हाथ-पांव कांपने लगे थे।
उनके पिता अब्दुल सलाम चोपान ने बताया, ‘मैंने ऐसी बिजली की घटनाएं पहले कभी नहीं देखीं।
तसलीमा और उनका परिवार चोपान समुदाय से है। चोपान, गुज्जर और बकरवाल समुदाय खानाबदोश पशुपालक हैं जो साल के छह महीने कश्मीर के मैदानों में भेड़ और बकरियों को चराते हैं। ये बेहद गरीब हैं।
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं लगातार उनके प्रवास मार्गों को बाधित कर रही हैं और उन्हें पारंपरिक चारागाहों से विस्थापित कर रही हैं। इस बदल रहे प्रवास पैटर्न के कारण उनके बच्चे भी नियमित रूप से स्कूल नहीं जा पाते हैं।
जलवायु परिवर्तन से प्रेरित चरम मौसम की घटनाएं जैसे कि बिजली का चमकना और गिरना (वज्रपात) की घटनाएं उनकी आजीविका के लिए खतरा पेश कर रही हैं।
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के अनुसार, जम्मू और कश्मीर में बिजली की घटनाओं की संख्या 2019 में 65,666 से बढ़कर 2022 में 1,74,332 हो गई है। 3 वर्षों के भीतर ही 172% की वृद्धि दर्ज की गई है।
प्रशासन बिजली गिरने की घटनाओं के लिए विशेष रूप से आंकड़े नहीं रखता है। भेड़ पालन विभाग के एक अधिकारी ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि 2022-23 में प्राकृतिक आपदाओं के कारण 6,541 पशुधन की मौतें दर्ज की गईं हैं।
बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के डाइवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में बिजली गिरने की घटनाएं 1998 से 2014 के बीच लगभग 25% बढ़ गई हैं। वार्षिक बिजली रिपोर्ट 2020-2022 के अनुसार 2020 से 2022 के बीच में बिजली गिरने की घटनाओं में 34% की वृद्धि दर्ज की गई है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार 2021 में बिजली गिरने की घटनाओं के कारण भारत में 2,800 से अधिक लोगों ने जान गंवाई। 2022 में प्राकृतिक शक्तियों के कारण हुई मौतों में 35.8% मौतें बिजली गिरने की घटनाओं के कारण हुईं थीं।
विशेषज्ञों के अनुसार, कश्मीर में डेटा संग्रह और रिपोर्टिंग तंत्र की कमी का मतलब यह है कि बिजली से संबंधित घटनाओं को कम गिना जा रहा है।
पशु पालन विभाग कश्मीर, भेड़ पालन निदेशालय कश्मीर और आपदा प्रबंधन विभाग जैसे सरकारी विभाग बिजली गिरने की घटनाओं में भेड़ या बकरियों की मौतों से संबंधित कोई डेटा नहीं दे सके।
भेड़ पालन कश्मीर विभाग में सहायक पशु चिकित्सा सर्जन डॉ. खालिद ओमर ने बताया कि उनकी यूनिट अपने पर्यवेक्षकों को पशुधन की मौत के कारणों पर रिपोर्ट देती है। लेकिन यह डेटा अंतिम रिकॉर्ड्स में नहीं जाता है।
पशुधन के निरीक्षण के लिए जिम्मेदार सरकारी अधिकारी ने बताया कि उन्हें बिजली के विज्ञान के बारे में सीमित ज्ञान है। अक्सर ऐसी घटनाओं में मरने वाली भेड़ों की मौत का एक कारण बादल फटने को बताया जाता है। उन्होंने कहा, क्योंकि कश्मीरी शब्द ‘त्रथ’ या ‘नरह त्रथ’ दोनों ही बादल फटने और बिजली गिरने की घटनाओं
का वर्णन करते हैं।
मई 2022 में चोपन समुदाय के चरवाहों के ऊपर बिजली गिरने की घटना पहली बार नहीं हुई थी।
मुश्ताक अहमद चोपान ने बताया कि बिजली गिरने से 2015 में उनके पिता, चाचा और भाई बडगाम जिले के दबीपोरा गांव में बेहोश हो गए थे। ‘कुछ मिनटों के बाद सभी उठ गए, सिवाय मेरे भाई के’ कहते हुए वे भावुक हो जाते हैं।
अहमद चोपान के पिता गफ्फार चोपान बताते हैं, ‘जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने अपने बेटे को पानी देने के
लिए हाथ आगे बढ़ाया। उसके आखिरी शब्द थे, ‘मैं मर रहा हूँ’।
मुश्ताक अहमद चोपान बताते हैं कि भाई की मौत का मुआवजा मिलने में लगभग डेढ़ साल लग गए, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मुआवजा पाने के लिए उन्हें साल भर तक अपनी जेब से पैसा खर्च करना पड़ा।
खानाबदोश समुदायों की आजीविका प्रभावित
कश्मीर के खानाबदोश पशुपालकों के लिए बिजली गिरने की घटनाएं उनके व्यावसायिक जोखिमों का हिस्सा बनती जा रही हैं। 2021 में आए एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री एंड फिजिक्स के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में बिजली गिरने की आवृत्ति सदी के अंत तक 10%-25% तक बढ़ सकती है और इन घटनाओं की तीव्रता 15%-50% तक बढ़ सकती है।
एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट का सुझाव है कि पृथ्वी के तापमान में हर 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ बिजली गिरने की घटनाएं 12% बढ़ेंगी। पृथ्वी का तापमान बढ़ने के साथ जम्मू और कश्मीर विशेष रूप से बिजली गिरने, बादल फटने और अन्य चरम मौसम की घटनाओं के लिए प्रवण होगा। यह इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण है क्योंकि नमी से भरी हवा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर उठती है।
श्रीनगर के मौसम स्टेशन के निदेशक डॉ. मुख्तार अहमद द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, ‘चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि का कारण क्षेत्र में बढ़ता तापमान और पेड़ों की कटाई के कारण बना अस्थिर वातावरण है।’
अहमद बताते हैं कि बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, मौसम पूर्वानुमान और विकसित आपदा प्रबंधन रणनीतियों के कारण हाल के वर्षों में कश्मीर में भारी बारिश और बर्फबारी के कारण होने वाली मौतों की संख्या में कमी आई है। लेकिन ये सभी प्रयास इन समुदायों को बिजली गिरने के खतरे से सुरक्षित नहीं करा पाए हैं।
भारत में कई जमीनी-आधारित बिजली संबंधी घटनाओं का पता लगाने के नेटवर्क हैं जो बिजली चेतावनियों की निगरानी और प्रसारण करते हैं, साथ ही कुछ उपग्रह-आधारित प्रणालियाँ भी हैं। ये नेटवर्क भारतीय मौसम विभाग, अंतरिक्ष विभाग और भारतीय वायु सेना जैसे संगठनों द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं।
मौसम विभाग के श्रीनगर स्टेशन के एक वरिष्ठ मौसम विज्ञानी मोहम्मद हुसैनी मीर ने बताया कि रडार से मिलने वाली जानकारी यह बताती है कि किस क्षेत्र में बिजली गिरने की संभावना है। विभाग चेतावनियाँ जारी करता है, लेकिन इन चेतावनियों पर कार्रवाई करना राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल की जिम्मेदारी है। हर जिले और ब्लॉक स्तर पर उनकी टीमें हैं, हम एक विशेष क्षेत्र को सूचित करते हैं और सभी मोबाइल फोन स्वतः ही एक चेतावनी प्राप्त करते हैं।
2022 में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान ने दामिनी नामक एक ऐप विकसित की है। यह ऐप बिजली चमकने और गिरने की घटनाओं की निगरानी करती है और लोगों को 20 किमी-40 किमी के दायरे में वैश्विक स्थिति प्रणाली-आधारित सूचनाएं एवं चेतावनियाँ प्रदान करती है।
त्रिपुरा विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर अनिर्बान गुहा बताते हैं, ‘कश्मीर और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों के मामले में भूगोल बिजली का पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पहाड़ और विविध इलाके विद्युत चुंबकीय तरंग प्रसार को प्रभावित करते हैं, जिससे बिजली की चपेट में आने की स्थिति का पता लगाना जटिल हो जाता है। बिजली की चपेट में आने की स्थिति का पता लगाने में हस्तक्षेप, विवर्तन, चरण विलंब, विद्युत क्षेत्र की प्रवणता, और ध्रुवीकरण में परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण कारक शामिल हैं।’
सेलुलर नेटवर्क की उपलब्धता के अभाव में ये चेतावनियाँ और ऐप्स किसी काम की नहीं होती हैं। इसके अलावा कई चरवाहों के पास स्मार्टफोन भी नहीं होते हैं।
तसलीमा बानो ने बताया कि सरकार के पास खराब मौसम की भविष्यवाणी करने और चेतावनियाँ भेजने की
तकनीक है लेकिन उनके परिवार के सदस्य और समुदाय के अन्य लोग पहाड़ों में रहते हैं।
बिजली की घटनाओं से बचने के उपाय
2019 में कई सरकारी एजेंसियों के समर्थन से “लाइटनिंग रेजिलिएंट इंडिया कैंपेन” शुरू करने वाले संजय श्रीवास्तव बिजली की घटनाओं से बचने के लिए खानाबदोश समुदाय के लोगों को सुझाव देते हैं कि वे बिजली गिरने की चेतावनी के दौरान शरण लेने के लिए सुरक्षित स्थानों की पहचान करें। वे पहाड़ियों के नीचे, गुफाओं में और घने जंगलों में शरण लें ये सभी प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। उन्होंने सुझाया कि बिजली के तूफान में लोग एक गोलाकार मुद्रा में बैठकर, अपने सिर को नीचे झुकाएं और कानों पर हाथों को रखकर बैठ जाएं।
इसके अलावा ये समुदाय चारकोल, मिट्टी, रेत और बांस की छड़ों जैसी स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करके मूल बिजली सुरक्षा प्रणालियों का निर्माण कर सकते हैं।
इसके उलट बेंगलुरु में बिजली का पता लगाने और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के विशेषज्ञ कुमार मार्गसहायम कहते हैं कि बिजली से सुरक्षा के उपायों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त मानकों का पालन करना चाहिए, जैसे कि इंटरनेशनल इलेक्ट्रोटेक्निकल कमीशन द्वारा तैयार किए गए मानक। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि कुछ स्थानीय स्तर के विकल्प खतरनाक भी साबित हो सकते हैं।
कश्मीर के भेड़ पालन विभाग के डॉ. खालिद ओमर बताते हैं कि सरकार पहले ही ऊंचे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और उनके जानवरों के लिए मौसमरोधी आश्रय स्थलों का निर्माण शुरू कर चुकी है। उन्होंने यह भी माना कि चरवाहों को चरम मौसम की घटनाओं से निपटने के लिए ट्रैकिंग गियर और अन्य उपकरणों से लैस करना आवश्यक है।
गांदरबल जिले के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, ‘वे इन समुदायों को बर्फीले हिमस्खलन और बिजली गिरने जैसी चरम मौसम की घटनाओं के बारे में शिक्षित करने पर केंद्रित स्वास्थ्य जागरूकता शिविरों का आयोजन करते हैं।’
जिले की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. बुशरा यूसुफ ने बताया कि उनका स्टाफ खानाबदोश समुदायों को चरम मौसम की
घटनाओं के दौरान क्या करना चाहिए, इस बारे में शिक्षित कर रहा है। साथ ही उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सरकार की ओर से आमतौर पर हिमस्खलन जैसी आपदाओं को अधिक ध्यान मिलता है।