Sunday, October 12, 2025
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संस्कृति

नवयान दर्शन की प्रासंगिकता की पड़ताल करती एक किताब

एकदम सरल, व्यवहारिक, रोचक, किंतु तर्कशील और सकारात्मक अंदाज़ में लिखी रत्नेश कातुलकर की पुस्तक नवयान दर्शन : बुद्ध की शिक्षाओं का आधुनिक विवेचन, बौद्ध धर्म से जुड़ रहे नए पाठकों को धम्म की जानकारी मिलेगी।

वाराणसी : केदार यादव के लोरिकी गायन ने श्रोताओं का मन मोहा

लोकविद्या जनांदोलन और गाँव के लोग ने लोकगायन और प्रदर्शनकारी कलाओं के प्रस्तुतिकरण की दिशा में पहला कार्यक्रम सारनाथ में आयोजित किया। कार्यक्रम शृंखला की पहली प्रस्तुति चनैनी गायक केदार यादव ने लोरिकी गाकर दी। हर महीने होने वाला यह आयोजन लोककलाओं के माध्यम से जनता से संवाद बनाने की दिशा में एक प्रयास होगा।

मनोज कुमार : किसानी, देशभक्ति और भारतीय संस्कृति के जटिल प्रश्नों पर पॉपुलर सिनेमा के कर्णधार

हिन्दी सिनेमा में साठ और सत्तर के दशक में खेती और किसानी के बढ़ते संकटों, बेरोजगारी की विकराल होती समस्या, जमाखोरी, भ्रष्टाचार, महिलाओं की असुरक्षा और भारतीय समाज में आ रहे अन्य अनेक बदलाओं को मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों में बहुत बारीकी से चित्रित किया। इस तरह मुख्यधारा के हिन्दी सिनेमा में उन्होंने उन विषयों को अपने स्तर पर बरतने का प्रयास किया जो लगभग पीछे छोड़ दिये जा रहे थे। एक अभिनेता और निर्देशक के रूप में मनोज कुमार ने एक लंबी पारी खेली और अनेक सफल और उल्लेखनीय फिल्में दी। हिन्दी सिनेमा में उनकी एक अलग पहचान है। उन्होंने भारतीय सामाजिक संरचना में बेशक बहुत से सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों को स्थूल रूप में देखा और चित्रित किया हो लेकिन भारतीय समाज को उन्होंने उसकी बुनियादी उत्पादकता के आधार पर देखा। खासतौर से कृषि समाजों के ऊपर बढ़ते दबावों के मद्देनज़र उनकी फिल्मों को नए सिरे से विश्लेषित किए जाने की जरूरत है। 4 अप्रैल को 87 वर्ष की अवस्था में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। इस मौके पर उन्हें याद कर रहे हैं जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक विद्याभूषण रावत।

सिनेमा : पर्दे से ज्यादा भयावह है वेश्यावृत्ति की वास्तविक दुनिया 

सन 2011 में प्रकाशित (Foundation Scalles) की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सेक्स वर्कर्स की कुल संख्या 42 मिलियन है जो मुख्य रूप से सेंट्रल एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका में पायी जाती है। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ सेक्स वर्कर्स की वेबसाइट के अनुसार ‘विश्व में सेक्स वर्कर्स सर्वाधिक संख्या अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, तुर्की, रूस, नाइजीरिया, जर्मनी और भारत में पायी जाती है। वर्तमान में पूरी दुनिया में 52 मिलियन सेक्स वर्कर्स हैं जिनमें 41.6 मिलियन महिलायें और 10.4 मिलियन पुरुष हैं। ‘दुनिया के कई देश हैं जहाँ वेश्यावृत्ति को क़ानूनी वैधता मिली हुई है और वे सेक्स टूरिज्म के बड़े केंद्र माने जाते हैं। उन देशों की अर्थव्यवस्था में वेश्यावृत्ति का बहुत बड़ा योगदान है। इनमें न्यूजीलैंड, आस्ट्रिया, बांग्लादेश, बेल्जियम, ब्राज़ील, कनाडा, कोलम्बिया, डेनमार्क, जर्मनी, ग्रीस, नीदरलैंड, स्विटज़रलैंड, मेक्सिको, वेनेजुएला, सियरा लिओन, बोलीविया, पेरू और अन्य कई देश प्रमुख हैं’ (भट्टाचार्या, रोहित 2024)। जिन स्थानों पर वेश्यावृत्ति का धंधा होता है उन्हें कोठा, चकला, वेश्यालय, रेड लाइट एरिया, ब्रॉथेल्स आदि नामों से जाना जाता है। आज के इनफार्मेशन और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के युग में तमाम वेबसाइट/पोर्टल उपलब्ध हैं जो सेक्स वर्कर्स के बारे में सूचनाएं उपलब्ध कराते हैं। पोर्नोग्राफी वेबसाइट्स, कॉलगर्ल, पॉर्न स्टार्स, जिगोलो जैसे नाम और व्यवसाय आज की वैश्वीकृत दुनिया में जाने जाते हैं। अंतर-धार्मिक घृणा के तहत किए गए हमले और औरतों को बंधक बनाकर जबरदस्ती यौन हिंसा का शिकार बनाने की घटनाएँ दुनिया के कई क्षेत्रों में बढती जा रही हैं। सीरिया, लेबनान, जॉर्डन, अफगानिस्तान और इराक ऐसी हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित हैं जहाँ महिलाओं को वेश्यावृत्ति करने को मजबूर किया जाता है। पढ़िये जाने-माने कवि-कथाकार राकेश कबीर का विचारोत्तेजक आलेख।  

फिल्मों में वैसे ही जाति-गौरव बढ़ रहा है जैसे अर्थव्यवस्था और राजनीति में सवर्ण वर्चस्व

किसी जमाने में 'साहब बीवी और गुलाम' जैसी फिल्मों ने ढहते हुये सामंतवाद का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया जिससे लगता था कि अब यह बीते जमाने की बात होने वाला है। हालाँकि इसके पीछे उनकी डूबती हुई अर्थव्यवस्था सबसे प्रमुख कारण था। चीजें और स्थितियाँ तेजी से बदल रही थीं। ऐसा लगता था कि अब कमानेवाला खाएगा और लूटनेवाला जाएगा लेकिन हाल के दशकों में इसे मुड़कर देखने की जरूरत आ पड़ी है। मेहनतकश समुदायों के लिए स्थितियाँ लगातार बद से बदतर होती गई हैं। देश में मजदूर विरोधी कानून लगातार बने और अधिकारों का संघर्ष धूमिल होने लगा। इसके बरक्स राजनीति और अर्थव्यवस्था में ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ मजबूत होता गया। जातिवादी सामाजिक सोपान पर जिन जातियों को ढहते हुये सामंतवाद के साथ ध्वस्त होते जाने का अनुमान था उन्होंने अपनी सामाजिक एकता को फिर से मजबूत कर लिया और पैसे कमाने के नए-नए ढर्रों में अपने-आप को ढाल लिया। सरकारी और गैर सरकारी ठेकों और विभिन्न एजेंसियों के हासिल करने से मजबूत हुई अर्थव्यवस्था ने उन्हें राजनीतिक ताकत हासिल करने को प्रेरित किया और इस प्रकार अपराध और राजनीति का एक दबंग रूप सामने आया। ज़ाहिर है इसका असर सिनेमा में भी व्यापक रूप से हुआ और पर्दे पर जातीय दंभ और हेकड़ी की एक भाषा ही हावी होती गई। भूमंडलीकरण के बाद इसमें पर्याप्त इजाफा हुआ। प्रकाश झा, तिग्मांशु धूलिया और अनुराग कश्यप जैसे हिन्दी प्रदेश के निर्देशकों की फिल्मों में दिखाई गई जातीय प्रस्थिति, भाषा और कार्य-व्यापार चाहे जितने मौलिक और रचनात्मक बताए जा रहे हों लेकिन इनके निहितार्थों पर ठहर कर सोचना जरूरी है। जाति के मसले पर जाने-माने कवि और सिनेमा के गंभीर अध्येता राकेश कबीर के लंबे लेख की अंतिम और समापन कड़ी।

इतिहास ने दलितों को जो मौका दिया वे उसका फायदा नहीं उठा पाए…

 दलित साहित्य में आत्मकथा एक बुनियादी विधा है। अनेक दलित लेखकों ने अपनी आत्मकथाएं लिखी हैं। अधिकांश दलित लेखकों की आत्मकथाएं तो इतनी चर्चित...

याँ तक मिटे कि आप ही अपनी कसम हुये !

कभी हिंदी साहित्य और कविता में एक वाम शिविर हुआ करता था। इसके ऊपर प्रगतिशील लेखक संघ का झंडा लहराता था। समस्त साहित्य-परिक्षेत्र में...

ऊंट भी मनुष्य का मनोविज्ञान समझते हैं !

जब हम बच्चे थे तो हमारे घर में कई ऊंट थे। केवल हमारे घर में थे सो बात नहीं, सभी किसानों के घर में...

उस्लापुर की सगुना बाई

पितृसत्ता और लैंगिक भेदभाव के कारण महिला को हरदम कम ही आँका जाता है, बावजूद इसके समय आने पर और मौका मिलने पर बेहतर कर दिखाती हैं। कुली के रूप में उसलापुर में काम करने वाली सगुनाबाई की कहानी

कबीर और नागार्जुन का साहित्य प्रतिरोध करने की ताकत देता है : चौथीराम यादव

जन्मदिन पर पूरी शिद्दत के साथ याद किए गए कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन वाराणसी। गुरुवार को जनसंस्कृति मंच, दरभंगा तथा एल.सी .एस .कालेज...

सिनेमा में लोकतत्व की बाजारू नुमाइश

सिनेमा के आगमन से पहले लोगों के मनोरंजन का मुख्य साधन लोककलाएँ थीं। लोककला में नाटक, गीत-संगीत, नृत्य, अभिनय और अन्य प्रदर्शनकारी कलाएं शामिल...
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