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भिखारी ठाकुर के अथक राही, अन्वेषक, संपादक और आश्रम के संस्थापक महामंत्री रामदास
रामदास राही के जीवन का सबसे बड़ा हासिल भिखारी ठाकुर थे। उन्होंने आजीवन उनके बारे में खोज की। उनकी बिखरी रचनाओं को इकट्ठा किया, सँजोया और संपादित किया। जिससे भी मिलते उसको भिखारी ठाकुर के बारे में इतनी बातें बताते कि उसके ज्ञान में कुछ ण कुछ इजाफ़ा करते। सच तो यह है कि रामदास राही ने जीवन भर भिखारी ठाकुर की पूजा की। अगर वह थोड़े चालाक होते तो भिखारी ठाकुर के नाम पर कोई एनजीओ खड़ा करते और बड़ी गाड़ियों से चलते लेकिन उनका तो सिर्फ इतना सपना था कि किसी तरह भिखारी ठाकुर पर एक किताब और छप जाये। कल यानि 4 दिसंबर को उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया। बनारस में उनके बहुत प्रिय रहे अध्यापक और कवि दीपक शर्मा उनके यहाँ आने पर गाँव के लोग के दफ़्तर में ले आते। राही जी अद्भुत व्यक्ति थे और उनसे बात करना हमेशा सुखद रहा। उनके प्रयाण पर पेश है दीपक शर्मा का श्रद्धांजलि लेख।
अभिनेता धर्मेन्द्र के प्रयाण पर उनकी फिल्मों पर कुछ बातें
वरिष्ठ कथाकार ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास बारामासी एक परिवार के बहाने समय के बदलने की भी एक कहानी कहता है। उपन्यास के अंतिम दृश्य में गुच्चन के बेटे के कमरे का दृश्य है जिसमें धर्मेंद्र का एक पोस्टर लगाए लगा हुआ है। वह उस पोस्टर को उखाड़कर फेंक देता है और उसकी जगह एंग्री यंगमैन अमिताभ बच्चन का पोस्टर लगाता है। यह समाज के बदलते ट्रेंड का रूपक है। अब नायकों के चरित्र में व्यवस्था और उसकी संरचना के खिलाफ एक गुस्सा जरूरी है ताकि नई पीढ़ी का मानस उसके साथ तादात्म्य बैठा सके और अपने कर्मों को जायज़ बना सके। धर्मेंद्र ने सत्तर के दशक के आदर्शवादी युवाओं के चरित्र को साकार किया जिसे हम नमक का दारोगा कह सकते हैं लेकिन बदलती अर्थव्यवस्था और सत्ता तंत्र ने अलोपीदीनों की दुनिया में नमक के दरोगाओं को पचा लिया और हर तरह के षडयंत्रों में महारत हासिल कर लिया है जिनसे लड़ने का माद्दा केवल एंग्री यंगमैन में है। ज़ाहिर है समाज और सिनेमा की अन्योन्यश्रित चेतना में धर्मेंद्र की प्रासंगिकता खत्म हो गई थी। पढ़िये अभिनेता धर्मेंद्र को श्रद्धांजलि देते हुये कवि और सिनेमा के अध्येता राकेश कबीर का यह लेख।
जुबीन गर्ग : लोक का दुलारा और अपना कलाकार जिसे भूल पाना असंभव है
जुबीन गर्ग को गए हुए 23 दिन बीत गए हैं। आज भी आसाम के किसी भी हिस्से में चले जाइए, हर तरफ़ बस जुबीन ही मौजूद हैं। उनकी याद में तमाम कार्यक्रम हो रहे हैं और उनको श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। सोनापुर में उनकी समाधि पर कामाख्या मंदिर के बाद सबसे ज़्यादा लोग इकट्ठा हो रहे हैं और मुझे लगता है कि कुछ महीनों में ही यह एक तीर्थस्थल जैसा बन जाएगा। सचमुच यह प्यार, यह भावना अकल्पनीय है और नेपाल, भूटान तथा बांग्लादेश में भी लोग दर्द में डूबे हुए हैं। हम लोगों ने उनकी याद में पासीघाट, अरुणाचल प्रदेश, में भी पेड़ लगाए और वहाँ के लोगों ने इसमें बढ़कर भाग लिया। स्थानीय लोग तो मानते ही नहीं हैं कि ऐसा हुआ है, कहीं कहीं पोस्टर पर उनकी जन्मतिथि तो लिखी है लेकिन उसके बाद अंतिम तिथि की जगह हमेशा के लिए लिखा है। पढ़िये गुवाहटी से विनय कुमार का आँखों देखा हाल ..
नवयान दर्शन की प्रासंगिकता की पड़ताल करती एक किताब
एकदम सरल, व्यवहारिक, रोचक, किंतु तर्कशील और सकारात्मक अंदाज़ में लिखी रत्नेश कातुलकर की पुस्तक नवयान दर्शन : बुद्ध की शिक्षाओं का आधुनिक विवेचन, बौद्ध धर्म से जुड़ रहे नए पाठकों को धम्म की जानकारी मिलेगी।
वाराणसी : केदार यादव के लोरिकी गायन ने श्रोताओं का मन मोहा
लोकविद्या जनांदोलन और गाँव के लोग ने लोकगायन और प्रदर्शनकारी कलाओं के प्रस्तुतिकरण की दिशा में पहला कार्यक्रम सारनाथ में आयोजित किया। कार्यक्रम शृंखला की पहली प्रस्तुति चनैनी गायक केदार यादव ने लोरिकी गाकर दी। हर महीने होने वाला यह आयोजन लोककलाओं के माध्यम से जनता से संवाद बनाने की दिशा में एक प्रयास होगा।
सिस्टम के डंके ने बजते ही पोल खोलने की दी गारंटी
मोदी सरकार की गारंटी का डंका इतना बज रहा है कि लगातार उन पर परोक्ष हमले जारी हैं, चाहे किसान आंदोलन हो, एलेक्टरोल बॉन्ड पर कोर्ट का फैसला हो, चंडीगढ़ का मेयर चुनाव के फैसले पर बाजी पलटी हो, या फिर गूगल के आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस टूल जैमिनी हो, जिसने मोदी के फासीवादी होने के सवाल का जवाब दिया..सभी जगह उनकी पोल खोलते हुए डंका बज रहा है
मशहूर शायर मुनव्वर राणा के निधन से देश भर में शोक
उर्दू शायरी की दुनिया के प्रतिष्ठित और बड़े नाम मुनव्वर राणा के निधन से शायरी की दुनिया की एक जगह खाली हो गई।
चंबल का एक फकीर कवि
सद्दीक अली बेहद ज़िंदादिल इन्सान हैं। जब तक उनके जीवन के बारे में गहराई से न जाना जाय तब तक लगेगा कि यह जिंदादिली उनकी ज़िंदगी के सुखों से पैदा हुई है। लेकिन वास्तव में यह उनके कठिन दिनों और संघर्षों से जन्मी है जिसने उन्हें हर आघात से उबरने की कूबत दी है। सद्दीक अली को स्थानीय स्तर पर सभी लोग जानते हैं क्योंकि वह जगम्मनपुर क्षेत्र के सभी सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में न केवल बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी करते हैं बल्कि पूरा सहयोग भी करते हैं। उनके दोहों, कविताओं, गज़लों को लोग बेहद शौक से सुनते हैं। स्थानीय साथियों ने उनका यूट्यूब चैनल भी बनाया है।
ये अमृत काल की अमृत संसद है प्यारे
प्राब्लम यह नहीं है कि महुआ मोइत्रा की संसद की सदस्यता चली गयी है। प्राब्लम यह है कि महुआ मोइत्रा और वास्तव में सारे...
भावनाओं को केंद्र में रखकर लिखे गए उपन्यास हर भाषा के पाठक को प्रभावित करते हैं : पेरूमल मुरुगन
नई दिल्ली भाषा। अपने उपन्यासों में सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करने वाले प्रसिद्ध तमिल साहित्यकार पेरूमल मुरुगन का कहना है कि वह विभिन्न लेखन...
मनुष्यता बचाने के लिए हमें थोड़ा आदिवासी होना होगा
ढाई आखर प्रेम यात्रा इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ की पहलकदमी अन्य स्थानीय सांस्कृतिक संगठनों के सहयोग से शुरू की गई जिसका उद्देश्य लोगों...

