Sunday, December 28, 2025
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भिखारी ठाकुर के अथक राही, अन्वेषक, संपादक और आश्रम के संस्थापक महामंत्री रामदास   

रामदास राही के जीवन का सबसे बड़ा हासिल भिखारी ठाकुर थे। उन्होंने आजीवन उनके बारे में खोज की। उनकी बिखरी रचनाओं को इकट्ठा किया, सँजोया और संपादित किया। जिससे भी मिलते उसको भिखारी ठाकुर के बारे में इतनी बातें बताते कि उसके ज्ञान में कुछ ण कुछ इजाफ़ा करते। सच तो यह है कि रामदास राही ने जीवन भर भिखारी ठाकुर की पूजा की। अगर वह थोड़े चालाक होते तो भिखारी ठाकुर के नाम पर कोई एनजीओ खड़ा करते और बड़ी गाड़ियों से चलते लेकिन उनका तो सिर्फ इतना सपना था कि किसी तरह भिखारी ठाकुर पर एक किताब और छप जाये। कल यानि 4 दिसंबर को उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया। बनारस में उनके बहुत प्रिय रहे अध्यापक और कवि दीपक शर्मा उनके यहाँ आने पर गाँव के लोग के दफ़्तर में ले आते। राही जी अद्भुत व्यक्ति थे और उनसे बात करना हमेशा सुखद रहा। उनके प्रयाण पर पेश है दीपक शर्मा का श्रद्धांजलि लेख।

अभिनेता धर्मेन्द्र के प्रयाण पर उनकी फिल्मों पर कुछ बातें

वरिष्ठ कथाकार ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास बारामासी एक परिवार के बहाने समय के बदलने की भी एक कहानी कहता है। उपन्यास के अंतिम दृश्य में गुच्चन के बेटे के कमरे का दृश्य है जिसमें धर्मेंद्र का एक पोस्टर लगाए लगा हुआ है। वह उस पोस्टर को उखाड़कर फेंक देता है और उसकी जगह एंग्री यंगमैन अमिताभ बच्चन का पोस्टर लगाता है। यह समाज के बदलते ट्रेंड का रूपक है। अब नायकों के चरित्र में व्यवस्था और उसकी संरचना के खिलाफ एक गुस्सा जरूरी है ताकि नई पीढ़ी का मानस उसके साथ तादात्म्य बैठा सके और अपने कर्मों को जायज़ बना सके। धर्मेंद्र ने सत्तर के दशक के आदर्शवादी युवाओं के चरित्र को साकार किया जिसे हम नमक का दारोगा कह सकते हैं लेकिन बदलती अर्थव्यवस्था और सत्ता तंत्र ने अलोपीदीनों की दुनिया में नमक के दरोगाओं को पचा लिया और हर तरह के षडयंत्रों में महारत हासिल कर लिया है जिनसे लड़ने का माद्दा केवल एंग्री यंगमैन में है। ज़ाहिर है समाज और सिनेमा की अन्योन्यश्रित चेतना में धर्मेंद्र की प्रासंगिकता खत्म हो गई थी। पढ़िये अभिनेता धर्मेंद्र को श्रद्धांजलि देते हुये कवि और सिनेमा के अध्येता राकेश कबीर का यह लेख।

जुबीन गर्ग : लोक का दुलारा और अपना कलाकार जिसे भूल पाना असंभव है

जुबीन गर्ग को गए हुए 23 दिन बीत गए हैं। आज भी आसाम के किसी भी हिस्से में चले जाइए, हर तरफ़ बस जुबीन ही मौजूद हैं। उनकी याद में तमाम कार्यक्रम हो रहे हैं और उनको श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। सोनापुर में उनकी समाधि पर कामाख्या मंदिर के बाद सबसे ज़्यादा लोग इकट्ठा हो रहे हैं और मुझे लगता है कि कुछ महीनों में ही यह एक तीर्थस्थल जैसा बन जाएगा। सचमुच यह प्यार, यह भावना अकल्पनीय है और नेपाल, भूटान तथा बांग्लादेश में भी लोग दर्द में डूबे हुए हैं। हम लोगों ने उनकी याद में पासीघाट, अरुणाचल प्रदेश, में भी पेड़ लगाए और वहाँ के लोगों ने इसमें बढ़कर भाग लिया। स्थानीय लोग तो मानते ही नहीं हैं कि ऐसा हुआ है, कहीं कहीं पोस्टर पर उनकी जन्मतिथि तो लिखी है लेकिन उसके बाद अंतिम तिथि की जगह हमेशा के लिए लिखा है। पढ़िये गुवाहटी से विनय कुमार का आँखों देखा हाल ..

नवयान दर्शन की प्रासंगिकता की पड़ताल करती एक किताब

एकदम सरल, व्यवहारिक, रोचक, किंतु तर्कशील और सकारात्मक अंदाज़ में लिखी रत्नेश कातुलकर की पुस्तक नवयान दर्शन : बुद्ध की शिक्षाओं का आधुनिक विवेचन, बौद्ध धर्म से जुड़ रहे नए पाठकों को धम्म की जानकारी मिलेगी।

वाराणसी : केदार यादव के लोरिकी गायन ने श्रोताओं का मन मोहा

लोकविद्या जनांदोलन और गाँव के लोग ने लोकगायन और प्रदर्शनकारी कलाओं के प्रस्तुतिकरण की दिशा में पहला कार्यक्रम सारनाथ में आयोजित किया। कार्यक्रम शृंखला की पहली प्रस्तुति चनैनी गायक केदार यादव ने लोरिकी गाकर दी। हर महीने होने वाला यह आयोजन लोककलाओं के माध्यम से जनता से संवाद बनाने की दिशा में एक प्रयास होगा।

जनमित्र अवार्ड से सम्मानित हुये कवि-पत्रकार मुकुल सरल

'आज की दुनिया अभिव्यक्ति के भयंकर संकट से गुजर रही है। पूरी दुनिया में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राजनेताओं और दब्बू मीडिया मालिकों के निशाने...

तमिल साहित्यकार पेरूमल मुरूगन की ‘फायर बर्ड’ को मिला जेसीबी प्राइज फॉर लिटरेचर पुरस्कार

नई दिल्ली।  किसानों, कृषि संकट और प्रवास की पीड़ा पर आधारित तमिल विद्वान और साहित्यकार पेरूमल मुरूगन की कृति फायर बर्ड को शनिवार को...

अब लंदन में भी सजेगी जश्न -ए -रेख्ता की महफ़िल

लंदन (भाषा)।  नयी दिल्ली में आठ वर्ष से निरंतर आयोजित किये जा रहे विश्व के सबसे बड़े उर्दू महोत्सवों में शामिल जश्न-ए-रेख़्ता की यहां...

स्मृति दिवस पर याद किए गए जनकवि बाबा नागार्जुन

दरभंगा। 'नागार्जुन को याद करने का मतलब है भारतीय क्रांति का जो साहित्यिक–सांस्कृतिक अक्स है, उसको याद करना। नागार्जुन सर्वहारा वर्ग की मुक्ति के...

नई पीढ़ी को प्रेरणा देगी अमित धर्मसिंह की आत्मकथा 

डॉ. अमित धर्मसिंह की काव्यमय आत्मकथा हमारे गांव में हमारा क्या है! पर नदलेस ने की परिचर्चा गोष्ठी दिल्ली। नव दलित लेखक संघ द्वारा आयोजित...

सोनभद्र के शिवेंद्र और शिवेंद्र का सोनभद्र : सोनभद्र यात्रा – 4

राही मासूम रज़ा के गाजीपुर और रुद्र काशिकेय से लेकर शिवप्रसाद सिंह, काशीनाथ सिंह और अब्दुल बिस्मिल्लाह के 'बनारसों' की तरह शिवेंद्र का अपना सोनभद्र है जिसका धूसर हरियाला सौन्दर्य और अपनी ही आबादी को न समेट पाने और बहुस्तरीय विस्थापन के शिकार होते लोगों की वंचना, उत्पीड़न और प्रतिरोध की लोमहर्षक कथाओं और उपकथाओं का अपरिमित आगार भी है। इनमें से बहुत सी चीजों को शिवेंद्र ने पकड़ा है और मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि वे सफल हुये हों या न हुये हों, यह एक साहित्यिक सवाल है, लेकिन उनकी जो कथात्मक रेंज है वह आश्चर्यचकित करती है।
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