यह प्लेटफार्म का दृश्य था। प्रवासी श्रमिकों से प्लेटफार्म भरा था। ट्रैन को जहां जिन स्टेशनों पर पहुँचना था, वे वहाँ न पहुँच कर किसी दूसरे स्टेशन पर पहुँच रहीं थीं। अगर साफ शब्दों में कहा जाए तो टैने रास्ता भटक गईं थीं। ऐसे माहौल में मजदूर बदहवास से उधर-उधर भाग-दौड़ कर रहे थे। इसी भाग-दौड़ के बीच प्लेटफार्म के छोटे से टुकड़े पर…
‘माई! ए माई!’कहकर बार बार वह अपनी माँ की साड़ी को खींच रहा था। यह चार साल का बच्चा था।
‘ना जगा! सोये दे!’उसके बड़े भाई ने टोका। जो उससे बामुश्किल तीन साल बड़ा होगा। मगर छोटे भाई ने उसके कहे पर कान न धरा। वह रह-रह कर अपनी मां की साड़ी को खींचता।
‘माई को काहे तंग कर रहा रे!’ बड़े भाई ने अपना बड्डपन दिखाया। लेकिन छोटे भाई पर अब भी कोई फर्क नहीं पड़ा। छोटे भाई ने एक बार फिर मां के आँचल को खींचा।
‘माई थकल बा! माई के सूते दा!’ बड़े भाई ने फिर कहा।
‘भूक लगल बा!’ छोटे भाई ने मरियल आवाज में मां के आँचल को पकड़ते हुए कहा ।
‘कल राती से हम हूँ कुछु नाई खइले बानी!’ उसने मां को एकबार देखा, फिर आगे बोला,’ देख! अगर माई के सूते न देबे तो खाये के कुछु न मिली!समझला!’ बड़े भाई के यह कहते ही छोटे भाई ने तुरन्त मां की साड़ी छोड़ दी। वह मां के सिरहाने बैठकर उसको टुकुर-टुकुर देखे जा रहा था।
‘देख रहे हो!’ भारत ने कहा।
‘क्या!’
‘उधर…उस ओर!’ भारत ने बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा। भारत का यही काम था कि इंडिया आये तो उसकी आगवानी करें और जाए तो उसे सी ऑफ करने यानी छोड़ने जाये। फिलहाल यहां भारत इंडिया को सी ऑफ करने आया था। (हिंदी का छोड़ना शब्द अपने अर्थवत्ता को लेकर यहां पिट जाता है। भारत क्या खा कर इंडिया को छोड़ेगा!)
‘यस! यस!’ थोड़ी देर देखने के बाद इंडिया बोला,’बच्चे अपनी ऐज से काफी मैच्यौर दीख रहे हैं!’
‘गरीब के बच्चे जल्दी हो जाते हैं!’ भारत ने बच्चों को देखते हुए कहा। थोड़ी देर चुप रहने के बाद भारत ने इंडिया से पूछा,’तुम्हें ये बच्चे मासूम नहीं दीखते!’
यह भी पढ़ें :
‘मासूम!’
‘इनोसेंट!’ भारत ने इंडिया को मासूम का मतलब बताया।
‘ऑफकोर्स ही इज! बट बच्चों की मदर केअर लेस है, उसे अपने बच्चों की केयर करनी चाहिए। आलदो शी इज मदर!’ इंडिया ने मां की कर्तव्यहीनता को रेखांकित करते हुये कहा ।
‘बच्चों की मां कब की मर चुकी है।’ भारत ने इंडिया बताया।
‘ओह गॉड! मुझे पता नहीं चला!’ इंडिया को सरप्राइज हुआ। ‘अगर तुम नहीं बताते तो मुझे पता ही नहीं चलता!’
‘तुमको हर बात बतानी क्यों पड़ती है! तुम्हें खुद क्यों नहीं दिखता!’ भारत कुछ कुढ़ते हुए बोला।
‘रेस्ट इन पीस!’ इंडिया ने मृतका की आत्मा की शांति की कामना की।
‘वैसे,तुम बहुत दयालु हो!’ भारत इंडिया की आँखों में देखते हुए बोला।
‘दयालु!’
‘काइंड!’
‘हाउ!’
‘तुम ने उसकी आत्मा के लिए प्रार्थना की।’ भारत ने इंडिया को बताया।
तब तक इंडिया की बुलेट ट्रेन आ चुकी थी।
‘तुम इसी ट्रेन से जाओगे न!’ भारत ने इंडिया से पूछा।
‘ऐनी डाउट!’ उत्तर के बदले में भारत ने मुस्कुरा दिया।
‘बडि! ये सीन देखके…मुझे पीस ऑफ माइंड की बहुत जरूरत है! इट्स वैरी शॉकिंग! यू नो!’
‘तुम्हारी ट्रैन रास्ता भटक गई तो!’ भारत ने पूछा ।
यह सुनकर इंडिया खिलखिला कर हँसा। फिर बोला,’ आउट ऑफ क्वेश्चन! सवाल ही नहीं उठता!’ यह कहते हुए उसका चेहरा अचानक से सख्त हो गया।
सीट पर बैठते हुए मृतका के लिए इंडिया ने कहा,
‘लेडी का पोस्टमार्टम मस्ट है। आई एम क्वाइट स्योर इसकी कोरोना से डेथ हुई है और जब तक बच्चों का टेस्ट नहीं हो जाता यू मस्ट कीप अवे… उनसे दूर ही रहना! ओके!’
‘व्हाई!’ इस बार भारत ने अंग्रेजी में पूछा।
‘बिकॉज़, आई एम वरीड अबाउट यू!’
‘थोड़ा दूध होगा क्या!’
‘व्हाट!!!’
‘मिल्क!’
‘ओह!’
‘तुम्हारे पास तो होगा ही! तुम्हें किस बात की कमी!’ भारत बहुत उत्साह से बोला।
‘ कम ऑन! तुम अभी भी पीता है! काम ऑन! ग्रो अप मैन!’ इंडिया ने बैग खोल कर विस्की की बोतल दिखायी और भारत को देखकर आंख मारी। इंडिया ने जब अपनी यह विशेष भंगिमा बनाई, तो भारत कहीं और देख रहा था।
यह भी पढ़ें :
‘सेनिटाइजर है, चाहिए क्या!’ इंडिया ने यह पूछते हुए विस्की के बगल में रखी सेनिटाइजर की शीशी खोलकर अपने हाथों को सेनेटाइज किया।
इंडिया अपनी ट्रैन में बैठा और पलक झपकते ही नजरों से ओझल हो गया। भारत वहीं रह गया।
उसने देखा, छोटा वाला लड़का मां की छाती में अपना मुँह लगाए हुए था। उसके ढलके स्तनों को झिंझोर रहा था। दूध न उतरने की वजह से वह चिड़चिड़ा रहा था और बड़ा लड़का ‘माई!माई!’ कहकर रोये जा रहा था… बड़े लड़के ने मदद के लिये इधर-उधर देखा। उसे पास खड़ा भारत ही नजर आया। उसने फौरन भारत की बांह पकड़ ली और झकझोरते हुए पूछा,’माई उठती नहीं! काहे!’
सहसा भारत के कानों में इंडिया का कहा गया
जुमला गूंजा,’आउट ऑफ क्वेस्चन! सवाल ही नहीं उठता! ‘
अनूप मणि त्रिपाठी चर्चित व्यंग्यकार हैं । शो रूम में जननायक और अस मानुस की जात उनकी बेस्ट सेलर किताबें हैं । लखनऊ में रहते हैं ।
[…] भटकाव […]