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ग्राउंड रिपोर्ट

आंबेडकरी आरक्षण को ख़त्म करने की कोशिश में लगे मोदी अवतारी पुरुष कहलाने के हकदार हैं?

सदियों से गुलामी और पिछड़ेपन की शिकार रही दलित और पिछड़ी जातियों को आंबेडकरी आरक्षण से कुछ लाभ हुआ लेकिन मोदी ने आते ही आरक्षण पर कैची चलाना शुरू कर दिया। ऐसे में कुछ लोग मोदी को अवतारी पुरुष कहने लगे जिस पर बड़ा प्रश्न खड़ा होता है।

अठारहवीं लोकसभा का चुनाव समापन की ओर अग्रसर है। यह चुनाव जिन एकाधिक कारणों से हमेशा याद किया जाएगा, उनमें प्रमुख रहा कांग्रेस का घोषणापत्र। इससे पार पाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों के खिलाफ हेट पॉलिटिक्स को जो अभूतपूर्व ऊंचाई दी, उसे लोग कभी नहीं भूल सकते। यही नहीं इस चुनाव में नरेंद्र मोदी को भगवान का अवतार साबित करने का जो प्रयास हुआ, वह तो शायद विश्व इतिहास की अनोखी घटनाओं में शुमार हो जाएगा। इस मामले में पूरी लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार संबित पात्रा ने यह कहकर सारी हदें ही तोड़ दी कि भगवान जगन्नाथ मोदी के भक्त हैं। इसकी भर्त्सना होने के बाद पात्रा ने तो माफी मांगते हुए अपने बयान वापस ले लिए, किन्तु ढेरों ऐसे नेता हैं, जिन्होंने उनसे मिलते-जुलते बयान दिए पर, जगहँसाई होने के बावजूद न तो अपने शब्द वापस लिए और न ही ग्लानिबोध जाहिर किए।

कुछ दिन पहले हिमाचल प्रदेश के मंडी लोकसभा से भाजपा की प्रत्याशी कंगना रनौत ने मोदी को भगवान विष्णु और श्रीराम का अवतार बताते हुए कह दिया है, ‘नरेंद्र मोदी साक्षात् श्रीराम का अंश हैं। उनमें वही संयम, त्याग, परिश्रम, करुणा, क्षमा का भाव देखने को मिलता है। सभी को उनके लिए लड़ना चाहिए।’ मोदी जैसे गोधरा कांड के बदनाम  व्यक्ति में राम जैसा क्षमा, करुणा, त्याग इत्यादि का गुण बताना सच्चे राम भक्तों को आहत करने वाली बात थी, पर, कंगना इससे बेपरवाह रही। कंगना से बहुत पहले रामजन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने मोदी को ‘विष्णु का अवतार’ बता कर दुनिया को चौंका दिया था। लेकिन मोदी को विष्णु, राम इत्यादि का अवतार बताने वाले कंगना, चंपत राय, अमित शाह जैसे गिने-चुने विशिष्ट लोग ही नहीं, आम से खास माने जाने वाले ढेरों लोग भी हैं। हिन्दू उन्हें किस हद तक अवतारी पुरुष मानते हैं, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पाठक नामक उनका एक हमशक्ल भक्त 100 लोगों की टीम बनाकर उन्हें भगवान का अवतार बताते हुए उनके संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार कर रहा है। ढेरों लोगों द्वारा उन्हें अवतारी पुरुष बताए जाने के बाद मोदी में खुद यह भाव जागृत हो चुका है कि वह अवतारी पुरुष हैं और ईश्वर ने उन्हें किसी बड़े मकसद से धरती पर भेजा है।

क्यों लोग मोदी में अवतारी पुरुष की छवि देखते हैं?

बहरहाल, क्यों ढेरों लोग मोदी में अवतारी पुरुष की छवि देखते हैं, उसका उत्तर केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के इस  बयान में है। उन्होंने बहुत पहले उनकी तुलना अवतारी पुरुष से करते हुए कहा था, ‘जैसे पहले अत्याचार बढ़ने पर भगवान किसी न किसी रूप में जन्म लेते थे, वैसे ही फिर त्रेता युग की स्थापना कर नरेंद्र मोदी अवतरित पुरुष हुए हैं।’ मोदी को अवतारी पुरुष घोषित करने के पीछे  गिरिराज सिंह ने सही कारण की पहचान की है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में अवतार के पीछे के कारणों को चिन्हित  करते हुए कहा गया है, ’जब-जब धर्म की हानि होती है, जब-जब पृथ्वी पर संकट आता है भगवान किसी न किसी शरीर के माध्यम से अवतार लेकर उस संकट को दूर करते हैं।’

हिन्दू धर्म में ब्राह्मणों का धर्म रहा अध्ययन-अध्यापन, पौरोहित्य एवं राज्य-संचालन में मंत्रणा-दान; क्षत्रिय का धर्म सैन्य कार्य, भूस्वामित्व की देख–रेख एवं राज्यसंचालन, जबकि वैश्यों का धर्म/कर्म रहा पशुपालन एवं कृषि कार्य तथा व्यवसाय- वाणिज्य। हिन्दू धर्म में शुद्रातिशूद्रों का धर्म रहा तीन उच्चतर वर्णों की सेवा, वह भी पारिश्रमिक रहित। हजारों साल से दलित, आदिवासी और पिछड़ों से युक्त शुद्रातिशूद्रों के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए निर्दिष्ट कर्म अपनाना ही हिन्दू धर्म में ‘अधर्म’ रहा है। इसी अधर्म से धर्म को बचाने के लिए राज्य की स्थपना हुई।

अब यदि अर्थशास्त्र के नजरिए से हिन्दू धर्म का अध्ययन किया जाए तो साफ दिखेगा कि यह शक्ति के स्रोतों–आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक–के बंटवारे का धर्म रहा, जिसमें कर्म–शुद्धता की अनिवार्यता और कर्म-संकरता की निषेधाज्ञा के फलस्वरूप शक्ति के समस्त स्रोत चिरकाल के लिए सवर्णों के लिए आरक्षित होकर रह गए और हिन्दू धर्म एक आरक्षण व्यवस्था का रूप ले लिया, जिसे हिन्दू-आरक्षण कहते हैं।

मार्क्स ने जिस वर्ग-संघर्ष की बात कही है, भारत में वह आरक्षण पर संघर्ष के रूप में क्रियाशील रहा। हिन्दू आरक्षण का सुविधाभोगी वर्ग: सवर्ण जहां हिन्दू आरक्षण को अटूट रखने में सर्वशक्ति लगाते रहे, वहीं मूलनिवासी शुद्रातिशूद्र हिन्दू आरक्षण को ध्वस्त कर इसमें अपनी हिस्सेदारी के लिए संघर्षरत रहे। सदियों से रक्षस, दास, चांडाल इत्यादि मूलनिवासियों का हिन्दू धर्म के खिलाफ संघर्ष है, वह मूलतः हिन्दू आरक्षण को ध्वस्त करने का संघर्ष है, जिसमें उत्पादन के समस्त साधन/ स्रोत सवर्णों के लिए आरक्षित रहे। सदियों के संघर्ष के बाद अंततः बाबा साहब डॉ. आंबेडकर के ऐतिहासिक संघर्षों के फलस्वरूप हिन्दू–आरक्षण का दुर्ग ध्वस्त हुआ।

आंबेडकरी आरक्षण किसका भला हुआ 

हिन्दू आरक्षण को ध्वस्त कर जो आंबेडकरी आरक्षण वजूद में आया, उसका सबसे पहले लाभ हिन्दू धर्म द्वारा मानवेतर की श्रेणी में पहुचाए गए अस्पृश्य और आदिवासियों को मिला। आंबेडकरी आरक्षण की प्रभावकारिता का इल्म हिन्दू धर्म के ठेकेदार बने संघियों को शुरू से ही हो गया था, इसलिए पूना पैक्ट के जमाने से संघ आरक्षण के खात्मे में जुट गया। बाद में जब भारत के संविधान में आरक्षण की स्थायी व्यवस्था हुई, संघ आरक्षण के साथ–साथ इसका प्रावधान करने वाले संविधान के खात्मे में जुट गया। पूना पैक्ट के जमाने से संघ आरक्षण के खात्मे में इसलिए जुट गया, क्योंकि इसके जरिए दुनिया के सबसे अधिकारविहीन समुदाय: अस्पृश्य और आदिवासी आरक्षण के सहारे सांसद-विधायक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, आईएएस, आईपीएस बनकर हिन्दू धर्म- शास्त्र और भगवानों को भ्रांत साबित करने लगे। क्योंकि आंबेडकरी आरक्षण के फलस्वरूप दुनिया के सबसे अधिकारविहीन लोगों को वह सब पेशे/कर्म अपनाने का अवसर मिलने लगा जो हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे सवर्णों के लिए सुनिश्चित रहे। इस तरह देखा जाए तो हजारों साल के इतिहास में सनातनियों के धर्म को सबसे बड़ी चुनौती संविधान और आरक्षण से मिली। आरक्षण और संविधान हिन्दू धर्म पर सबसे बड़ा हमला था। इसलिए पूना पैक्ट उत्तर काल में संघ की समस्त गतिविधियों का एकमात्र लक्ष्य संविधान और आरक्षण का खात्मा तथा शक्ति के समस्त स्रोत सवर्णों के हाथ में देना था। बहरहाल, पूना पैक्ट के जमाने से आरक्षण के खात्मे की ताक में लगा संघ को अवसर तब मिला जब 27 अगस्त, 1990 को मंडलवादी आरक्षण की घोषणा हुई।

मंडलवादी आरक्षण से हुई क्षति की भरपाई में जुटे हैं मोदी 

मंडलवादी आरक्षण ने परम्परागत सुविधाभोगी वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत अवसरों से वंचित एवं राजनीतिक रूप से लाचार समूह में तब्दील कर दिया। इसीलिए इसकी  घोषणा होते ही हिन्दू आरक्षण के सुविधाभोगी वर्ग के छात्र व उनके अभिभावक, लेखक- पत्रकार, साधु- संत और धन्नासेठों के साथ उनके राजनीतिक दल भी सर्वशक्ति से कमर कस लिए। इसी मकसद से भाजपा के आडवाणी ने रामजन्मभूमि–मुक्ति का आन्दोलन छेड़ दिया, जिसकी जोर से भाजपा एकाधिक बार सत्ता में आई और आज अप्रतिरोध्य बन चुकी है। बहरहाल, मंडलवादी आरक्षण से सवर्णों को हुई क्षति की भरपाई ही दरअसल मंडल उत्तरकाल में भाजपा की सभी गतिविधियों का प्रधान लक्ष्य रहा। इस लक्ष्य की पूर्ति में संघ प्रशिक्षित अटल बिहारी वाजपेयी ने भी महत्वपूर्ण काम किया, किन्तु इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाजपेयी को भी बौना बना दिया।

इनके ही शासन काल में पिछले दस सालों में मंडल से सवर्णों को क्षति की कल्पनातीत रूप से भरपाई हुई है। जिसका परिणाम यह हुआ कि न्यायिक सेवा, शासन-प्रशासन,उद्योग-व्यापार, फिल्म-मीडिया,धर्म और ज्ञान क्षेत्र शक्ति के समस्त स्रोतों सावर्णों का औसतन 80-90 प्रतिशत कब्जा हो गया है। सवर्णों जैसा दबदबा आज की तारीख में दुनिया में कहीं भी किसी समुदाय विशेष का नहीं है। आंबेडकरी आरक्षण से हिन्दू–धर्म को जो हानि हुई थी, मोदी ने उसका काफी हद तक भरपाई कर दी। जिस दिन वह संविधान में मनोनुकूल बदलाव तथा आरक्षण को पूरी तरह कागजों की शोभा बना देंगे, उनका हिन्दू धर्म के पुनरुद्धार का लक्ष्य पूरा हो जाएगा। इसीलिए वह 400 पार की घोषणा किए हैं और हिन्दू धर्म का सुविधाभोगी वर्ग तन-मन-धन से उनका साथ भी दे रहा है। इसीलिए उच्च वर्ण समुदायों में जन्मे संबित पात्रा, कंगना रनौत, अमित शाह जैसे चर्चित लोगों से लेकर के आम नेता- अभिनेता-कलाकार  उनकी छवि भगवान के रूप में स्थापित करने में मुस्तैद हो गए है, जो गलत भी नहीं है, क्योंकि मोदी इसके हकदार हैं। अगर वह संविधान को बदलने और आरक्षण को कागजों की शोभा बनाने में सफल हो जाते हैं, तो हिन्दू धर्म का सुविधाभोगी वर्ग जगह-जगह उनके नाम पर मंदिर बना कर उनको पूजना शुरू भी कर देगा।

एच एल दुसाध
एच एल दुसाध
लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

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