डॉ सुनील सहस्रबुद्धे भारत के जाने-माने दार्शनिक-बुद्धिजीवी और सामाजिक चिंतक हैं। जिन दिनों वह आईआईटी कानपुर के छात्र थे उन्हीं दिनों से भारत के विभिन्न सामाजिक और किसान आंदोलनों में उनकी भागीदारी तीव्र होने लगी और तब से लगातार वह सामाजिक क्षेत्र में मुखर रहे हैं। डॉ सुनील सहस्रबुद्धे भारत के बहुजन समाजों की संस्कृति, इतिहास और अस्मिता को लेकर सोचते-विचारते रहे हैं। उनका मानना है कि भारत वास्तव में बहुजनों का है जिसे समय-समय पर प्रभावी होनेवाली ताकतों ने हड़प लिया और उन्हें हाशिये पर धकेल दिया। भारत की समस्त जनउपयोगी विद्याओं का आविष्कार और विकास बहुजनों ने किया। चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कृषि, स्थापत्य और संस्कृति सभी कुछ बहुजनों की ऐतिहासिक उपलब्धियां हैं और उन्हें लोकविद्या जनांदोलन के माध्यम से ही पुनः हासिल किया जा सकता है। रामजनम के साथ बातचीत में उन्होंने बेबाकी से इन पहलुओं पर चर्चा की है।
बहुजन समाज को फिर से अपनी चेतना, नैतिक बल के जरिए देश को नया का रास्ता दिखलाना होगा – डॉ सुनील सहस्रबुद्धे
डॉ सुनील सहस्रबुद्धे भारत के जाने-माने दार्शनिक-बुद्धिजीवी और सामाजिक चिंतक हैं। जिन दिनों वह आईआईटी कानपुर के छात्र थे उन्हीं दिनों से भारत के विभिन्न सामाजिक और किसान आंदोलनों में उनकी भागीदारी तीव्र होने लगी और तब से लगातार वह सामाजिक क्षेत्र में मुखर रहे हैं। डॉ सुनील सहस्रबुद्धे भारत के बहुजन समाजों की संस्कृति, […]