बनारस जिले में गंगा खतरे के निशान के ऊपर पहुँच रही है। शहर के बहुत से घाट डूब रहे हैं लेकिन शहर के जनजीवन को कोई खतरा नहीं है। खतरा देहात के लोगों पर है। खेतों में पानी भर गया और निचले खेतों की फसलें डूब गई हैं। किनारे के गाँवों के पास गुजरने पर कई तरह के दृश्य सामने आए जिनकी वजह से लोगों के जीवन में आई इस आपदा को साफ महसूस की जा सकती है।
खेतों में डूबती फसल को देखते हुये किसानों ने चरनेवाले पशुओं को उनमें हांक दिया है। बाढ़ के बाद पशुओं के चारे की भारी किल्लत हो जाती है जिसको देखते खेतों में डूब रहे ज्वार-बाजरा, मूंग-उड़द आदि को किसान यथासंभव काट कर घर पहुंचा रहे हैं। बहुत से खेतों में डूबते लौकी, कद्दू आदि को यथासंभव निकालने का काम चल रहा है। देहातों से गुजरने वाली कई सड़कों के किनारे ऐसे किसान टोकरों में सब्जियाँ रखे ग्राहक का इंतज़ार कर रहे हैं और यथासंभव सस्ते दाम पर निकाल दे रहे हैं।
निचले इलाकों की झोंपड़ियाँ और मकान डूबने लगे हैं इसलिए लोगों ने वहाँ की गृहस्थी निकाल ली है और ऊंचाई पर तम्बू आदि बनाकर रह रहे हैं। आसमान में काले बादल छाए हैं और रह-रहकर तेज हवा चल रही है। कई इलाकों में हल्की और कई इलाकों में तेज बारिश हो रही है।
करसड़ा की मुसहर बस्ती पूरी तरह जलमग्न हो चुकी है। यह बस्ती नाले के किनारे बसा दी गई थी जहां ऊपर हाई टेंशन का तार गुजरता है और मुसहर बस्ती के लोगों ने बताया कि हमें लगातार झनझनाहट महसूस होती है। हमने कई बार अधिकारियों से शिकायत की लेकिन किसी ने सुना ही नहीं। न ही उनकी वह बात सुनी गई कि वे नाले के किनारे होने के कारण हमेशा डूबने की स्थिति में रहेंगे।
यहाँ तेरह परिवार रहते हैं। अपने घर डूबने से सभी के सभी बंधे पर बनी सड़क पर तम्बू लगाकर रह रहे हैं। इस बंधे के उत्तर सीपेट नमक पेट्रोलियम कंपनी है और उसके बगल में अटल आवासीय विद्यालय है। आज जहां अटल आवासीय विद्यालय है वहीं से इन मुसहर परिवारों को जबरन उजाड़ दिया गया था। इसके बाद इनके संघर्ष के चलते नाले के पास उनको ज़मीन दी गई। यह भी एक जबरन कार्रवाई थी जिसके कारण नाले और हाई टेंशन तार के संभावित खतरों की उनकी आशंका को दरकिनार कर दिया गया।
गौरतलब है कि इन मुसहर परिवारों के पास आजीविका का कोई ठोस बंदोबस्त नहीं है। वे मजदूरी करते हैं और उनके बच्चे भी अनिश्चित भविष्य की राह पर हैं। उनकी शिक्षा का कोई प्रबंध नहीं है। बातचीत से पता चला कि मुसहर परिवारों के बच्चों का नामांकन होता है लेकिन अधिकतर स्कूल में उपेक्षा के शिकार होते हैं और जल्दी ही उनकी शिक्षा खत्म हो जाती है।
बाढ़ में डूबे घरों की छत से कुछ बच्चे झाँकते हुये मिले। वे डूबे हुये मकानों और खेतों को देख रहे थे। घरों के डूब जाने से लोगों ने बंधे को विकल्प बना लिया था और वहीं झोंपड़ी बनाकर गृहस्थी जमा ली थी। बड़े घरों में रहने वाले लोगों के लिए यह माहौल अझेल लगेगा लेकिन इन्हीं झोंपड़ियों में पाँच-छः लोगों का एक परिवार रहता है।
बाढ़ में इनके घर डूब जाने के बाद उनको किसी भी तरह की कोई सहायता नहीं मिली अलबत्ता ग्राम प्रधान महेंद्र ने बंधे की सड़क पर एक कीटनाशक पाउडर जरूर छिड़कवाया है। यह सक्रियता इसलिए है ताकि इधर किसी किस्म का रोग या बीमारी न पनपे। हालांकि यह पाउडर भी कहीं-कहीं चूने की लकीर जैसा दिख रहा है जैसे प्रायः किसी नेता या बड़े आदमी के आगमन के समय छिड़का जाता है।
कई झोंपड़ियाँ लोगों ने लकड़ियों के सहारे साड़ी से बना रखा है लेकिन ऐसी बरसात में यह किस तरह उनको बचा पाएगी इसे आसानी से समझा जा सकता है। उन लोगों ने बताया कि हम लोग मेहनत करके खाते हैं लेकिन महंगाई इतनी है कि एक तिरपाल भी नहीं खरीद पा रहे हैं इसलिए सदियों से ही झोंपड़े बना लिए हैं।
हैंडपंप भी डूब गया है इसलिए वहां पर पीने के लिए पानी नहीं है। दूर से पानी लाया जा रहा है। जलाने के लिए सूखी लकड़ियाँ नहीं हैं। बात करते-करते एक महिला रोने लगी। बोली ‘हमारे पास कुछ नहीं बचा है। सारा सामान बाढ़ के पानी में बह गया है। हैण्ड पम्प भी पानी में डूब चुका है।’
यहाँ बिजली का एक तार जरूर दिखाई दे रहा था। मगर उसमें सप्लाई नहीं रहने के कारण लोग अन्धेरे में रह रहे हैं।
मिर्ज़ापुर और वाराणसी से लेकर चंदौली और गाजीपुर तक गंगा का पानी बढ़ा हुआ है। इनकी तरह नदी और नालों के किनारे रहने वाले न जाने कितने लोग बचने के लिए यहाँ-वहाँ भटक रहे होंगे लेकिन उन्हें इस आपदा से लड़ने और संकट से उबरने में कहीं से कोई सक्रियता नहीं दिख रही है।
अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव होने में ढाई-तीन साल बाकी हैं।