राजस्थान में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सभी सरकारी स्कूलों का जिला स्तर पर निगरानी करने का फैसला किया है। इसके लिए प्रशासन और विभागीय अधिकारियों को जिला प्रभारी नियुक्त किया गया है। जो अपने-अपने प्रभारित जिले में प्रतिमाह दो दिवसीय दौरा कर राजकीय विद्यालयों का अवलोकन करेंगे। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य में संचालित सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए संचालित विभिन्न कार्यक्रमों की प्रगति और क्रियान्वयन के लिए निगरानी रखना है। अक्सर यह देखा गया है कि सरकार की ओर से विकास की योजनाओं को लागू करने की घोषणा कर दी जाती है। लेकिन वह कितना सफल हुआ है इसकी निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं होती है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित सरकारी स्कूलों की शैक्षणिक व्यवस्था कमजोर नजर आती है। जिसकी वजह से बच्चे स्कूल से दूर होने लगते हैं. ऐसे में वह शिक्षा के प्रति कितने गंभीर हैं? इसका अंदाजा नहीं लग पाता है।
अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में कई वर्षों तक शिक्षकों के पद खाली रहते हैं। एक शिक्षक के ऊपर अपने विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों को पढ़ाने और समय पर सिलेबस खत्म करने की जिम्मेदारी होती है। जिससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती है। इन सरकारी स्कूलों में अधिकतर आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चे ही पढ़ने आते हैं। ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता या तो साक्षर नहीं होते हैं या फिर घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण दोनों ही मजदूरी करने निकल जाते हैं। ऐसे में वह ध्यान नहीं रख पाते हैं कि उनके बच्चे स्कूल जा भी रहे हैं या नहीं? ऐसी जमीनी हकीकत राजस्थान के धुवालिया नाडा गांव में भी देखने को मिली है, जहां कई माता-पिता ऐसे हैं जो रोजी-रोटी कमाने निकल जाते हैं, वहीं उनके बच्चे स्कूल जाने की जगह इधर-उधर समय बर्बाद करते हैं। कुछ बच्चे गलत संगत में आकर बुरी आदतों में लिप्त हो जाते हैं।
इस गांव में केवल एक प्राथमिक विद्यालय है। जहां कक्षा एक से पांचवीं तक की पढ़ाई होती है। जबकि इसके आगे की शिक्षा के लिए इस गांव के बच्चों को रसूलपुरा जाना पड़ता है। जो धुवालिया नाडा से करीब दो किमी दूर है। इस संबंध में गांव की 40 वर्षीय शारदा बताती हैं कि ‘उनके दो बेटे हैं जो रसूलपुरा में स्थित माध्यमिक उच्च विद्यालय में 6वीं और 8वीं में पढ़ते हैं। लेकिन वह प्रतिदिन स्कूल जाते हैं या नहीं, इसकी उन्हें खबर नहीं है, क्योंकि वह और उनके पति दोनों ही सुबह मज़दूरी करने के लिए निकल जाते हैं, जिसकी वजह से वह अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दे पाती हैं।’ शारदा कहती हैं कि ‘अगर कमाने नहीं जाएंगे तो बच्चों को क्या खिलाएंगे? पति के अकेले कमाई से घर का खर्च पूरा नहीं हो पाता है, इसलिए मुझे भी साथ में मज़दूरी करने जाना पड़ता है।’ वहीं 36 वर्षीय दयाराम कहते हैं कि उनके पास ज़मीन का एक छोटा टुकड़ा है जिस पर वह खेती करते हैं। ऐसे में वह गांव में ही रहते हैं। जिसकी वजह से वह अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देते हैं। उनके तीन बच्चे हैं जिनमें दो रसूलपुरा जाते हैं जबकि एक गांव के प्राथमिक विद्यालय में ही पढता है। वह कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था बहुत संतोषजनक नहीं है। अगर बच्चों विशेषकर लड़कों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाएगा तो वह स्कूल जाने की जगह इधर-उधर घूमने निकल जाते हैं।
सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा धुवालिया नाडा राज्य के अजमेर जिला स्थित रसूलपुरा पंचायत के अंतर्गत स्थित है। जहां अनुसूचित जनजाति भील और रैगर समुदाय की बहुलता है. गांव के अधिकतर पुरुष मार्बल की फैक्ट्रियों में काम करते हैं। कुछ खेती और कुछ गृह निर्माण में दैनिक मज़दूर के रूप में काम करते हैं। गांव के शुरू में ही कुछ घर मुस्लिम परिवारों के भी हैं। जिनकी अधिकतर जनरल स्टोर और अन्य ज़रूरी सामानों की दुकानें हैं। धुवालिया नाडा रसूलपुरा पंचायत का एक छोटा गांव है। जिसमें लगभग 50 घर हैं। यह गांव न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से बल्कि शैक्षणिक रूप से भी काफी पिछड़ा हुआ है। दरअसल आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण लोग पढ़ने से कहीं अधिक कमाने पर फोकस करते हैं। ऐसे में वह अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत अधिक ध्यान नहीं देते हैं। वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी के कारण भी बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है। यदि गांव में ही 12वीं तक स्कूल खुल जाए तो स्थिति में परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है।
देश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी समस्या के रूप में सामने आती है। अकेले राजस्थान में ही शिक्षकों के लगभग 25 हज़ार पद खाली हैं। पिछले वर्ष राज्य सभा में पूछे गए एक प्रश्न का जवाब देते हुए तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री ने बताया था कि राजस्थान में कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों के 25 हजार 369 पद खाली हैं। जबकि प्रदेश में इन कक्षाओं के लिए शिक्षकों के दो लाख 99 हजार 387 पद स्वीकृत हैं। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्तर के एक समाचारपत्र ने एक खबर प्रकाशित करते हुए बताया है कि राजस्थान के सरकारी स्कूलों में उप प्रधानाचार्य सहित लगभग 37 हज़ार 500 पद खाली हैं। इन कमियों का सबसे अधिक प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित सरकारी स्कूलों में देखने को मिलता है। जहां एक शिक्षक पर बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ स्कूल से जुड़े विभिन्न औपचारिकताओं को पूरा करने की भी अतिरिक्त ज़िम्मेदारी होती है। ऐसे में सरकार और संबंधित विभाग के साथ साथ समाज की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इन कमियों को पूरा करने में अपनी भूमिका निभाए। वह एक ऐसे परिवेश का निर्माण करें जिससे कि सभी बच्चों का स्कूल तक पहुंच सुनिश्चित हो सके। (चरखा फीचर)