झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से दुमका पर देश भर की निगाहें टिकी होती हैं। आदिवासियों के लिए सुरक्षित इस सीट से आंदोलनकारी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन का नाम जुड़ा रहा है।
दुमका इस बार भी सुर्खियों में है लेकिन वजह बदली हुई है। वह है, शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन जेएमएम छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई हैं। इसके बाद बीजेपी ने सीता सोरेन को दुमका सीट से उम्मीदवार बनाया है।
जाहिर तौर पर जेएमएम के लिए यह चुनाव उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ा है। साथ ही सीता सोरेन के लिए भी राजनीतिक परीक्षा बड़ी है और इस परीक्षा का समय अब शुरू होता है।
दुमका में एक जून को चुनाव है। इससे पहले इस सीट से शिबू सोरेन के नाम आठ बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड रहा है।
19 मार्च को बीजेपी में शामिल हुईं सीता सोरेन पहली बार चार अप्रैल को दुमका पहुंची थीं। उनके दुमका पहुंचने के दौरान यानी उसी दिन जेएमएम ने दुमका से अपने उम्मीदवार की घोषणा की। जेएमएम ने दुमका से नलिन सोरेन को मैदान में उतारा है।
नलिन सोरेन दुमका संसदीय क्षेत्र के शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से सात बार के विधायक हैं और शिबू सोरेन के विश्वासी भी।
उधर झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं सीता सोरेन शिबू सोरेन के बड़े पुत्र और जेएमएम के कद्दावर नेता रहे दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं। साल 2009 में दुर्गा सोरेन के निधन के बाद सीता सोरेन राजनीति में शामिल हुईं और इसके बाद जामा से तीन बार चुनाव जीतीं।
हालांकि माना जाता रहा है कि विधानसभा चुनावों में सीता सोरेन की जीत के साथ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का प्रभाव और जेएमएम का टैग जुड़ा रहा है।
झारखंड के संताल बहुल इलाकों में ‘दिशोम गुरू’ का मतलब होता है ‘देश का गुरू’। महाजनी आंदोलन के बाद झारखंड आंदोलन में शिबू सोरेन का नेतृत्व उन्हें ‘दिशोम गुरु’ बना दिया। झारखंड मुक्ति मोर्चा में भी उन्हें ‘गुरुजी’ के नाम से सम्मान दिया जाता है।
राज्यसभा के सांसद शिबू सोरेन अब उम्र और स्वास्थ्य के कारणों से दौरे, रैलियां नहीं कर पाते। इसका अंदेशा पहले से था कि इस बार वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगे।
क्या है दुमका का ताना-बाना
संतालपरगना का अहम हिस्सा दुमका शिबू सोरेन की कर्मस्थली रही है। यही वजह है कि संताल परगना में जेएमएम की दशकों से जमीनी पैठ भी रही है।
दुमका संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें पांच पर जेएमएम कांग्रेस और एक पर बीजेपी का कब्जा है।
लोकसभा 2019 के चुनाव में बीजेपी के सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को 47 हजार 590 वोटों के अंतर से हराया था। इससे पहले 2014 के चुनाव में सुनील सोरेन जेएमएम के शिबू सोरेन के हाथों 39 हजार 30 वोटों से हार गए थे। 2009 के चुनाव में भी सुनील सोरेन कड़ी टक्कर में हारे थे।
इस बार बीजेपी ने सांसद सुनील सोरेन का नाम उम्मीदवारों की पहली सूची में जारी कर दिया था।
सीता सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद सुनील सोरेन का टिकट वापस लेते हुए सीता सोरेन को उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया।
टिकट वापस लिए जाने के बाद सुनील सोरेन की पहली प्रतिक्रिया थी कि वे बीजेपी के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं। पार्टी के निर्णय के साथ चलेंगे लेकिन दो मार्च को रांची में बीजेपी मुख्यालय में आयोजिक एऩडीए की बैठक में सुनील सोरेन मौजूद नहीं थे।
इधर जेएमएम से टिकट मिलने के बाद नलिन सोरेन ने कहा है कि 2019 में गुरुजी के थोड़े वोट से हार जाने का मतलब यह नहीं होता कि यहां जेएमएम की जमीन खिसक गई है। सीता सोरेन को दुमका में हार का सामना करना पड़ेगा।
नलिन सोरेन का यह भी कहना है कि पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं और जेएमएम के कैडरों ने इस चुनाव को गंभीरता से लिया है।
पांच अप्रैल को रांची में नलिन सोरेन ने शिबू सोरेन से मिलकर आशीर्वाद भी लिया है। वे बताते हैं कि गुरुजी का आशीर्वाद बहुत मायने रखता है।
इसके बाद सात अप्रैल को दुमका के विधायक और शिबू सोरेन के छोटे पुत्र बसंत सोरेन नलिन सोरन को लेकर दुमका पहुंचे, तो जगह-जगह जेएमएम के कैडरों ने उनका स्वागत किया और गोलबंदी दिखाने की कोशिशें की।
इससे पहले दुमका पहुंचने पर बीजेपी की उम्मीदवार सीता सोरेन की पहली प्रतिक्रिया थी, ‘मैं मोदी जी के विशाल परिवारर में शामिल हुई हूं। बीजेपी के एजेंडे को आगे कर वे चुनाव जीतूंगी।’
उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी में महिलाओं का सम्मान होता है और उचित जगह भी दी जाती है।
सीता सोरेन बीजेपी के नेताओं, कार्यकर्ताओं को समझने-जानने में जुटी हैं। इसी सिलसिले में छह अप्रैल को वे सांसद सुनील सोरेन के जन्मदिन पर बधाई देने उनके आवास पर पहुंची थीं। सीता सोरेन को इसका भी भरोसा है कि चुनाव में बीजेपी में सबसे बड़ा चेहरा नरेंद्र मोदी के प्रभावों का उन्हें लाभ मिलेगा।
19 मार्च से पहले और बाद
झारखंड और झारखंड मुक्ति मोर्चा की सियासत में तारीख 19 मार्च ने सबका ध्यान खींचा, जब दिल्ली में सीता सोरेन ने बीजेपी का दामन थामा था।
इससे पहले उन्होंने शिबू सोरेन के नाम एक पत्र लिखा, ‘मेरे पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद से ही मैं और मेरा परिवार लगातार उपेक्षा का शिकार रहा है। दल और परिवार के सदस्यों के द्वारा हमें अलग-थलग किया गया है, जो मेरे लिए अत्यंत पीड़ादायक है। मुझे यह देखकर गहरा दुख होता है कि पार्टी उन लोगों के हाथों में चली गई है।’
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और इस्तीफा के बाद चंपाई सोरेन की सरकार में शिबू सोरेन के छोटे पुत्र और दुमका से पहली बार के विधायक बसंत सोरेन को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। माना जा रहा है कि सीता सोरेन की नाराजगी की यह भी एक वजह रही है।
28 मार्च को रांची में सीता सोरेन ने मीडिया से बात-चीत में उन्होंने जेएमएम पर भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का आऐरोप लगाया।
हालंकि जेएमएम के नेता इन आरोपों पर कहते रहे हैं कि सीता सोरेन बीजेपी की तैयार की गई स्क्रिप्ट पढ़ रही हैं। इसका उन्हें चुनाव में लाभ नहीं मिलने वाला है।
इससे पहले सीता सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने भी एक्स पर तल्खियां जाहिर की। पार्टी के कई अन्यनेताओं ने भी प्रतिक्रियाएं जाहिर की।
बीजेपी में शामिल होने के बाद सीता सोरेन अपने पति दुर्गा सोरेन की मौत को संदेह्सापद बताते हुए जांच की मांग कर रही हैं।
इधर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और सीएम पद से इस्तीफा के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने चुनावी मोर्चा संभाल रखा है।
वे लगातार रैलियां, सभा कर रही हैं। विपक्षी गठबंधन की दिल्ली और मुंबई में हुई दो बड़ी रैलियों में भी वे बड़े नेताओं के साथ मंच साझा कर चुकी हैं। कल्पना सोरेन के मोर्चा संभालने से जेएमएम के कैडर भी लामबंद होते दिख रहे हैं।
हेमंत सोरेन अभी जेल में बंद हैं और जेएमएम की चुनावी रणनीति तय करने में कल्पना सोरेन की भूमिका अहम हो गई है। शिबू सोरेन और जेएमएम कल्पना सोरेन के साथ मजबूती से खड़ा है। जाहिर तौर पर दुमका की सीट जीतने के लिए जेएमएम जोर लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगा।
संताल परगना की राजनीति को लंबे समय से कवर करते रहे वरिष्ठ पत्रकार सुमन सिंह कहते हैं, ‘बेशक सीता सोरेन के लिए दुमका का चुनाव अग्नि परीक्षा है। सुनील सोरेन का टिकट कटने से उनके समर्थकों के एक खेमा में मायूसी भी है। इसके अलावा सुनील सोरेन तीन बार शिबू सोरेन से लोकसभा चुनाव में आजमा चुके हैं। वे खम-ओ-पेच से वाकिफ थे।’
वे आगे कहते हैं, ‘दूसरा- जेएमएम को इसका भी बड़ा भरोसा है कि दल छोड़कर बीजेपी में जाने वाला कोई नेता संताल परगना की राजनीति में करिश्मा नहीं दिखा पाता। हालांकि दुमका संसदीय क्षेत्र में बीजेपी का प्रभावी वोट है और नरेंद्र मोदी का चेहरा भी। वैसे भी पिछले तीन चुनावों में बीजेपी-जेएमएम के बीच जीत-हार का फासला कांटे का होता है।’