Friday, July 11, 2025
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अर्थव्यवस्था

 टैरिफ युद्ध : क्या हम तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?

डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को अमेरिका की मुक्ति का दिन घोषित किया है। इसी दिन ट्रंप ने पूरी दुनिया के खिलाफ टैरिफ युद्ध छेड़ा है,जो अब तक के बनाए तमाम पूंजीवादी नियमों और बंधनों को तोड़कर केवल अमेरिकी प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा से संचालित होता है। यह प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा न्याय की किसी भी भावना और अवधारणा को कुचलकर आगे बढ़ना चाहती है।

राजस्थान के लोहार समुदाय के अस्तित्व और संघर्ष की कहानी : जब बर्तन बिकेंगे, तब खाने का इंतजाम होगा

लोहे के बर्तन बनाना लोहार समुदाय के लिए केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि उनकी पहचान और अस्तित्व का प्रतीक है। लेकिन बदलते समय के साथ उनके लिए रोज़ी रोटी चलाना मुश्किल होता जा रहा है। नयी तकनीक, सस्ते विकल्प और बदलते उपभोक्ता व्यवहार ने उनके पारंपरिक काम को संकट में डाल दिया है।

दाल देख और दाल का पानी देख!

नेफेड और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता फेडरेशन (एनसीसीसीसी) बता रहा है कि सरकार के गोदाम में केवल 14.5 लाख टन दाल ही बची है, जो कि न्यूनतम आवश्यकता का केवल 40% ही है। इसमें तुअर दाल 35000 टन, उड़द 9000 टन, चना दाल 97000 टन ही है, जिसे लोग खाने में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। इन दालों की जगह दूसरी दाल के इस्तेमाल के बारे में सोचें, तो मसूर दाल का स्टॉक भी केवल पांच लाख टन का ही बचा है। भारत के संभावित दाल संकट पर संजय पराते।

विकास वित्तपोषण का गहराता संकट

विकासशील देशों को यह देखना होगा कि विकास प्रभावशीलता और कार्यसाधकता सर्वोपरि रहे। सीएसओ पार्टनरशिप फॉर डेवलपमेंट इफेक्टिवनेस (सीपीडीई) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सालों में यह सर्वविदित हो गया था कि पारंपरिक दाता एजेंसियाँ अपने वायदों पर अधिक समय तक खड़ी नहीं उतर सकती।

बजट 2025 : मध्यम वर्ग को बचत का सपना देकर अपनी झोली भरने की जुगत

मोदी सरकार घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग पैदा कर रोजगार का संकट दूर करने तथा अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालने के प्रति गंभीर होती, तो केंद्र सरकार में लाखों खाली पड़े पदों को भरने की घोषणा करती, मनरेगा के बजट आबंटन में पर्याप्त वृद्धि के साथ मजदूरी और काम के दिनों की संख्या को बढ़ाती, शहरी गरीबों के लिए रोजगार गारंटी की घोषणा करती, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सम्मानपूर्ण आजीविका के लायक न्यूनतम वेतन/मजदूरी की घोषणा करती, किसानों को सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने और कर्ज़माफी की घोषणा करती और मजदूरों को बंधुआ दासता में धकेलने वाली श्रम संहिताओं को वापस लेने आदि की घोषणा करती। लेकिन बजट 2025 में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है।

सहना को सरकारी सुविधा, हलकू अब भी कांप रहा है

प्रेमचंद का साहित्य आज भी कम प्रासंगिक नहीं हैं क्योंकि उस समय में और आज के समय में समस्याओं का स्वरूप बेशक बदल गया हो लेकिन समस्याएँ समाप्त नहीं हुई हैं। बल्कि कुछ समस्याएँ और गहरी हो गई हैं। ग्रामीण व शहरी बेरोज़गारी, बिना लाभ की खेती, दलितों व ग़रीबों का आर्थिक शोषण व उत्पीड़न, ऊँच-नीच व छूआछूत, अकर्मण्यता, अंधविश्वास व धार्मिक पाखण्ड, रिश्वतख़ोरी व भ्रष्टाचार आज भी ज्यों के त्यों बने हुए हैं। ग़रीबी का स्वरूप बदल गया है लेकिन ग़रीबी नहीं। खेतिहर किसान मज़दूर में बदल गया है। कुछ समस्याएँ ऐसी भी हैं जिनका स्वरूप तक नहीं बदला है।

जो दुनिया का सबसे बड़ा, निरंतर, शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन बन चुका है

हरियाणा में किसान आंदोलन और अन्य कुछ कारणों से पैदा हुए वातावरण के चलते हरियाणा विधानसभा सत्र को जल्दी स्थगित करना पड़ा । किसान विरोधी केंद्रीय कानूनों को निरस्त करने की मांग को विपक्षी नेताओं द्वारा विभिन्न तरीकों से सत्र में उठाया गया था हालांकि हरियाणा की मनोहर खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा-जजपा सरकार सत्र को बहुत छोटा करके अपने लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति से बच निकली।

  भारत बचाओ दिवस ट्रेड यूनियनों ने श्रमिकों और किसानों को सफलता के लिए बधाई दी

सरकार पेगासस स्पाइवेयर में जांच का जवाब नहीं दे रही है, लेकिन जनविरोधी बिलों को पारित करने में गतिरोध का उपयोग कर रही है, अपने क्रूर बहुमत का उपयोग कर रही है।  इस चल रहे संसद सत्र में आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक पारित किया गया है, बीमा कंपनियों के विनिवेश/बिक्री का निर्णय लिया गया है।

कोरोनाकाल और युवाओं के भविष्य पर अनिश्चितता की तलवार

इन तमाम समस्याओं को खत्म करने के लिए बहुत जरूरी है कि हम अपनी सोच में परिवर्तन लाएँ, यदि बचपन से ही बच्चों को यह सिखाया और दिखाया जाता कि घर के काम करना सिर्फ महिलाओं और लड़कियों का नहीं हैं बल्कि लड़के भी खाना बना सकते हैं उनकी रोटी भी गोल और मुलायम हो सकती है, बाहर कमाना सिर्फ लड़कों का ही काम नहीं हैं महिलाएं भी बाहर जा कर काम कर सकती हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा प्रेस नोट

8 जुलाई को, ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ एसकेएम के आह्वान पर पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे। चिह्नित सार्वजनिक स्थानों पर, प्रदर्शनकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे खाली रसोई गैस सिलेन्डर और अपने वाहनों के साथ आएं और सड़क के किनारे पार्क करें।

संयुक्त किसान मोर्चा प्रेस नोट

तीन केंद्रीय कृषि कानूनों और जारी किसान आंदोलन पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार के विरोधाभासी बयानों के लिए महाराष्ट्र विकास अघाड़ी और राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। संयुक्त किसान मोर्चा की मांग है कि इस तरह का स्पष्टीकरण तत्काल दिया जाए। एसकेएम ने राज्य सरकार को उन निगमों और केन्द्र सरकार के दबाव  में आने के खिलाफ चेतावनी दी है जो कानूनों से लाभान्वित होंगे।
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