हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार रामदेव सिंह कई अर्थों में आत्मसंघर्ष करते रहे , खासतौर से जब उनके ऐन सामने ही उनसे दोयम लोगों को अतिरिक्त महत्व मिलता तब भी वे खामोशी से उन्हें शुभकामनाएँ दे देते और स्वयं के लिए सोचते कि अभी उनको बहुत कुछ लिखना है। न उन्होंने लेन-देन के हिसाब से संबंध बनाए न किसी के दरबारी बने। हालांकि साहित्यगीरी के सारे खेल को वे बहुत बारीकी से देखते रहे। आमने-सामने की इस चौथी और अंतिम कड़ी में उन्होंने बड़ी बेबाकी से इस पर अपनी राय रखी है। इसके साथ ही सवर्ण वर्चस्व, ब्राह्मणवाद और जातिवाद पर भी वे खुलकर बोले हैं। देखिये और अपने इस प्यारे कथाकार को प्यार और आदर दीजिये।
भले लेखकों ने टाइटिल न लगाया हो लेकिन समीकरणों में जातिवाद ही करते रहे !
हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार रामदेव सिंह कई अर्थों में आत्मसंघर्ष करते रहे , खासतौर से जब उनके ऐन सामने ही उनसे दोयम लोगों को अतिरिक्त महत्व मिलता तब भी वे खामोशी से उन्हें शुभकामनाएँ दे देते और स्वयं के लिए सोचते कि अभी उनको बहुत कुछ लिखना है। न उन्होंने लेन-देन के हिसाब से संबंध […]
![ramdeo singh aur ramji yadav](https://gaonkelog.com/wp-content/uploads/2021/12/ramdeo-singh-aur-ramji-yadav.jpg)