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फर्जी मुठभेड़ों की जांच से बचने के लिए गुजरात सरकार ने जनहित याचिकाओं पर ‘चुनिंदा जनहित’ का कारण बताने का अड़ंगा लगाया

नई दिल्ली (भाषा)। गुजरात सरकार ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राज्य में 2002 से 2006 तक हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच का आग्रह करने वाले याचिकाकर्ताओं को इस मुद्दे को उठाने के लिए अपने ‘‘चुनिंदा जनहित’’ के कारण बताने की जरूरत है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ […]

नई दिल्ली (भाषा)। गुजरात सरकार ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राज्य में 2002 से 2006 तक हुई कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच का आग्रह करने वाले याचिकाकर्ताओं को इस मुद्दे को उठाने के लिए अपने ‘‘चुनिंदा जनहित’’ के कारण बताने की जरूरत है।

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ 2007 में वरिष्ठ पत्रकार बीजी वर्गीज, मशहूर गीतकार जावेद अख्तर और शबनम हाशमी द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच का अनुरोध किया गया। वर्गीज का 2014 में निधन हो गया।

राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि अन्य राज्यों में भी मुठभेड़ हुई हैं। उन्होंने पीठ से कहा कि वे (याचिकाकर्ता) कहते हैं कि हम गुजरात राज्य में एक विशेष अवधि के दौरान कुछ मुठभेड़ों की जांच चाहते हैं। चुनिंदा रुख वाली यह जनहित याचिका क्यों? उन्हें इसका जवाब देना होगा।

मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपने इस चुनिंदा जनहित के बारे में अदालत को संतुष्ट करना होगा।

उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच एस बेदी की अध्यक्षता में एक निगरानी प्राधिकरण नियुक्त किया था जिसने 2002 से 2006 तक गुजरात में 17 कथित फर्जी मुठभेड़ मामलों की जांच की थी। समिति ने 2019 में ‘सीलबंद कवर’ में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसने जांच किए गए 17 मामलों में से तीन में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश की थी।

शीर्ष अदालत में दाखिल अपनी अंतिम रिपोर्ट में समिति ने कहा था कि प्रथम दृष्टया तीन लोगों को गुजरात पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ों में मार डाला।

बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि समिति की रिपोर्ट पहले ही अदालत के सामने आ चुकी है। उन्होंने कहा कि बस ये करने की जरूरत है उन लोगों पर मुकदमा चलाना है जिनकी रिपोर्ट में पहचान की गई है। उन्होंने कहा कि समिति तीन मामलों में प्रथम दृष्टया निष्कर्ष पर पहुंची है।

पीठ ने कहा ‘मामले की सुनवाई जरूरी है’ और याचिकाओं पर सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की। गुजरात सरकार ने पूर्व में याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र के बारे में आपत्ति जताई थी।

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शीर्ष अदालत में दाखिल अपनी अंतिम रिपोर्ट में न्यायमूर्ति बेदी समिति ने कहा था कि तीन लोग-समीर खान, कासम जाफर और हाजी इस्माइल -प्रथम दृष्टया पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए थे।

इसमें निरीक्षक रैंक के तीन अधिकारियों सहित कुल नौ पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराया गया था। हालांकि, इसने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के किसी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश नहीं की।

नौ जनवरी, 2019 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने समिति की अंतिम रिपोर्ट की गोपनीयता बनाए रखने की गुजरात सरकार की याचिका खारिज कर दी थी और आदेश दिया था कि इसे याचिकाकर्ताओं को दिया जाए।

समिति ने 14 अन्य मामलों पर भी गौर किया था जो मिठू उमर डाफर, अनिल बिपिन मिश्रा, महेश, राजेश्वर, कश्यप हरपालसिंह ढाका, सलीम गगजी मियाना, जाला पोपट देवीपुजक, रफीक्षा, भीमा मांडा मेर, जोगेंद्रसिंह खतनसिंह, गणेश खूंटे, महेंद्र जादव, सुभाष भास्कर नैय्यर और संजय की कथित फर्जी मुठभेड़ हत्याओं से संबंधित थे।

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