अमरीकी ट्रम्प सरकार ने अनेक जन स्वास्थ्य संस्थाओं पर हमला बोल दिया है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व स्वास्थ्य संगठन हो या अमरीकी सरकार की सीडीसी (रोग नियंत्रण संस्था), आयुर्विज्ञान अनुसंधान हो या विकासशील देशों में अमरीकी पैसे से पोषित स्वास्थ्य या विकास कार्यक्रम - सब खंडित हैं या उन पर खंडित होने का ख़तरा मंडरा रहा है। बीजिंग घोषणापत्र 1995 गर्भपात का अधिकार और कानूनी रूप से बाध्य ‘सीईडीएडबल्यू’ (कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ़ ऑल फ़ॉर्म्स ऑफ़ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वोमेन) तथा अन्य समझौतों और घोषणाओं में निहित वायदों का हिस्सा है तथा लैंगिक और यौनिक समानता और मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-5 को प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण है, फिर भी इस पर वैश्विक प्रगति संतोषजनक नहीं है। विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर शोभा शुक्ला का लेख।
अक्सर गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रिया के अंतर्गत दवाओं के किसी बैच के सैंपल या नमूने की जाँच की जाती है कि उसमें कोई मिलावट न हो, दवाओं में ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल एजेंट की मात्रा सही हो, आदि। परंतु गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रिया में प्रायः यह जांच नहीं होती कि दवाओं की जैव समतुल्यता और स्थिरता, विभिन्न मौसम तापमान और नमी में भी सही रहती है या नहीं। गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रिया में यह भी पुष्टि की जानी चाहिए कि दवाएं जैव समतुल्य और स्थिर रहें।
'सबका साथ सबका विकास' यह बात कहने सुनने में अच्छी लगती है लेकिन देश के अनेक हिस्से ऐसे हैं, जहाँ बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है, जिसमें ग्रामीण इलाके के साथ ही शहरों से लगी हुई स्लम बस्तियां भी हैं, जहाँ रहने वाली महिलायें और बच्चे लगातार स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। इसे देखते हुए लोगों का कहना है कि सामाजिक संस्थाएं और कार्यकर्ता अपने सामूहिक प्रयास से उन बस्तियों की बुनियादी समस्यायों से निजात दिलवा सकते हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि सरकार की अनेक योजनायें यहाँ सफल क्यों नहीं हो पाती हैं।
दुनिया भर में स्वास्थ्य और दवाओं को लेकर नए नए अनुसंधान जरूर हो रहे हैं लेकिन घटिया और नकली दवाओं के कारण अनेक बीमारियाँ लाइलाज हो रही हैं। साथ ही दवा प्रतिरोधक रोग से अधिक रोगी इलाज के अभाव में मर रहे हैं। यह खतरा केवल मनुष्यों के जीवन पर ही नहीं है बल्कि मवेशियों और पशुधन पर भी बढ़ा है। वैसे भी देर हो चुकी है लेकिन सतर्कता फिर भी जरूरी है।
औसत उम्र में वृद्धि होने के बाद देश में बुजुर्गों की संख्या में वृद्धि हुई है। लेकिन सामाजिकता में लगातार कमी आई है, जिसकी वजह से बुजुर्गों में अकेलेपन की समस्या बढ़ गई है। इस बढ़ती हुई समस्या के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सामाजिक संपर्क के लिए एक आयोग की स्थापना तीन वर्षों के लिए की है। स्वास्थ्य संगठन की चिंता वाजिब है लेकिन सवाल यह उठता है कि इस तरह की सामाजिकता से क्या हल निकल पायेगा या यह केवल खानापूर्ति ही साबित होगा।
जिले के तमाम पीएचसी पर रविवार को मुख्यमंत्री जन आरोग्य मेला का आयोजन किया गया। लेकिन जब सीएमओ औचक निरीक्षण पर अर्बन नई बाज़ार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुँचे तो वहां ताला लटका हुआ था मौके पर उन्हें एक भी डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी मौजूद नहीं मिला।
प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट फोरम ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि हीटवेव केवल भारत में ही नहीं आता है। दुनिया के कई क्षेत्र हर साल इससे गुज़रते हैं लेकिन वे अपने बेहतरीन सार्वजनिक जनस्वास्थ्य व्यवस्था के दम पर अपने लोगों को लू से हताहत होने से बचा ले जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब स्वास्थ्य व्यवस्था सामाजिक सुरक्षा जाल प्रणाली में एक बड़ा छेद होता है। जिससे ग़रीबों, बेघरों और बुजुर्गों को हमेशा परेशानी का सामना करना पड़ता है।
अस्पतालों पर दबाव बढ़ा है, बावजूद इसके स्वास्थ्यकर्मी संवेदनशील बनने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के अभी भी वही ढुलमुल रवैया अपनाये हुये हैं। उनके लापरवाहीपूर्ण कार्य प्रणाली में कोई सुधार नहीं आ रहा है।
पूर्वांचल के भदोही, वाराणसी, जौनपुर, बलिया, देवरिया जिले में लू कहर ढा रही है। इसके कारण लोग तेजी से बीमार हो रहे हैं। इसी क्रम में जौनपुर के एक व्यक्ति की भदोही के दुर्गापुर थानाक्षेत्र के कुढ़वां गांव में लू लगने से मौत हो गयी।
पूर्वांचल में लू (हीट स्ट्रोक) से बीमार होने वालों की संख्या में तेजी से इजाफ़ा हो रहा है। देवरिया में पिछले 24 घंटे में 52 लोगों की मौत लू लगने से हो चुकी है। इससे पहले पड़ोसी जिला बलिया में शनिवार को 36 लोगों की लू से मौत हुयी थी।