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मनोज मौर्य पहले भारतीय निर्देशक बने जिनकी जर्मन फिल्म मेट्रोपोलिस जर्मनी में दिखाई गई

बनारस के काशी विद्यापीठ से चलकर , फिर दिल्ली के आईआईएमसी निकले और पहली फीचर फिल्म जर्मन भाषा में बनाई। इससे पहले एडवरटाइजिंग की दुनिया में रमे थे मनोज। उन्होंने कई लघु फिल्में बनाईं जिनमें  ‘रिसाइकल माइंड’,  ‘आई लव यू’   और ‘ए डीसीजन’ महत्वपूर्ण हैं। बरसों से बनारस को लेकर फिल्म ‘हाफ पेयर’ नामक महत्वाकांक्षी […]

बनारस के काशी विद्यापीठ से चलकर , फिर दिल्ली के आईआईएमसी निकले और पहली फीचर फिल्म जर्मन भाषा में बनाई। इससे पहले एडवरटाइजिंग की दुनिया में रमे थे मनोज। उन्होंने कई लघु फिल्में बनाईं जिनमें  रिसाइकल माइंड’,  ‘आई लव यू   और ए डीसीजन महत्वपूर्ण हैं। बरसों से बनारस को लेकर फिल्म हाफ पेयरनामक महत्वाकांक्षी फिल्म बनाने का सपना देखनेवाले मनोज ने पाँच साल पहले एक अन्य फिल्म टुमारो 8PM’ के शोध के सिलसिले में पूरे देश में 18000 किलोमीटर की यात्रा की और समाज के विभिन्न तबकों के असंख्य लोगों से मिले।

फिल्म देखने के लिए दर्शकों की भीड़

युवा फिल्म निर्माता/निर्देशक मनोज मौर्य ने अपनी पहली फीचर फिल्म कॉन एनिमा जर्मन भाषा में बनाई है जिसका प्रीमियर जर्मनी के न्यूवेइड के प्रसिद्ध मेट्रोपोलिस सिनेमाहाल में किया गया। संयोग कुछ ऐसा कि इस खुशी के मौके पर मनोज मुंबई में रहे लेकिन उनकी फिल्म ने जर्मनी के दर्शकों को रोमांचित कर दिया। उल्लेखनीय है कि यह फिल्म वहाँ के सिने-प्रेमियों, फिल्म के कलाकारों, फिल्म समीक्षकों, पत्रकारों, वितरकों और फिल्म की परख रखने वालों के लिए दिखाई गई, जिसमें कुल 200 मेहमानों ने फिल्म को देखा और सराहा। सिने-प्रेमियों से सिनेमाहाल पूरी तरह भरा हुआ था। उस थिएटर में इस फिल्म के अभिनेता-अभिनेत्री भी मौजूद थे। मनोज मौर्य कोविड संबंधी प्रतिबंधों के कारण इस सिने-प्रदर्शन में शामिल नहीं हो सके। इसलिए उन्होंने वीडियो कांफ्रेंस के द्वारा जर्मनी के सिने-दर्शकों को संबोधित किया और उनसे बातचीत भी की ।फिल्म के समापन के बाद जर्मनी का वह सिनेमाहाल तालियों की गडगड़ाहट से गूँज उठा। हर सिने दर्शक के चेहरे पर उल्लास और तृप्ति थी। फिल्म देखने के बाद अभिनेताओं में से एक ने कहा, ‘यह फिल्म मेरी कल्पना से परे है! मैंने शूटिंग के दौरान कभी नहीं सोचा था कि मैं इस समृद्ध संगीतमय नाटक का हिस्सा बनने जा रहा हूं!’ एक फिल्म आलोचक का कहना था, ‘मुझे फिल्म में ज्यादा संगीत की उम्मीद थी। यह फिल्म एक स्टीरियोटाइप यूरोपीय फिल्म नहीं है। इसकी कहन शैली अनोखी और अलग है।’

कलाकारों के साथ दर्शक

कॉन एनिमा एक युवा एकल कलाकार, एम्मा के संघर्षों के बारे में एक संगीत नाटक है, जिसने संगीत कार्यक्रम से पहले खुद को घायल कर लिया है। इस फिल्म का दूसरा अहम किरदार स्थानीय फूलवाला है। इसका नाम वाल्टर है। वाल्टर एक प्रतिष्ठित सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा में एक संगीत कार्यक्रम में एक विलक्षण डिस्लेक्सिक वायलिन वादक है। यह फिल्म इस बात की पड़ताल करती है कि कैसे नई पीढ़ी के संगीतकार संगीत के परिदृश्य को बदल रहे हैं। यह फिल्म संगीत के माध्यम से डिस्लेक्सिक लोगों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की पैरवी करती भी नज़र आती है फिल्म इस बात को एकदम नए तरीके से पेश करती है।  थियोडोर की भूमिका वहाँ के कद्दावर थिएटर कलाकार अलेक्जेंडर प्लुक्वेट द्वारा निभाई गई है। फिल्म के कलाकार और चालक दल के लोग मुख्य रूप से जर्मन नागरिक हैं। जाना सोफी वीयर ने सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा की एकल कलाकार एम्मा की भूमिका निभाई है। फेलिप लुडेस एक स्थानीय फूलवाला बने हैं । फिल्म का संगीत विन्फ्रेड वोगेले ने दिया है। विन्फ्रेड वोगेले फिल्म में प्रसिद्ध सिम्फनी कंडक्टर फ्रैंक शुबर्ट की भी भूमिका निभाते हैं। फिल्म की फोटोग्राफी का निर्देशन एकर्ट रेचल के द्वारा किया गया है, जिनके पास कई सामाजिक और राजनीतिक फिल्में, वृत्तचित्र, निबंध और थिएटर फिल्मों में काम करने का अनुभव है। यह फिल्म मनोज मौर्य द्वारा लिखित और निर्देशित है, जिसका निर्माण विजडम मूवीज द्वारा किया गया है। यह कंपनी  जर्मनी में स्थित एक स्वतंत्र प्रोडक्शन हाऊस है जो नए युग और प्रयोगात्मक सिनेमा का समर्थन और निर्माण करती है।

क्या किसी भारतीय निर्देशक के लिए किसी विदेशी भाषा में फिल्म बनाना मुश्किल नहीं था, खासकर जर्मन जिसे, सबसे ज्यादा प्रभावशाली भाषाओं में से एक माना जाता है? मुझे लगता है कि ‘सूचना को संप्रेषित करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है और सिनेमा उन भावनाओं को संप्रेषित करती है, जो भौगोलिक, संस्कृतियों और भाषाओं की सभी बाधाओं को पार करती हैं।’ यह पूछे जाने पर कि उन्होंने अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए जर्मनी को क्यों चुना, निर्देशक मनोज कहते हैं, ‘मेरी फिल्म को ऑर्केस्ट्रा संगीत के संतुलन और औपचारिक अनुशासन के सिद्धांतों की आवश्यकता थी और जर्मनी से बेहतर देश और क्या हो सकता था। यह देश पश्चिमी शास्त्रीय संगीत, पारंपरिक गायन और ऑर्केस्ट्रा प्रदर्शन में विश्वस्तर का कद रखता है।’

फिल्म का एक दृश्य

चाहे  कहानी हो या संगीत अथवा सौंदर्यबोध, सब कुछ मनोज की कला और अभिव्यक्ति सिनेमाई दुनिया के दर्शकों को आकर्षित करती है। कॉन एनिमा दो युवा दिलों के बीच कोमल प्यार, शानदार संगीत, ढेर सारा हास्य और उच्च भावनात्मक उथल-पुथल की पॉवर-पैक सिने-प्रस्तुति है जो फ्रेम दर फ्रेम आपको एक अलग जोन में ले जाती है।

उम्मीद है यह फिल्म क्रिसमस के दौरान पूरे यूरोप में रिलीज होगी।

इस रिपोर्ट का अन्ग्रेजी से हिन्दी अनुवाद जाने-माने कहानीकार और लेखक जनार्दन ने किया है।

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