भारत विश्व कप ‘हार’ गया। जीतना या हारना खेल का हिस्सा है लेकिन तब क्या होता है जब खेल राजनीतिक प्रचार का हिस्सा बन जाता है और दर्शक खेल प्रेमी नहीं बल्कि ऐसे प्रशंसक में बदल जाते हैं जो दूसरों से नफरत करते हैं। उत्तर प्रदेश के एक अखबार ने फाइनल गेम को ‘धर्मयुद्ध’ शीर्षक दिया। क्रिकेट के खेल का इस्तेमाल राजनीतिक मकसद के लिए किया जा रहा है। चूंकि क्रिकेट देश में एक शक्तिशाली व्यवसाय है और खेल के सभी गैर-खिलाड़ी ‘कप्तान’ खिलाड़ियों की तुलना में बहुत बड़ी रकम कमाते हैं। राजनेताओं और शक्तिशाली नेताओं के विपरीत कहीं भी किसी भी क्रिकेट दिग्गज के नाम पर एक भी स्टेडियम नहीं है।बिशन सिंह बेदी ने दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान का नाम अरुण जेटली के नाम पर रखने का विरोध किया लेकिन हुआ क्या? बेदी, लीजेंड को खेल से बाहर कर दिया गया है। ऐसा ही एक बार फिर हुआ जब दो विश्व कप विजेता कप्तानों कपिल देव और महेंद्र सिंह धोनी जैसे दिग्गजों को अहमदाबाद में खेल देखने के लिए आमंत्रित तक नहीं किया गया। क्यों? शायद, बोर्ड और उसके राजनीतिक आका भारतीय जीत के प्रति आश्वस्त थे और इसलिए ‘सर्वोच्च नेताओं’ के अलावा मंच पर भारतीय टीम का ‘अभिवादन’ करने के लिए किसी और को नहीं होना चाहिए। ताकि भारत की जीत की स्थिति में उनका विजय भाषण कई दिनों तक गूंज सके पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका और भारत हार गया।
एक टीम के तौर पर यह एक शानदार टीम है, जो गेम तो हार गई लेकिन लोगों का दिल जीत लिया। सही मायने में यह टीम की हार नहीं है बल्कि यह हार भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की है। जिसने इसे राजनीतिक खेल में बदल दिया है। यह कोई खेल नहीं है, यह पूरी तरह से व्यापार और राजनीति है। जब मैंने देखा कि खिलाड़ियों की ‘नीलामी’ हो रही है और बल्लेबाज के पक्ष में खेल का प्रारूप बदला जा रहा है तो खेल में मेरी रुचि खत्म हो गई। क्रिकेट का सबसे बड़ा संकट वेस्टइंडीज़ का विश्वकप ना खेलना था। वे अद्वितीय थे और उन्हें देखना बेहद आनंददायक था। भारत में क्रिकेट का सबसे बड़ा उलटफेर 1983 में कपिल देव के नेतृत्व में लॉर्ड्स में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद आया। मुझे अभी भी वह उत्साह और खुशी याद है जो हमने तब महसूस किया था। वह सिर्फ ट्रांजिस्टर युग था और हममें से कई लोगों के पास इसे टीवी पर देखने की सुविधा भी नहीं थी। इसके बाद निवेशक आये और क्रिकेट एक बड़ा खेल बन गया। कपिल देव ही वह खिलाड़ी थे जिन्होंने इसे बदला और क्रिकेट को देश के गैर-अंग्रेजी भाषी लोगों तक पहुंचाया। वह बिशन बेदी की तरह न तो बुद्धिजीवी थे और न ही सुनील गावस्कर की तरह परिष्कृत, जो जरूरत के हिसाब से कहीं भी फिट हो जाएं। कपिल हमेशा दिल से बात करते हैं और यही कारण है कि वह हमेशा सीधे आगे रहते हैं और खिलाड़ियों के अधिकारों के लिए खड़े होते हैं। वर्षों बाद, दूसरा व्यक्ति जिसने भारत में क्रिकेट की गतिशीलता को बदल दिया, वह महेंद्र सिंह धोनी थे, जो अपेक्षाकृत छोटे शहर/कस्बे से निकले थे। कपिल देव के बाद धोनी के नेतृत्व में ही भारत ने विश्व कप जीता। यह वह समय था जब हम बढ़ रहे थे और खेलों के नियम अभी भी बहुत अच्छे थे।
पिछले दस वर्षों में गुजरात को हर किसी का अभूतपूर्व समर्थन मिला है। इसे ‘खेलों’ के लिए सबसे अधिक फंडिंग मिली, जबकि एक भी खिलाड़ी ऐसा नहीं है जो एशियाई खेलों, ओलंपिक या अन्य किसी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में जा सके। जो राज्य अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में खिलाड़ी भेजते रहे हैं उन्हें कभी भी गुजरात को मिलने वाली धनराशि का आधा भी नहीं मिलता है। विश्व कप की घटनाओं पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि अहमदाबाद को कितना लाड़-प्यार दिया गया। उसे पाकिस्तान के खिलाफ ‘प्रतिष्ठित’ मैच दिया गया। क्यों ? यह पूरी तरह से मौद्रिक उद्देश्य के लिए है क्योंकि पाकिस्तान के खिलाफ मैच व्यवसाय के लिहाज से शेष टीमों की अपेक्षा ज्यादा लाभदायक है। उस मैच के दौरान साफ दिखा कि अहमदाबाद में भीड़ उग्र थी, दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि वह भीड़ किसी अंतर्राष्ट्रीय मैच के स्वागत के लायक नहीं थी। यह भी कहा जा सकता है ये दर्शक कोई खेल देखने नहीं आते बल्कि विशुद्ध रूप से राजनीतिक उद्देश्य से लाए जाते हैं। सच कहूं तो अहमदाबाद विश्व कप के महत्वपूर्ण मैचों का हकदार नहीं है। विश्व कप फाइनल शानदार क्रिकेट इतिहास वाले दो शहरों कोलकाता या मुंबई में होना चाहिए था। पर ऐसे क्रिकेट प्रशासन से यह उम्मीद करना बेमानी ही होगी जिसने हमारे क्रिकेट इतिहास के दो दिग्गजों जिन्होंने हमें विश्व कप दिलाया को आमंत्रित करने की भी जहमत नहीं उठाई। दिल्ली तो छोड़िए, मुंबई, कोलकाता या चेन्नई पर अहमदाबाद को तरजीह क्यों दी गई? यह बड़ा सवाल है, क्या इससे भी बड़ा कोई घोटाला हो सकता है?
भीड़ का इस तरह सड़क छाप व्यवहार देखना दुखद था। वे कोई खेल देखने नहीं आये थे बल्कि जीत का जश्न मनाना चाहते थे। जाहिर है, हर भारतीय विश्व कप जीतना पसंद करेगा, लेकिन अंत में यह एक खेल है और एक बार खेल खत्म होने के बाद, विपरीत टीम की सराहना की जानी चाहिए। ऑस्ट्रेलियाई कप्तान को विश्व कप ट्रॉफी सौंपे जाने से पहले अहमदाबाद में मौजूद भीड़ स्टेडियम से चली गई। यह न केवल अपमानजनक है, बल्कि शर्मनाक भी है, लेकिन फिर जब आप लोगों को नासमझ उन्मादी भीड़ में बदल देते हैं तो ऐसी अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी तो होनी ही है। भारत में बनिया ब्राह्मण मीडिया ने हमें एक मजाक बनाकर रख दिया है। लोगों को यह शिक्षित करने की जरूरत है कि यह एक खेल है और खेल कौशल समय की मांग है। खिलाड़ियों का सम्मान करें और खेल का आनंद लें। जीत-हार महत्वपूर्ण नहीं बल्कि देश की प्रतिष्ठा और सम्मान महत्वपूर्ण है।’
इस विश्व कप में शुरू से ही दिक्कतें थीं और यह एक ऐसा टूर्नामेंट लग रहा था जिसका मकसद हर कीमत पर भारत को जीत दिलाना था। खेल खिलाड़ियों द्वारा खेला जाना था और बोर्डों का कर्तव्य था कि वे स्थान और वातावरण प्रदान करें। दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड मेगालोमैनिया से ग्रस्त है और अत्यधिक पक्षपाती और पूर्वाग्रही बना हुआ है। भारत में कोई भी क्रिकेट प्रेमी कोलकाता, बॉम्बे, बैंगलोर, चेन्नई और दिल्ली के स्टेडियमों और भीड़ को अत्यधिक लाड़-प्यार वाले अहमदाबाद की तुलना में कहीं अधिक रेटिंग देगा। अब समय आ गया है कि क्रिकेट और अन्य खेल संस्थाओं के प्रशासक अपने संकीर्ण राजनीतिक हित से परे सोचें। याद रखें, भारतीय क्रिकेट टीम एक चैंपियन टीम की तरह खेली थी, हालांकि फाइनल में उसे हार मिली थी, लेकिन यह खेल का हिस्सा है, लेकिन असली हार उन लोगों की हुई, जो भारत की जीत से राजनीतिक लाभ लेना चाहते थे। जो देश अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए अपने खेल प्रतीकों की उपेक्षा और अनादर करता है, वह कभी भी खेल संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हासिल नहीं कर पाएगा। इसके अलावा, क्रिकेट में आपके पास वित्तीय नियंत्रण हो सकता है, अन्य खेल निकाय भी आपकी व्यवस्था देख रहे हैं। यह व्यवहार अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों और टूर्नामेंटों की मेजबानी करने की भारत की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। खेल निकायों में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद करें और खिलाड़ियों और पेशेवर प्रशासकों को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अनुमति दें। अहमदाबाद में हार भारतीय क्रिकेट की नहीं, बल्कि उसके राजनीतिक प्रशासकों की हार है, जो संस्था पर प्रभुत्व जमा रहे हैं, पैसा कमा रहे हैं और सज्जनों के खेल को नष्ट कर रहे हैं।