वाराणसी। बनारस के बजरडीहा में मुस्लिम आबादी ज्यादा है। यहाँ गलियों की अधिकता होने के नाते समस्याएँ भी काफी हैं। स्मार्ट सिटी का नाम सिर्फ सड़कों तक ही सीमित रह गया है। गलियाँ आज भी बेहाल हैं। यह कहते हुए वार्ड नंबर 71 के निवासी साबिर निराश हो जाते हैं और घर के बगल में इकट्ठा कूड़े के ढेर को देखने लगते हैं। वह बताते हैं कि मुस्लिम होने के नाते विकास के मुद्दे पर अब हमारी उपेक्षा हो रही है।
बजरडीहा के इस वॉर्ड में ज़्यादातर लोगों के घरों में पॉवरलूम और हैंडलूम (हथकरघा) है। यहाँ के लोगों के पास एकमात्र यही रोजगार है। लोग ऑर्डर पर साड़ियाँ बनाते हैं और इसके लिए उन्हें 12 से 14 घंटे काम करना पड़ता है। बच्चे और महिलाएँ भी इस काम में सहयोग करती हैं ताकि दिनोंदिन बढ़ती महंगाई में आमदनी भी बढ़ाई जा सके।
साबिर बताते हैं कि इस व्यवस्तता के बीच गली की बुनियादी ज़रूरतों को लेकर हम सभासद या सम्बंधित विभागों के चक्कर नहीं लगा पाते। समस्या ज़्यादा होने पर सभासद के पास चले भी गए तो वह सम्बंधित विभागों के अधिकारी का नम्बर दे देते हैं। फोन करके जब हम अधिकारी से शिकायत करते हैं तो वह अप्लीकेशन देने के लिए कहते हैं। इन्हीं सब आपाधापी में हमारी समस्याएँ नहीं सुलझ पातीं।’
खाली पड़ी ज़मीनें बन चुकी हैं कूड़ा घर, सफाईकर्मी सिर्फ सड़कों का ही कूड़ा उठाते हैं
ऐसी ही शिकायतें मोहम्मद सलीम की भी हैं। उन्होंने 20 साल पहले यहाँ ज़मीन ली थी। वह बताते हैं कि सीवर कनेक्शन करवाने के लिए पचासों बार सभासद से शिकायत किए, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। वह बताते हैं कि भाजपा सरकार ने खराब सड़क को 15 दिन में ठीक करने का वायदा किया था लेकिन गलियों की दुर्दशा पर उनका कोई नेता कुछ नहीं बोलता है।
सलीम बताते हैं कि इस वॉर्ड में जहाँ-जहाँ खाली ज़मीनें हैं, वहाँ पर कूड़े का अम्बार लगा हुआ है। इसकी शिकायत उस ज़मीन के बगल में रहने वाले लोग स्थानीय सभासद से कर चुके हैं, लेकिन सफाई आज तक नहीं हुई। कूड़ा उठान के सवाल पर सलीम बताते हैं कि कर्मचारी सिर्फ सड़कों का ही कूड़ा उठाते हैं। महीना-पंद्रह दिन पर गली में आते तो हैं, लेकिन ढाक के तीन पात की तर्ज़ पर कूड़ा उठान कर चले जाते हैं।
यहीं के निवासी शकील की दिनचर्या अपनी गली में झाड़ू लगाकर होती है। इकट्ठा कूड़े को वह गली ही सामने रखे डिब्बे में डाल देते हैं। कूड़ा उठान के बावत वह बताते हैं कि हर माह पचास रुपये लेने के लिए निगमकर्मी हमारे दरवाजे पर आ जाता है। शिकायत पर वह साफ कह चुका है कि, ‘मुझे बिल लेने के लिए रखा गया है। आपको कोई शिकायत है तो अपने पार्षद या नगर निगम से शिकायत करें।’
शकील बताते हैं कि गंदगी में बच्चों को खेलता देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता। ऐसे में बच्चों के बीमार होने का भय भी बना रहता है। इसलिए मैं रोज सुबह अपनी गली को साफ कर देता हूँ। शकील के घर के ठीक बगल में खाली पड़ी ज़मीन पर कूड़े का ढेर लगा हुआ है। उसकी सफाई क्यों नहीं हुई? इस सवाल पर वह बताते हैं कि सफाईकर्मी कूड़ा गाड़ी लेकर इसी रास्ते आता-जाता है लेकिन यहाँ की सफाई नहीं करता।
अहमद अभी नौजवान हैं, वह भी समझने लगे हैं कि मुस्लिमों को अब उपेक्षा भरी नज़रों से देखा जा रहा है। इस बावत अहमद एक समस्या की चर्चा करते हैं। वह बताते हैं, ‘गली से बाहर सड़क पर कुछ महीने पहले स्ट्रीट लाइट खराब हो गई, उधर अंधेरा भी काफी रहता है। सड़क से आगे हिन्दू लोग रहते हैं, वहाँ भी स्ट्रीट लाइट खराब हो गई है। इसकी जानकारी सभासद को थी, लेकिन उन्होंने सबसे पहले हिन्दुओं के इलाके में लगी स्ट्रीट लाइट को ठीक करवाया। हमारे गली के सामने लाइट अभी तक नहीं बनी।
अहमद बताते हैं कि गली से थोड़ा आगे कूड़े का डिब्बा रखा हुआ है, जिसके आस-पास बिखरा कचरा दुर्गंध देता है, उसकी भी सफाई नहीं होती। वह सवाल करते हैं कि विकास कार्यों से भी धर्म-जाति को जोड़ना कहाँ तक जायज है?’
बज़रडीहा की तंग गलियों में गंदगी के साथ बिजली के खम्भे न होने की भी समस्या है। यहाँ मकान, छत, चहारदीवारी, लोहे की सरिया, बाँस-बल्ली के सहारे बिजली के तार दौड़े हुए हैं। इस कारण यहाँ के रहने वालों में हादसे का भी भय बना रहता है। कई लोग तो बच्चों को छत पर ही नहीं जाने देते। गली में गंदगी और छत पर करंट के भय के कारण बच्चे मन मसोसकर कमरे में ही रह जाते हैं। हालत यह है कि खेलने-कूदने के उम्र में उन्हें भय के माहौल में रहना पड़ रहा है।
मदनपुरा के रहने वाले अब्दुल्लाह ने तीस साल पहले बज़रडीहा में ज़मीन ली थी। यहाँ सीवर-चौका लग जाने के इंतज़ार में अब्दुल्लाह ने 15 साल तक अपनी ज़मीन पर कोई निर्माण कार्य नहीं करवाया। परिवार बढ़ने पर उन्होंने अपना मकान तो बनवा लिया, लेकिन उनकी गली में उस समय भी सीवर लाइन नहीं थी।
इस कारण उन्होंने पड़ोसियों की मदद से चंदा इकट्ठा कर गली में सीवर-चौका का काम करवाया। अब्दुल्लाह बताते हैं कि चुनाव के समय सारे प्रत्याशी आते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं। चुनाव जीतने के बाद भी स्थानीय सभासद आज तक आश्वासन देते आए हैं।
पार्षद का गैरज़िम्मेदराना जवाब
इन समस्याओं के बावत पार्षद श्यामआसरे मौर्य बताते हैं कि, ‘मैं हर दिन अपने इलाके में घूमता हूँ। लोग मुझसे तो कोई समस्या नहीं बताते हैं। अगर आपको समस्याएँ मिली हैं तो इस विषय में आप अधिकारियों से बात करें।’
वह इतने पर ही नहीं रुके। भड़कते हुए बोले-
‘15 सौ रुपये मिलते हैं मुझे। उतने में क्या-क्या काम करें?’
‘तो आप हर बार सभासद के दावेदार क्यों बनते हैं?’
‘मुझे जनता चुनती है, क्यों न बनूँ दावेदार?’
‘यानी फायदा है, तभी आप लगे हुए हैं।’
‘हाँ, तो काम भी तो कर रहा हूँ।’
‘आपके वॉर्ड के मुस्लिम इलाकों में कूड़ा उठान न होने की समस्या है। इस पर क्या कहना है आपका?’
‘कूड़ा उठान की समस्या से मेरा कोई लेना-देना नहीं है।’
‘बिजली के खम्भे अब तक नहीं लगे, आपने इसके लिए क्या कार्रवाई की?’
श्याम आसरे इसके लिए भी बिजली विभाग के अफसरों से सम्पर्क करने की बात करने लगे। गाँव के लोग डॉट काम की ओर से वॉर्ड के समस्याओं से सम्बंधित सवालों की झड़ी लगने के बाद उन्होंने कहीं निकल रहा हूँ… बोल कर फोन काट दिया।
बज़रडीहा में जनसमस्याओं पर सवाल पूछने पर श्याम आसरे ने सबसे पहले कुछ तथाकथित पत्रकारों का नाम लिए बगैर यह आरोप लगाया कि बहुत से मीडियावाले आते हैं, बातचीत करते हैं लेकिन खबर नहीं छापते। कुछ दिन बाद विज्ञापन के नाम पर पैसे भी ले लेते हैं।
ऐसे में सवाल उठाना लाज़मी है कि 15 सौ रुपये कमाने वाला पार्षद आखिर किस ‘फायदे’ के लिए अपने क्षेत्र का नेता बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं?
इन समस्याओं की सचाई जानने के लिए बजरडीहा में कांग्रेस नेता (निकाय चुनाव प्रत्याशी) राजेश पांडेय से भी चर्चा की गई। उन्होंने बताया कि इलाके में भी सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति चरम पर है। मुस्लिम बाहुल्य गलियों में कूड़ा उठान से लेकर बिजली के खम्भे न होना, जैसी समस्याएँ हैं। यह समस्याएँ 10-15 बरसों से बरकरार हैं। अन्य गलियों को छोड़िए मेरी कॉलोनी में आज भी जलजमाव की समस्या है। कुछ वर्ष पहले जब कॉलोनी की गली बन रही थी, तभी मैंने ठेकेदार से समस्या के समाधान की बात की थी, लेकिन उस समय से लेकर आज तक सिर्फ आश्वासन ही मिलता आ रहा है। राजेश पांडेय ने कहा कि बनारस में इन दिनों वायरल बुखार का प्रकोप चल रहा है। प्रत्येक घरों में कोई न कोई बीमार है। ऐसे में इलाके में फॉगिंग की व्यवस्था नहीं की जा रही है। महीना-बीस दिन पर एकाध बार फॉगिंग हो जाती है। जबकि बीमारी के माहौल में रोजाना फॉगिंग होनी चाहिए।
‘क्या कारण है कि श्यामआसरे पिछले चार बार से पार्षद बन रहे हैं?’
कांग्रेस नेता राजेश पांडेय बताते हैं कि ‘बीते निकाय चुनाव में बजरडीहा के इस वॉर्ड में कुल 11 बूथ बनाए गए थे। वोटों की काउंटिंग के बाद जब मैंने अपनी हार का विश्लेषण और लोगों से विचार-विमर्श किया तो एक ही बात सामने आई और वह है- ईवीएम की गड़बड़ी। वोटर लिस्ट से नाम गायब कर देना भी एक कारण है।’ राजेश बताते हैं, ‘कि इस बार नाम की पर्ची डबल हो जाने की समस्या ज़्यादा देखने को मिली थी। ऐसे में सैकड़ों लोग वोट नहीं दे सकें। मेरे परिवार में भी कई वोट कटे थे।’
एक मामले की चर्चा करते हुए राजेश बताते हैं कि, ‘क्षेत्र के सनशाइन स्कूल में बने बूथ में बीते निकाय चुनाव के लिए जब वोट डाले जा रहे थे, तो वहीं पर मैंने भाजपा के दो ऐसे वोटरों को पकड़ा, जिन्हें लाकर सिर्फ भाजपा के लिए वोट डलवाया जा रहा था। जब मैंने नाराज़गी जताई तो कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव ने मामले को खत्म करवा दिया।’ राजेश बताते हैं कि, ‘उस दिन अन्य बूथों पर ऐसी कई शिकायतें आईं। अब तो ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की प्रथा ही चल गई है।’ राजेश ने कहा कि, ‘कैंट विधायक अपने समर्थकों के साथ इस वॉर्ड में घूम-घूम कर कह रहे थे कि केंद्र-यूपी में हमारी पार्टी की सरकार है। वाराणसी में भी भाजपा की सरकार होगी तो विकास कार्य नहीं रूकेंगे। अब मैं इन्हीं भाजपाइयों से वॉर्ड में विकास की बात करूँ तो वह बगली झाँकने लगेंगे।’