उत्तर प्रदेश के वाराणसी, चंदौली जनपद से लगा हुआ मिर्ज़ापुर जिले का जमालपुर विकास खंड के मनऊर गाँव के सड़क की हालत इतनी खराब है कि स्कूल पहुँचने के बाद बच्चे कीचड़ से लथपथ हो जाते हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत आज तक इस गाँव में सड़क बनने की कोई योजना नहीं पहुँच पाई है। विकास की बात करने वाली सरकार अपने किए काम का बहुत ज़ोर-शोर से प्रचार करती है। जैसे 2014 के बाद ही वाराणसी को क्योटो बनाने और 100 स्मार्ट सिटी बनाने की योजना थी। लेकिन 10 वर्ष बाद भी बनारस क्योटो नहीं बन सका बल्कि 1 घंटे की बारिश में रास्ते जलमग्न हो जाते हैं।
बेहना जाति पसमांदा मुसलमानों में गिनी जाती है और पारंपरिक रूप से रुई धुनने का काम करती रही है लेकिन अब कोई भी यह काम नहीं करता। मशीनें आ जाने से उनको काम मिलना धीरे-धीरे बंद होता गया। जाड़ा शुरू होते ही अपनी धुनकी कंधे पर लिए वे दूर-दराज के इलाकों में निकल जाते और बसंत आते-आते अच्छी-ख़ासी कमाई करके वे वापस आते। बाकी के दिनों में मेहनत-मजदूरी के दूसरे काम भी करते। लेकिन बनी-बनाई रजाइयाँ आने और मशीनों की बढ़ती संख्या ने उन्हें खदेड़ दिया।
बिहार में सालों से राम, रामायण, रावण, सत्यनारायण की पूजा जैसे अलग-अलग जरियों से राष्ट्रवाद की आंच में पकी हिंदुत्व की जिस पॉलिटिक्स को जीतन राम मांझी वैचारिक तौर पर चुनौती दे रहे थे, वो उम्र के 80वें बसंत पर आते-आते फुस्स हो गई। आखिर ऐसा क्यों हुआ कि चुनाव से पहले जीतन राम को अयोध्या के राम मन्दिर में जाना पड़ गया? पढ़ें बिहार से सीटू तिवारी की चुनावी ग्राउंड रिपोर्ट...
जहां एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार पीएम आवास योजना के तहत 3 करोड़ आवास बनाने का दावा ठोंक रही है वहीं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिए गांव 'जयापुर' में अभी भी कई परिवार झोंपड़पट्टी में रहने को मजबूर हैं।
बलिया जिले में बलिया-सिवान को जोड़ने के लिए घाघरा नदी पर बनने वाले दरौली पुल के कारण बलिया जिले के दर्जनों गाँवों की ज़मीन घाघरा में समाती जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि पुल के निर्माण की जो गाइडलाइन है उसका पालन नहीं किया गया। नदी के ऊपर इसकी अनुमानित लंबाई 1542 मीटर तय थी। इसके अलावा दोनों किनारों को एप्रोच मार्ग से जोड़ा जाना था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अभी तक 1542 मीटर का काम भी अधूरा है।
गाँव के लोग पर खबर प्रकाशित होने के बाद प्रभावित किसानों को अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने की हिम्मत मिली। उन्होंने न्यायिक व्यवस्था में सरकार के प्रयास पर मजबूती से आपत्ति जताई और परिणाम यह हुआ कि किसानों की जमीन को जबरन अधिग्रहित करने की इस खबर के असर ने वाराणसी के पूर्वी छोर पर स्थित जाल्हूपुर परगना के चार गाँवों तोफापुर, मिल्कोपुर, कोची और सरइयाँ की जमीन को बंजर होने से बचा लिया है।
मुजफ्फरपुर जिले में बाढ़ से तबाही के आंकड़े को देखें तो साहेबगंज प्रखण्ड में लगभग 10 पंचायत हैं, जो नदी के किनारे आबाद हैं। उसमें हुस्सेपुर रत्ती में लगभग 4000 हजार मवेशियों को बाढ़ आने के बाद काफी परेशानी होती है। इन पंचायतों में एक बड़ी आबादी नदी किनारे जीवन यापन करती है।
बिना आधार कार्ड के सरकारी अस्पतालों के ओपीडी जांच और गंभीर स्थिति में भर्ती करने जैसी ज़रुरी प्रक्रिया से इन्कार कर दिया जाता है। देश में ऐसे कई केस सामने आये हैं जब गर्भवती महिला का आधारकार्ड न होने की स्थिति में भर्ती करने से मना कर दिया गया और महिला ने अस्पताल के बाहर खुले में बच्चे को जन्म दिया। आखिर ऐसी आधार(UIDAI ) व्यवस्था किस काम की जो ग़रीब बच्चे को शिक्षा और किसी मरीज को इलाज देने में बाधक बने।
यही झोंपड़ा उसका घर है, पर इसे घर भी भला कैसे कहा जा सकता है? बस पन्नियों का एक पर्दा भर है, इंसानों से भी और आसमान से भी। पन्नियों को ही पर्दे सा घेर लिया गया है और फिलहाल यही इनका घर है।