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नव दलित लेखक संघ की ‘नव सृजन नव उल्लास’ मासिक गोष्ठी हुई संपन्न

कार्यक्रम में काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया था। काव्य गोष्ठी की शुरुआत राधेश्याम कांसोटिया के गीतों से होती है। राधेश्याम कांसोटिया ने गीतों के माध्यम से लोगों का मन मोह लिया

दिल्ली। नव दलित लेखक संघ की ‘नव सृजन नव उल्लास’ मासिक गोष्ठी छतरपुर, दिल्ली स्थित, मदनलाल राज़ के निवास पर सम्पन्न हुई। मदनलाल राज़ के पिताजी ठंडी राम लोधवाल जी के निर्वाण दिवस की पूर्व बेला पर हुए इस कार्यक्रम के दौरान काव्य गोष्ठी का भी आयोजन हुआ। गोष्ठी में मौजूद ठंडीराम लोधवाल के परिजन श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस दौरान परिवारजनों ने उनकी स्मृति से जुड़े बहुत से अनुभव साझा किए।

कार्यक्रम में काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया था। काव्य गोष्ठी कि शुरुआत राधेश्याम कांसोटिया के गीतों से होती है। राधेश्याम कांसोटिया ने गीतों के माध्यम से लोगों का मन मोह लिया ‘तेरे प्यार के प्रचंड रूप को देखकर/हम इतने भ्रमित हुए कि हम/प्रणय गीत गाते-गाते प्रलय गीत गाने लगे।’ इसके बाद बंशीधर नाहरवाल ने राजस्थानी भाषा में गीत पेश किया ‘मैं थानै समझाऊं रै भाया/पर थारी समझ में कोनि आवै।’ जबकि मामचंद सागर के सुगठित विरह गीत की बानगी कुछ इस प्रकार रही- ‘जो तुमसे छिपी है, वो गीतों में गुथी है/आंखों ने कहा है, कंठ से फूटी है।’ गीता कुमारी गंगोत्री ने तरन्नुम से कई रचनाएं प्रस्तुत की। उनके गीत की पंक्तियां इस प्रकार रही- ‘अच्छे दिन का झांसा देकर, अच्छा फांस लिया है/तिनका-तिनका मारकर तुमने, जिंदा लाश किया है।’

बृजपाल सहज ने कई मुक्तक सुनाए, उन्होंने एक मुक्तक में कहा- ‘सच कह तो दूं, पर समझता कौन है/इसीलिए बुद्ध मौन है।’ मदनलाल राज़ ने अपने पिताजी से जुड़े संस्मरण, कविता और माताजी से जुड़ी कवितायें प्रस्तुत की। उनकी कुछ काव्य पंक्तियां इस प्रकार रही- ‘मां तुम जब भी याद आती हो/तो आंखों में आसूं भर आते हैं/तेरे दोनों बेटे लेक्चरर हो गए/हम तुम्हें आंखों पर बैठाते हैं।’ प्रवीण कुमार और लोकेश कुमार ने दो अन्य प्रतिष्ठित शायरों की गज़लें प्रस्तुत कर कार्यक्रम में मौजूद लोगों का दिल जीत लिया।

डॉ अमित धर्मसिंह ने ‘पीठ पर घर’ और ‘मृत्यु का इतिहासबोध’ कविताओं के साथ-साथ चंद गजलों के चंद अशआर भी प्रस्तुत किए। उनकी ग़ज़ल की एक लाइन इस प्रकार रही ‘जवाब जिसका न कोई सवाल कैसा है, मेरे नगर में ये बोलो बवाल कैसा है, खुद अपने आप ही फंसने लगे हैं सब पंछी, शिकारी ने फेंका ये जाल कैसा है!’ कार्यक्रम में अरुण कुमार पासवान ने भी कविता पाठ किया जिसकी कुछ लाइनें इस प्रकार से हैं ‘तालियां मत पीटना मेरे बोलों पर, क्योंकि किसी तमगे के लिए नहीं लिखता मैं कविताएं!’

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही पुष्पा विवेक ने गोष्ठी के आयोजन और उसकी सार्थकता पर विस्तार से प्रकाश डाला। तत्पश्चात ‘औरत कमजोर नहीं’ और ‘मर जाते हैं’ शीर्षक से दो कविताएं भी उन्होंने प्रस्तुत कीं। उनकी एक कविता की काव्य पंक्तियां कुछ इस प्रकार रही- ‘साब गरीब के सपने तो सपने ही रह जाते हैं/साब गरीब के सपने तो समय से पहले ही मर जाते हैं।’

कार्यक्रम का संचालन अमित धर्मसिंह ने किया जबकि  धन्यवाद ज्ञापन संयोजक मदनलाल राज़ ने किया। गोष्ठी में डॉ. गीता कृष्णांगी, लोकेश कुमार, मामचंद सागर, बंशीधर नाहरवाल, राधेश्याम कांसोटिया, बृजपाल सहज, नेतराम ठगेला, आदि शामिल रहे।

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