Thursday, December 25, 2025
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महात्मा गांधी …जै राम जी!

मनरेगा मांग-आधारित योजना है, लेकिन नए विधेयक में इससे राम-राम कर लिया गया है। 125 दिनों के रोजगार की उपलब्धता उन क्षेत्रों के लिए होगी, जिसका चयन केंद्र सरकार करेगी। इस चयन के मापदंड का उल्लेख विधेयक में नहीं मिलता और हम आसानी से अनुमान लगा सकते है कि यह चयन भाजपा की राजनैतिक जरूरतों को पूरा करने का माध्यम बनेगा। इसके साथ ही, ग्रामीण विकास योजनाओं को तैयार करने में ग्राम पंचायतों की स्वायत्तता भी खत्म हो जाएगी और उन्हें केंद्र की बनी-बनाई लीक पर काम करना होगा। इस प्रकार, राज्यों और केंद्र के बीच संविधान में उल्लेखित सहकारी संघवाद की अवधारणा को भी दफनाया जाएगा।

महात्मा अब बापू बने, जिनके रूप अनेक!

गोडसे के जन्म दिन पर महात्मा गांधी की मूर्तियों पर गोलियां दागने से इनका मन नहीं भरा है, तो गांधीजी की हत्या का यह एक और तरीका ढूंढ निकाला गया है। मनरेगा अब पूबारेगा हो गया है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का नाम संघी गिरोह ने अब बदलकर पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना कर दिया है। धीरे से योजना के बोर्डों से महात्मा गांधी की तस्वीर कब उतर जाएगी और कब आसाराम या मोरारी बापू चढ़ जाएंगे, पता भी नहीं चलेगा। नामों को बदलना और काम की गुणवत्ता को गिराना, इस धर्मनिरपेक्ष देश को हिंदू राज में बदलने की पहली निशानी है।

टैगोर के राष्ट्रगान : दक्षिण एशिया के बेशकीमती रत्न

पूर्वी पाकिस्तान को अलग देश बनाने के लिए चले आंदोलन का नेतृत्व मुजीबुर्रहमान ने किया। इन बंगालियों का थीम सांग था 'आमार सोनार'। हाल में असम में कांग्रेस की एक बैठक में एक कांग्रेसी ने 'आमार सोनार बांग्ला' गीत गाया।असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अपनी पुलिस को बांग्लादेश का राष्ट्रगान गाने के लिए उस व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा। मुख्यमंत्री आक्रामक दक्षिणपंथी हैं। वे समय समय पर मुस्लिम समुदाय को अपमानित करने वाले वक्तव्य देते रहते हैं। यह समुदाय असम में जबरदस्त उपेक्षा झेल रहा है।

दिल्ली : दो दिवसीय युवा समाजवादी सम्मेलन संपन्न

भारत के समाजवादी आंदोलन की 90वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक अवसर पर युवा सोशलिस्ट पहल (YSI) के तत्वावधान में, 31 अक्टूबर से 1 नवंबर, 2025 तक दिल्ली के राजेंद्र भवन में दो दिवसीय युवा समाजवादी सम्मेलन का आयोजन किया गया। युवा सोशलिस्ट पहल के तहत भारतीय समाजवादी आंदोलन की 100वीं वर्षगांठ तक अगले दस वर्षों में विभिन्न सम्मेलनों, चर्चाओं, कार्यशालाओं और संगोष्ठियों के आयोजन और एक्शन कार्यकर्मों के माध्यम से युवाओं को समाजवादी विचारों और संवैधानिक मूल्यों के बारे में शिक्षित करने पर केन्द्रित किया जायेगा। युवा सोशलिस्ट पहल (यूथ सोशलिस्ट इनिशिएटिव) युवाओं का एक मंच सरोकरधर्मी शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, विद्वानों, छात्रों, ट्रेड यूनियन नेताओं, किसान नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं का साझा मंच है।

बौद्धिक गुलामी को रेखांकित करने वाले विचारक थे किशन पटनायक

किशन पटनायक का निधन 27 सितम्बर, 2004 को हुआ था। आज उनकी बीसवीं स्मृति-तिथि है। इस आलेख में बौद्धिक गुलामी की स्वीकार्यता, नौजवान की मानसिकता, राजनीति और बुद्धिजीवियों की भूमिका पर किशन पटनायक के हवाले से विचार किया गया है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पिछड़े, दलित, आदिवासी और दिव्यांगों के आठ पदों को NFS क्यों किया गया?

आज से 70 वर्ष पहले ऐसे वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान में लाई गई थी, जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से हाशिये पर जीवन जीने को मजबूर थे क्योंकि देश का सवर्ण तबका, खासकर ब्राह्मण, उन्हें आगे बढ़ने देना नहीं चाहते थे लेकिन संविधान के सामने विवश थे। हाशिये के इन समाजों ने शिक्षित हो आगे आना शुरू किया। यही बात भारतीय सवर्णों के लिए अपच हो गई। फिर भी भारतीय संविधान हाशिये के समाजों के अधिकारों की सुरक्षा करता रहा है। अब आरएसएस के दिमाग से संचालित भाजपानीत सरकार ने हाशिये के समाज के लोगों को फिर से हाशिये पर ढकेलने के लिए अलग षड्यंत्र कर रही है। देश का अपना संविधान होने के बावजूद आरएसएस यहाँ अपना एक अलग मनुवादी संविधान थोपने के प्रयास में है। प्रायः सभी चयन समितियों में अपने वर्चस्व का लाभ उठाकर शिक्षा और नौकरियों के मामले में उन्हें NFS कर हटाने के प्रयास में है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ताजा मामले में जानिए कि कैसे आठ उम्मीदवारों को NFS कर दिया गया।

दुकानों पर नाम प्रकरण : निशाने पर पसमांदा मुसलमान, सुप्रीम कोर्ट ने लोकतन्त्र की हिमायत की

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने जिस तरह से काँवड़ यात्रा की राह में पड़ने वाली दुकानों, ठेलों और होटलों पर मालिक के नाम की तख्ती अथवा फ़्लेक्स लगाने का फरमान जारी किया वह निश्चित रूप मेहनतकश पसमांदा मुसलमानों को निशाने पर लेने का प्रयास था। यह 2024 के चुनाव में घुटनों के बल आई भाजपा की हताशा को दर्शाता है। लेकिन इससे भी बढ़कर विकराल होती बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों को उलझाने का षड्यंत्र भी है। भाजपा को लगता है कि इस तरह के नैरेटिव बनाकर वह न सिर्फ हिंदू दूकानदारों बल्कि रोजगार की उम्मीद में उम्रदराज़ हो रहे युवाओं को भी खुश कर देगी। यह एक खतरनाक कदम था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाम लगाया।

मानसिक विचलन और असुरक्षा की ज़मीन पर फूलता-फलता बाबावाद

अनुयायियों का असुरक्षा वाला पहलू उनके मनोविज्ञान को समझने की कुंजी है। असुरक्षा जितनी अधिक होगी, बाबा के प्रति समर्पण उतना ही अधिक होगा, अनुयायी सामान्य ज्ञान या तर्कसंगत सोच को पूरी तरह से दरकिनार कर देंगे। असुरक्षा के पहलू को तब ठीक से समझा जा सकता है जब हम वैश्विक परिदृश्य को देखें। जिन देशों में आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा कम है, वहां धर्मों के सक्रिय अनुयायियों में गिरावट देखी जा रही है।

देश में टूटते समाज और बेरोजगारी का भयावह परिणाम है आत्महत्या की बढ़ती दर

किसी भी आत्महत्या के समाचार मिलने के बाद, कुछ देर आत्महत्या के कारणों के कयास लगाए जाते हैं लेकिन आत्महत्या करने के लिए जिन मानसिक व आर्थिक दबावों का सामना व्यक्ति करता है, उससे उबरने की कोशिश करने का माद्दा उसमें बचा नहीं होता। देश में आत्महत्या के आंकड़ें जिस गति से बढ़ रहे, उसके लिए बढ़ते मानसिक दबाव के साथ अवसाद प्रमुख है। भले यह लोगों को व्यक्तिगत कारण लगे लेकिन इसके लिए सरकार द्वारा लागू नीतियाँ पूर्णत: जिम्मेदार है।

क्या पार्किंग निर्माण के बहाने दीक्षाभूमि को ध्वस्त करने की परियोजना चल रही है

नागपुर स्थित दीक्षाभूमि में विगत कुछ महीनों से दीक्षाभूमि स्मारक समिति के निर्णय के अनुसार एक निर्माण कार्य जारी है जिसके लिये मुख्य स्तूप के नीचे खुदाई करके वाहनों के लिये तीन मंज़िली पार्किंग का निर्माण शुरू हो गया है। इस खुदाई की गहराई और व्यापकता का अंदाज़ इस तथ्य से हो रहा है कि अब तक इतनी मिट्टी खोदी जा चुकी है कि उसका ढेर दीक्षाभूमि के स्तूप की बराबरी कर चुका है। जाहिर है कि यह खुदाई यूँ ही जारी रही तो जल्द ही यह स्तूप और इसके परिसर में डा. भदंत आनंद कौसल्यायन के हाथों से लगाया ऐतिहासिक बोधि वृक्ष नष्ट हो जाएंगे।

पिछड़ों को मुख्यधारा में शामिल करने की चुनौती और पेपरलीक के बढ़ते मामले

4 जून से पहले, चुनाव को लेकर जहां पूरे देश में अलग-अलग पार्टियों की राजनीति चर्चा केंद्र में थी, वहीं 4 जून को नीट के नतीजे आने बाद नीट पपेरलीक होने की चर्चा हो रही है। फिर 18 जून को नेट परीक्षा का पेपरलीक हो गया। परीक्षा एजेंसी ने दुबारा परीक्षा करवाने की बात जरूर कही है लेकिन क्या आने वाले दिनों में पेपरलीक नहीं होगा, इसका भरोसा युवा कैसे करें?
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