नागपुर स्थित दीक्षाभूमि वह स्थान है जहाँ 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी, किंतु यह ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व का स्थान आज अस्तित्व संकट में है। अगर हालात यही रहे तो आगामी अक्टूबर के धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस, जिसमें देश भर से 30 लाख के करीब लोग आते हैं, के लिये यहाँ प्रवेश हमेशा के लिये प्रतिबंधित हो सकता है। इसका कारण यह है कि इस स्थल पर विगत कुछ महीनों से दीक्षाभूमि स्मारक समिति के निर्णय के अनुसार एक निर्माण कार्य जारी है जिसके लिये मुख्य स्तूप के नीचे खुदाई करके वाहनों के लिये तीन मंज़िली पार्किंग का निर्माण शुरू हो गया है। इस खुदाई की गहराई और व्यापकता का अंदाज़ इस तथ्य से हो रहा है कि अब तक इतनी मिट्टी खोदी जा चुकी है कि उसका ढेर दीक्षाभूमि के स्तूप की बराबरी कर चुका है। जाहिर है कि यह खुदाई यूँ ही जारी रही तो जल्द ही यह स्तूप और इसके परिसर में डा. भदंत आनंद कौसल्यायन के हाथों से लगाया ऐतिहासिक बोधि वृक्ष नष्ट हो जाएंगे।
इस विकराल खुदाई को देखते हुए नागपुर के अम्बेडकरवादियो में रोष है और उन्होंने पिछले तीन-चार दिनों से इसके खिलाफ मुहिम छेड़ते हुए इस खुदाई पर रोक लगाने में सफलता हासिल की है। किंतु यह रोक अस्थायी है। जाहिर है कि महाराष्ट्र सरकार या नागपुर महानगर पालिका की तरफ से इस खुदाई को बंद करने का कोई आदेश नहीं हुआ है, बल्कि यह रोक आम्बेडकरवादियों के विरोध को देखते हुए एक एहतियाती कदम भर है।
लोगों के भारी विरोध के चलते अंतत: दीक्षाभूमि स्मारक समिति के सदस्यों ने अम्बेडकरवादियों के सामने अपना पक्ष रखने के लिये परिसर में एक मीटिंग का आयोजन किया। इसमें समिति के सचिव डा राजेंद्र गवई ने बताया कि इस खुदाई और भविष्य में होने वाले निर्माण से घबराने जैसी कोई बात नहीं क्योंकि यह परिसर के नीचे किया जाएगा, न कि ज़मीन के ऊपर तथा इस निर्माण में वाहनों के लिये तीन मंजिली पार्किंग होगी और इसके साथ ही दो आडिटोरियम भी बनाए जाएंगे जहाँ बुद्ध और बाबासाहेब के दर्शन पर आधारित प्रदर्शनी होगी।
किंतु गवई जी की यह बात किसी के भी गले नहीं उतर सकती, क्योंकि सही कहा जाए तो इस परिसर में वाहनों के अंडरग्राउंड परिसर की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है, क्योंकि धम्मचक्र प्रवर्तन के दिन यहाँ देश भर से 30 लाख के आसपास लोग आते हैं। यह इतनी बड़ी संख्या होती है कि वाहनों पर प्रतिबंध 3-4 किलोमीटर के दायरे से लगाना पडता है। सड़कों पर लोगो की संख्या इतनी अधिक होती है कि वाहन का प्रवेश असम्भव होता है। सवाल है कि जब यहाँ वाहनों का प्रवेश ही नहीं होगा तो फिर पार्किंग बनाने का क्या मतलब?
हालांकि इसके जवाब में गवई यह कहते हैं कि यह पार्किंग धम्मचक्र के सैलाब के लिये नहीं है बल्कि उस दिन तो यह पार्किंग आम जनों के लिये खुली रहेगी ताकि वे यहाँ आराम कर सकें और इसमें उनके शौचालय आदि की भी व्यवस्था रहेगी। उनका यह तर्क भी एकदम अर्थहीन है क्योंकि इससे बहुत सारे सवाल उठते हैं। पहला कि यदि यह पार्किंग दीक्षाभूमि में आने वालो के लिये नहीं तो फिर किसके लिये? हालांकि इसके जवाब में वे कहते हैं कि यह पार्किंग बाकी सामान्य दिनों के लिये होगी। लेकिन उनकी यह बात तो और भी बेबुनियाद है क्योंकि सामान्य दिन आने वाले लोगों की संख्या दिन भर में 100 से अधिक नहीं होती। और तो और इनके लिये परिसर में वाहन पार्किंग के लिये पर्याप्त स्थान भी है। ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि जब इतने वाहन ही नहीं आएंगे तब यह तीन मंज़िले पार्किंग में आखिर कौन वाहन पार्क करेगा? इस मामले में आम जनता द्वारा शक किया जा रहा है कि शायद यह पार्किंग मेट्रो स्टेशन के वाहनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। जाहिर है कि यह शक आधारहीन तो नहीं है।
इस मीटिंग में एक विदूषी ने यह भी मत जाहिर किया कि दीक्षाभूमि का स्तूप पुरानी इंजीनियरिंग तकनीक से बना है इसलिये तीन मंजिल खुदाई के दौरान होने वाले वाइब्रेशन से नुकसान का शिकार हो सकता है। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि इस समय यह नुकसान दिखाई न दे लेकिन आने वाले 10-15 साल में निश्चित ही दीक्षाभूमि का स्तूप और ऐतिहासिक बोधिवृक्ष धराशायी हो जाएंगे। इसलिये यह निर्माण हर कीमत पर रुकना ही चाहिए।
एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि किसी भी धार्मिक स्थल पर वाहनों के प्रवेश को दूर से प्रतिबंधित किया जाता है ताकि वह स्थल प्रदूषण के नुकसान से बच सके किंतु इस निर्माण से तो उल्टा हमारा स्तूप प्रदूषण का भी शिकार बनेगा।
इस निर्माण के विरोध में यह भी तर्क दिया गया कि यदि इस अंडरग्राउंड पार्किंग को धम्मदीक्षा दिवस में आम जनता के लिये खोला जाएगा तो यह लाखों लोगों के लिये बहुत छोटा पड़ेगा। जाहिर है ऐसे में दम घुटने या धक्का-मुक्की होने से लाखों लोगों की जान जा सकती है। वैसे भी अंडरग्राउंड होने की वजह से इसमें ऑक्सीजन सबके लिये पर्याप्त नहीं हो सकती। वहीं एक जुझारू महिला ने आशंका व्यक्त की कि सुरक्षा के अभाव में इस पार्किंग में कभी भी कोई आतंकी बम फोड़ कर आतंकी हिंसा को सरलता से अंजाम दे सकता है।
कुल मिलाकर आम जनता इस निर्माण के विरोध में हैं किंतु वहीं स्मारक समिति का कहना है कि वह यह निर्माण कर आम दर्शनार्थी के लिये सुविधा बढ़ाना चाह रही है।
अब तक की यह सारी जानकारी मैंने आवाज़ इंडिया चैनल पर उपलब्ध मीटिंग के फुटेज के आधार पर ही लिखी है, किंतु मैंने अपने आलेख के लिये नागपुर के बहुत से आम्बेडकरवादियों से भी टेलीफोन पर सम्पर्क किया और इस घटना की विस्तार से जानकारी हासिल की। इस चर्चा से बहुत सी जानकारी सामने आई।
नागपुर के आम्बेडकरवादी कार्यकर्ता संजू लोखंडे का कहना है कि दीक्षाभूमि को आज देखते हुए यह साफ होता है कि यहाँ बहुत बडे पैमाने का निर्माण होगा। आज यहाँ खुदाई की मिट्टी का ढेर लगभग स्तूप को छू चुका है। इसे देखते हुए तो मुझे प्राचीनकाल के साकेत की याद आ रही है जहाँ अलेक्ज़ेंडर कनिंघम के अनुसार बडे-बडे विहारों को मिट्टी खोद कर उनके ढेर में दबा दिया गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि आज नागपुर की दीक्षाभूमि पर वह इतिहास फिर से दोहराया जा रहा है। अगर यह खुदाई नहीं रोकी गई तो हमारा स्तूप नहीं बच सकता।
संजू आगे कहते हैं ‘निजी तौर पर मुझे यह निर्माण न ही पार्किंग के लिये लगता है न केवल अंडरग्राउंड लेवल पर। यह साफ समझ आ रहा है कि यह ज़मीन के अन्दर तीन मंज़िला गहरा होगा और ज़मीन के ऊपर भी कई मंजिलों तक होगा। जाहिर है ये दोनों ही निर्माण सिर्फ कार्पोरेट के लिए होंगे, जहां सम्भवत: बड़े-बड़े मॉल या गोदाम बनाए जाएंगे। ऐसे में दीक्षाभूमि इसके पीछे दबकर रह जाएगा। न इस ज़मीन पर हमारे लाखों लोग इकट्ठा हो पाएंगे न कोई किताबों की बिक्री हो सकेगी।’
संजू लोखंडे की इन बातों में वाकई दम नज़र आता है। सच कहा जाए तो स्मारक समिति की आम जनों से बैठक पा रंजीत की प्रसिद्ध फिल्म काला की याद दिलाती है कि कैसे मुम्बई की धारावी पर कब्जा जमाने के लिये एक बिल्डर झुग्गी उन्मूलन, विकास और स्वच्छता का सपना दिखाकर लोगों के घर हथियाने की कोशिश सब्जबाग दिखा कर करता है। दीक्षाभूमि की इस मीटिंग में भी सौंदर्य और सुविधा के ठीक ऐसे ही सब्जबाग थ्री डी विडियो के माध्यम से दिखाए गए थे। और तो और उनके पास जनता के किसी भी सवाल का कोई तार्किक और तथ्यात्मक जवाब नहीं था।
नाम न छापने की शर्त पर नागपुर के एक सरकारी कर्मचारी ने कहा ‘दरअसल यह ज़मीन शहर के प्राइम लोकेशन पर है इसलिये इसकी कीमत अरबों-खरबों में है। सीधे-सीधे तो इसे हड़पा नहीं जा सकता इसलिये स्मारक समिति से सांठ-गांठ कर इसे हड़पा जा रहा है। वैसे भी समिति के अध्यक्ष भंते सुरई ससाई, जो बेहद ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति हैं, पिछले कुछ साल से इतने बीमार चल रहे हैं कि अपनी याददाश्त काफी हद तक खो चुके हैं। ऐसे में समिति के बाकी सदस्यों की मौज़ हो गई है। निश्चित ही कॉर्पोरेट ने उन्हें करोडो रुपये का ऑफर दिया होगा जिससे वे बहक गये। वर्ना क्या कारण है कि जिस निर्माण से सिर्फ नुकसान ही नुकसान है और जिसका हर आम्बेडकरवादी अपने सामान्य विवेक के आधार पर विरोध कर रहा है। नागपुर के इंजीनियरों के संगठन ‘बनाई’ भी स्तूप के नुकसान के लिये चिंतित है कि सलाह को मानने के यह समिति के सदस्य तैयार नहीं है। वैसे भी इन सदस्यों ने समिति को अपनी पुश्तैनी जागीर समझ रखा है। बाप के बाद बेटा समिति का सदस्य बन रहा है। क्या यह कोई लोकतंत्र है? क्या यही आम्बेडकरवाद है? यह समिति एकदम भ्रष्ट है इसलिये हमें इनके कोरे आश्वासनों में नहीं पड़ना चाहिये, बल्कि महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री को आधिकारिक रूप से हस्तक्षेप करते हुए इन निर्माण कार्य को निरस्त करवाना चाहिये।’
समिति के सदस्यों के प्रति हर किसी ने असंतोष जाहिर किया है, क्योंकि वे न सिर्फ इस निर्माण कार्य बल्कि इसकी जनहित की उदासीनता से दुखी है।
एक अन्य कार्यकर्ता ने कहा कि एक जमाने में आम्बेडरवादी सबसे प्रगतिशील, संघर्षशील और जागरूक कौम होती थी। लेकिन अब पिछले कुछ दशकों में इसमें अजीब सी शिथिलता आ गई है। आज लोग स्वार्थी हो गये हैं। नागपुर शहर में पहले कोई बाबासाहेब का अपमान करने की जुर्रत नहीं कर सकता था लेकिन आज देखिये खुद आम्बेडकराइट पार्टी आफ इंडिया नाम से दुकान चलाने वाला एक भ्रष्ट कैसे खुलेआम टीवी चैनलों पर डॉ. आम्बेडकर के खिलाफ जहर उगलता रहता है। लेकिन कोई उसका विरोध तक नहीं करता। क्या आज से दस साल पहले यह सम्भव था? अब देखिये न नीट और नेट की परीक्षा के पेपरलीक हो गये। हमारे बच्चों को दोबारा पैसे खर्च कर ये एग्ज़ाम देने होंगे। हर किसी के पास इतने पैसे तो होते नहीं कि वह बार-बार बस और ट्रेन का खर्चा कर एग्ज़ाम सेंटर तक जा सके। उनका क्या होगा? इतना ही नहीं महाराष्ट्र के अनुसूचित जाति के बच्चों को साज़िश कर विदेशी फेलोशिप से वंचित किया जा रहा है। हमारे पड़ोस के छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को बेघर किया जा रहा, जंगलों को निर्ममता से काटा जा रहा। मध्यप्रदेश में दलित और आदिवासियो पर अत्याचार चरम पर हैं। महाराष्ट्र में भी ऐसे अपराध कितने बढ़ चुके लेकिन अपने आपको आम्बेडकरवादी कहलाने वाले लोग मौन हैं। ऐसे लोग भला दीक्षाभूमि कैसे बचा पाएंगे? हमें जैनियो से सीखने की जरूरत है। उनके एक पर्वत को झारखण्ड सरकार ने जब नेचर रिज़र्व घोषित किया था तो पूरे देश भर के जैन इसके विरोध में खडे हो गये थे। आखिर मज़बूर होकर सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था।
लेकिन नागपुर के लोगो को छ महीने बाद होश आया और शहर के बाहर के लोगों को तो अब तक कानो-कान कोई खबर नहीं। यह मामला इतने पर ही नहीं रुकेगा। अगर आज सरकार हमारी दीक्षाभूमि छीन लेगी तो कल यह हमारे घर और संपत्ति तक भी छीन सकेगी। आखिर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के साथ तो यह शुरू हो ही चुका है। हम कब तक बचेंगे। इसलिये हमें दीक्षाभूमि की रक्षा की जिम्मेदारी लेनी ही होगी। एक तरफ सरकार अयोध्या, उज्जैन, वाराणसी में सरकारी पैसो का दुरूपयोग कर हिंदू मंदिर बना रही हैं वहीं हम अल्पसंख्यकों के ऐतिहासिक स्थलों को नष्ट करने पर तुली है। यह हमारे संविधान पर हमला है। इसका विरोध होना ही चाहिये।’
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गौरतलब है कि दीक्षाभूमि कोई सामान्य धार्मिक स्थल नहीं बल्कि एक ऐसा ऐतिहासिक स्थान है जहाँ इस देश के भविष्य को प्रभावित करनेवाली घटना घटी थी। हर वर्ष देश भर के आमजन और प्रगतिशील इकट्ठा होकर यहाँ अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। इस स्थल का महत्व इससे भी सिद्ध होता है कि धम्मचक्र प्रवर्तन के दिन यहाँ देश में सबसे ज्यादा किताबों की बिक्री होती है, जिसमें तमाम प्रगतिशील तबके के प्रकाशक अपनी किताब बेच पाते हैं। अनेक विशेषताओं को लिये यह ऐतिहासिक स्थल न सिर्फ भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय आकर्षण का केंद्र है अत: इसका संरक्षण हर हाल में किया जाना जरूरी है। मामले की गंभीरता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार अथवा केंद्र सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करते हुए ऐसे किसी भी निर्माण कार्य पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। साथ ही यह तमाम इंसाफ पसंद, प्रगतिशील लोगों और राजनीतिक दलों की भी जिम्मेदारी है कि वह दीक्षाभूमि की रक्षा कर देश की धर्मनिरपेक्षता और संविधान की भावना के प्रति अपनी अपनी भूमिका अदा करें।