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राजस्थान : शैक्षिक संसाधनों के नाम पर ग्रामीण इलाके पूरी तरह पिछड़े हुए हैं

ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए एक ठोस रणनीति पर अमल करने की जरूरत है। जिसमें बुनियादी ढांचा और सुविधाएं उपलब्ध कराना अहम हैं। इनमें क्लास रूम की सुविधा उपलब्ध कराना, उचित स्वच्छता सुविधाओं को मुहैया कराना, शौचालय विशेष रूप से लड़कियों के लिए, साथ ही बिजली और पीने का साफ पानी मुख्य रूप से शामिल है।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की समस्या हमेशा ध्यान देने की मांग करती रही है। हालांकि समय के साथ इसमें काफी सुधार हुआ है, लेकिन स्थिति अभी भी उतनी संतोषजनक नहीं है जितनी होनी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक बुनियादी ढांचे की कमी, शिक्षकों की कमी, शैक्षिक संसाधनों का अभाव और कमजोर सामाजिक परिवेश के कारण शिक्षा के संबंध में जन जागरूकता की कमी जैसे मुद्दे इसके विकास में एक बड़ी बाधा बन रहे हैं। इसके अतिरिक्त जर्जर स्कूल भवन, शौचालय, स्वच्छ पेयजल और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी बच्चों की शैक्षणिक विकास को रोकते हैं. कई बार संसाधन और ढांचे बेहतर होते हैं तो शिक्षकों की कमी इसकी गुणवत्ता को प्रभावित करती है।

राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित राजपुरा हुडान गांव में संचालित प्राथमिक विद्यालय इसका एक उदाहरण है। ब्लॉक लूणकरणसर से करीब 18 किमी दूर इस गांव के प्राथमिक विद्यालय का भवन तो बेहतर है लेकिन शिक्षकों और अन्य संसाधनों की कमी यहां पढ़ने वाले बच्चों के शैक्षणिक विकास को प्रभावित कर रहे हैं। जिससे अभिभावकों की चिंता बढ़ती जा रही है। इस संबंध में 55 वर्षीय एक अभिभावक करणी सिंह बताते हैं कि इस स्कूल का भवन तो बेहतर है लेकिन इसमें अन्य सुविधाओं की काफी कमी है। यहां करीब 45 बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल में शौचालय की स्थिति ठीक नहीं है। वह बच्चों के इस्तेमाल के लायक नहीं है। इसके अतिरिक्त स्कूल में पीने के साफ़ पानी की भी कमी है।  एक हैंडपंप लगा हुआ है जिससे अक्सर खारा पानी आता है. जिसे पीकर बच्चे बीमार हो जाते हैं. इसके कारण कई बार बच्चे स्कूल आना नहीं चाहते हैं. वह कहते हैं कि प्राथमिक शिक्षा बच्चों की बुनियाद को बेहतर बनाने में मददगार साबित होती है. लेकिन जब सुविधाओं की कमी के कारण बच्चे स्कूल ही नहीं जायेंगे तो उनकी बुनियाद कैसे मज़बूत होगी? उन्हें आगे की शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई आएगी. करणी सिंह बताते हैं कि राजपुरा हुडान में एक उच्च माध्यमिक विद्यालय भी संचालित है. जिसका भवन भी काफी बेहतर है लेकिन यहां भी कई बुनियादी सुविधाओं की कमी देखने को मिलती है।

वहीं एक अन्य अभिभावक बैजुनाथ कहते हैं कि उनके तीन बच्चे हैं। जिनमें से 2 इसी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। लेकिन स्कूल में सुविधाओं की कमी के कारण बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। इस स्कूल में शिक्षकों की कमी एक गंभीर समस्या है। जो शिक्षक यहां तैनात हैं उनके पास आवश्यक प्रशिक्षण और संसाधनों का अभाव है. जिसका प्रभाव बच्चों के रिज़ल्ट पर देखने को मिलता है। वहीं शिक्षकों की कमी से पठन-पाठन भी प्रभावित होता रहता है। इसके अतिरिक्त स्कूल में पानी की समस्या के साथ साथ बिजली भी नहीं रहती है। गर्मी के दिनों में बिना पंखें के बच्चों को पढ़ने में काफी मुश्किलें आती हैं। वह कहते हैं कि  गांव में एक प्राइवेट स्कूल है, जहां सक्षम परिवार के बच्चे पढ़ने जाते हैं। लेकिन वह और उनके जैसे गांव के ज्यादातर अभिभावक आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं। ऐसे में वह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही भेजने पर मजबूर हैं. लेकिन यदि स्कूल में सुविधाओं की कमी होगी तो बच्चों का पढ़ने में कैसे दिल लगेगा?

स्कूल के पास ही संचालित आंगनबाड़ी की 40 वर्षीय कार्यकर्ता संतोष बताती हैं कि बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर स्कूल का भवन तो अच्छा बनाया गया है, लेकिन इसके अतिरिक्त स्कूल में अन्य सुविधाओं की कमी है। न तो स्वच्छ जल उपलब्ध है और ना ही स्कूल में नियमित रूप से बिजली रहती है। अभी जाड़े के मौसम में तो बच्चों को ज्यादा समस्या नहीं आती है लेकिन गर्मी के दिनों में लाइट नहीं रहने से बच्चे बहुत कम स्कूल आते हैं। इसके अलावा बच्चों के लिए खेल का मैदान, जो उनके सर्वांगीण विकास में बहुत अधिक सहायक होता है,  इसकी भी यहां कमी देखने को मिलती है। वह बताती हैं कि राजपुरा हुडान गांव की जनसंख्या करीब 1831 है। यहां सभी समुदायों की लगभग मिश्रित आबादी देखने को मिलती है। आर्थिक सक्षमता के मामले में भी यह अंतर साफ नजर आता है, जो परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हैं उन घरों के बच्चे गांव के सरकारी स्कूल में ही पढ़ने जाते हैं।

प्रथम फाउंडेशन की ओर से जारी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2023 के अनुसार देश में 14 से 18 वर्ष की आयु के लगभग 25 फीसदी छात्र कक्षा 2 स्तर के पाठ आसानी से नहीं पढ़ पाते हैं। वहीं इस आयु वर्ग के तकरीबन 42.7 फीसदी स्टूडेंट्स अंग्रेजी में वाक्य पढ़ने में कमजोर हैं। सर्वे किए गए छात्रों में साक्षरता एवं न्यूमरेसी की मूलभूत स्किल्स में भी कमी पाई गई है। 51.6 फीसदी छात्र अरिथमेटिक के आसान सवाल भी हल नहीं कर पा रहे थे। बियॉन्ड बेसिक्स नाम से जारी इस रिपोर्ट के अनुसार 14 से 18 आयु वर्ग के सर्वे में शामिल कुल युवाओं में से 86.8 फीसदी स्टूडेंट्स ही शैक्षणिक संस्थानों में नामांकित हैं। वहीं आयु के साथ नामांकन दर में भी गिरावट देखी गई है।  क्योंकि 18 वर्ष की आयु के केवल 67.4 स्टूडेंट ही शैक्षणिक संस्थाओं में पढ़ रहे हैं। रिपोर्ट में देश के 26 राज्यों के 28 जिलों के 34,745 छात्रों का सर्वेक्षण किया गया है। इनमें सरकारी एवं प्राइवेट दोनों संस्थानों के स्टूडेंट इसमें शामिल हैं। जाहिर है कि यह कमियां शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा देखा गया होगा।

वास्तव में ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए एक ठोस रणनीति पर अमल करने की जरूरत है। जिसमें बुनियादी ढांचा और सुविधाएं उपलब्ध कराना अहम हैं। इनमें क्लास रूम की सुविधा उपलब्ध कराना, उचित स्वच्छता सुविधाओं को मुहैया कराना, शौचालय विशेष रूप से लड़कियों के लिए, साथ ही बिजली और पीने का साफ पानी मुख्य रूप से शामिल है। बिजली की समस्या को दूर करने के लिए स्कूल को सौर ऊर्जा से लैस किया जा सकता है। साथ ही स्थानीय समुदाय के बीच शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जाने की जरूरत है। इसके लिए निजी संस्थानों और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को भी स्कूल सुधार कार्यक्रमों में शामिल किया जा सकता है। वस्तुतः ग्रामीण स्कूलों की स्थिति में सुधार करना केवल एक शैक्षिक जरूरत नहीं, बल्कि एक सामाजिक और राष्ट्रीय आवश्यकता है। जब तक ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा,  भारत का समग्र विकास अधूरा रहेगा। इसके लिए यदि सरकार के साथ साथ गैर-सरकारी संगठन और स्थानीय समुदाय मिलकर इस दिशा में प्रयास करें तो निश्चित ही ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की सूरतेहाल को बदला जा सकता है। (चरखा फीचर्स)

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