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Newsclick का मुकदमा: संपादक प्रबीर पुरकायस्‍थ के दशकों पुराने साथी अमित चक्रवर्ती ने दी सरकारी गवाह बनने की अर्जी

बीते अक्‍टूबर में गैरकानूनी गतिविधि निवारक अधिनियम (यूएपीए) के अंतर्गत चक्रवर्ती और संपादक प्रबीर पुरकायस्‍थ को गिरफ्तार किया था और चालीस से ज्‍यादा जगहों पर छापे मारकर अलग-अलग पत्रकारों से पूछताछ की गई थी

दिल्‍ली: समाचार पोर्टल न्‍यूजक्लिक के खिलाफ भारत विरोधी प्रचार के लिए विदेशी फंडिंग की जांच वाले मामले में कैद कंपनी के एचआर मैनेजर अमित चक्रवर्ती ने सरकारी गवाह बनने के लिए दिल्‍ली के पटियाला हाउस कोर्ट में कथित रूप से अर्जी दाखिल की है। बीते अक्‍टूबर में गैरकानूनी गतिविधि निवारक अधिनियम (यूएपीए) के अंतर्गत चक्रवर्ती और संपादक प्रबीर पुरकायस्‍थ को गिरफ्तार किया था और चालीस से ज्‍यादा जगहों पर छापे मारकर अलग-अलग पत्रकारों से पूछताछ की गई थी।

चक्रवर्ती के सरकारी गवाह बनने का मतलब यह है कि वे दिल्‍ली पुलिस द्वारा वेबसाइट और उसके मालिक व संपादक प्रबीर पर लगे आरोपों की पुष्टि कर सकते हैं। यह घटनाक्रम मामले को और संगीन बनाता है क्‍योंकि न्‍यूजक्लिक के तमाम बैंक खाते पहले ही फ्रीज किए जा चुके हैं और फिलहाल वहां कर्मचारियों को काम करने के बदले पैसा नहीं मिल पा रहा है।

अमित चक्रवर्ती के सरकारी गवाह बनने को तैयार होने की सूचना इसलिए चौंकाने वाली है क्‍योंकि प्रबीर पुरकायस्‍थ के साथ उनका दशकों पुराना रिश्‍ता है, जिसकी जड़ें 1990 तक जाती हैं। सबसे पहले 15 जुलाई 1990 को दिल्‍ली में एक कंपनी पंजीकृत हुई थी- सागरिक प्रोसेस एनालिस्‍ट्स प्राइवेट लिमिटेड। इसमें प्रबीर और अमित चक्रवर्ती निदेशक थे। चक्रवर्ती फिलहाल न्‍यूजक्लिक का लेखा और मानव संसाधन आदि देखते हैं। यह कंपनी अब बंद हो चुकी है।

28 अप्रैल 2015 को दिल्‍ली में पीपी न्‍यूजक्लिक स्‍टूडियो एलएलपी नाम की कंपनी बनाई गई, जिसमें सात पार्टनर थे: प्रबीर (डेजिग्‍नेटेड पार्टनर) और बाकी छह इंडीविजुअल पार्टनर गौतम नवलखा, बप्‍पादित्‍य सिन्‍हा, अमित सेनगुप्‍ता, दोराईस्‍वामी रघुनंदन, गीता हरिहरन और अमित चक्रवर्ती। इस एलएलपी (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) कंपनी को सीएमपी में परिवर्तित कर दिया गया यानी प्राइवेट लिमिटेड बना दिया गया, जो आज पीपीके न्‍यूजक्लिक स्‍टूडिया के नाम से सक्रिय है और जिसका एफआइआर में नाम है।

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1990 से लेकर आज तक प्रबीर और अमित का कारोबारी साथ किसी न किसी रूप में रहा है। दोनों फिलहाल कैद में हैं, लेकिन इस मामले में सबसे अहम किरदार का नाम है नेविल रॉय सिंघम जो 2017 तक एक वैश्विक सॉफ्टवेयर कंपनी थॉटवर्क्‍स चलाते थे। इसे एक ब्रिटिश कंपनी एपैक्‍स पार्टनर्स को बेचकर उन्‍होंने उससे मिले पैसों से अमेरिका में कुछ दानदात्री संस्‍थाएं बनाईं और खुद शंघाई जाकर बस गए। सिघम की इसी कंपनी में प्रबीर पुरकायस्‍थ सामाजिक-आर्थिक न्‍याय प्रकोष्‍ठ के निदेशक हुआ करते थे। जब कंपनी बिकी, तो कुछ कर्मचारी उसी में रह गए और कुछ दानदात्री संस्‍था के साथ आ गए। इनमें एक थे जेसन फेचर, जो अब पीपुल्‍स सपोर्ट फाउंडेशन (पीएसएफ) और वर्ल्‍डवाइड मीडिया होल्डिंग्‍स एलएलसी का काम देखते हैं।

ताजा प्रकरण में फेचर ने 6 अक्‍टूबर को एक बयान जारी करते हुए किसी अवैध धन की आमद के आरोपों से इनकार करते हुए साफ कहा था कि पीएसएफ का सारा पैसा थॉटवर्क्‍स की बिक्री से आया हुआ है और उसने रिटर्न के बदले न्‍यूजक्लिक में निवेश किया था। न्‍यूजक्लिक ने अब तक लगातार दिल्‍ली पुलिस के सभी आरोपों का खंडन किया है।

दिल्‍ली पुलिस के ये आरोप 17 अगस्‍त 2023 को लोधी रोड स्थित स्‍पेशल सेल के थाने में दर्ज की गई एक एफआइआर में शामिल हैं। इसी एफआइआर के सिलसिले में इस साल गांधी जयन्‍ती की अगली सुबह 3 अक्‍टूबर को कोई चार दर्जन से ज्‍यादा ठिकानों पर छापे मारे गए थे। उक्‍त एफआइआर में (यूएपीए) की धाराओं 13/16/17/18/22सी और भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धाराओं 153ए/120बी के अंतर्गत प्रबीर पुरकायस्‍थ, गौतम नवलखा और नेविल रॉय सिंघम नामक तीन व्‍यक्तियों को आरोपित बनाया गया था और तहरीर में डेढ़ दर्जन और नामों का जिक्र है।

गौतम नवलखा पहले से ही यलगार परिषद के केस में आरोपित और नजरबंद हैं जबकि रॉय सिंघम भारत में नहीं रहते। गिरफ्तारी केवल प्रबीर पुरकायस्‍थ और अमित चक्रवर्ती की हुई थी।

एफआइआर में ‘मेसर्स पीपीके न्‍यूजक्लिक स्‍टूडियो प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की कंपनी और उससे जुड़े लोगों पर दो किस्‍म के आरोप लगाए गए हैं। पहला आरोप अवैध तरीके से भारतीय और विदेशी इकाइयों से धन लेने का है। यह धन ‘मेसर्स वर्ल्‍डवाइड मीडिया होल्डिंग्‍स एलएलसी, यूएसए और अन्‍य’ से आया है। दूसरा आरोप यह है कि ‘भारत की सम्‍प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को विकृत करने की मंशा से एक षडयंत्र के सिलसिले में’ यह धन लिया गया ताकि ‘भारत के प्रति नफरत पैदा हो और भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरा’ पैदा हो। तहरीर में काफी बाद में इस ‘षडयंत्र’ की प्रकृति बताते हुए लिखा है कि ‘वैश्विक और घरेलू स्‍तर पर एक नैरेटिव’ (अफसाना) बुनने की कोशिश की गई कि ‘कश्‍मीर और अरुणाचल प्रदेश विवादित क्षेत्र हैं’।

एफआइआर कहती है कि ‘भारत की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार के खिलाफ लोगों में, खासकर किसानों में नफरत को उकसाकर ये लोग एक व्‍यापक आपराधिक षडयंत्र के तहत विभिन्‍न समूहों/वर्गों के लोगों के बीच अशांति और विभाजन पैदा करते रहे हैं, जिसके वृहद अंतरराष्‍ट्रीय आयाम हैं।‘

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दिल्‍ली पुलिस की एफआइआर की पृष्‍ठभूमि में दो घटनाएं अहम बताई गई हैं। पहली, न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स में 5 अगस्‍त, 2023 को सिंघम पर छपा एक लेख जो उन्‍हें दुनिया भर में चीनी प्रचारतंत्र का सरगना बताता है और न्‍यूजक्लिक का दो बार संदर्भ देता है (जिसमें चीन से जुड़े एक वीडियो के अलावा और कोई उदाहरण मौजूद नहीं है)। दूसरी घटना भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे द्वारा इस लेख का लोकसभा में 7 अगस्‍त को दिया गया उद्धरण है, जिसके बहाने कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधा गया था। हकीकत यह है कि न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स के लेख से काफी पहले ही न्‍यूजक्लिक एजेंसियों के राडार पर आ चुका था, लिहाजा न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स के लेख की भूमिका आग में घी से ज्‍यादा की नहीं थी।

अगस्‍त 2020 में ही आर्थिक अपराध प्रकोष्‍ठ (ईओडब्‍ल्‍यू) ने न्‍यूजक्लिक के खिलाफ आइपीसी की धाराओं 406, 420 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज किया था और उसके ऊपर प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश के मानकों के उल्‍लंघन का आरोप लगाया था। इसी आधार पर फरवरी 2021 में ईडी ने स्‍वतंत्र जांच शुरू करते हुए न्‍यूजक्लिक के खिलाफ हवाला का एक केस दर्ज किया। जुलाई में ईडी ने दावा किया कि न्‍यूजक्लिक को सिंघम से 2018 से 2021 के बीच 38 करोड़ रुपये मिले हैं। इस पैसे के लाभार्थियों में गौतम नवलखा का नाम भी आया और उनसे जेल में पूछताछ की गई।

जून 2021 में दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय ने प्रबीर पुरकायस्‍थ और न्‍यूजक्लिक को ईडी की किसी जोर-जबर वाली कार्रवाई से सुरक्षा दी थी। यह सुरक्षा बढ़ती गई और न्‍यूजक्लिक का संचालन जारी रहा। बीते अगस्‍त में ईडी ने उच्‍च न्‍यायालय से अपील की कि यह सुरक्षा हटा दी जाए क्‍योंकि यह अग्रिम जमानत के जैसी है। अदालत ने इसके बाद प्रबीर को दो हफ्ते का वक्‍त जवाब दाखिल करने को दिया था। इसी बीच न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स का लेख छप गया, मामला संसद में उठ गया और नया मुकदमा दिल्‍ली पुलिस ने दर्ज कर लिया।

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